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28-11-14

28-11-14          प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


“मीठे बच्चे – बाप आया है तुम बच्चों को भक्ति तू आत्मा से ज्ञानी तू आत्मा बनाने, पतित से पावन बनाने”   


प्रश्न:-    
ज्ञानवान बच्चे किस चिन्तन में सदा रहते हैं?


उत्तर:-

मैं अविनाशी आत्मा हूँ, यह शरीर विनाशी है । मैंने 84 शरीर धारण किये हैं । अब यह अन्तिम जन्म है । आत्मा कभी छोटी-बड़ी नहीं होती है । शरीर ही छोटा बड़ा होता है । यह आँखें शरीर में हैं लेकिन इनसे देखने वाली मैं आत्मा हूँ । बाबा आत्माओं को ही ज्ञान का तीसरा नेत्र देते हैं । वह भी जब तक शरीर का आधार न लें तब तक पढ़ा नहीं सकते । ऐसा चिन्तन ज्ञानवान बच्चे सदा करते हैं ।

 

ओम् शान्ति |

यह किसने कहा? आत्मा ने । अविनाशी आत्मा ने कहा शरीर द्वारा । शरीर और आत्मा में कितना फर्क है । शरीर 5 तत्व का इतना बड़ा पुतला बन जाता है । भल छोटा भी है तो भी आत्मा से तो जरूर बड़ा है । पहले तो एकदम छोटा पिण्ड होता है, जब थोड़ा बड़ा होता है तब आत्मा प्रवेश करती है । बड़ा होते-होते फिर इतना बड़ा हो जाता है । आत्मा तो चैतन्य है ना । जब तक आत्मा प्रवेश न करे तब तक पुतला कोई काम का नहीं रहता है । कितना फर्क है । बोलने, चालने वाली भी आत्मा ही है । वह इतनी छोटी-सी बिन्दी ही है । वह कभी छोटी- बड़ी नहीं होती । विनाश को नहीं पाती । अब यह परम आत्मा बाप ने समझाया है कि मैं अविनाशी हूँ और यह शरीर विनाशी है । उनमें मैं प्रवेश कर पार्ट बजाता हूँ । यह बातें तुम अभी चिन्तन में लाते हो । आगे तो न आत्मा को जानते थे, न परमात्मा को जानते थे सिर्फ कहने मात्र कहते थे हे परमपिता परमात्मा | आत्मा भी समझते थे परन्तु फिर कोई ने कहा तुम परमात्मा हो । यह किसने बतलाया? इन भक्ति मार्ग के गुरुओं और शास्त्रों ने । सतयुग में तो कोई बतलाएंगे नहीं । अभी बाप ने समझाया है तुम मेरे बच्चे हो । आत्मा नैचुरल है शरीर अननैचुरल मिट्टी का बना हुआ है । जब आत्मा है तो बोलती चालती है । अभी तुम बच्चे जानते हो हम आत्माओं को बाप आकर समझाते हैं । निराकार शिवबाबा इस संगमयुग पर ही इस शरीर द्वारा आकर सुनाते हैं । यह आँखें तो शरीर में रहती ही हैं । अभी बाप ज्ञान चक्षु देते हैं । आत्मा में ज्ञान नहीं है तो अज्ञान चक्षु है । बाप आते हैं तो आत्मा को ज्ञान चक्षु मिलते हैं । आत्मा ही सब कुछ करती है । आत्मा कर्म करती है शरीर द्वारा । अभी तुम समझते हो बाप ने यह शरीर धारण किया है । अपना भी राज़ बताते हैं । सृष्टि के आदि-मध्य- अन्त का राज़ भी बताते हैं । सारे नाटक का भी नॉलेज देते हैं । आगे तुमको कुछ भी पता नहीं था । हाँ, नाटक जरूर है । सृष्टि का चक्र फिरता है । परन्तु कैसे फिरता है, यह कोई नहीं जानते हैं । रचयिता और रचना के आदि-मध्य- अन्त का ज्ञान अभी तुमको मिलता है । बाकी तो सब हैं भक्ति । बाप ही आकर तुमको ज्ञानी तू आत्मा बनाते हैं । आगे तुम भक्ति तू आत्मा थे । तू आत्मा भक्ति करते थे । अभी तुम आत्मा ज्ञान सुनते हो । भक्ति को कहा जाता है अन्धियारा । ऐसे नहीं कहेंगे भक्ति से भगवान मिलता है । बाप ने समझाया है भक्ति का भी पार्ट है, ज्ञान का भी पार्ट है । तुम जानते हो हम भक्ति करते थे तो कोई सुख नहीं था । भक्ति करते धक्का खाते रहते थे । बाप को ढूँढते थे । अभी समझते हो यज्ञ, तप, दान, पुण्य आदि जो कुछ करते थे, ढूँढते-द्वते धक्का खाते-खाते तंग हो जाते हैं । तमोप्रधान बन जाते हैं क्योंकि गिरना होता है ना । झूठे काम करना छी-छी होना होता है । पतित भी बन गये । ऐसे नहीं कि पावन होने के लिए भक्ति करते थे । भगवान से पावन बनने बिगर हम पावन दुनिया में जा नहीं सकेंगे । ऐसे नहीं कि पावन बनने बिगर भगवान से नहीं मिल सकते । भगवान को तो कहते हैं आकर पावन बनाओ । पतित ही भगवान से मिलते हैं पावन होने के लिए । पावन से तो भगवान मिलता नहीं । सतयुग में थोड़ेही इन लक्ष्मी-नारायण से भगवान मिलता है । भगवान आकरके तुम पतितों को पावन बनाते हैं और तुम यह शरीर छोड़ देते हो । पावन तो इस तमोप्रधान पतित सृष्टि में रह नहीं सकते । बाप तुमको पावन बनाकर गुम हो जाते हैं, उनका पार्ट ही ड्रामा में वन्डरफुल है । जैसे आत्मा देखने में नहीं आती है । भल साक्षात्कार होता है तो भी समझ न सके । और तो सबको समझ सकते हैं यह फलाना है, यह फलाना है । याद करते हैं । चाहते हैं, फलाने का चैतन्य में साक्षात्कार हो और तो कोई मतलब नहीं । अच्छा, चैतन्य में देखते हो फिर क्या? साक्षात्कार हुआ फिर तो गुम हो जायेगा । अल्पकाल क्षण भंगुर सुख की आश पूरी होगी । उसको कहा जायेगा अल्पकाल क्षण भगुर सुख । साक्षात्कार की चाहना थी वह मिला । बस यहाँ तो मूल बात है पतित से पावन बनने की । पावन बनेंगे तो देवता बन जायेंगे अर्थात् स्वर्ग में चले जायेंगे ।

