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25-04-2018

25-04-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन


“मीठे बच्चे – योग से ही ताकत आयेगी, अनेक जन्मों की पुरानी आदतें मिटेंगी, सर्वगुण धारण होंगे इसलिए जितना हो सके बाप को याद करो”

प्रश्नः-

तुम बच्चे अभी कौन सी रेस कर रहे हो? उस रेस में थकावट कब आती है?

उत्तर:-

तुम बच्चे अभी विजय माला का दाना बनने की रेस कर रहे हो। इस रेस में कोई कोई बहुत अच्छा दौड़ते हैं, कोई कोई थक जाते हैं। थकने का कारण है पढ़ाई पर पूरा ध्यान नहीं। मैनर्स सुधरते नहीं। ऐसे बच्चों पर शक पड़ता कि यह कल नहीं रह सकेंगे। काम या क्रोध के वशीभूत होने के कारण ही थकावट आती है फिर कहते अब चढ़ नहीं सकेंगे, जो होना होगा वो देखा जायेगा। यह भी तो वन्डर है ना।

गीत:-

किसी ने अपना बनाके मुझको…..  

ओम् शान्ति।

भगवानुवाच, यह बच्चों को समझाया गया है कि मनुष्य को अथवा देवता को कभी भी भगवान नहीं कहा जा सकता। परमात्मा है ही एक, जिसके मन्दिर भी बनते रहते हैं, जिसको शिव, सोमनाथ कहते हैं, वह आकर बच्चों को कहते हैं – मीठे-मीठे बच्चे, मुझे अपने उस घर में याद करो, मैं परमधाम का निवासी हूँ। मैं यहाँ इस शरीर में आकर कहता हूँ कि तुमको याद वहाँ करना है जहाँ अब जाना है। ऐसे नहीं यहाँ याद करना हैं। मैं यहाँ आया हूँ तुम बच्चों का बुद्धियोग वहाँ लगाने के लिए। हे बच्चे, मुझे अपने परमधाम घर में याद करो। यह तो समझते हो कि इस तमोगुणी दुनिया में कोई के संस्कार कैसे हैं, कोई के कैसे हैं! जो अच्छी रीति धारणा करते हैं उनको जरूर अच्छा कहेंगे। कोई तो ऐसे हैं जो कितना भी माथा मारते हैं, सुधरते नहीं। श्रीमत पर चलते नहीं। उनके लिए समझा जाता है कि यह बहुत अजामिल हैं, नहीं पढ़ते हैं तो जाकर अधमगति या कनिष्ट पद पायेंगे। उत्तम, मध्यम, कनिष्ट – तीन प्रकार के पद होते हैं। तो जो श्रीमत पर नहीं चलते उनके लिए समझना चाहिए यह तो अजामिल से भी अजामिल हैं। जन्म-जन्मान्तर कुछ ऐसे पाप करते आये हैं। भल किसका यह अच्छा जन्म है, किसका अच्छा नहीं है तो भी पढ़ाई से ऊंच चढ़ सकता है। अब तुम बच्चे जानते हो हमने 84 जन्म कैसे पास किये हैं! हम भविष्य ऊंच पद पाने के लिए पढ़ रहे हैं। बाप कहते हैं अपने दिल दर्पण में अपनी चाल को भी देखो। बाबा बार-बार बच्चों को समझाते हैं अपनी चाल को सुधारो। जो समझते हैं हम स्वर्ग के लायक बन रहे हैं वह फिर औरों को भी बनाते हैं। उनकी चलन में बहुत फ़र्क है। यहाँ देवतापना दिखाना है, असुरपना दिखाने से पद भ्रष्ट हो जायेगा। वास्तव में हम सब कब्रदाखिल थे। रावण ने कब्रदाखिल बना दिया है। बाप आकर कब्र से निकालते हैं। दुनिया इस समय कब्रिस्तान है। उसमें भी नम्बरवन है भारत। पहले-पहले नम्बरवन परिस्तान था, अब कब्रिस्तान है।

