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21-08-14

21-08-14          प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


“मीठे बच्चे – बाप ने तुम्हें संगम पर जो स्मृतियां दिलाई हैं, उसका सिमरण करो तो सदा हर्षित रहेंगे”   

                             
प्रश्न:-    
सदा हल्के रहने की युक्ति क्या है? किस साधन को अपनाओ तो खुशी में रह सकेंगे?

उत्तर:- 
सदा हल्का रहने के लिए इस जन्म में जो-जो पाप हुए हैं, वह सब अविनाशी सर्जन के आगे रखो । बाकी जन्म-जन्मान्तर के पाप जो सिर पर हैं उसके लिए याद की यात्रा में रहो । याद से ही पाप कटेंगे, फिर खुशी रहेगी । बाप की याद से आत्मा सतोप्रधान बन जायेगी ।

 

ओम् शान्ति |

मीठे-मीठे रूहानी बच्चों को रूहानी बाप समझाते हैं-तुमको स्मृति आई है कि हम आदि सनातन देवी- देवता धर्म के थे, हम राज्य करते थे, हम बरोबर विथ के मालिक थे । उस समय दूसरा कोई धर्म नहीं था । हमने ही सतयुग से लेकर जन्म लेते 84 का चक्र पूरा किया । सारे झाड़ की स्मृति आई है । हम देवता थे फिर रावण राज्य में आ गये तो देवी-देवता कहलाने के लायक न रहे इसलिए धर्म ही दूसरा समझ लिया । और किसका भी धर्म बदलता नहीं है । जैसे क्राइस्ट का क्रिश्चियन धर्म, बुद्ध का बौद्ध धर्म ही चला आता है । सबकी बुद्धि में है बुद्ध ने फलाने टाइम धर्म स्थापन किया । हिन्दुओं को अपने धर्म का पता ही नहीं है कि हमारा हिन्दू धर्म कब से शुरू हुआ, किसने बनाया?लाखों वर्ष कह देते । सारे सृष्टि चक्र का नॉलेज तुम बच्चों को ही है, इसको कहते हैं ज्ञान-विज्ञान । उन्होंने विज्ञान भवन नाम भल रखा है परन्तु बाप उसका अर्थ समझाते हैं – ज्ञान और योग, रचता और रचना के आदि, मध्य, अन्त का ज्ञान, अभी तुम समझते हो कि हम भी नहीं जानते थे, नास्तिक थे । सतयुग में तो यह ज्ञान हो नहीं सकता । अभी तुमको टीचर ने पढ़ाया है । पढ़कर तुमको राज्य-भाग्य मिलता है क्योंकि तुमको रहने के लिए नई सृष्टि चाहिए । इस पुरानी सृष्टि में तो पवित्र देवी-देवतायें पैर रख न सके । बाप आकर तुम्हारे लिए पुरानी दुनिया का विनाश कर नई दुनिया स्थापन करते हैं । हमारे लिए विनाश जरूर होना है । कल्प-कल्पान्तर हम यह पार्ट बजाते हैं । बाबा पूछते हैं आगे कब मिले हो? तो कहते हैं-बाबा, हर कल्प मिलते हैं, आप से राज्य भाग्य लेने । कल्प पहले भी बेहद सुख का राज्य भाग्य मिला था । यह सब बातें जो स्मृति में आई हैं, अब उनका सिमरण होना चाहिए, जिसको बाबा स्वदर्शन चक्र कहते हैं । हम पहले सतोप्रधान थे । यह भी तुम्हें स्मृति आई कि हरेक आत्मा को अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है । हम आत्मा छोटी अविनाशी हैं, उनमें पार्ट भी अविनाशी है जो चलता ही रहेगा । यह बनी बनाई बन रही… इसमें नई बात कोई एड वा कट नहीं हो सकती है । कोई भी मोक्ष को पा नहीं सकते । कोई मुक्ति मांगते हैं,मुक्ति अलग है, मोक्ष अलग है । यह भी स्मृति में रखना है । स्मृति में होगा तो औरों को भी स्मृति दिलायेंगे । तुम्हारा धन्धा ही यह है । बाप ने जो स्मृति में लाया है, वह फिर औरों को भी स्मृति दिलाओ तब ऊंच पद पा सकेंगे । ऊंच पद पाने के लिए बहुत मेहनत करनी है । मुख्य मेहनत है योग की । यह है याद की यात्रा, जो बाप के सिवाए और कोई सिखला नहीं सकते । अभी तुम मनुष्य से देवता बनने की पढ़ाई पढ़ते हो । तुम जानते हो कि हम फिर से नई दुनिया में जायेंगे । उसका नाम ही है अमरलोक । यह है मृत्युलोक । यहाँ तो अचानक बैठे-बैठे मौत आ जाता है । वहाँ मृत्यु का नाम-निशान नहीं क्योंकि आत्मा को तो वास्तव में काल खाता नहीं । कोई मिठाई की चीज़ थोड़ेही है । ड्रामा अनुसार जब समय होता है तो आत्मा चली जाती है । जिस समय जिसको जाना होता है, वह चला जाता है । काल कोई पकड़ता नहीं है । आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है । काल कुछ भी नहीं है । यह तो कथायें बैठ बनाई हैं । वह है अमरलोक वहाँ निरोगी काया रहती है । सतयुग में भारतवासियों की आयु भी बड़ी थी, योगी थे । योगी और भोगी का फर्क भी अब मालूम पड़ता है । तुम्हारी आयु वृद्धि को पा रही है । जितना तुम योग में रहेंगे, उतना पाप भस्म होंगे और पद भी ऊंच मिलेगा, आयु भी बड़ी होगी । यथा राजा रानी आयु पूरी कर शरीर छोड़ते हैं, प्रजा का भी ऐसा होता है । परन्तु पद का फर्क है । 

