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20/01/18

20/01/18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन


“मीठे बच्चे – एक मनमनाभव के महामंत्र से तुम समझदार बनते हो, यही मंत्र सब पापों से मुक्त करने वाला है”

प्रश्न:

सारे ज्ञान का सार क्या है, मनमनाभव रहने वालों की निशानी क्या होगी?

उत्तर:

सारे ज्ञान का सार है कि अब हमको वापिस घर जाना है। यह छी-छी दुनिया है, इसको छोड़ हमें अपने घर चलना है। अगर यह याद रहे तो भी मनमनाभव हुआ। मनमनाभव रहने वाले बच्चे सदा ज्ञान का विचार सागर मंथन करते रहेंगे। वह बाबा से मीठी-मीठी रूहरिहान करेंगे।

प्रश्न:

किस आदत के वशीभूत आत्मा बाप की याद में नहीं रह सकती?

उत्तर:

अगर गन्दे चित्र देखने की, गन्दे समाचार पढ़ने की आदत पड़ी तो बाप की याद रह नहीं सकती। सिनेमा है दोज़क का द्वार, जो वृत्तियों को खराब कर देता है।

ओम् शान्ति।

रूहानी बाप बैठ रूहानी बच्चों को समझाते हैं। समझाना उनको होता है, जिसमें कुछ कम समझ है। तुम अभी बहुत समझदार बन चुके हो जो समझते हो कि यह हमारा बेहद का बाप भी है, बेहद की शिक्षा भी देते हैं। सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज़ भी समझाते हैं। स्टूडेण्ट की बुद्धि में नॉलेज होनी चाहिए ना और फिर बाप साथ में भी जरूर ले जायेगा क्योंकि बाप जानते हैं कि यह पुरानी छी-छी दुनिया है। इस पुरानी दुनिया से मैं बच्चों को घर ले जाने लिए आया हूँ। बाबा समझाते हैं यहाँ बैठे बैठे बच्चों के अन्दर में जरूर आता होगा कि ओहो! यह हमारा बेहद का बाप भी है, फिर शिक्षा भी बहुत ऊंची देते हैं। सारी रचना के आदि मध्य अन्त का राज़ भी समझाया है। यह सब याद करना भी मनमनाभव है। यह भी तुम्हारे चार्ट में आ सकता है। यह तो बहुत सहज है। और भल कुछ भी न करो, परन्तु उठते बैठते, चलते फिरते बुद्धि में यह याद रहे। वण्डरफुल चीज़ को याद करना होता है। तुम समझते हो बाबा को याद करने से, पढ़ाई पढ़ने से हम फिर से विश्व का मालिक बनते हैं। यह बुद्धि में चलता रहना चाहिए। भल कहाँ भी बस-ट्रेन आदि में बैठे हो परन्तु बुद्धि में याद हो। पहले-पहले तो बच्चों को बाप चाहिए। तुम जानते हो हम आत्माओं का रूहानी बेहद का बाप है। सहज याद दिलाने लिए बाबा युक्ति बताते हैं। मामेकम् याद करो तो आधाकल्प के जो तुम्हारे विकर्म हैं, वह सब योग अग्नि से भस्म हो जायें। जन्म-जन्मान्तर बहुत ही यज्ञ जप तप आदि किये हैं। भक्ति मार्ग वालों को पता नहीं है कि यह सब क्यों करते हैं। इनसे क्या प्राप्ति होगी। मन्दिरों में जाते हैं इतनी भक्ति करते हैं, समझते हैं यह सब परम्परा से चला आया है। शास्त्रों के लिए भी कहेंगे कि यह परम्परा से चले आये हैं। परन्तु मनुष्यों को पता ही नहीं है