बाप समझाते हैं अपनी शक्ल तो देखो तुम दैवी चलन चलने के लायक हो? समझते हो हम श्रीमत पर चल रहे हैं? मम्मा बाबा वा अनन्य बच्चों मिसल गुण आते जाते हैं? काम को तो छोड़ा, अच्छा क्रोध का भूत तो मेरे में नहीं है? यह दोनों भूत बहुत खराब हैं। क्रोध से तो एक दो को जलायेंगे। यह बड़ा भारी दुश्मन है, इनको भी भगाना चाहिए। देखना है मेरे में कोई अवगुण तो नहीं है? अगर मैं श्रीमत पर नहीं चलता हूँ तो बिल्कुल सत्यानाश हो जायेगी। श्रीमत मिलती ही इसलिए है कि आत्मा अच्छी हो जाए। अविनाशी बन जाए, जब तक योग नहीं तब तक कुछ सुधर नहीं सकते। जितना बाबा को याद करेंगे उतनी ताकत आयेगी और गुण धारण नहीं करेंगे तो माया कदम-कदम पर थप्पड़ मारेगी। प्रतिज्ञा करेंगे हम क्रोध नहीं करेंगे और 5 मिनट बाद क्रोध कर लेंगे। असली आदतें जन्म-जन्मान्तर की पड़ी हुई हैं तो उनको मिटाने में टाइम लगता है। इन भूतों को पूरा वश करना है। लोभ मोह यह फिर हैं उनके छोटे-छोटे बच्चे। विकारों के भूत भी नम्बरवार हैं। पहले है अशुद्ध अहंकार फिर काम क्रोध…. यह शिक्षा और कोई दे न सके। तो बच्चे देही-अभिमानी बनो। देही को याद करो। सन्यासी लोग तो अपने को परमात्मा समझते हैं, कहते हैं आत्मा ही परमात्मा है। बाप कहते हैं तुम देही आत्मा हो, न कि देही परमात्मा हो। परमात्मा फिर इतने सब कैसे होंगे! परमात्मा तो जन्म-मरण रहित है। उनको कहा जाता है परमपिता परमात्मा। वह बैठ तुम बच्चों को समझाते हैं। अब जल्दी पुरुषार्थ करो मौत तो कोई भी समय आ जायेगा फिर कुछ नहीं कर सकेंगे। अनेक प्रकार के एक्सीडेंट होते रहेंगे। आपदायें आई कि आई। आजकल, आजकल करते मर जायेंगे फिर पद पा नहीं सकेंगे। सपूत बच्चे तो शिवबाबा के आज्ञाकारी वफादार होते हैं। बाप सब बच्चों को जानते हैं। रावण ने सबको बिल्कुल गन्दा बना दिया है। इसका नाम ही है डेविल वर्ल्ड, आसुरी दुनिया। अब तुमको देवता बना रहे हैं। श्रीमत पर चलेंगे तो बनेंगे। स्कूल में पढ़ाते भी हैं, मैनर्स भी सिखलाते हैं। यहाँ भी मैनर्स सीखते हैं। मुख्य है दैवी चलन। अशुद्ध अहंकार बहुत गन्दा है। यह सबको गिराते हैं। घड़ी-घड़ी देह-अभिमान आ जाता है। बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझो और मुझे याद करो तो तुम मेरे पास आ जायेंगे। माया ने तो सबके पंख काट दिये हैं। कोई भी वापस जा नहीं सकते। नहीं तो आत्मा उड़ने में कितनी तीखी है! परन्तु परमधाम में कोई जा नहीं सकते। पतित-पावन बाप के सिवाए तो कोई पावन निराकारी दुनिया में ले जा नहीं सकते, न पावन साकारी दुनिया में आ सकते हैं। मनुष्य आने जाने को भी समझ नहीं सकते हैं, जबकि विनाश होना है – मच्छरों सदृश्य सबको बाप ले जायेगा, फिर क्या होगा! कुछ भी समझते नहीं। बाप आये ही हैं नई दुनिया आदि सनातन देवी-देवता धर्म स्थापन करने। यह कोई थोड़ेही समझते हैं कि गीता के भगवान ने लक्ष्मी-नारायण का राज्य स्थापन किया। जब महाभारत लड़ाई लगी थी तो बरोबर रुद्र ने ज्ञान यज्ञ रचा था जिससे विनाश ज्वाला प्रज्वलित हुई और दुनिया विनाश हुई, जिनको राजयोग सिखाया वह राजाओं के राजा लक्ष्मी-नारायण बनें। तुम जानते हो हम भगवान से पढ़ते हैं। पढ़कर स्वर्ग के मालिक बन रहे हैं। आगे तो क्रिश्चियन का राज्य था। अब फिर यह भारतवासी समझते हैं हम मालिक हैं। परन्तु तुम जानते हो हम सारे विश्व के मालिक बनते हैं। बाप ही आकर मनुष्य को देवता बनाते हैं। मनुष्य से देवता कैसे बनाया, कब बनाया – यह कोई की बुद्धि में नहीं है। भल ग्रंथ पढ़ते हैं परन्तु कुछ भी समझते नहीं हैं। अब तुम बता सकते हो। तो तुम बच्चों को दैवीगुण धारण करने हैं। श्रीमत पर चलना है, नहीं तो पंख टूट जायेंगे। ज्ञान की पूरी धारणा होगी तो दैवी मैनर्स भी आयेंगे। मनुष्य तो सब देह-अभिमानी हैं, कोई न कोई अवगुण है।

बाप बहुत अच्छी रीति समझाते हैं। गीता में भी है भगवानुवाच। कहते हैं – हे बच्चों, मैं तुमको पढ़ाने आया हूँ। जज, बैरिस्टर आदि तो बन रहे हैं। मैं तुमको स्वर्ग का मालिक फिर से बनाने आया है। मैं हूँ स्वर्ग का रचयिता। मैं कल्प-कल्प आकर तुम बच्चों को स्वर्ग का मालिक बनाता हूँ। तुम इस समय महान भाग्यशाली बन रहे हो। यह खेल ही ऐसा है। माया दुर्भाग्यशाली बनाती है। नम्बर तो हैं कोई 100 परसेन्ट, कोई 90 परसेन्ट, कोई 80 परसेन्ट, जो जितना पढ़ेंगे उतना शो करेंगे। ख्याल रखना चाहिए – हमको रुद्र माला में नम्बरवन पिरोना है। जैसे वह स्टूडेन्ट क्लास में ट्रान्सफर होते हैं तो एक क्लास से दूसरे क्लास में बैठते हैं। मार्क्स निकलेंगी उसी अनुसार नम्बर मिलेंगे। फिर ऐसे ही नम्बरवार ट्रांसफर हो जायेंगे। यहाँ भी पढ़कर तुम आत्मायें रुद्र माला में नम्बरवार पिरोयेंगी। उनका तो सिजरा बड़ा है ना। फिर वहाँ से विष्णु की विजय माला में नम्बरवार आकर गद्दी पर बैठेंगे।

