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05-03-2018

05-03-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन


“मीठे बच्चे – बाबा आया है तुम बच्चों की महफिल में, अभी तुम ज्ञान अमृत की महफिल मना रहे हो, तुम्हारी मुसाफिरी अब पूरी हुई, वापस घर जाना है”

प्रश्न:

अनेक प्रकार के तूफानों में याद को सहज बनाने की विधि क्या है?

उत्तर:

शरीर निर्वाह करते 5-10 मिनट भी बुद्धि को शिवबाबा में लगाने की कोशिश करो, इस शरीर को भुलाते जाओ। मैं अशरीरी आत्मा हूँ, पार्ट बजाने के लिए इस शरीर में आई हूँ। अब फिर अशरीरी बन घर जाना है। ऐसे-ऐसे अपने साथ बातें करो। एक सत बाप के साथ बुद्धि का संग हो, दूसरे संग से अपनी सम्भाल करो तो याद सहज हो जायेगी।

ओम् शान्ति।

बच्चों ने गीत सुना और अर्थ भी बच्चों ने दिल में समझा होगा। फिर भी बाप समझाते हैं क्योंकि अभी बाप इस महफिल में आये हुए हैं। महफिल तुम्हारी भी है, सारी दुनिया की भी है। भगवान कहते हैं मैं आता हूँ भक्तों की महफिल में, तो सब भक्त ठहरे। उनमें भी फिर खास उन भक्तों की महफिल में आता हूँ, जो भक्त मुझ परमपिता परमात्मा से वर्सा लेने आये हुए हैं। जिन आत्माओं की बुद्धि में अब परमपिता परमात्मा की याद है, उन्हों की महफिल में हाजिर हूँ। महफिल में कुछ खिलाया, पिलाया जाता है। बाप कहते हैं तुम बच्चों को ज्ञान अमृत की महफिल करा रहा हूँ। जो आकर बाप के बने हैं, वह समझते हैं बाबा आया हुआ है – हमारी इस महफिल में। फिर नम्बरवार सबको वापिस ले जायेंगे। खास तुम बच्चों की महफिल है, आम सबकी है। जहाँ बाप होगा वहाँ हम बच्चे भी होंगे। बाप कहते हैं हम भी अशरीरी हैं, तुम भी जब अशरीरी थे तो मेरे पास थे। याद दिलाते हैं 5 हजार वर्ष हुए। लांग-लांग एगो कहते हैं ना। 5 हजार वर्ष से बड़ी मुसाफिरी होती नहीं। भारतवासी बच्चे यह भूले हुए हैं कि शिव भगवान कब आये थे, उनकी जयन्ती मनाते रहते हैं। कहते हैं आये थे जरूर, लांग-लांग एगो… परन्तु कब आये थे, यह कोई को पता नहीं। कोई कहेंगे लाखों वर्ष हुए, कोई क्या कहेंगे। एक्यूरेट तो कोई को पता नहीं है। यह तो बाप ही बता सकते हैं। कहते हैं बच्चे 5 हजार वर्ष पहले भी हम तुम बच्चों के पास इस महफिल में आया था। दुनिया में शिव जयन्ती तो मनाते हैं। उसी दिन उनसे जाकर पूछो कि बताओ इनको कितने वर्ष हुए? गांधी की जयन्ती मनायेंगे तो झट बता देंगे कि इतने वर्ष हुए… शिव का कोई बता नहीं सकते। परन्तु तुम बच्चे जानते हो शिव को तो बहुत समय हुआ जबकि आया था। वह तो कुछ भी जानते नहीं। कहते हैं जन्म मरण रहित है, नाम रूप से न्यारा है। अरे नाम रूप से न्यारा है तो फिर जयन्ती किसकी मनाते हो? तो नाम रूप से न्यारा हो नहीं सकता। जरूर भारत में ही आया था तब तो जयन्ती मनाते हो ना। फिर नाम रूप से न्यारा कैसे कहते हो? याद करते हो परन्तु वह कब आया था? जरूर भक्ति का समय जब पूरा होगा तब भगवान को घर बैठे आना पड़े। भगवान किस रूप में आते हैं, यह कोई भी नहीं जानते। बड़ा चतुराई से कोई से पूछना है और फिर समझाना है। भगवान तो है निराकार। तुम उनकी पूजा करते हो, कहते हो हे परमात्मा हे भगवान, उनको कोई देवता नहीं कहेंगे। देवतायें हैं ब्रह्मा विष्णु शंकर तो इन चित्रों पर भी समझाना पड़े। तुम शिव के मन्दिर में जायेंगे तो उनसे पूछेंगे यह कब आये थे, कैसे आये? निराकारी दुनिया से तो सब आते हैं। परमपिता परमात्मा को पतित-पावन कहते हैं तो क्या किया? पतित को पावन कैसे बनाया? जरूर साकार में आकर मुख से समझाया होगा। कोई शिक्षा दी होगी। ऐसे ही तो कोई कह न सके। जरूर मनुष्य तन में ही आयेंगे। भगवान आते हैं नई रचना रचने। तो जरूर कोई के तन में आया होगा। गाया हुआ है ब्रह्मा मुख से मनुष्य सृष्टि रची गई। ब्राह्मण सृष्टि नाम नहीं लिखा हुआ है। ब्रह्मा मुख कंवल से