अब बाप तुमको कहते हैं – स्वदर्शन चक्रधारी बच्चों, यह अलंकार तुम्हारे हैं । गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान तुम रहते हो । सिवाए तुम्हारे और कोई रह न सके । यह भी स्मृति आई है कि इस जन्म में हमने कितने पाप किये हैं इसलिए बाबा कहते हैं वह सब अविनाशी सर्जन के आगे रखो तो हल्के हो जायेंगे । बाकी जन्म-जन्मान्तर के पाप जो सिर पर हैं, उसके लिए योग में रहना है । योग से ही पाप कटेंगे और खुशी भी रहेगी । बाप की याद से सतोप्रधान बन जायेंगे । मालूम है कि हम याद से यह बनेंगे तो कौन याद नहीं करेगा । परन्तु यह युद्ध का मैदान है,मेहनत करनी पड़ती है इतना ऊंच पद पाने के लिए । यह भी बच्चों को स्मृति आई है कि बेहद के बाप से हम ऊंच ते ऊंच वर्सा लेते हैं, कल्प-कल्प लेते हैं । तुम्हारे पास बहुत आयेंगे, आकर महामन्त्र लेंगे मनमनाभव का । मनमनाभव का अर्थ है अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो । यह है महान् मन्त्र, महान् आत्मा बनने के लिए । वह कोई महात्मा है नहीं । महात्मा तो वास्तव में श्रीकृष्ण को कहा जाता है क्योंकि वह पवित्र है । देवतायें सदैव पवित्र रहते हैं । देवताओं का है प्रवृत्ति मार्ग, सन्यासियों का है निवृति मार्ग । स्त्रियाँ तो धक्के खा न सके । यह सब अभी कलियुग में खराबियाँ हो गई हैं । स्त्रियों को भी सन्यासी बनाकर ले जाते हैं । फिर भी उन्हों की पवित्रता पर भारत थमा रहता है । जैसे पुराने मकान को पोची आदि लगाई जाती है तो जैसे नया बन जाता है । यह सन्यासी भी पोची दे कुछ बचाव करते हैं । परन्तु बाप कहते हैं वह धर्म ही अलग है, पवित्र बनते हैं । 

