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07-02-15

07-02-15      प्रातः मुरली      ओम् शान्ति      “बापदादा”      मधुबन
 


“मीठे बच्चे – आत्मा रूपी ज्योति में ज्ञान-योग का घृत डालो तो ज्योत जगी रहेगी, ज्ञान और योग का कॉन्ट्रास्ट अच्छी रीति समझना है”   

प्रश्न:-    
बाप का कार्य प्रेरणा से नहीं चल सकता, उन्हें यहाँ आना ही पड़े क्यों?

उत्तर:-

क्योंकि मनुष्यों की बुद्धि बिल्कुल तमोप्रधान है । तमोप्रधान बुद्धि प्रेरणा को कैच नहीं कर सकती । बाप आते हैं तब तो कहा जाता है छोड़ भी दे आकाश सिंहासन………।

गीत:-

छोड़ भी दे आकाश सिंहासन…. 

ओम् शान्ति |

भक्तों ने यह गीत बनाया है । अब इसका अर्थ कैसा अच्छा है । कहते हैं आकाश सिंहासन छोड़कर आओ । अब आकाश तो है यह । यह है रहने का स्थान । आकाश से तो कोई चीज आती नहीं । आकाश सिंहासन कहते हैं । आकाश तत्व में तो तुम रहते हो और बाप रहते हैं महतत्व में । उसको ब्रह्म या महतत्व कहते हैं, जहाँ आत्मायें निवास करती हैं । बाप आयेगा भी जरूर वहाँ से । कोई तो आयेगा ना । कहते हैं आकर हमारी ज्योत जगाओ । गायन भी है-एक है अन्धे की औलाद अन्धे और दूसरे हैं सज्जे की औलाद सज्जे । धृतराष्ट्र और युद्धिष्ठिर नाम दिखाते हैं । अभी यह तो औलाद हैं रावण की । माया रूपी रावण है ना । सबकी रावण बुद्धि है, अब तुम हो ईश्वरीय बुद्धि । बाप तुम्हारी बुद्धि का अब ताला खोल रहे हैं । रावण ताला बन्द कर देते हैं । कोई किसी बात को नहीं समझते हैं तो कहते हैं यह तो पत्थरबुद्धि है । बाप आकर यहाँ ज्योत जगायेंगे ना । प्रेरणा से थोड़ेही काम होता है । आत्मा जो सतोप्रधान थी, उनकी ताकत अब कम हो गई है । तमोप्रधान बन गई है । एकदम झुंझार बन पड़ी है । मनुष्य कोई मरते हैं तो उनका दीवा जलाते हैं । अब दीवा क्यों जलाते हैं? समझते हैं ज्योत बुझ जाने से अन्धियारा न हो जाए इसलिए ज्योत जगाते हैं । अब यहाँ की ज्योत जगाने से वहाँ कैसे रोशनी होगी? कुछ भी समझते नहीं । अभी तुम सेन्सीबुल बुद्धि बनते हो । बाप कहते हैं मैं तुमको स्वच्छ बुद्धि बनाता हूँ । ज्ञान घृत डालता हूँ । है यह भी समझाने की बात । ज्ञान और योग दोनों अलग चीज हैं । योग को ज्ञान नहीं कहेंगे | कोई समझते हैं भगवान ने आकर यह भी ज्ञान दिया ना कि मुझे याद करो । परन्तु इसे ज्ञान नहीं कहेंगे । यह तो बाप और बच्चे हैं । बच्चे जानते हैं कि यह हमारा बाबा है,इसमें ज्ञान की बात नहीं कहेंगे । ज्ञान तो विस्तार है । यह तो सिर्फ याद है । बाप कहते हैं मुझे याद करो, बस । यह तो कॉमन बात है । इनको ज्ञान नहीं कहा जाता । बच्चे ने जन्म लिया सो तो जरूर बाप को याद करेगा ना । ज्ञान का विस्तार है । बाप कहते हैं मुझे याद करो-यह ज्ञान नहीं हुआ । तुम खुद जानते हो, हम आत्मा हैं, हमारा बाप परम आत्मा, परमात्मा है । इसे ज्ञान कहेंगे क्या? बाप को पुकारते हैं । ज्ञान तो है नॉलेज, जैसे कोई एम.ए. पढ़ते हैं, कोई बी .ए. पढ़ते हैं, कितनी ढेर किताब पढ़नी होती हैं । अब बाप तो कहते हैं तुम हमारे बच्चे हो ना, मैं तुम्हारा बाप हूँ । मेरे से ही योग लगाओ अर्थात् याद करो । इसको ज्ञान नहीं कहेंगे । तुम बच्चे तो हो ही । तुम आत्मायें कब विनाश को नहीं पाती हो । कोई मर जाते हैं तो उनकी आत्मा को बुलाते हैं, अब वह शरीर तो खत्म हो गया । आत्मा भोजन कैसे खायेगी? भोजन तो फिर भी ब्राह्मण खायेंगे । परन्तु यह सब है भक्ति मार्ग की रस्म । ऐसे नहीं कि हमारे कहने से वह भक्ति मार्ग बन्द हो जायेगा । वह तो चलता ही आता है । आत्मा तो एक शरीर छोड़ जाए दूसरा लेती है ।