कि स्वर्ग में तो शास्त्र होते नहीं। वह समझते हैं सृष्टि के शुरू से ही यह सब चला आता है। न किसको यह कह सकते कि बेहद का बाप कौन है। यहाँ हद का बाप वा हद का टीचर तो नहीं है। हद के टीचर से तो तुम सब पढ़े हुए हो। जो पढ़कर ही नौकरी आदि करते हैं, कमाई करते हैं। तुम बच्चे जानते हो यह जो हमारा बेहद का बाप है, उनका कोई भी बाप है नहीं और यह बेहद का टीचर भी है। इनका कोई टीचर नहीं। इन देवताओं को किसने पढ़ाया, यह तो जरूर याद आना चाहिए ना! यह भी मनमनाभव है। यह पढ़ाई तो कहाँ से पढ़े नहीं हैं। बाप स्वयं ही नॉलेजफुल है। इनको किसने पढ़ाया है क्या? मनुष्य सृष्टि का वह बीजरूप है और चैतन्य है, ज्ञान का सागर है। चैतन्य होने कारण मनुष्य सृष्टि रूपी झाड़ का आदि से अन्त तक राज़ सुनाते हैं। अन्त में आकर आदि का ज्ञान सुनाते हैं और कहते हैं हे बच्चों जिस तन में मैं विराजमान हूँ, इन द्वारा मैं आदि से लेकर इस समय तक सब कुछ सुनाता हूँ। अन्त के लिए तो पीछे समझायेंगे। तुम आगे चलकर समझ जायेंगे कि अब अन्त है क्योंकि उस समय तुम कर्मातीत अवस्था को पहुँच जायेंगे और आसार भी देखेंगे कि इस पुरानी छी-छी दुनिया का विनाश तो होना ही है। यह कोई नई बात नहीं है। अनेक बार देखा है और देखते ही रहेंगे। कल्प पहले राज्य लिया था फिर गँवाया अब फिर ले रहे हैं। बाबा हमको पढ़ाते हैं। तुम समझते हो हम ही विश्व के मालिक थे, फिर 84 जन्म लिये, फिर बाबा विश्व का मालिक बनाने के लिए वही ज्ञान दे रहे हैं। तुम अन्दर में समझते हो बाबा टीचर भी है। अच्छा अगर बाप याद नहीं पड़ता तो टीचर को याद करो। टीचर कब भूलेगा क्या? टीचर से तो पढ़ते रहते हो। हाँ माया ग़फलत कराती है वह तुमको पता नहीं पड़ता है। माया आंखों में एकदम धूल डाल देती है। जो हमको भगवान पढ़ाते हैं, यह एकदम भूल जाते हैं। बाप हर बात की समझानी देते हैं। यह है बेहद की समझानी। वह है हद की। यह बेहद की नॉलेज बाबा कल्प-कल्प तुम बच्चों को देते हैं। अच्छा जास्ती पढ़ नहीं सकते हो तो भला बाबा के रूप से याद करो। उनका तो कोई बाप है नहीं, वह सबका बाप है। परन्तु उनके बच्चे सब हैं। कोई बता सकेगा कि शिवबाबा किसका बच्चा है? वह है बेहद का बाप। बच्चे समझते हैं हम बेहद के बाप के बने हैं। यह हमारी पढ़ाई भी वन्डरफुल है और हम ब्राह्मण ही पढ़ते हैं। देवता वा क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र यह पढ़ाई नहीं पढ़ सकते। बाप की यह नॉलेज ही बिल्कुल न्यारी है। तुम्हारे सिवाए कोई समझ न सके। तुम बच्चों को खुशी का पारा चढ़ता है कि हम तमोप्रधान से सतोप्रधान बनें। अब ऊंच पद पाने लिए खूब पुरुषार्थ करना है। ऐसे नहीं स्वर्ग में तो सब जायेंगे। अगर ज्ञान और योग की धारणा नहीं होगी तो ऊंच पद नहीं मिलेगा।

बाबा कहते हैं 16 कला सम्पूर्ण बनने में याद की बहुत मेहनत है। देखना है किसको दु:ख तो नहीं देते हैं? हम सुखदाता के बच्चे हैं। सबको सुख देना है। मन्सा, वाचा, कर्मणा किसको दु:ख नहीं देना है। इस समय तुम जो पढ़ते हो, गुलगुल बनते हो। यह कमाई ही तुम्हारे साथ चलने वाली है, इसमें कोई किताब आदि पढ़ने की जरूरत ही नहीं। उस पढ़ाई में कितने किताब आदि पढ़ने पड़ते हैं। यह बाबा की नॉलेज सबसे न्यारी है और बड़ी सहज भी है। परन्तु है सब गुप्त। तुम्हारे सिवाए कोई समझ न सके कि यह क्या पढ़ते हैं। वन्डरफुल पढ़ाई है। बाप कहते हैं कभी अबसेन्ट नहीं होना। पढ़ाई कभी नहीं छोड़ना। बाबा के पास सबका रजिस्टर आता है। उनसे ही बाबा समझ जाता है यह 10 मास अबसेन्ट रहा, यह 6 मास रहा। कोई तो चलते-चलते पढ़ाई भी छोड़ देते हैं। यह बहुत वन्डरफुल चीज़ है। ऐसी वन्डरफुल चीज़ और कोई होती ही नहीं। कल्प-कल्प तुम बच्चों को ऐसा बाप आकर मिलता है। तुम बच्चे जानते हो यह साकार बाबा तो पुनर्जन्म में आता है। यह 84 का चक्र खाते हैं ततत्वम्, यह खेल है ना। खेल कभी भूला नहीं जाता है। खेल सदैव याद रहता है।

बाबा समझाते हैं एक तो यह दुनिया दोज़क है और इसमें भी खास यह बाइसकोप (सिनेमा) दोज़क है। वहाँ जाने से वृत्तियां बहुत खराब हो जाती हैं। अखबार में भी कोई अच्छे-अच्छे चित्र देखते हैं तो उसमें भी बुद्धि जाती है – यह खूबसूरत है, इनको प्राइज़ मिलनी चाहिए, ख्यालात चलती हैं। ऐसा देखे ही क्यों! बुद्धि से समझते हैं यह सारी दुनिया ही खत्म हो जाने वाली है। तुम सिर्फ मुझे ही याद करो। ऐसी-ऐसी चीजें न देखो, न ख्याल करो। यह तो पुरानी दुनिया के छी-छी (गन्दे) शरीर हैं, इनके तरफ क्या देखना है। एक बाप को ही देखना है। बाबा कहते हैं मीठे-मीठे बच्चे मंजिल बहुत ऊंची है। माया कोई कम नहीं है। माया का देखो कितना भभका है। उस तरफ है साइन्स और यहाँ है तुम्हारी साइलेन्स। वो लोग चाहते हैं मुक्ति को पायें। यहाँ तुम्हारी एम आबजेक्ट है जीवनमुक्ति को पाने की। जीवनमुक्ति पाने का कोई रास्ता बता न सके। सन्यासी आदि कोई भी यह नॉलेज दे न सके। वो किसको समझा नहीं सकते कि गृहस्थ व्यवहार में रहकर पवित्र बनना है। यह एक ही बाप समझाते हैं। भक्ति मार्ग में टाइम वेस्ट ही होता आया है। कितनी भूलें होती हैं। भूल करते-करते भोले ही बन गये हैं। यह लास्ट जन्म 100 परसेन्ट भूलों का ही है। जरा भी बुद्धि काम नहीं करती। अब बाबा तुमको समझाते हैं, तब तुम समझते हो। अभी तुम सब समझ गये हो तो औरों को भी समझाते हो। खुशी का पारा भी तुम्हें चढ़ता है। वन्डर है ना – इस बाप को कोई बाप नहीं, कोई शिक्षक नहीं। तब सीखा कहाँ से! मनुष्य वन्डर खायेंगे। बहुत समझते हैं इनका जरूर कोई गुरू होगा। अगर यह भी गुरू से सीखा हुआ हो फिर गुरू के और भी शिष्य होने चाहिए। सिर्फ यह एक शिष्य थोड़ेही होगा। गुरू के तो बहुत शिष्य होते हैं। आगाखां के देखो कितने शिष्य हैं। उन्हों को गुरू के लिए देखो कितना रिगार्ड रहता है। उनको हीरों में वज़न करते हैं। तुम किसमें वज़न करेंगे? यह तो सबसे सुप्रीम है। इनका वजन कितना होगा? तुम क्या करेंगे! वज़न करें तो कितना होगा? कोई चीज़ पड़ सकती है? शिवबाबा तो बिन्दी है ना। आजकल वज़न बहुत करते हैं। कोई सोने में, कोई चांदी में, प्लैटिनम में भी करते हैं। वह सोने से भी महंगा होता है। अब बाप समझाते हैं वह जिस्मानी गुरू तो तुम्हें सद्गति देते नहीं। सद्गति में ले जाने वाला तो एक ही बाप है, उनको किसमें वज़न करेंगे? मनुष्य तो सिर्फ भगवान-भगवान ही कहते रहते हैं। लेकिन यह नहीं जानते कि वह बाप है, टीचर भी है। बैठे कितना साधारण हैं। बच्चों का मुखड़ा देखने के लिए थोड़ा सा ऊपर बैठते हैं। मददगार बच्चों के बिगर हम स्थापना कैसे कर सकते हैं। जो जास्ती मदद करते हैं उनको जरूर बाबा लव करेंगे। लौकिक में भी एक बच्चा 2000 कमाता, दूसरा 1000 कमाता होगा। तो बाप का लव किस पर रहेगा? परन्तु आजकल तो बच्चे पूछते ही बाप को कहाँ हैं? बेहद का बाप भी देखते हैं फलाने-फलाने बच्चे बहुत अच्छे मददगार हैं। बच्चों को देख-देख बाबा हर्षित होते हैं। आत्मा खुश होती है। कल्प-कल्प मैं आता हूँ और बच्चों को देख बहुत खुश होता हूँ। जानता हूँ कल्प-कल्प यह हमारे मददगार बनते हैं। यह बाबा का प्यार कल्प-कल्प का बन जाता है। कहाँ भी बैठे हो बुद्धि में यह सोचो बाबा हमारा बाप भी है, टीचर भी है, गुरू भी है। स्वयं ही सब कुछ है। तब तो सब उनको ही याद करते हैं। सतयुग में कोई याद नहीं करेंगे क्योंकि 21 जन्मों के लिए बाप बेड़ा पार कर देते हैं। ऐसे-ऐसे सिमरण कर बच्चों को हर्षित होना चाहिए। खुशी होनी चाहिए कि हम ऐसे बाप की सर्विस करें। बाप का सबको परिचय दें। यह बेहद का बाप है। बाप ही स्वर्ग की स्थापना करते हैं। बाप ही हम सबको साथ भी ले जाते हैं। ऐसी-ऐसी समझानी से सर्वव्यापी कह नहीं सकेंगे। बाप ने कहा है विनाश काले विपरीत बुद्धि विनशन्ति। वह सब खत्म हो जायेंगे, बाकी तुम विजय पायेंगे। तुम राजधानी स्थापन कर रहे हो। आत्माओं का बाप आत्माओं को बैठ समझाते हैं। तो ऐसी-ऐसी वन्डरफुल बातें सबको सुनानी चाहिए। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:

1) सुखदाता के हम बच्चे हैं, हमें सबको सुख देना है। मन्सा-वाचा-कर्मणा किसी को भी दु:ख नहीं देना है।

2) पढ़ाई और पढ़ाने वाला दोनों ही वन्डरफुल हैं। ऐसी वन्डरफुल पढ़ाई को कभी भी मिस नहीं करना है। अबसेन्ट नहीं होना है।

वरदान:

साथ रहेंगे, साथ जियेंगे…. इस वायदे की स्मृति द्वारा कम्बाइन्ड रहने वाले सहजयोगी भव!

आप बच्चों का वायदा है कि साथ रहेंगे, साथ जियेंगे, साथ चलेंगे… इस वायदे को स्मृति में रख बाप और आप कम्बाइन्ड रूप में रहो तो इस स्वरूप को ही सहजयोगी कहा जाता है। योग लगाने वाले नहीं लेकिन सदा कम्बाइन्ड अर्थात् साथ रहने वाले। ऐसे साथ रहने वाले ही निरन्तर योगी, सदा सहयोगी, उड़ती कला में जाने वाले फरिश्ता स्वरूप बनते हैं।

स्लोगन:

क्वेश्चन मार्क का टेढ़ा रास्ता लेने के बजाए कल्याण की बिन्दी लगाना ही कल्याणकारी बनना है।

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