तुम हो ब्रह्माकुमार-कुमारियां परन्तु इस समय तुम्हारी माला नहीं है क्योंकि रेस चल रही है। आज बहुत अच्छे दौड़ रहे हैं, कल फिर ठहर जाते। आज जिसको बाप कहते हैं, कल फिर उनको फारकती दे देते। बहुतों में शक पड़ता है, नहीं पढ़ते हैं, नहीं मैनर्स धारण करते हैं तो फिर तंग हो भागने की कोशिश करते हैं। डायओर्स दे देते हैं। बहुत सेन्टर्स पर बच्चे हैं जो दिल अन्दर समझते हैं हम तो थक गये हैं। अब चढ़ नहीं सकेंगे। जो होना होगा सो देखा जायेगा। नम्बरवन काम शत्रु तो बहुत हैरान करता है। क्रोध वाला भी तंग हो फारकती दे देता है। वन्डर है ना। साजन अथवा भक्तों का भगवान आकर गुल-गुल बनाने के लिए पढ़ाते हैं, उनको फारकती दे देते हैं। बाप अथवा साजन किसको कभी डायओर्स नहीं देते हैं। सजनियां डायओर्स दे भाग जाती हैं फिर बाप क्या करें। ट्रेटर बन जाते हैं। बाप तो कहते हैं मैं तुम्हारा साजन तुमको स्वर्ग की महारानी बनाने आया हूँ, इस रावण की जेल से निकाल अशोक-वाटिका में ले चलने आया हूँ। फिर भी श्रीमत पर न चल रावण की तरफ चले जाते हैं। जैसे तीर्थो से बहुत लौट आते हैं, सच्ची दिल से तो जाते नहीं। अब तुमको ले चलते हैं रूहानी यात्रा पर।

तुम जानते हो यह शरीर छोड़ आत्मायें परमधाम चली जायेंगी फिर पुरुषार्थ अनुसार आकर पद पायेंगी। तुम समझ सकते हो कि हम क्या पद पायेंगे चलन अनुसार? अज्ञान काल में भी कोई बच्चे आज्ञाकारी, फरमानबरदार होते हैं, कोई तो धुंधकारी निकल पड़ते हैं। यहाँ भी ऐसे हैं। कितना भी समझाओ तो भी अपने हठ से उतरते नहीं। ऐसे भी कपूत रहते हैं। समझते नहीं कि इस हालत में हमारा क्या पद होगा? बाबा बार-बार समझाते हैं परन्तु फिर भूल जाते हैं। जैसे गर्भजेल में अन्जाम करते हैं हम कुछ नहीं करेंगे फिर बाहर निकलने से जैसे के वैसे बन जाते हैं। यहाँ बच्चे भी ऐसे हैं, बिल्कुल बुद्धि में ठहरता नहीं है। नम्बरवार हैं, पता लग जाता है यह गॉडली बुलबुल है वा नहीं। हमेशा सपूत बच्चे ही दिल पर चढ़ते हैं, जो सर्विस पर तत्पर रहते हैं। जानते हैं हमने शरीर को स्वाहा किया है, इसको क्या रखना है। माँ बाप ऐसे तो नहीं कहते दिन-रात सर्विस करो। भल 8 घण्टे आराम करो, 8 घण्टे सर्विस करो, बाकी 8 घण्टे बाप को याद करो। कोई को भी चित्रों पर समझाने में देरी थोड़ेही लगती है। यह शिवबाबा तुम्हारा बाप है हम निराकारी आत्मायें उनके बच्चे हैं। परमपिता परमात्मा का नाम कभी सुना है? बरोबर प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा परमपिता परमात्मा बैठ नई मनुष्य सृष्टि स्थापन करते हैं। पुरानी को नई बनाते हैं। उस ग्रैन्ड फादर से तुमको प्रापर्टी मिलती है। कहते हैं सिर्फ मुझको याद करो। उस बाप को ही सब भक्त याद करते हैं कि हमको इस दु:ख से छुड़ाओ। ब्रह्मा में प्रवेश कर बच्चों को वर्सा देने आते हैं। कहते हैं मैं इन द्वारा आत्माओं को पवित्र बनाए राजाई के लिए ज्ञान और योग सिखलाए साथ ले जाऊंगा। फिर वहाँ से तुमको स्वर्ग में भेज दूंगा। जो करेंगे, सो पायेंगे। कितना बाप समझाते हैं! बाप की गत मत ही न्यारी है। सबकी सद्गति कैसे करते हैं, कैसे राजधानी स्थापन करते हैं तब तो उनकी महिमा करते हैं। दुनिया बिल्कुल नहीं जानती। बाप कैसे श्रीमत देते हैं, क्या से क्या बनाते हैं! तो ऐसे बाप को याद करना चाहिए। उनकी मत पर चलने से ही तुम ऐसे लक्ष्मी-नारायण बनेंगे। कहा हुआ है ना ब्रह्मा भी उतर आये… यहाँ भी ऐसे है। कोई तो शिवबाबा को जानते ही नहीं हैं। सिर्फ मम्मा बाबा कहने से थोड़ेही दिल पर चढ़ सकते हैं। मम्मा बाबा जानते हैं कौन हमारे हैं, क्या-क्या बनेंगे? पढ़ते नहीं तो क्या बनेंगे? हर एक की चलन से पता पड़ता है। और कोई पढ़ाई ऐसी नहीं जिससे मालूम पड़े – हम 84 जन्म कैसे भोगते हैं? भविष्य प्रिन्स प्रिन्सेज बनने के लिए तुमको राजयोग सिखला रहा हूँ। यह बाप भी कहते हैं तो पुरुषार्थ करना चाहिए। यह सारी राजधानी अब बननी है। ऐसे नहीं कि एक बार फेल हुआ फिर पढ़ेगा। यहाँ तो राजधानी स्थापन हो रही है, सब पद का साक्षात्कार कराते हैं इसलिए श्रीमत पर चलना है। ब्रह्मा की मत भी मशहूर है ना। श्री शिव की मत, कृष्ण की मत तो मिलनी नहीं है। वहाँ तो प्रालब्ध भोगते हैं। वहाँ सबको अच्छी मत ही है। सिर्फ ऊंच पद और नींच पद रहता है। राजा फिर भी राजा है। प्रजा, प्रजा है। सपूत बच्चा वह, जो श्रीमत पर चल पूरा पुरुषार्थ करे और बाप का नाम बाला कर दिखाये। अच्छा!