बच्चों की बुद्धि में ज्ञान और योग का कॉन्ट्रास्ट स्पष्ट होना चाहिए । बाप जो कहते हैं मुझे याद करो,यह ज्ञान नहीं है । यह तो बाप डायरेक्शन देते हैं, इनको योग कहा जाता । ज्ञान है सृष्टि चक्र कैसे फिरता है-उसकी नॉलेज । योग अर्थात् याद । बच्चों का फर्ज है बाप को याद करना । वह है लौकिक,यह है पारलौकिक । बाप कहते हैं मुझे याद करो । तो ज्ञान अलग चीज हो गई । बच्चे को कहना पड़ता है क्या कि बाप को याद करो । लौकिक बाप तो जन्मते ही याद रहता है । यहाँ बाप की याद दिलानी पड़ती है । इसमें मेहनत लगती है । अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो – यह बहुत मेहनत का काम है । तब बाबा कहते हैं योग में ठहर नहीं सकते हैं । बच्चे लिखते हें-बाबा याद भूल जाती है । ऐसे नहीं कहते कि ज्ञान भूल जाता है । ज्ञान तो बहुत सहज है । याद को ज्ञान नहीं कहा जाता, इसमें माया के तूफान बहुत आते हैं । भल ज्ञान में कोई बहुत तीखें हैं, मुरली बहुत अच्छी चलाते हैं परन्तु बाबा पूछते हैं-याद का चार्ट निकालो, कितना समय याद करते हो? बाबा को याद का चार्ट यथार्थ रीति बनाकर दिखाओ । याद की ही मुख्य बात है । पतित ही पुकारते हैं कि आकर पावन बनाओ । मुख्य है पावन बनने की बात । इसमें ही माया के विघ्न पड़ते हैं । शिव भगवानुवाच-याद में सब बहुत कच्चे हैं । अच्छे- अच्छे बच्चे जो मुरली तो बहुत अच्छी चलाते हैं परन्तु याद में बिल्कुल कमजोर हैं । योग से ही विकर्म विनाश होते हैं । योग से ही कर्मेन्द्रियाँ बिल्कुल शान्त हो सकती हैं । एक बाप के सिवाए और कोई याद न आये, कोई देह भी याद न आये । आत्मा जानती है यह सारी दुनिया खलास होनी है, अब हम जाते हैं अपने घर । फिर आयेंगे राजधानी में । यह सदैव बुद्धि में रहना चाहिए । ज्ञान जो मिलता है वह आत्मा में रहना चाहिए । बाप तो है योगेश्वर, जो याद सिखलाते हैं । वास्तव में ईश्वर को योगेश्वर नहीं कहेंगे । तुम योगेश्वर हो । ईश्वर बाप कहते हैं मुझे याद करो । यह याद सिखलाने वाला ईश्वर बाप है । वह निराकार बाप शरीर द्वारा सुनाते हैं । बच्चे भी शरीर द्वारा सुनते हैं । कई तो योग में बहुत कच्चे हैं । बिल्कुल याद करते ही नहीं । जो भी जन्म-जन्मान्तर के पाप हैं सबकी सजा खायेंगे । यहाँ आकर जो पाप करते हैं वह तो और ही सौगुणा सजा खायेंगे । ज्ञान की तिक-तिक तो बहुत करते हैं, योग बिल्कुल ही नहीं है जिस कारण पाप भस्म नहीं होते, कच्चे ही रह जाते हैं इसलिए सच्ची-सच्ची माला 8 की बनी है । 9 रत्न गाये जाते हैं । 108 रत्न कब सुने हैं? 108 रत्नों की कोई चीज नहीं बनाते हैं । बहुत हैं जो इन बातों को पूरा समझते नहीं हैं । याद को ज्ञान नहीं कहा जाता । ज्ञान सृष्टि चक्र को कहा जाता है । शास्त्रों में ज्ञान नहीं है, वह शास्त्र हैं भक्ति मार्ग के । बाप खुद कहते हैं मैं इनसे नहीं मिलता । साधुओं आदि सबका उद्धार करने मैं आता हूँ । वह समझते हैं ब्रह्म में लीन होना है । फिर मिसाल देते हैं पानी के बुदबुदे का । अभी तुम ऐसे नहीं कहते । तुम तो जानते हो हम आत्मायें बाप के बच्चे हैं । ”मामेकम् याद करो” यह अक्षर भी कहते हैं परन्तु अर्थ नहीं समझते । भल कह देते हम आत्मा हैं परन्तु आत्मा क्या है, परमात्मा क्या है-यह ज्ञान बिल्कुल नहीं । यह बाप ही आकर सुनाते हैं । अभी तुम जानते हो हम आत्माओं का घर वह है । वहाँ सारा सिजरा है । हर एक आत्मा को अपना- अपना पार्ट मिला हुआ है । सुख कौन देते हैं, दु:ख कौन देते हैं-यह भी किसको पता नहीं है ।

