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28-08-14

28-08-14          प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


“मीठे बच्चे – ज्ञान की धारणा करते रहो तो अन्त में तुम बाप समान बन जायेंगे. बाप की सारी ताकत तुम हज़म कर लेंगे”   

                             
प्रश्न:-    
किन दो शब्दों की स्मृति से स्वदर्शन चक्रधारी बन सकते हो?


उत्तर:- 
उत्थान और पतन, सतोप्रधान और तमोप्रधान, शिवालय और वेश्यालय । यह दो-दो बातें स्मृति में रहे तो तुम स्वदर्शन चक्रधारी बन जायेंगे । तुम बच्चे अभी ज्ञान को यथार्थ रीति जानते हो । भक्ति में ज्ञान नहीं है, सिर्फ दिल खुश करने की बातें करते रहते हैं । भक्ति मार्ग है ही दिल खुश करने का मार्ग ।

 

ओम् शान्ति |

मीठे-मीठे रूहानी बच्चों प्रति बाप बैठ समझाते हैं । अब तुम बच्चों के लिए बाप कहते हैं तुम कितने ऊंच थे । उत्थान और पतन का यह खेल है । तुम्हारी बुद्धि में अब है कि हम कितने उत्तम और पवित्र थे । अब कितने नींच बने हैं । देवी-देवताओं के आगे तुम ही जाकर कहते हो, आप ऊंच हो हम नींच हैं । पहले-पहले यह पता नहीं था कि हम ही ऊंच ते ऊंच और नींच बनते हैं । अभी बाप तुमको बताते हैं-मीठे-मीठे बच्चे तुम कितने ऊंच पवित्र थे फिर कितने अपवित्र बने हो । पवित्र को ऊंच कहा जाता है,उसको कहा जाता है वाइसलेस वर्ल्ड । वहाँ तुम्हारा राज्य था जो फिर अब स्थापन कर रहे हैं । बाप सिर्फ इशारा देते हैं कि तुम बहुत उत्तम शिवालय सतयुग के निवासी थे फिर जन्म लेते-लेते अन्त में तुम विकार में गिरे तो पतित विशश बने । आधाकल्प विशश रहे, अब फिर तुमको वाइसलेस सतोप्रधान बनना है । दो अक्षर याद करना है । अभी यह है तमोप्रधान दुनिया । सतोप्रधान दुनिया की निशानी यह लक्ष्मी-नारायण हैं, 5 हजार वर्ष की बात है । सतोप्रधान भारत में राज्य था । भारत बहुत उत्तम था,अभी कनिष्ट है । वाइसलेस से विशश बनने में तुमको 84 जन्म लगे । भल वहाँ भी थोड़ी- थोड़ी कला कमती होती जाती हैं । परन्तु कहेंगे तो सम्पूर्ण निर्विकारी ना । एकदम सम्पूर्ण निर्विकारी श्रीकृष्ण को कहेंगे । वह गोरा था, अब साँवरा बन गया है । तुम यहाँ बैठे हो तो बुद्धि में रहना चाहिए कि हम शिवालय में विश्व के मालिक थे । दूसरा कोई धर्म ही नहीं, सिर्फ हमारा ही राज्य था फिर 2 कला कम हुई । ज़रा-ज़रा कला कम होते, त्रेता में 2 कला कम हो गई । पीछे विशश बनते हैं और गिरते-गिरते छी-छी बन जाते हैं । इसको कहा जाता है विशश वर्ल्ड । विषय वैतरणी नदी में गोते खाते रहते हैं । वहाँ क्षीरसागर में रहते थे । तुम सारे वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी को, अपने 84 जन्मों की कहानी को भी समझ गये हो । हम वाइसलेस थे, इनके राज्य में थे, पवित्र राजाई थी, उसको कहेंगे फुल स्वर्ग, फिर त्रेता में सेमी स्वर्ग । यह बुद्धि में तो है ना । बाप ही आकर सृष्टि के आदि, मध्य, अन्त का राज़ समझाते हैं । मध्य में ही रावण आया है, फिर अन्त में इस विशश दुनिया का विनाश होगा । फिर आदि में जाने के लिए पवित्र बनना है । अपने को आत्मा समझ मामेकम् याद करो । अपने को देह नहीं समझो । तुमने भक्ति मार्ग में वायदा किया था – बाबा, आप आयेंगे तो हम आपका ही बनेंगे । आत्मा बाप से बातें करती है । कृष्ण कोई बाप थोड़े ही था । आत्माओं का बाप निराकार शिवबाबा एक है । उस हद के बाप से हद का वर्सा, बेहद के बाप से बेहद का वर्सा भारत को मिलता है इसलिए सतयुग को कहा जाता है शिवालय । शिवबाबा