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परिसर परिचय

रावली पर्वत श्रृंखला की गोद में बसा नैसर्गिक सौंदर्य का प्रतिमानसैलानियों को अपनी और आकर्षित करनें में पूर्ण सक्षमसभीको त्मविभोर कर देने वाला नगर माउण्ड आबूआबू रोड रेलवे स्टेशन से पंद्रहबीस किलोमीटर से अधिक दूर नहीं है। पर्वतमालापर सर्पाकार बनी डामर की सड़क पर सवारियां ले जातीजीपें माउण्ड आबू पहुंचती हैं। सिरोही होकर बस मार्ग सेभी माउण्ड आबू जाया जा सकता है। माउण्ड आबू में रोडसे ही नीचे की ओर आंखें पसारकर देखने हैं तो मैदानीइलाका दिखाई देता हैं। जिसमें दूर तक खेत ही खेदिखाई देते है। यहां की जलवायु पर्यटकों को आकर्षण केऐसे मोहपाश में बांधती है कि पर्यटक खिंचे चले आते हैं।माउण्ट आबू के अवलोकन भ्रमण के लिए किसी माने मेंयह स्थल गुजरात में शुमार किया जाता था पर वर्तमान मेंराजस्थान की शोभा बढ़ा रहा है। होटलभोजनालय और गेस्ट हाऊस सभी स्थित हैं यहां पर। घूमनेफिरने के लिए भरपूर संख्या मेंउपलब्ध टैक्सीकारें और जीपें। यहां का पोलो ग्राउंड और ब्रम्हाकुमारी विश्ववि़लय दूरदूर तक प्रसिद्ध है। नक्की झील- पोलोग्राउंड सेचार फर्लांग दूरी पर स्थित है नक्की झील। पानी से लबालब नक्की झील की सतह पर जब चंद्रमा या सूरज की किरणें पड़ती हैं तो जलका कणकण दमकता है। झील में तैरता हुआ हाऊस बोट और डोगियां पर्यटकों को दिन भर घुमाने के लिए तैयार रहती है। झील केएक ओर हराभरा उ़ान अवस्थित है। जिसमें लॉन के बीचों बीच दो आकर्षक फव्वारे सतत् चलते रहते हैं। नक्की झील की सीमा दोकिलोमीटर के घेर में फैली हुई हैं। हनीमून पाइंट- नक्कीझील से साढे तीन किलोमीटर दूर है हनीमून पाइंट।   पास में ही गणेश जी का प्राचीन मंदिर स्थित है। चारों ओर पहाडिय़ों से घिरे इस स्थानपर कोहरे जैसी धुंध छाई रहती है। देवलवाड़ा के जैन मंदिर:- यह मंदिर दिगम्बर जैस संप्रदाय का संगमरमर से बना आभायुक्तमंदिर है जिसके तोरण द्वारगुंबद शिखर और आले तथा जालियों पर खुदाई काकाम देखकर खजुराहो के जैन मंदिरों की याद आती है।इसमें आदिनाथ भगवान की 2500 वर्ष पुरानी कसौटी पर पत्थर से निर्मित श्याम वर्ग मूर्ति है। कहते हैं कि इस मूर्ति को भामाशाह नेअम्बाजी की तपस्या कर भूगर्भ मे प्राप्त किया था। नेमी नाथ जी का मंदिर- यह मंदिर वास्तुपालतेजपाल द्वारा सन् 1231 मेंबारह करोड़ त्रेपन लाख रुपए की लागत से मनाया था। पूरा मंदिर संगमरमर का बना है। बेहतरीन पच्चीकारी का अनोखा संगम है।इस मंदिर में भगवान नेमीनाथ जी की अष्टाधातु की मूर्ति विराजमान है। मंदिर का निर्माण हुए 807 वर्ष व्यतीत हो चुके हैं। इस मंदिरके द्वार के दोनों ओर देवरानीजिठानी के मंदिर बने हुए हैं। ये देवरानीजिठानी वास्तुपालतेजपाल की धर्मपत्नियां थीं। अवलबगढ़-जनश्रुति है कि अचलगढ़ में एक ऐसा कुंड बना था जिस पर ऋषि मुनि यज्ञ किया करते थे। कभीकभार तीन राक्षस उनके यज्ञ मेंविध्न पैदा किया करते थे। राजा भृर्तहरि को जब यह मालूम हुआ तो उन्होंने उन तीनों राक्षसों को जो भैंसा के रूप में प्रकट होकर आतेथेमार दिया। प्रतीक के रूप में यहां राजा भृर्तहरि और तीनों राक्षसों की भैंसा के रूप में मूर्तियां बनी हुई हैं। सामने यज्ञ कुंड बना है।अर्बुद्ध देवी का मंदिर– यह मंदिर ऊपरी पहाड़ी पर बना है। सड़क के तल से 225 सीढिय़ां चढ़कर मंदिर में प्रवेश किया जाता है।मंदिर का द्वार काफी नीचा है इस वजह से श्रद्धालु भक्तजन झुककर मां को प्रणाम करते हैं। मंदिर का भीतरी भाग संगमरमर से निर्मितहै। माउण्ड आबू ने हमें इतना प्रभावित किया है कि इसकी स्मृतियों को इस जीवन में भुला पाना हमारे लिए संभव नहीं हैं। यह एकऐसा मनोरम स्थान है जो यहां आने की मन में बारबार लालसा जगाता है। 

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