भक्ति है रात, ज्ञान है दिन । 63 जन्म तुम धक्के खाते हो । फिर ज्ञान देता हूँ तो कितना समय लगता है? सेकेण्ड । यह तो गाया हुआ है सेकेण्ड में जीवनमुक्ति । यह तुम्हारा बाप है ना, वही पतित-पावन है । उनको याद करने से तुम पावन बन जायेंगे । सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग यह चक्र हैं । नाम भी जानते हैं परन्तु पत्थरबुद्धि ऐसे हैं, टाइम का किसको पता नहीं है । समझते भी हैं घोर कलियुग है । अगर कलियुग अभी भी चलेगा तो और घोर अन्धियारा हो जायेगा इसलिए गाया हुआ है-कुम्भकरण की नींद में सोये हुए थे और विनाश हो गया । थोड़ा भी ज्ञान सुनते हैं तो प्रजा बन जाते हैं । कहाँ यह लक्ष्मी- नारायण, कहाँ प्रजा! पढ़ाने वाला तो एक ही है । हर एक की अपनी- अपनी तकदीर है । कोई तो स्कॉलरशिप ले लेते हैं, कोई फेल हो जाते हैं । राम को बाण की निशानी क्यों दी है? क्योंकि नापास हुआ । यह भी गीता पाठशाला है, कोई तो कुछ भी मार्क्स लेने लायक नहीं । मैं आत्मा बिन्दी हूँ, बाप भी बिन्दी है, ऐसे उनको याद करना है । जो इस बात को समझते भी नहीं हैं, वह क्या पद पायेंगे! याद में न रहने से बहुत घाटा पड़ जाता है । याद का बल बहुत कमाल करता है, कर्मेन्द्रियाँ बिल्कुल शान्त,शीतल हो जाती हैं । ज्ञान से शान्त नहीं होंगी, योग के बल से शान्त होंगी । भारतवासी पुकारते हैं कि आकर हमको वह गीता का ज्ञान सुनाओ, अब कौन आयेगा? कृष्ण की आत्मा तो यहाँ है । कोई सिंहासन पर थोड़ेही बैठते हैं, जिसको बुलाते हैं । अगर कोई कहे हम क्राइस्ट की आत्मा को याद करते हैं । अरे वह तो यहाँ ही है, उनको क्या पता कि क्राइस्ट की सोल यहाँ ही है, वापिस जा नहीं सकती । लक्ष्मी-नारायण, पहले नम्बर वालों को ही पूरे 84 जन्म लेने हैं तो और फिर वापिस जा कैसे सकते । वह सब हिसाब है ना । मनुष्य तो जो कुछ बोलते हैं सो झूठ । आधाकल्प है झूठ खण्ड, आधाकल्प है सचखण्ड । अभी तो हर एक को समझाना चाहिए-इस समय सब नर्कवासी हैं फिर स्वर्गवासी भी भारतवासी ही बनते हैं । मनुष्य कितने वेद, शास्त्र, उपनिषद आदि पढ़ते हैं, क्या इससे मुक्ति को पायेंगे?उतरना तो है ही । हर चीज सतो, रजो, तमो में जरूर आती है । न्यू वर्ल्ड किसको कहा जाता है,किसको भी यह ज्ञान नहीं है । यह तो बाप सम्मुख बैठ समझाते हैं । देवी-देवता धर्म कब, किसने स्थापन किया- भारतवासियों को कुछ भी पता नहीं है । तो बाप ने समझाया है-ज्ञान में भल कितने भी अच्छे हैं परन्तु योग में कई बच्चे नापास हैं । योग नहीं तो विकर्म विनाश नहीं होंगे, ऊंच पद नहीं पायेंगे । जो योग में मस्त हैं वही ऊंच पद पायेंगे । उनकी कर्मेन्द्रियाँ बिल्कुल शीतल हो जाती हैं । देह सहित सब कुछ भूल देही- अभिमानी बन जाते हैं । हम अशरीरी हैं अब जाते हैं घर । उठते-बैठते समझो- अब यह शरीर तो छोड़ना है । हमने पार्ट बजाया, अब जाते हैं घर । ज्ञान तो मिला है, जैसे बाप में ज्ञान है, उनको तो किसको याद नहीं करना है । याद तो तुम बच्चों को करना है । बाप को ज्ञान का सागर कहा जाता है । योग का सागर तो नहीं कहेंगे ना । चक्र का नॉलेज सुनाते हैं और अपना भी परिचय देते हैं । याद को ज्ञान नहीं कहा जाता । याद तो बच्चे को आपेही आ जाती है । याद तो करना ही है, नहीं तो वर्सा कैसे मिलेगा? बाप है तो वर्सा जरूर मिलता है । बाकी है नॉलेज । हम 84 जन्म कैसे लेते हैं, तमोप्रधान से सतोप्रधान, सतोप्रधान से तमोप्रधान कैसे बनते हैं, यह बाप समझाते हैं । अब सतोप्रधान बनना है बाप की याद से । तुम रूहानी बच्चे रूहानी बाप के पास आये हो, उनको शरीर का आधार तो चाहिए ना । कहते हैं मैं बूढ़े तन में प्रवेश करता हूँ । है भी वानप्रस्थ अवस्था । अब बाप आते हैं तब सारे सृष्टि का कल्याण होता है । यह है भाग्यशाली रथ, इनसे कितनी सर्विस होती है । तो इस शरीर का भान छोड़ने के लिए याद चाहिए । इसमें ज्ञान की बात नहीं । जास्ती याद सिखलानी है । ज्ञान तो सहज है । छोटा बच्चा भी सुना दे । बाकी याद में ही मेहनत है । एक की याद रहे, इसको कहा जाता है अव्यभिचारी याद । किसके शरीर को याद करना – वह है व्यभिचारी याद । याद से सबको भूल अशरीरी बनना है । अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. याद के बल से अपनी कर्मेन्द्रियों को शीतल, शान्त बनाना है । फुल पास होने के लिए यथार्थ रीति बाप को याद कर पावन बनना है ।

