Bkvarta

तपस्वी मूर्त – प्रकाशमणि दादीजी

तपस्वी मूर्त & दादीजी एक अद्वितीय अध्यात्मिक शिक्षिका – प्रकाशमणि दादीजी

तपस्वी मूर्त – प्रकाशमणि दादीजी
ऐसे  तो दादीजी का नेचर  सहज तपस्या का ही था . उनका मन सहज ही उपराम अवस्था में रहती थी ..जैसे आप सभी को पता है बरसात की दिनों में मधुबन में भट्टिया चलती है  उसमें  हर साल अस्पताल की भाई -बेहने भी भाग लेते है . १९९४ की बात है जब सुखधाम  में तीसरी मंजिल में भट्टिया आयोजन किया था . बहुत ही जबरदस्त वायुमंडल बना था . शाम की समय विशेष योप्ग करने दादीजी पधारे .दादीजी  का ऐसे स्वरुप बनता गया  जो भूल नहीं सकता  चारो तरफ  लाईट ही लाईट दिखाई देने लगा दादीजी का चेहरा बिलकुल गोल्डेन रंग में परिवर्तन होते होते फिर सब कुछ अद्दृश्य  होने लगा ….सब कुछ ….फिर सन्नाटा ही सन्नाटा ऐसे लग रहा था  जैसे  बिलकुल सागर की किनारे पर है और  अतीन्द्रिय सुख की रंग भी रंग की किरणों के बीच हम सब उपस्थित है फिर  कुछ समय के बाद दादीजी  धीरे धीरे आवाज में आई और सूक्ष्म वतन की दृश्य बाबाने जो दिखाया वो सब हमें सुनाने लगी. ऐसे थी हमारे दादीजी …आज भी वो दृश्य हमें शांतिवन में  अशरीरी स्तिति के द्वारा अनुभूति होती है …दादीजी सदा अव्यक्त …..सदा शांत …सदा उपराम …सदा लाइट के कार्ब में रहनेवाली ..एक अवतरित फरिश्ता थी …जो हम सब के जीवन के लिए प्रेरणा स्त्रोत है दृश्य  नयनो के सामने आते ही …स्नेह की आँसू  आ जाते है …मन मन स्पस्ट होते जा रहा था की दादी माना बाबा …बस ..ऐसे महसूस  करने की इच्छा  हमेशा रहता था सदा उनके दुआ की चात्रचाया में पलते रहे ….आज भी मधुबन में उनके द्वारा बनाया हुआ अव्यक्त वायुमंडल है ……

 

दादीजी एक अद्वितीय अध्यात्मिक शिक्षिका


१ दादीजी कुछ बोल के द्वारा सिखाती थी , कुछ दिव्या चलन द्वारा सिखाती थी , कुछ दिव्या अध्यात्मिक 
प्रकाम्पनो द्वारा सिकाती थी

२ नित्य सुबह हर राज्रिशियोंके संघटन को उध्भोधन कराती थी . जिन अध्यात्मिक राजो भरा महावाक्य वो
उच्छारते थे उसको हम मुरली कहते है .नित्य सही समय पर सभी को सम्भोदन करते थे . कई आयामों वाला
इस महान विभुतियोमें थोड़ी सी जहलक मैंने जो देखा वो इस प्रकार है

३ जब वो इस ईश्वरीय महावाक्य पड़ती थी ऐसे लगता था जैसे एक आकाशवाणी हो रही एक अवतरित फरिश्ता
दिव्या स्मृति में वो ईश्वरीय महावाक्य पद रहे है

४ जब भी वो इन् महाव्क्य उच्चारते थे ..सुनने वाले अनुभुतियोमें खो जाते थे ..खुद वो इस स्वरुप में रहकर मुरली
पदाठी थी

५ हमें ऐसा लगता था की दादीजी महावाक्य बहुत गहराई में बहुत न्यारापन से अपने लिए पढ़ रही है .खुद वो
ईश्वरीय नशे में रहती थी की भगवान् खुद उनको पढ़ा रहे है

६ महावाक्य सुनाने वालोंको पता ही नहीं चलता था समय कब पूरा हुआ है …पूरा एक घंटा ऐसे ही चला जाता था .

७ उन् महाव्क्यो में जितना भी बाते सरल हो उन् छोटी बातो नकी गहराई की अनुभूति वो करती थी

८ जभ भी इसके उंदर धारनओंकी ओंकी बात आती थी .खुद उन् स्वरुप में रहकर ..सभी को ऐसे महसूस कराती
थी की ऐ सब ऊंची धारानाये नेचरल है .सहज है ,बहुत ऊंची सच्चाई वाला है .इसको अपनाने में सहज ख़ुशी
की भंडार है .सदा इन् धारणा ओमें वो चिपकी हुयी जैसे लगती थी .सामने वाले विद्यार्थी ऐसे महससू करते
की असत्यता वाला धारणा फीखा फीखा है ..जैसे नकारात्मक धारणा ओमें कोई दम नहीं है

१० उनके बोल सुनते बुद्धि एकाग्र हो जाती थी

११ कोई भी विद्यार्थी उनके द्वारा सुनी महावाक्यो ओंको फिर से जभ भी एकांत में जभ सुनता था
वही दिव्या अनुभूतियाँ करता था .हुम थो रात को जागकर २ बजे एकांत में वही महाव्क्य सुनाते थे ऐसे थी हमारे प्यारे दादीजी …जो एक इतिहास बन गयी …एक यादगार बन गयी …साधानाओंके प्रेरणा स्त्रोत
बन गयी .जो उन के द्वारा ऐ पालना लिया वो थो पदमा पदम् भाग्यशाली है ही

admin

Related post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *