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09-09-17

09-09-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 


“मीठे बच्चे – बाप समान पतितों को पावन बनाने का पुरूषार्थ करो, यह समय बहुत वैल्युबुल है, इसलिए व्यर्थ बातों में अपना समय बरबाद मत करो”

प्रश्न:

बाप बच्चों की किस एक बात पर बहुत तरस खाते हैं?

उत्तर:

कई बच्चे आपस में झरमुई झगमुई कर अपना समय बहुत गवाते हैं। घूमने फिरने जाते हैं तो बाप को याद करने के बजाए व्यर्थ चिंतन करते हैं। बाप को उन बच्चों पर बहुत तरस पड़ता है। बाबा कहते मीठे बच्चे – अब अपनी जीवन सुधार लो। व्यर्थ समय नहीं गवाओ। तमोप्रधान से सतोप्रधान बनने के लिए सच्ची दिल से बाप को युक्तियुक्त याद करो, लाचारी याद नहीं करो।

ओम् शान्ति।

भगवानुवाच। बच्चे भी समझते होंगे जरूर कि भगवान हमको पढ़ा रहे हैं। हम बहुत पुराने स्टूडेन्ट हैं। एक ही टीचर के पास कोई भी पढ़ते नहीं हैं। 12 मास पढ़ेंगे फिर टीचर बदली करेंगे। यहाँ यह मुख्य टीचर बदली नहीं होता। बाकी बच्चियां तो बहुत हैं – राजयोग सिखाने के लिए। एक से तो काम चल न सके। पावन बनने के लिए कितने ढेर बुलाते हैं। एक को ही बुलाते हैं। पावन बनाने वाला एक ही टीचर ठहरा। वन्डर है जो पतित-पावन को बुलाते हैं, समझते कुछ भी नहीं। द्रोपदी ने भी पुकारा ना कि हमें यह नंगन करते हैं, रक्षा करो। आधाकल्प तुम पुकारते आये हो। बोलो, तुम ही सब तो पुकारते थे ना। द्रोपदी का मिसाल दिया है, पतित तो सारी दुनिया है। पतित और पावन में रात दिन का फर्क है। पतित हैं पत्थर बुद्धि। बाप आकर सब विकारों से घृणा दिलाते हैं। आत्मा समझती है कि मुझ आत्मा का यह शरीर पतित है। तुम भी समझते हो यह शरीर पतित है, जंक लगा हुआ है। जिन्हों को पावन फर्स्टक्लास शरीर है, वह सारे विश्व पर राज्य करते थे, उनको कहेंगे पारसबुद्धि। पत्थरबुद्धि और पारसबुद्धि का गायन भी भारत में ही है। तो बच्चों को ख्याल आना चाहिए कि इस पतित भारत को पावन कैसे बनायें। परन्तु नम्बरवार सर्विसएबुल को यह ख्यालात आते होंगे और पतितों को पावन बनाने का पुरूषार्थ करते होंगे। बाप का पहला फर्ज ही यह है। बाप आते ही हैं तमोप्रधान से सतोप्रधान बनाने। तो जितना बाप को ओना है उतना बच्चों को भी होना चाहिए। बाप कहते हैं मैं तुमको अपने से भी ऊंचा बनाता हूँ। तुमको ख्यालात भी जास्ती चलने चाहिए। मेरे से भी जास्ती सर्विस तुम बच्चे करते हो ना। बाबा थोड़ेही 3-4 घण्टे बैठ समझाते हैं प्रदर्शनी आदि में। बाप बच्चों की महिमा करते हैं। परन्तु वह खुशी, वह योग कम दिखाई देता है इसलिए बेहद का बाप जो इन द्वारा पढ़ाते हैं, यह सबसे नजदीक है। इतना एकदम नजदीक बाप, दादा कब देखा है? मुख्य है ही आत्मा। आत्मा निकल जाए तो शरीर कोई काम का नहीं रहता। मनुष्य के शरीर की कोई वैल्यु नहीं रहती। कोई काम में नहीं आता, राख हो जाता है। जानवरों आदि की हि•यां भी काम में आ जाती हैं। चमड़ा भी काम में आता है। मनुष्य का तो कुछ भी नहीं बनता। हि•यां पानी में डाल खत्म कर देते हैं। निशानी भी नहीं रहती। उन्हों की निशानी फिर भी जंगलों में पड़ी रहती है। मनुष्य का सतयुग से लेकर त्रेता अन्त तक तो मूल्य है। देवतायें हैं तब तो पूज्य लायक हैं। पीछे पाई की भी वैल्यु नहीं रहती इसलिए कहा जाता है पत्थरबुद्धि। भरी ढोते रहते हैं, पैसे आदि की चिंता रहती है। वहाँ तो बिल्कुल निश्चिंत रहते हैं। तो बाप कहते हैं कि तुम्हारा यह शरीर बहुत वैल्युबुल है। यह टाइम भी वैल्युबुल है, इनको वेस्ट नहीं गँवाओ। फालतू बातों में समय नहीं गँवाओ। अपनी आत्मा को याद के बल से सतोप्रधान बनाना है और कोई उपाय पावन बनने का नहीं है। एक ही शास्त्र में भगवानुवाच है – जिसको कहते हैं श्रीमत भगवत गीता। तो बाप कहते हैं आओ – कंगाल बच्चे, तुम्हें सिरताज बनाऊं। तुम भी समझते हो कि बरोबर हम कंगाल हैं। भल बहुत धनवान हैं, पदमापदमपति हैं, उन्हों के फोटो, नाम आदि निकालते हैं ना। तुम बच्चों में भी नम्बरवार धनवान हैं। तुम कहेंगे हम स्थाई सच्चे धनवान हैं। यह धन ही साथ देता है। तुम्हारे आगे वह सब कंगाल हैं। नाम भल पदमपति आदि है। सतगुरू बाबा ने भी तुम्हारा नाम पदमापदमपति अविनाशी रखा है। तुम हो स्वर्ग के पदमपति। वह हैं नर्क के पदमपति। नर्क और स्वर्ग को तुम समझते हो। वह पत्थरबुद्धि बिल्कुल नहीं समझते। आगे चल तुम्हारे पास आयेंगे, जब विनाश देखेंगे तब समझेंगे यह तो पुरानी दुनिया का विनाश हो जायेगा। फिर कहेंगे यह ब्रह्माकुमार कुमारियां तो सच कहते थे। अच्छा, अब क्या करना है? कुछ कर नहीं सकेंगे। पैसे आदि एकदम जल मर सब खत्म हो जायेंगे। बाम्बस आदि गिरते हैं तो मकान, जायदाद आदि सब खत्म हो जाता है। शरीर भी खत्म हो जाते हैं। यह तुम देखेंगे – बड़ा भयानक सीन आने वाला है। उस समय ज्ञान में आ नहीं सकेंगे। अब यह भगवान बैठ समझाते हैं। बच्चे जानते हैं – हम आये हैं भगवान से पढ़ने। तुम कितने तकदीरवान हो। यह भी सबको निश्चय नहीं है, निश्चय हो तो भगवान से क्यों नहीं पढ़े। रात दिन बत्तियां जगाकर मर-झुरकर, भोजन न खाकर भी एकदम पढ़ने को लग पड़े। वाह यह तो 21 जन्मों की कमाई है। बहुत अच्छी रीति पढ़ने को लग जाये। पढ़ाई भी क्या है, मुख्य है ही बाप को याद करना। बाबा को बहुत तरस आता है। बाबा जानते हैं बच्चे घूमने फिरने जाते हैं, एक भी बाप की याद में नहीं रहते। झरमुई झगमुई बहुत करते हैं। बच्चों को बहुत ओना रहना चाहिए। बस टाइम बहुत थोड़ा है। भारत कितना बड़ा है। बहुत सर्विस है। पहले अपनी जीवन तो सुधार लें। बाबा बहुत बार कहते हैं – बच्चे झरमुई झगमुई मत करो। यह बातें छोड़ दो, अपना जीवन सुधारो। सबको आपस में लड़ मरना है। ड्रामा की भावी ऐसी है। तमोप्रधान से सतोप्रधान बनने में टाइम तो लगता है ना। अपनी दिल से पूछना है कि हम कितना समय याद करते हैं? सच्ची दिल से बहुत प्यार से युक्तियुक्त याद कोई 5 मिनट भी मुश्किल करते हैं। बहुत लव से याद किया जाता है। बिगर लव कभी किसको याद करते हैं क्या? बहुत हैं जो लाचारी हालत में याद करते हैं। लव से याद करना आता ही नहीं। सच्ची दिल पर साहेब राजी। देखो – बाबा एक ही आवाज करते हैं मनमनाभव अर्थात् याद करो तो तुम्हारे सब पाप कट जायेंगे। हम ही तुम्हारा दोस्त हूँ। बाकी तो सब हैं दुश्मन। तुम एक दो के भी दुश्मन हो। बहुत आपस में लड़ते झगड़ते हैं तो दोस्त कैसे ठहरे। बाप कहते हैं अगर आत्मा भाई-भाई समझो तो दुश्मनी सारी खत्म हो जाए। न नाक, न कान, न मुख है.. तो दुश्मनी किससे रखेंगे। शरीरों को देखो ही नहीं। तुम भी आत्मा, वह भी आत्मा तो दुश्मनी निकल जाती है। बहुत मेहनत है। बिगर मेहनत कुछ मिलता है क्या? उस पढ़ाई में भी कितना माथा मारते हैं। सहज भी है। बाप कहते हैं – सिमर सिमर सुख पाओ। यह तो जानते हो कि भक्ति मार्ग में सिमरसिमर दु:ख ही पाया है, जिसको सिमरते हैं – उनके आक्यूपेशन का पता नहीं। कितने को सिमरते हैं, हनूमान को सिमरो, गणेश को सिमरो…एक है सिमर-सिमर सुख पाओ, दूसरा है सिमर-सिमर दु:ख पाओ क्योंकि भक्ति रात है ना। शिवबाबा की रात थोड़ेही हो सकती। रात में धक्का खाया जाता है। पहले नम्बर में यह (ब्रह्मा) धक्का खाते हैं। उसके साथ तुम ब्राह्मण भी साथी हो। ब्राह्मणों का सारा कुल है, जो भी ब्राह्मण बनते हैं वह आकर सुख पाते हैं सिमरने से। तुम सबको कहते हो कि शिवबाबा को याद करो तो पाप कट जायेंगे। तुम एक बाप का सिमरण करते हो, मनुष्य तो अनेकों का सिमरण करते-करते पाप आत्मा बन जाते हैं। सीढ़ी उतरते जाते हैं। अब तुम एक बाप को याद करो, अर्थ सहित। बाप कहते हैं मैं आया ही हूँ वर्सा देने, पावन बनाने। अर्थ है ना। शिवबाबा पतित-पावन है – यह किसको पता भी नहीं है। कोई आकर बतावे तो सही कि कैसे आकर पावन बनाते हैं। तुम्हारे पास यहाँ बैठे भी पूरी रीति जानते ही नहीं है। माया भुलाने वाली कोई कम नहीं है। तुम खुद कहते हो बाबा हम याद करते हैं, माया भुला देती है। बाबा कहते हैं अरे तुम बाबा को याद नहीं करेंगे तो वर्सा कैसे मिलेगा। बाप के सिवाए कोई वर्सा देगा! जितना बाप को याद करेंगे उतना वर्सा आटोमेटिकली मिलेगा। सीधा समझाते हैं – राजाई स्थापना हो रही है, इसमें सूर्यवंशी भी बनते हैं। कितने मनुष्यों के कान तक आवाज पहुंचाना है। बाबा कहते हैं बच्चे, मन्दिरों में जाओ, गली-गली में जाकर सर्विस करो। बाबा के भक्त सो देवताओं के भक्त, जैसे मन्दिरों वा सतसंगों में बैठे रहते हैं, बुद्धि कहाँ न कहाँ धन्धेधोरी, मित्र सम्बन्धियों आदि तरफ दौड़ती रहती, धारणा कुछ भी नहीं। यहाँ भी ऐसे हैं जो कुछ भी सुनते नहीं, झुटका खाते रहते हैं। बाप को देखते नहीं, अरे ऐसे बाप को तो कितना न अच्छी रीति देखना चाहिए। सामने टीचर बैठा है। बाप कहते हैं मैं इन कर्मेन्द्रियों द्वारा तुमको पढ़ाता हूँ। आत्मा पढ़ती है। बाप आत्माओं से बात करते हैं। आंख, कान, नाक आदि पढ़ते हैं क्या? पढ़ने वाली आत्मा है। दुनिया में यह किसको पता नहीं है क्योंकि देह-अभिमान है ना। आत्मा में ही सब संस्कार हैं। बाप कहते हैं आत्मा को देखो, कितनी मेहनत की बात है। मेहनत बिगर विश्व के मालिक थोड़ेही बनेंगे। मेहनत करेंगे तब विश्व के मालिक बनेंगे। वन्डर तो देखो कि बेहद की पढ़ाई है। पढ़ाने वाला बेहद का बाप है। राजा से रंक तक यहाँ ही बनते हैं – इस पढ़ाई से। जितना जो पढ़ते और पढ़ाते हैं उतना ऊंच पद पाते हैं। बाप आते ही हैं पढ़ाने, पतित से पावन बनाने। बाप को देखते ही नहीं – तो क्या समझना चाहिए! पाई पैसे का पद, नौकर-चाकर जाए बनेंगे। नौकर-चाकर जैसे राजा के पास होते वैसे प्रजा के पास। कहेंगे तो दोनों को ही नौकर। पिछाड़ी में करके थोड़ा लिफ्ट मिलती है। मोचरा खाकर मानी (रोटी) टुकड़ा मिल जायेगा। तो पुरूषार्थ बहुत अच्छा होना चाहिए। बाप से बहुत प्यार से सुनना चाहिए, फिर रिपीट करना चाहिए। स्कूल में पढ़ते हैं फिर घर में भी जाकर स्कूल के काम करते हैं। ऐसे नहीं कि सिर्फ घूमते फिरते हैं। पढ़ाई का ओना रहता है। यहाँ तो कई हैं जो कुछ भी नहीं समझते। बिल्कुल जैसे पुराने पत्थरबुद्धि हैं। बाबा का बनकर अगर फिर कड़ी भूलें करते हैं तो सौगुणा दण्ड मिल जाता है। तो बाप समझाते हैं मीठे-मीठे बच्चे टाइम वेस्ट मत करो। बहुत भारी मंजिल है। कल्प-कल्प तुम्हारा ऐसा ही पद बन जायेगा। यहाँ तुम आये हो – नर से नारायण बनने। नौकर-चाकर बनने थोड़ेही आये हो। पिछाड़ी में सबको एक्यूरेट साक्षात्कार होगा कि हम यह बनने वाले हैं। बुद्धि भी कहती है जो किसका कल्याण ही नहीं करेंगे, वह क्या पद पायेंगे। कोई तो रात दिन बहुत सर्विस करते रहते हैं। प्रदर्शनी मेले में बहुत सर्विस होती है। बाबा कहते हैं ऐसी अच्छी-अच्छी चीजें म्युजयम में बनाओ जो मनुष्यों की दिल उठे देखने की, समझेंगे कि यहाँ तो जैसे स्वर्ग लगा पड़ा है। सेन्टर्स को स्वर्ग थोड़ेही कहेंगे। दिनप्रतिदिन नई बातें होती रहती हैं, चित्र बनते रहते हैं। विचार सागर मंथन होता रहता है ना। समझाने के लिए ही चित्र आदि होते हैं। बाबा अभी मनुष्यों को दैवीगुणों वाला बनाते हैं, तो आत्मा भी नई, शरीर भी नया मिलता है। नया माना नया, नये कपड़े बदल फिर पुराने थोड़ेही पहनेंगे। भगवान आयेगा तो जरूर कमाल करके दिखायेंगे ना। भगवान है ही स्वर्ग की स्थापना करने वाला। अच्छा! 
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:

1) बाप जो सुनाते हैं उसे बहुत प्यार से आत्म-अभिमानी होकर सुनना है। सामने बैठकर बाप को देखते रहना है। झुटका नहीं खाना है। पढ़ाई में बहुत रूचि रखनी है। भोजन त्यागकर भी पढ़ाई जरूर करनी है।

2) एक बाप को सच्चा दोस्त बनाना है, आपस में दुश्मनी समाप्त करने के लिए मैं आत्मा भाई-भाई हूँ, यह अभ्यास करना है। शरीर को देखते हुए भी नहीं देखना है।

वरदान:

होलीहंस बन व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन करने वाले फीलिंग प्रूफ भव

सारे दिन में जो व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ बोल, व्यर्थ कर्म और व्यर्थ सम्बन्ध-सम्पर्क होता है उस व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन कर दो। व्यर्थ को अपनी बुद्धि में स्वीकार नहीं करो। अगर एक व्यर्थ को भी स्वीकार किया तो वह एक अनेक व्यर्थ का अनुभव करायेगा, जिसे ही कहते हैं फीलिंग आ गई इसलिए होलीहंस बन व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन कर दो तो फीलिंग प्रूफ बन जायेंगे। कोई गाली दे, गुस्सा करे – आप उसको शान्ति का शीतल जल दो-यह है होलीहंस का कर्तव्य।

स्लोगन:

साधना के बीज को प्रत्यक्ष करने का साधन है बेहद की वैराग्य वृत्ति।

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