बापदादा का मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति यादप्यार और गुडमार्निंग। यादप्यार बाद ब्राह्मण कुल भूषण स्वदर्शन चक्रधारी बच्चों से पूछ रहे हैं कि बताओ शिवबाबा को आसमान जितना प्यार करते हो वा ब्रह्म तत्व जितना प्यार करते हो? बताओ कितना हर एक बच्चा प्यार करता है? अच्छा – रूहानी बच्चों को रूहानी बाप की नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) गॉडली बुलबुल बन बाप का नाम बाला करना है। ज्ञान की धारणा कर अपने मैनर्स बहुत अच्छे बनाने हैं।

2) विजय माला में पिरोने की रेस करनी है। कभी भी तंग हो ब्राह्मण जीवन से थकना नहीं है। श्रीमत पर सदा चलना है।

वरदान:-

मालिकपन की स्थिति में रह प्रकृति द्वारा सहयोग की माला पहनने वाले प्रकृतिजीत भव|

प्रकृति आप मालिकों का अब से आह्वान कर रही है, चारों ओर प्रकृति के तत्व हलचल करेंगे लेकिन जहाँ आप प्रकृति के मालिक होंगे वहाँ प्रकृति दासी बन सेवा करेगी सिर्फ आप प्रकृतिजीत बन जाओ तो प्रकृति सहयोग की माला पहनायेगी। जहाँ आप प्रकृतिजीत ब्राह्मणों का पांव होगा, स्थान होगा वहाँ कोई भी नुकसान नहीं हो सकता। तूफान आयेगा, धरनी हिलेगी लेकिन बाहर सूली होगा और यहाँ कांटा। सभी आपके तरफ स्थूल सूक्ष्म सहारा लेने के लिए भागेंगे।

स्लोगन:-

अलौकिक सुख व मनरस का अनुभव करना है तो मनमनाभव की स्थिति में रहो।

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