शास्त्रों में तो कल्प की आयु लाखों वर्ष लिख दी है । समझते हैं कलियुग में अजुन 40 हजार वर्ष पड़े हैं । बाबा तो समझाते हैं सारा कल्प ही 5 हजार वर्ष का है । तो मनुष्य अन्धियारे में हैं ना । उसको कहा जाता है घोर अन्धियारा । ज्ञान कोई में है नहीं । वह सब है भक्ति । रावण जब से आता है तो भक्ति भी उनके साथ है और जब बाप आते हैं तो उनके साथ ज्ञान है । बाप से एक ही बार ज्ञान का वर्सा मिलता है । घड़ी-घड़ी नहीं मिल सकता । वहाँ तो तुम कोई को ज्ञान देते नहीं । दरकार ही नहीं । ज्ञान उनको मिलता है जो अज्ञान में हैं । बाप को कोई भी जानते ही नहीं । बाप को गाली देने बिगर कोई बात ही नहीं करते । यह भी तुम बच्चे अभी समझते हो । तुम कहते हो ईश्वर सर्वव्यापी नहीं है, वह हम आत्माओं का बाप है और वह कहते कि नहीं परमात्मा ठिक्कर-भित्तर में है । तुम बच्चों ने अच्छी तरह समझा है – भक्ति बिल्कुल अलग चीज है, उनमें जरा भी ज्ञान नहीं होता । समय ही सारा बदल जाता है । भगवान का भी नाम बदल जाता है फिर मनुष्यों का भी नाम बदल जाता है । पहले कहा जाता है देवता फिर क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र । वह दैवी गुणों वाले मनुष्य हैं और यह हैं आसुरी गुणों वाले मनुष्य । बिल्कुल छी-छी हैं । गुरु नानक ने भी कहा है अशंक चोर…… मनुष्य कोई ऐसा कहे तो उनको झट कहेंगे तुम यह क्या गाली देते हो । परन्तु बाप कहते हैं यह सब आसुरी सम्प्रदाय है । तुमको क्लीयर कर समझाते हैं । वह रावण सम्प्रदाय, वह राम सम्प्रदाय । गांधी जी भी कहते थे हमको रामराज्य चाहिए । रामराज्य में सब निर्विकारी हैं, रावण राज्य में हैं सब विकारी । इनका नाम ही है वेश्यालय । रौरव नर्क है ना । इस समय के मनुष्य विषय वैतरणी नदी में पड़े हैं । मनुष्य, जानवर आदि सब एक समान हैं । मनुष्य की कोई भी महिमा नहीं है । 5 विकारों पर तुम बच्चे जीत पाकर मनुष्य से देवता पद पाते हो, बाकी सब खत्म हो जाते हैं । देवतायें सतयुग में रहते थे । अभी इस कलियुग में असुर रहते हैं । असुरों की निशानी क्या है? 5 विकार । देवताओं को कहा जाता है सम्पूर्ण निर्विकारी और असुरों को कहा जाता है सम्पूर्ण विकारी । वह हैं 16 कला सम्पूर्ण और यहाँ नो कला । सबकी कला काया चट हो गई है । अब यह बाप बच्चों को बैठ समझाते हैं । बाप आते भी हैं पुरानी आसुरी दुनिया को चेन्ज करने । रावण राज्य वेश्यालय को शिवालय बनाते हैं । उन्हों ने तो यहाँ ही नाम रख दिये त्रिमूर्ति हाउस, त्रिमूर्ति रोड.. आगे थोड़ेही यह नाम थे । अब होना क्या चाहिए? यह सारी दुनिया किसकी हैं? परमात्मा की हैं ना । परमात्मा की दुनिया हैं जो आधाकल्प पवित्र, आधाकल्प अपवित्र रहती हैं । क्रियेटर तो बाप को कहा जाता है ना । तो उनकी ही यह दुनिया हुई ना । बाप समझाते हैं मैं ही मालिक हूँ । मैं बीजरूप, चैतन्य, ज्ञान का सागर हूँ । मेरे में सारा ज्ञान है और कोई में नहीं । तुम समझ सकते हो इस सृष्टि चक्र के आदि, मध्य, अन्त का नॉलेज बाप में ही हैं । बाकी तो सब हैं गपोड़े । मुख्य गपोड़ा बहुत खराब है, जिसके लिए बाप उल्हना देते हैं । तुम मुझे ठिक्कर-भित्तर कुत्ते बिल्ली में समझ बैठे हो । तुम्हारी क्या दुर्दशा हो गई है ।