ने आकर देवी-देवता धर्म की स्थापना की । यह तो सदैव याद रखना चाहिए । खुशी की बात है ना । अभी हम फिर शिवालय में जाते हैं । कोई मरता है तो कहेंगे स्वर्ग गया । परन्तु ऐसे कभी कोई जाता नहीं । यह सब भक्ति मार्ग के गपोड़े हैं – दिल खुश करने के लिए । सच-सच हेविन में तो अभी तुम जाने वाले हो । वहाँ कोई रोग आदि होते नहीं । तुम सदैव हर्षित रहते हो । तो बाप कितना सहज करके छोटे-छोटे बच्चों को जैसे बैठ समझाते हैं, भल बाहर में कहाँ भी रहते तुम पद पा सकते हो, इसमें पवित्रता तो पहले मुख्य है । खान-पान शुद्ध हो । देवताओं के आगे कभी सिगरेट, बीड़ी आदि का भोग लगाते हो क्या? ग्रन्थ के आगे कभी अण्डे वा बीड़ी आदि का भोग रखा है? ग्रन्थ को समझते हैं – यह जैसे गुरू गोविन्द का शरीर है । ग्रन्थ को इतना मान देते हैं । यह गुरू की जैसे देह है । ऐसे सिख लोग समझते हैं । परन्तु गुरू नानक ने थोड़े ही बैठ ग्रन्थ लिखा है, नानक ने तो अवतार लिया । सिख लोगों की वृद्धि हुई, बाद में वह ग्रंथ आदि लिखे हैं । एक के बाद फिर सिख धर्म में आते गये हैहैं’ । पहले तो ग्रंथ भी इतना छोटा हाथ का लिखा हुआ था । अब गीता के लिये समझते हैं, यह कृष्ण का रूप है । ऐसे मानो जैसे नानक का ग्रंथ, वैसे कृष्ण की गीता गाई हुई है । कृष्ण भगवानुवाच ही कहते रहते हैं । इसको कहा जाता है अज्ञान । ज्ञान तो एक परमपिता परमात्मा में ही है । गीता से ही सद्गति होती है । वह ज्ञान तो बाप के पास ही है । ज्ञान से दिन, भक्ति से रात होती है । अब बाप कहते हैं आत्मा को पवित्र बनाना है, उसके लिए मेहनत करनी पड़े । माया के तूफान ऐसे जबरदस्त आते हैं जो ज्ञान एकदम उड़ जाता है । किसको बोल भी न सकें । पहला काम विकार ही बहुत तंग करता है । उस में ही टाइम लगता है । है तो एक सेकण्ड में जीवन मुक्ति की बात । बच्चा पैदा हुआ और मालिक बना । तुमने पहचाना शिवबाबा आया हुआ है और वर्से के हकदार बनें । गीता भी शिवबाबा ने ही गाई थी, उसने ही कहा है मामेकम् याद करो । मैं इस साधारण तन में आता हूँ । कृष्ण साधारण थोड़े ही है । वह तो जन्म लेते हैं तो जैसे बिजली चमक जाती है । बहुत प्रभाव पड़ता है इसलिए श्रीकृष्ण का अब तक भी गायन करते हैं । बाकी शास्त्र आदि सब भक्ति मार्ग के हैं । इंगलिश में फिलासॉफी कह देते हैं । स्पिरिचुअल नॉलेज तो स्पिरिचुअल फादर ही दे सकते हैं । खुद कहते हैं मैं तुम्हारा स्पिरिचुअल फादर हूँ । ज्ञान का सागर हूँ । तुम बच्चे भी बाप से सीख रहे हो । ज्ञान को धारण कर रहे हो । फिर पिछाड़ी में बाप मिसल बन जायेंगे । सारा मदार धारणा पर है । फिर वह ताकत आ जायेगी, बाप की याद से । याद को जौहर कहा जाता है । तलवारों में भी फर्क तो होता है ना । वही तलवार 100 रूपये वाली भी होती है । वही तलवार 3 – 4 हजार की भी होती है । बाबा तो अनुभवी है ना । तलवार का बहुत मान होता है । गुरू गोविन्द सिंह की तलवार का कितना मान है । तो तुम बच्चों में भी योग का बल चाहिए । तो ज्ञान तलवार में जौहर चाहिए । जौहर आने से फिर जल्दी समझेंगे । ड्रामा अनुसार तुम मेहनत करते रहते हो । जितना-जितना बाप को याद करेंगे, याद से ही पाप कटेंगे । पतित-पावन बाप ही युक्ति बता रहे हैं । फिर कल्प बाद भी ऐसे ही आकर तुमको ज्ञान देंगे । इनको भी सब त्याग कराके ऐसे ही अपना रथ बनायेंगे । तुम बच्चों को वहाँ कितनी कशिश हुई । कैसे सब भागे । बाप में कशिश है ना । अभी तुमको भी ऐसा सम्पूर्ण बनना है । नम्बरवार ही बनेंगे । यह राजधानी स्थापन होती है । 