भारत खण्ड में ही इतने देवी-देवताओं के मन्दिर भक्ति आदि हैं । यह भी खेल है, जिसका वृतान्त तुम बताते हो । भक्ति मार्ग के लिए यह सब भी चाहिए ना । एक शिव के ही कितने नाम रख दिये हैं । नाम पर मन्दिर बनता गया है । ढेर के ढेर मन्दिर हैं । कितना खर्चा होता है । मिलता फिर भी आधाकल्प का सुख है । बस, बहुत पैसे लगाते हैं,मूर्तियाँ टूट फूट जाती हैं । वहाँ तो मन्दिर आदि की दरकार नहीं है । यह भी अभी स्मृति आई है कि आधाकल्प भक्ति चलती है, आधाकल्प फिर भक्ति का नाम नहीं । बाप कितनी स्मृति दिलाते हैं – इस वैराइटी झाड़ की । सिर्फ कलियुग की आयु ही 40 हजार वर्ष हो फिर तो क्रिश्चियन आदि की आयु भी बहुत बढ़ जाये । बाप समझाते हैं क्रिश्चियन धर्म की इतनी ही लिमिट है । यह जानते हैं, क्राइस्ट को इतना समय हुआ है, फलाने को इतना समय हुआ धर्म स्थापन किये, लेकिन फिर जायेंगे कब? यह पता नहीं है । कल्प की आयु ही लम्बी कर दी है । अभी तुम जानते हो यह तो विनाश की तैयारियाँ हो रही हैं । उन्हों की है साइन्स, तुम्हारी है साइलेन्स । तुम जितना साइलेन्स में जायेंगे उतना वह विनाश के लिए अच्छी-अच्छी चीजें तैयार करते रहेंगे । दिन-प्रतिदिन महीन चीजें बनाते रहते हैं । तुमको अन्दर में खुशी होती है-बाबा तो हमारे लिए नई दुनिया बनाने आये हैं । तो अब हम पुरानी दुनिया में थोड़ेही रहेंगे । कमाल है बाबा की । बाबा आपके स्वर्ग स्थापन करने की तो कमाल है । अभी तुमको सारी स्मृति आई है । वह तो रचता और रचना के आदि-मध्य-अन्त को जानते ही नहीं हैं । तुम जानते हो । तुम कितनी रोशनी में हो । मनुष्य तो घोर अन्धियारे में हैं । फर्क है ना । ज्ञान अंजन सतगुरू दिया अज्ञान अन्धेर विनाश । भक्ति वाले ज्ञान को नहीं जानते हैं । अभी तुम भक्ति को भी जानते हो तो ज्ञान को भी जानते हो । सारी स्मृति आई है- भक्ति कब शुरू होती है, फिर कब पूरी होती है । बाप कब ज्ञान देते हैं, पूरा कब होगा, सब स्मृति है । नम्बरवार तो हैं ही । किसको बहुत स्मृति है, किसको कम । जिन्हों को बहुत स्मृति रहती है, वह ऊंच पद पायेंगे । स्मृति रहे तब औरों को भी समझायें । वन्डरफुल स्मृति है ना । आगे तुम्हारी बुद्धि में क्या था । भक्ति, जप, तप, तीर्थ करना, माथा टेकना, सारी टिप्पड़ ही घिस गई है । भक्ति की स्मृति और ज्ञान में कितना फर्क है । तुम अभी भक्ति को जानते हो क्योंकि शुरू से भक्ति की है । जानते हो हमने पहले-पहले शिव की भक्ति की, फिर देवताओ की । और कोई को भी यह स्मृति नहीं है,तुमको रचना के आदि-मध्य-अन्त, भक्ति आदि की सब स्मृति है । आधाकल्प भक्ति करते-करते गिरते ही आये हो । 

अभी तो दु:ख के पहाड़ गिरने हैं । तुम बच्चों को पुरूषार्थ करना है, यह गिरने से पहले हम याद की यात्रा से विकर्म विनाश करें । सबको तुम यही समझाते हो, तुम्हारे पास हजारों आते हैं । तुम मेहनत करते हो भाई-बहिनों को रास्ता बताने की । ज्ञान और भक्ति की स्मृति आई है । गोया तुम सारे ड्रामा को नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार जान गये हो । जो जितना अच्छी रीति जानते हैं वह समझा भी सकते हैं । समझाना तो बच्चों को ही है । गायन भी है सन शोज फादर । बाप बच्चों को समझायेंगे, बच्चे फिर और भाइयों को समझायेंगे । आत्माओं को समझाते हो ना । भक्ति से यह ज्ञान बिल्कुल न्यारा है । गायन भी है ना-एक भगवान आकर सब भक्तों को फल देते हैं । एक बाप के सब बच्चे हैं । बाप कहते मैं सब बच्चों को शान्तिधाम, सुखधाम में ले जाता हूँ । कल्प-कल्प का यह ज्ञान भी तुमको अभी है,वहाँ नहीं होगा । तुम पतित बनते हो तो पावन बनाने के लिए बाप तुम पर कितनी मेहनत करते हैं इसलिए गायन है कुर्बान जाऊं… वारी जाऊं । किस पर? बाप पर । फिर बाप मिसाल बताते हैं -यह कुर्बान कैसे गया । फालो इस सैम्पुल को करो । यही फिर लक्ष्मी-नारायण बनते हैं । अगर इतना ऊंच पद पाना है तो ऐसा कुर्बान जाना है । साहूकार कभी कुर्बान हो न सके । यहाँ तो स्वाहा करना पड़े । साहूकार को स्मृति जरूर आयेगी । गायन भी है ना अन्तकाल जो स्त्री सिमरे.. इतने सब पैसे क्या करेंगे । कोई लेगा ही नहीं क्योंकि सब खत्म हो जाने हैं । मैं भी लेकर क्या करूंगा । शरीर सहित सब कुछ खलास होना है । आप मुये मर गई दुनिया । यह धन आदि कुछ भी नहीं रहेगा । बाकी गरूड़ पुराण आदि में तो रोचक बातें डाल दी है, डराने के लिए । 