नई दुनिया के मनुष्यों और पुरानी दुनिया के मनुष्यों में रात दिन का फर्क है । आधाकल्प से लेकर अपवित्र मनुष्य, पवित्र देवताओं को माथा टेकते हैं । यह भी बच्चों को समझाया हैं पहले-पहले पूजा होती है शिवबाबा की । जो शिवबाबा ही तुमको पुजारी से पूज्य बनाते हैं । रावण तुमको पूज्य से पुजारी बनाते हैं । फिर बाप ड्रामा प्लैन अनुसार तुमको पूज्य बनाते हैं । रावण आदि यह सब नाम तो है ना । दशहरा जब मनाते हैं तो कितने मनुष्यों को बाहर से बुलाते हैं । परन्तु अर्थ कुछ नहीं समझते । देवताओं की कितनी निंदा करते हैं । ऐसी बातें तो बिल्कुल है नहीं । जैसे कहते हैं ईश्वर नाम-रूप से न्यारा है अर्थात् नहीं है । वैसे यह जो कुछ खेल आदि बनाते हैं वह कुछ भी है नहीं । यह सब हैं मनुष्यों की बुद्धि । मनुष्य मत को आसुरी मत कहा जाता है । यथा राजा-रानी तथा प्रजा । सब ऐसे बन जाते हैं । इनको कहा ही जाता है डेविल वर्ल्ड । सब एक-दो को गाली देते रहते हैं । तो बाप समझाते हैं-बच्चे, जब बैठते हो तो अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो । तुम अज्ञान में थे तो परमात्मा को ऊपर में समझते थे । अभी तो जानते हो बाप यहाँ आया हुआ है तो तुम ऊपर में नहीं समझते हो । तुमने बाप को यहाँ बुलाया है, इस तन में । तुम जब अपने- अपने सेंटर्स पर बैठते हो तो समझेंगे शिवबाबा मधुबन में इनके तन में है । भक्ति मार्ग में तो परमात्मा को ऊपर में मानते थे । हे भगवान….. अभी तुम बाप को कहाँ याद करते हो? क्या बैठकर करते हो? तुम जानते हो ब्रह्मा के तन में हैं तो जरूर यहाँ याद करना पड़ेगा । ऊपर में तो है नहीं । यहाँ आया हुआ है – पुरूषोत्तम संगमयुग पर । बाप कहते हैं तुमको इतना ऊँच बनाने मैं यहाँ आया हूँ । तुम बच्चे यहाँ याद करेंगे । भक्त ऊपर में याद करेंगे । तुम भल विलायत में होंगे तो भी कहेंगे ब्रह्मा के तन में शिवबाबा हैं । तन तो जरूर चाहिए ना । कहाँ भी तुम बैठे होंगे तो जरूर यहाँ याद करेंगे । ब्रह्मा के तन में ही याद करना पड़े । कई बुद्धिहीन ब्रह्मा को नहीं मानते हैं । बाबा ऐसे नहीं कहते ब्रह्मा को याद न करो । ब्रह्मा बिगर शिवबाबा कैसे याद पड़ेगा । बाप कहते हैं मैं इस तन में हूँ । इसमें मुझे याद करो इसलिए तुम बाप और दादा दोनों को याद करते हो । बुद्धि में यह ज्ञान है, इनकी अपनी आत्मा है । शिवबाबा को तो अपना शरीर नहीं है । बाप ने कहा है मैं इस प्रकृति का आधार लेता हूँ । बाप बैठ सारे ब्रह्माण्ड और सृष्टि के आदि,मध्य, अन्त का राज समझाते हैं और कोई ब्रह्माण्ड को जानते ही नहीं । ब्रह्म जिसमें हम और तुम रहते हो, सुप्रीम बाप, नानसुप्रीम आत्मायें रहने वाली उस ब्रह्म लोक शान्तिधाम की है । शान्तिधाम बहुत मीठा नाम है । यह सब बातें तुम्हारी बुद्धि में है । हम असुल के रहवासी ब्रह्म महतत्व के हैं, जिसको निर्वाणधाम, वानप्रस्थ कहा जाता है । यह बातें अभी तुम्हारी बुद्धि में हैं, जब भक्ति है तो ज्ञान का अक्षर नहीं । इनको कहा जाता है पुरुषोत्तम संगमयुग जबकि चेन्ज होती है । पुरानी दुनिया में असुर रहते हैं,नई दुनिया में देवतायें रहते हैं तो उनको चेन्ज करने लिए बाप को आना पड़ता है । सतयुग में तुमको कुछ भी पता नहीं रहेगा । अभी तुम कलियुग में हो तो भी कुछ पता नहीं हैं । जब नई दुनिया में होंगे तो भी इस पुरानी दुनिया का कुछ पता नहीं होगा । अभी पुरानी दुनिया में हो तो नई का मालूम नहीं है । नई दुनिया कब थी, पता नहीं । वह तो लाखों वर्ष कह देते हैं । तुम बच्चे जानते हो बाप इस संगमयुग पर ही कल्प-कल्प आते हैं, आकर इस वैराइटी झाड़ का राज समझाते हैं और यह चक्र कैसे फिरता है वह भी तुम बच्चों को समझाते हैं । तुम्हारा धन्धा ही है यह समझाने का । अब एक-एक को समझाने से तो बहुत टाइम लग जाए इसलिए अभी तुम बहुतों को समझाते हो । बहुत समझते हैं । यह मीठी- मीठी बातें फिर बहुतों को समझानी है । तुम प्रदर्शनी आदि में समझाते हो ना, अब शिव जयन्ती पर और भी अच्छी रीति बहुतों को बुलाकर समझाना हैं । खेल की ड्यूरेशन कितनी है । तुम तो एक्यूरेट बतायेंगे । यह टॉपिक्स हुई । हम भी यह समझायेंगे । तुमको बाप समझाते हैं ना-जिससे तुम देवता बन जाते हो । जैसे तुम समझकर देवता बनते हो वैसे औरों को भी बनाते हो । बाप ने हमको यह समझाया है । हम किसकी ग्लानि आदि नहीं करते हैं । हम बतलाते हैं ज्ञान को सद्गति मार्ग कहा जाता है, एक सतगुरू ही है पार करने वाला । ऐसी-ऐसी मुख्य प्याइन्ट्स निकालकर समझाओ । यह सारा ज्ञान बाप के सिवाए कोई दे नहीं सकता है । अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. पुजारी से पूज्य बनने के लिए सम्पूर्ण निर्विकारी बनना है । ज्ञानवान बन स्वयं को स्वयं ही चेंज करना है । अल्पकाल सुख के पीछे नहीं जाना है । 