2. उठते-बैठते बुद्धि में रहे कि अभी हम यह पुराना शरीर छोड़ वापस घर जायेंगे । जैसे बाप में सब ज्ञान है, ऐसे मास्टर ज्ञान सागर बनना है ।

वरदान:-

क्यों, क्या के क्वेश्चन की जाल से सदा मुक्त रहने वाले विश्व सेवाधारी चक्रवर्ती भव !   

जब स्वदर्शन चक्र राइट तरफ चलने के बजाए रांग तरफ चल जाता है तब मायाजीत बनने के बजाए पर के दर्शन के उलझन के चक्र में आ जाते हो जिससे क्यों और क्या के क्वेश्चन की जाल बन जाती है जो स्वयं ही रचते और फिर स्वयं ही फंस जाते इसलिए नॉलेजफुल बन स्वदर्शन चक्र फिराते रहो तो क्यों क्या के क्वेश्चन की जाल से मुक्त हो योगयुक्त, जीवनमुक्त, चक्रवर्ती बन बाप के साथ विश्व कल्याण की सेवा में चक्र लगाते रहेंगे । विश्व सेवाधारी चक्रवर्ती राजा बन जायेंगे ।

स्लोगन:- 

प्लेन बुद्धि से प्लैन को प्रैक्टिकल में लाओ तो सफलता समाई हुई है ।   

 

ओम् शान्ति |

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