सृष्टि चक्र को तो समझ लिया है । सतयुग आदि से कलियुग अन्त तक । अभी है संगमयुग । बाप को भी जरूर आना पड़े पावन बनाने । पावन अर्थात् सतोप्रधान । फिर खाद पड़ती गई । अब वह खाद निकले कैसे? आत्मा सच्ची होती है तो जेवर भी सच्चा अर्थात् गोरा शरीर होता है । आत्मा झूठी बनती है तो शरीर भी पतित होता है । ज्ञान के पहले तो यह भी नमन- वन्दन करते थे । लक्ष्मी-नारायण का बड़ा चित्र आयल पेंट का गद्दी पर लगा रहता था । उनको ही बहुत प्यार से याद करते थे और कोई की याद नहीं । बाहर और तरफ ख्याल जाता था तो अपने को चमाट मारते थे । मन भागता क्यों है,दर्शन क्यों नहीं मिलता है । भक्ति में था ना । फिर जब विष्णु का दर्शन हुआ तो भी कोई नारायण थोड़े ही हो गया । पुरूषार्थ तो जरूर करना होता है, एम आबजेक्ट तो सामने खड़ी है । यह चैतन्य में थे,जिनका जड़ चित्र बनाया है । बाप आया है पावन बनाने, नर से नारायण बनाते हैं । तुम भी उन्हों की राजधानी में थे । फिर ऐसा बनने का पुरूषार्थ करते हो तो अच्छी रीति फालो करना चाहिए । ब्रह्मा को देवता थोड़े ही कहा जाता है । विष्णु देवता ठीक है । मनुष्यों को तो कुछ पता नहीं । कहते हैं गुरू ब्रहमा, गुरू विष्णु……….. । अब विष्णु गुरू किसका हुआ? सबको गुरू कहते रहते हैं । शिव परमात्मा नम: उनको गुरू, उनको परमात्मा कह देते हैं । सबसे बड़ा तो बाप है ना । उनसे हम यह सीख रहे हैं औरों को सिखलाने लिए । सतगुरू जो तुमको समझाते हैं, वह तुम औरों को समझाते हो । गुरू को ऐसे नहीं कहेंगे कि यह बाप है, टीचर है । नहीं तो यह सारी नॉलेज तुम्हारी बुद्धि में होनी चाहिए । हम शिवालय में थे, अभी वेश्यालय में पड़े हैं । फिर अब शिवालय में जाना है । भल कहते हैं ब्रह्म में लीन हो गया, ज्योति ज्योत समाया । परन्तु आत्मा तो अविनाशी है । हर एक में अपना- अपना पार्ट भरा हुआ है । सब एक्टर्स हैं, उनको अपना पार्ट बजाना ही है । वह कभी मिट नहीं सकता । जो भी सारी दुनिया की आत्मायें हैं, उनको पार्ट बजाना है । जैसे कि नये सिर शूटिंग होती जाती है । परन्तु यह अनादि शूटिंग हुई पड़ी है । यह वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होती रहती है । यह वन्डरफुल सितारा है जो भृकुटी के बीच चमकता है । कभी घिसता ही नहीं । यह ज्ञान तुम्हारे में आगे नहीं था । वन्डर ऑफ वर्ल्ड । हेविन अथवा स्वर्ग नाम सुनकर दिल खुश होता है । अभी तो सतयुग है नहीं । अभी है कलियुग । तो पुनर्जन्म भी कलियुग में ही लेंगे । जाना तो सबको जरूर है परन्तु पतित आत्मायें तो जा न सकें । अभी तुम बच्चे पावन बनते हो – योगबल से । पावन दुनिया गॉड फादर ही स्थापन करते हैं । फिर रावण हेल बनाते हैं । यह तो प्रत्यक्ष है ना । रावण को जलाते हैं ना । मनुष्य तो कहते हैं यह अनादि चला आता है । परन्तु कब से शुरू होता, यह भी किसको पता नहीं है । आधा- आधा तो कर न सकें क्योंकि लाखों वर्ष कह देते हैं । कलियुग को फिर 40 हजार वर्ष कह देते हैं । तो मनुष्य घोर अन्धियारे में हैं ना । अज्ञान नीद से जागना बड़ा मुश्किल है, जागते ही नहीं हैं । अभी है संगमयुग जबकि बाप आकर पावन बनने की युक्ति बताते हैं । तुम पावन होंगे तो पावन दुनिया स्थापन हो ही जायेगी । यह पतित दुनिया ही खलास हो जायेगी । अभी कितनी बड़ी दुनिया है । सतयुग में तो बहुत छोटी दुनिया हो जायेगी । अब माया पर जीत पाकर पावन जरूर बनना है । बाप कहते हैं माया बड़ी दुस्तर है । पावन बनने में ही अनेक प्रकार के विघ्न डालती है । पवित्र बनने की हिम्मत रखते हैं, फिर माया आकर क्या हाल बना देती है । घूंसा लगाकर गिरा देती है । की कमाई खत्म कर देती है । फिर बहुत मेहनत करनी पड़ती है । कोई तो गिरते हैं फिर मुंह भी नहीं दिखाते हैं फिर इतना ऊंच पद पा न सकें । पुरूषार्थ पूरा होना चाहिए । फेल नहीं होना चाहिए इसलिए कोई गन्धर्वी विवाह भी करके दिखाते हैं । संन्यासी लोग कहते शादी की और पवित्र रहे यह तो इम्पॉसिबुल है । बाप कहते हैं पॉसिबुल है क्योंकि प्राप्ति बहुत है । यह अन्तिम एक जन्म तुम पवित्र बनेंगे तो तुमको स्वर्ग की बादशाही मिलेगी । क्या इतनी बड़ी प्राप्ति के लिए तुम एक जन्म पवित्र नहीं रह सकते हो? कहते हैं बाबा हम जरूर रहेंगे । सिख लोग भी पवित्रता का कंगन डालते हैं । यहाँ कोई धागा आदि बांधने की दरकार नहीं । यह तो बुद्धि की बात है । बाप कहते हैं मामेकम् याद करो । बच्चियाँ बहुतों को सुनाती हैं । परन्तु बड़े आदमियों की बुद्धि में बैठता थोड़े ही है । बाप कहते हैं पहले उनको अच्छी रीति से समझाओ – यह सब प्रजापिता ब्रहमा की औलाद हैं । शिवबाबा से वर्सा मिल रहा है । पतित से पावन बनना है । अब बाप कहते हैं मामेकम् याद करो, ऐसा तो कोई कह न सकें । पहले तो उनकी बुद्धि में बिठाना है भारत वाइसलेस था, अभी विशश है फिर वाइसलेस कैसे बनेगा? भगवानुवाच मामेकम् याद करो । बस इतना कहे तो भी अहो भाग्य, परन्तु इतना भी कह नहीं सकेंगे । भूल जायेंगे । बाबा ने समझाया था उद्घाटन तो बाप ने कर दिया है । बाकी तुम निमित्त कर रहे हो । फाउन्डेशन लगा दिया है, बाकी अब सर्विस स्टेशन का उद्घाटन होता है । यह तो गीता की ही बात है, गीता में भी है – हे बच्चों, तुम काम पर जीत पहनो तो ऐसे जगतजीत बनेंगे, 21 जन्मों के लिए । भल खुद न बनें, औरों को तो समझायें । ऐसे भी बहुत हैं, औरों को उठाकर खुद गिर पड़ते हैं । काम महाशत्रु है, एकदम गटर में गिरा देता है । जो बच्चे काम पर जीत पाते हैं वही जगतजीत बनते हैं । अच्छा | 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमोर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. इस अन्तिम जन्म में सर्व प्राप्तियों को सामने रख पावन बनकर दिखाना है । माया के विघ्नों से हार नहीं खानी है ।