मनुष्य रचे जाते हैं तो जरूर ब्रह्मा के बच्चे ब्राह्मण ही होंगे। प्रजापिता ब्रह्मा ने तो जरूर ब्राह्मण ब्राह्मणियां रचे होंगे। सिर्फ मेल रचें तो वृद्धि कैसे हो? सिर्फ फीमेल्स रचें तो भी वृद्धि कैसे होगी? इसलिए दोनों ही हैं ब्रह्माकुमार और कुमारियां। नहीं तो ब्राह्मण सम्प्रदाय कैसे बनें। परमपिता परमात्मा रचता बेशक है, ब्रह्मा द्वारा मनुष्य सृष्टि रची जाती है तो जरूर ब्रह्मा तन में आना पड़ता होगा। यह बातें जो अच्छी रीति समझकर और धारण करेंगे वही फिर समझा सकेंगे। जो पूरे राजयोगी होंगे बाप को और राजाई को याद करते होंगे, जिसके लिए ही बाबा कहते हैं बच्चे स्वदर्शन चक्रधारी बनो। सब तो पूरा याद करते नहीं हैं। बाबा के पास आते हैं, कहते हैं ज्ञान तो सहज है, चक्र को भी समझा है। 84 जन्मों का राज़ भी ठीक समझा है। 84 जन्म तो जरूर लेने हैं और जो पहले नम्बर वाले हैं वही 84 जन्म लेंगे, यह तो सब ठीक है। परन्तु याद में रहना, यह बड़ा मुश्किल है। योग में अनेक प्रकार के तूफान आते हैं, उनको कैसे वश करें? उसका उपाय क्या है? कौन सा टाइम है जिसमें अच्छी रीति याद कर सकें? तो बाबा ने समझाया यूँ तो चलते-फिरते, उठते-बैठते याद करो। अभी तुम यहाँ बैठे हो, हम तुमसे पूछते हैं स्त्री को याद करते हो? अब नाम स्त्री का सुना और झट बुद्धि भागी स्त्री के तरफ। बुद्धि का काम हो गया ना। वैसे ही तुम भल कोई भी काम शरीर निर्वाह अर्थ करो परन्तु शिवबाबा के पास बुद्धि लगाने की कोशिश करो। 5 मिनट 10 मिनट भी याद करो। हाँ यह माया भी विघ्न जरूर डालेगी। तूफान बड़ी जोर से आयेंगे डगमगाने के लिए। परन्तु फिर भी तुम अपना पुरुषार्थ करते चलो। इस शरीर को भुलाना अथवा बाप की याद में रहना, बात एक ही है। अपने को आत्मा अशरीरी समझना पड़े। मैं असुल अशरीरी था। पार्ट बजाने के लिए यह शरीर लिया है फिर अशरीरी बन घर जाता हूँ। बुद्धि में सिर्फ बाप और बाप का घर याद हो, बाप का घर वही है जहाँ अब जाना है। फिर यह बुद्धि में है कि बाप की प्रापर्टी है सतयुग। तो एक बाप की याद से वह भी याद आयेगी। भक्ति मार्ग अथवा ज्ञान मार्ग में बुद्धि तो और तरफ जाती है। कन्या की सगाई हो जाती है तो फिर एक दो की याद रहती है। भक्ति में कोई बैठेंगे तो भी माया विघ्न डालती है। बुद्धि धन्धे आदि तरफ चली जायेगी। माया की दुश्मनी है ना। भक्त देवताओं को याद करेंगे तो भी बुद्धि और तरफ भाग जायेगी। माया बुद्धि को ठिकाने लगने नहीं देती है। आफिस में जाते हो तो भी उसी कार्य में बुद्धि रहती है। इम्तहान पास किया है तब यह काम करना होता है। उसमें बुद्धि लग जाती है। अव्यक्त चीज़ में बुद्धि लगाने में माया हैरान करती है। भक्तों को भी बड़ी मुश्किल से साक्षात्कार होता है। जब बहुत तीव्र भक्ति करते हैं तब बाप खुश होते हैं। अभी तो भक्ति की बात ही नहीं। अभी तो है नॉलेज। वास्तव में भक्ति भी करनी चाहिए एक की। अव्यभिचारी भक्ति हो तो साक्षात्कार भी हो। आजकल तो व्यभिचारी बन गई है। सबको याद करते रहते हैं, तो बाबा साक्षात्कार भी नहीं कराते हैं। एक में पूरा निश्चय हो तो बाबा साक्षात्कार भी कराये। तो बाप समझाते हैं मुझ एक को याद करो। मुख से कुछ भी कहना नहीं है। तुम स्त्री को याद करते हो तो कुछ मुख से कहना पड़ता है क्या? ख्याल आया और बुद्धि भाग जाती है। यह बेहद का बाप तो सदा सुख देने वाला है। तो अब तुम्हारी सगाई कराते हैं, उस परमपिता परमात्मा से। तो उसको याद करने का प्रयत्न करो। माया तो तूफान लायेगी। सारी दुनिया दुश्मन बनेंगी, परन्तु बाप को नहीं भूलना। जितना बाप को याद करेंगे उतना विकर्म विनाश होंगे। ऐसे तो बहुत मनुष्य होते हैं जो सारा दिन भगवान का नाम भी नहीं लेते। बहुत खराब संग होता है इसलिए गाया जाता है संग तारे कुसंग बोरे….. सत परमपिता परमात्मा का संग ही पतित से पावन बनायेगा। अभी तो सारी दुनिया पतित है, उनको संग चाहिए पतित-पावन का। तो जरूर उनको यहाँ साकार में आना पड़े ना। सत है ही एक। सत की महफिल में तुम बैठे हो। जानते हो हम आत्माओं का संग अब परमपिता परमात्मा के साथ है। बाप कहते हैं मेरी याद से ही तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। सिर्फ संग होगा तो मुरली सुनेंगे बाकी क्या करेंगे, बुद्धि का योग भी बाप के साथ चाहिए। बुद्धि का योग बाप के साथ लगा हुआ होगा तो वही तारेगा अर्थात् पावन बनायेगा। पावन बनने बिगर उनके पास कोई जा नहीं सकते। बाप खुद ही सिखलाते हैं मेरे साथ कैसे योग लगाओ। पढ़ाने लिए खुद आकर सम्मुख होते हैं। बुद्धि का योग और संग तोड़ एक संग जोड़ना है तब विकर्म विनाश होंगे और कोई उपाय है नहीं। पावन दुनिया है स्वर्ग, वहाँ के सुख अपार हैं। ऐसे नहीं वहाँ भी दु:ख है, दैत्य हैं। वहाँ तो दु:ख का नाम निशान नहीं रहता, सो भी 21 जन्मों के लिए। बाप तो यहाँ आकर पढ़ाते हैं। भगवानुवाच हम तुमको राजाओं का राजा बनाने सहज राजयोग सिखाता हूँ। मनुष्यों की बुद्धि में तो कृष्ण का ही चित्र आ जाता है। तुम्हारी बुद्धि में है कि हमको पढ़ाने वाला शिवबाबा है, जो ही ज्ञान का सागर है। सब मनुष्य मात्र कहते हैं कृष्ण भगवानुवाच, हम कहते हैं कृष्ण को यह ज्ञान था ही नहीं। रात दिन का फ़र्क हुआ ना। बाप अब तुम बच्चों को नॉलेज दे रहे हैं। यह है स्वदर्शन चक्रधारी, त्रिकालदर्शी बनना। त्रिकालदर्शी माना तीनों कालों को जानना। सृष्टि के आदि मध्य अन्त को और तीनों लोकों को जानना। मूलवतन, सूक्ष्मवतन, स्थूलवतन को भी तुम जानते हो। तुम्हारे में भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार जानते हैं। बाकी इसमें तकलीफ कोई नहीं है। शरीर निर्वाह भी करना है। ऐसे नहीं कहा जाता कि कन्या को भी शरीर निर्वाह अर्थ माथा मारना है। कन्या को पति के पास रहना है। शरीर निर्वाह पति को करना है। कन्या को भी अपने पैरों पर खड़ा रहना है। एक कहानी है ना – एक कन्या ने बाप को कहा मैं अपना नसीब खाती हूँ। तो तुम कन्यायें भी अपना पुरुषार्थ कर रही हो। जितना पढ़ेंगे, श्रीमत पर चलेंगे तो 21 जन्म राज्य करेंगे। कन्याओं का काम है पढ़ना और ससुरघर जाना। तुमको भी विष्णुपुरी स्वर्ग में भेजा जाता है। जितना पढ़ेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे। वह तो ऐसे ही करके कहानी सुनाते हैं। सच्ची-सच्ची बात यहाँ की है। बाप खुद बैठ उनका रहस्य सुनाते हैं। तुम सब कन्यायें हो। अधर कन्या भी अपना जीवन बना रही हैं। बाप ऐसे कर्म सिखलाते हैं जो कभी दु:खी वा विधवा नहीं होना पड़ेगा। परन्तु विरला ही कोई ऊंची तकदीर बनाते हैं। कोई तो बनाते-बनाते फिर आश्चर्यवत भागन्ती हो ऐसे बाप को भी फारकती दे देते हैं। डायओर्स भी दे देते हैं क्योंकि शिवबाबा बाप भी है तो पतियों का पति भी है। ऐसे बाप को बच्चे फारकती दे देते हैं। तकदीर को लकीर लगा देते हैं। सजनी है तो भी डायओर्स देने से कौड़ी तुल्य बन पड़ेगी। यह भी गाया हुआ है – आश्चर्यवत डायओर्स देवन्ती, फारकती देवन्ती.. जिस बाप से 21जन्म का राज्य भाग्य मिलता है, उनको भी फारकती दे देते। कोई तो आकर बाप का बनेंगे। कोई-कोई फिर महामूर्ख भी बनेंगे। जो फारकती भी देंगे, डायओर्स भी देंगे। चलन से ही मालूम पड़ जाता है। विकार में जाते रहते फिर छिप-छिप कर बैठ जाते फिर लिख भेजते कि बाबा भूल हो गई, क्षमा करो। अब सौगुणा दण्ड तो चढ़ गया वह कैसे कैन्सिल हो सकता। सच बताने से आधा माफ भी हो जाए….. इसलिए बाबा कहते हैं छिपकर कभी विकार में नहीं जाना। न फैमिलियरटी में ही आना है। क्रोध भी बहुत भारी भूत है, बहुतों को दु:ख देते हैं। बाप को 5 विकारों का दान दे फिर वापिस ले तो पद भी भ्रष्ट हो जायेगा। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:

1) अपनी ऊंच तकदीर बनाने के लिए विकर्मो का विनाश करने का पुरुषार्थ करना है। पढ़ाई पर पूरा ध्यान देना है।

2) कुसंग से अपनी सम्भाल करनी है। पतित-पावन बाप के संग से स्वयं को पावन बनाना है।

वरदान:

अपने फीचर द्वारा अनेकों का फ्युचर श्रेष्ठ बनाने वाले श्रेष्ठ सेवाधारी भव

बोलने की सेवा तो यथाशक्ति समय प्रमाण करते ही हो लेकिन संगमयुग का जो फ्युचर फरिश्ता स्वरूप है, वह आपके फीचर्स से दिखाई दे तब सहज सेवा कर सकते हो। जैसे जड़ चित्र फीचर्स द्वारा अन्तिम जन्म तक सेवा कर रहे हैं ऐसे आपके फीचर्स में सदा सुख की, शान्ति की, खुशी की झलक हो तो श्रेष्ठ सेवा कर सकेंगे। आपके फीचर्स को देखकर कैसी भी दु:खी अशान्त, परेशान आत्मा अपना श्रेष्ठ फ्युचर बना लेगी।

स्लोगन:

भाग्यविधाता बाप को अपना सर्व सम्बन्धी बना लो तो सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न बन जायेंगे।

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