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प्रभु मिलन का गुप्त युग—पुरुषोतम संगम युग

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भारत में आदि सनातन धर्म के लोग जैसे अन्य त्यौहारों, पर्वो इत्यादि को बड़ी श्रद्धा से मानते है, वैसे ही पुरुषोतम मास को भी मानते है | इस मास में लोग तीर्थ यात्रा का विशेष महात्म्य मानते है और बहुत दान-पुन्य भी करते है तथा आध्यात्मिक ज्ञान की चर्चा में भी काफी समय देते है | वे प्रात: अमृत्वेले ही गंगा-स्नान करने में बहुत पूण्य समझते हैवास्तव में ‘पुरुषोतम’ शब्द परमपिता परमात्मा ही का वाचक है | जैसे ‘आत्मा’ को ‘पुरुष’ भी कहा जाता है, वैसे ही परमात्मा के लिए ‘परम-पुरुष’ अथवा ‘पुरुषोतम’ शब्द का प्रयोग होता है क्योंकि वह सभी पुरुषों (आत्माओ) से ज्ञान, शान्ति, पवित्रता और शक्ति में उतम है | ‘पुरुषोतम मास’ कलियुग के अन्त और सतयुग के आरम्भ के संगम का युग की याद दिलाता है क्योंकि इस युग में पुरुषोतम (परमपिता) परमात्मा का अवतरण होता है | सतयुग के आरम्भ से लेकर कलियुग के अन्त तक तो मनुष्यात्माओं का जन्म-पुनर्जन्म होता ही रहता है परन्तु कलियुग के अन्त में सतयुग और सतधर्म की तथा उतम मर्यादा की पुन: स्थापना करने के लिए पुरुषोतम (परमात्मा) को आना पड़ता है | इस ‘संगमयुग’ में परमपिता परमात्मा मनुष्यात्माओं को ज्ञान और सहज राजयोग सिखाकर वापिस परमधाम अथवा ब्रह्मलोक में ले जाते है और अन्य मनुष्यात्माओं को सृष्टि के महाविनाश के द्वारा अशरीरी करके मुक्तिधाम ले जाते है | इस प्रकार सभी मनुश्यात्माए शिव पूरी अठाव विष्णुपुरी की अव्यक्ति एवं आध्यात्मिक यात्रा करती है और ज्ञान चर्चा अथवा ज्ञान-गंगा में स्नान करके पावन बनती है | परन्तु आज लोग इन रहस्यों को न जानने के कारण गंगा नदी में स्नान करते है और शिव तथा विष्णु की स्थूल यादगारों की यात्रा करते है | वास्तव में ‘पुरुषोतम मास’ में जिस दान का महत्व है, वह दान पाँच विकारों का दान है | परमपिता परमात्मा जब पुरुषोतम युग में अवतरित होते है तो मनुष्य आत्माओं को बुराइयों अथवा विकारों का दान देने की शिक्षा देते है | इस प्रकार, वे काम-क्रोधादि विकारों को त्याग कर मर्यादा वाले बन जाते है और उसके बाद सतयुग, देयुग का आरम्भ हो जाता है | आज यदि इन रहस्यों को जानकर मनुष्य विकारों का दान दे, ज्ञान-गंगा में नित्य स्नान करे और योग द्वारा देह से न्यारा होकर सच्ची आध्यात्मिक यात्रा करें तो विश्व में पुन: सुख, शान्ति सम्पन्न राम-राज्य (स्वर्ग) की स्थापना हो जायगी और नर तथा नारी नर्क से निकल स्वर्ग में पहुँच जाएगें | चित्र में भी इसी रहस्य को प्रदर्शित किया गया है |यहाँ संगम युग में श्वेत वस्त्रधारी प्रजापिता ब्रह्मा, जगदम्बा सरस्वती तथा कुछेक मुख वंशी ब्राह्मणों और ब्राह्मणियों को परमपिता परमात्मा शिव से योग लगाते दिखाया गया है | इस राजयोग द्वारा ही मन का मेल धुलता है, पिछले विकर्म दग्ध होते है और संस्कार स्तोप्र्धन बनते है | अत: नीचे की और नर्क के व्यक्ति ज्ञान एवं योग-अग्नि प्रज्जवलित करके काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार को इस सूक्ष्म अग्नि में स्वाह करते दिखाया गये है | इसी के फलस्वरूप, वे नर से श्री नारायण और नारी से श्री लक्ष्मी बनकर अर्थात ‘मनुष्य से देवता’ पद का अधिकार पाकर सुखधाम-वैकुण्ठ अथवा स्वर्ग में पवित्र एवं सम्पूर्ण सुख-शान्ति सम्पन्न स्वराज्य के अधिकारी बनें है |मालुम रहे कि वर्तमान समय यह संगम युग ही चल रहा है | अब यह कलियुगी सृष्टि नरक अर्थात दुःख धाम है अब निकट भविष्य में सतयुग आने वाला है जबकि यही सृष्टि सुखधाम होगी | अत: अब हमे पवित्र एवं योगी बनना चाहिए |

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