2. बाप और दादा दोनों को ही याद करना है । ब्रह्मा बिगर शिवबाबा याद आ नहीं सकता । भक्ति में ऊपर याद किया, अभी ब्रह्मा तन में आया है तो दोनों ही याद आने चाहिए ।

 

वरदान:-

निमित्त कोई भी सेवा करते बेहद की वृत्ति द्वारा वायब्रेशन फैलाने वाले बेहद सेवाधारी भव !   

अब बेहद परिवर्तन की सेवा में तीव्र गति लाओ । ऐसे नहीं कर तो रहे हैं, इतना बिजी रहते हैं जो टाइम ही नहीं मिलता । लेकिन निमित्त कोई भी सेवा करते बेहद के सहयोगी बन सकते हो, सिर्फ वृत्ति बेहद में हो तो वायब्रेशन फैलते रहेंगे । जितना बेहद में बिजी रहेंगे तो जो डयुटी है वह और ही सहज हो जायेगी । हर संकल्प, हर सेकण्ड श्रेष्ठ वायब्रेशन फैलाने की सेवा करना ही बेहद सेवाधारी बनना है ।

 

स्लोगन:- 

शिव बाप के साथ कम्बाइन्ड रहने वाली शिवशक्तियों का श्रंगार है ज्ञान के अस्त्र-शस्त्र ।   

 

ओम् शान्ति |

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