2. एम ऑबजेक्ट को सामने रख पूरा पुरूषार्थ करना है । जैसे ब्रह्मा बाप पुरूषार्थ कर नर से नारायण बनते हैं, ऐसे फालो कर गद्दी नशीन बनना है । आत्मा को सतोप्रधान बनाने की मेहनत करनी है ।

 

वरदान:-

मन और बुद्धि को व्यर्थ से मुक्त रख ब्राह्मण संस्कार बनाने वाले स्वराज्य अधिकारी भव !    

कोई भी छोटी सी व्यर्थ बात, व्यर्थ वातावरण वा व्यर्थ दृश्य का प्रभाव पहले मन पर पड़ता है फिर बुद्धि उसको सहयोग देती है । मन और बुद्धि अगर उसी प्रकार चलती रहती है तो संस्कार बन जाता है । फिर भिन्न-भिन्न संस्कार दिखाई देते हैं, जो ब्राह्मण संस्कार नहीं हैं । किसी भी व्यर्थ संस्कार के वश होना, अपने से ही युद्ध करना, घड़ी-घड़ी खुशी गुम हो जाना – यह क्षत्रियपन के संस्कार हैं । ब्राह्मण अर्थात् स्वराज्य अधिकारी वे व्यर्थ संस्कारों से मुक्त होंगे, परवश नहीं ।

 

स्लोगन:- 

मास्टर सर्वशक्तिवान वह है जो दृढ़ प्रतिज्ञा से सर्व समस्याओं को सहज ही पार कर ले ।   

 

ओम् शान्ति |

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