बाप कहते हैं यह शास्त्र आदि हैं भक्ति मार्ग के । आधाकल्प भक्ति मार्ग चलता है । जबकि रावणराज्य होता है । कोई से पूछो रावण कब से जलाते हो? तो कहेंगे परम्परा से । अरे परम्परा से तो रावण होता ही नहीं । मालूम ही नहीं है तो कह देते हैं परम्परा से । तुम बच्चों को अब स्मृति आई है-रावण राज्य कब से शुरू होता है । रचता, रचना का राज भी तुम समझते हो । अब बाप कहते है-बच्चे, मामेकम् याद करो तो पाप कटे । एक-दो को यही सावधानी देते रहो । घूमने-फिरने आपस में जाओ तो भी यह बातें करो । सारा झुण्ड तुम्हारा इस याद की अवस्था में चक्र लगाये तो तुम्हारे शान्ति का प्रभाव बहुत पड़ेगा । पादरी लोग भी बहुत साइलेन्स में जाते हैं, क्राइस्ट की याद में । कोई तरफ देखते भी नहीं हैं । तुम तो यहाँ बहुत याद में रह सकते हो, कोई गोरखधन्धा नहीं है । बहुत अच्छा वायुमण्डल है । बाहर में तो बहुत छी-छी वायुमण्डल रहता है इसलिए सन्यासियों के आश्रम भी बहुत दूर-दूर होते हैं । तुम्हारा तो है ही बेहद का सन्यास । पुरानी दुनिया अब गई की गई । यह कब्रिस्तान है फिर परिस्तान होना है । वहाँ हीरे-जवाहरों के महल बनेंगे । यह लक्ष्मी-नारायण परिस्तान के मालिक थे ना । अब नहीं हैं । बाप कहते हैं मैं कल्प-कल्प, कल्प के संगमयुगे आता हूँ । यह सारा चक्र रिपीट होता ही रहता है । इस समय तुमको सब स्मृति आई है, जबकि बाप ने स्मृति दिलाई है । आगे कुछ भी बुद्धि में नहीं था । इस स्मृति के नशे में जब रहेंगे तो किसको उस खुशी से समझा भी सकेंगे । स्मृति में रहते तुम्हें घरबार सम्भालना है । अच्छा! 

सदा स्मृति के नशे में रहने वाले मीठे-मीठे रूहानी बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त को अच्छी तरह समझ, स्मृति में रख दूसरों को भी स्मृति दिलानी है । ज्ञान अंजन देकर अज्ञान अँधेरे को दूर करना है । 

2. ब्रह्मा बाप समान कुर्बान जाने में पूरा फालो करना है । शरीर सहित सब खलास हो जाना है इसलिए इससे पहले ही जीते जी मरना है । ताकि अन्त समय में कुछ भी याद न आये ।

 

वरदान:-

बाप के प्यार में अपनी मूल कमजोरी कुर्बान करने वाले ज्ञानी तू आत्मा भव !    

बापदादा देखते हैं अभी तक पांच ही विकारों के व्यर्थ संकल्प मैजारिटी के चलते हैं । ज्ञानी आत्माओं में भी कभी-कभी अपने गुण वा विशेषता का अभिमान आ जाता है, हर एक अपनी मूल कमजोरी वा मूल संस्कार को जानता भी है, उस कमजोरी को बाप के प्यार में कुर्बान कर देना – यही प्यार का सबूत है । स्नेही वा ज्ञानी तू आत्मायें बाप के प्यार में व्यर्थ संकल्पों को भी न्योछावर कर देती हैं ।

 

स्लोगन:- 

स्वमान की सीट पर स्थित रह सर्व को सम्मान देने वाले माननीय आत्मा बनो |   

 

ओम् शान्ति |

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