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27-06-2018

27-06-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन


“मीठे बच्चे – तुम्हें देह सहित इस सारी पुरानी दुनिया का त्याग करना है, क्योंकि तुम्हें गाइड द्वारा सच्चा रास्ता मिल गया है”

प्रश्नः-

ईश्वरीय प्लैन के अनुसार किस कर्त्तव्य में कल्याण समाया हुआ है?

उत्तर:-

यह महाविनाश का जो कर्त्तव्य है, जिसमें सारी बेहद की पुरानी दुनिया खत्म होनी है, इसमें कल्याण समाया हुआ है। मनुष्य समझते यह बहुत बड़ा अकल्याण है, लेकिन बाप कहते मैंने यह ज्ञान यज्ञ जो रचा है, इसमें सारी पुरानी दुनिया की आहुति पड़ेगी, फिर नई दुनिया आयेगी।

गीत:-

ओम् नमो शिवाए ….  

ओम् शान्ति।

बच्चों ने गीत सुना। यह महिमा किसकी थी? तुम मात-पिता अर्थात् परमपिता परमात्मा की महिमा। ऊंच ते ऊंच भगवान, वही है ऊंच ते ऊंच गॉड फादर। ईश्वर को फादर कहा जाता है। किसका फादर? सारी मनुष्य सृष्टि का फादर। वह है बेहद का बाप। जब उनको बाप कहा जाता है तो रचयिता भी है। मनुष्य सृष्टि का रचयिता है। वास्तव में सभी मनुष्य मात्र के दो बाप हैं – एक लौकिक, दूसरा पारलौकिक हुआ आत्माओं का बाप। आत्मा को जिस्म देने वाला है लौकिक बाप। आत्मा तो निराकार ही है। आत्माओं का निवास स्थान निराकारी दुनिया में है, जिसको ब्रह्मलोक भी कहा जाता है। यहाँ सभी आत्माओं को यह शरीर मिला हुआ है पार्ट बजाने। ड्रामा के राज़ को भी अच्छी रीति समझना है। तुम जानते हो कि गॉड फादर की महिमा सभी से न्यारी है। गाते भी हैं ओ गाड फादर। मनुष्य सृष्टि का बीज रूप है। यह है उल्टा झाड़। बीज बाप ऊपर में है। जब कहते हैं – ओ गाड फादर, तो ऊपर में नज़र जाती है। सभी आत्माओं का फादर एक परमपिता परमात्मा है। उनकी महिमा है सभी से ऊंची। परन्तु मनुष्य बिल्कुल नहीं जानते हैं। सभी आत्माओं का फादर वह निराकार बाप और फिर साकार बाप प्रजापिता ब्रह्मा, जिसको आदि देव, महावीर, एडम भी कहते हैं। जिस द्वारा निराकार परमपिता परमात्मा मनुष्य सृष्टि रचते हैं। फादर को तो कभी बेअन्त नहीं कहा जा सकता। जैसे लौकिक फादर रचना रचते हैं, स्त्री को एडाप्ट कर फिर उनसे बच्चे पैदा करते हैं, तो उसको फादर कहा जाता है। फादर को कभी सर्वव्यापी वा बेअन्त नहीं कहेंगे। बाप से ही बच्चों को वर्सा मिलता है। तो निराकार परमपिता परमात्मा है सभी आत्माओं का बेहद का बाप। यह समझना है। गॉड इज वन, फादर इज वन। अभी आत्मा अपने फादर को भूल गई है। फादर को भूलने कारण सभी मनुष्य-मात्र आरफन बन गये हैं। फादर को न जानने कारण बहिश्त को यानी रचना को अथवा भाई-बहन को याद करते रहते हैं। फादर को भूल आपस में ही लड़ते-झगड़ते रहते हैं। निधण के बन पड़े हैं। वर्सा मिलता ही है उस बाप से। ब्रह्मा-विष्णु-शंकर भी उनकी रचना हैं। ब्रह्मा-विष्णु-शंकर हैं सूक्ष्मवतनवासी। सूक्ष्मवतन के ऊपर है मूल-वतन, जहाँ परमपिता परमात्मा रहते हैं। हम आत्मा भी वहाँ की रहवासी हैं। आत्मा कहेगी वह है स्वीट गॉड फादरली होम, निराकारी दुनिया। इन वतनों को जानना है। तीन लोक कहते हैं। मूलवतन, सूक्ष्मवतन और स्थूल-वतन। ऊंच ते ऊंच है बाप। करनकरावनहार, क्रियेटर, डायरेक्टर परमपिता परमात्मा है। पहले ब्रह्मा-विष्णु-शंकर को क्रियेट करते हैं। फिर ब्रह्मा द्वारा ब्रह्मा मुखवंशावली ब्रह्माकुमार-कुमारियों को एडाप्ट करते हैं। देलवाड़ा मन्दिर में भी आदि देव दिखाया है। नीचे तपस्या कर रहे हैं। तुम्हारा ही यादगार खड़ा है। जिन्होंने भारत को पतित से पावन बनाया है, उन्हों का यादगार खड़ा है। सभी सजनियों का साजन एक ही है। बरोबर मन्दिर में जगत अम्बा और जगतपिता बैठे हैं। राजयोग की तपस्या कर रहे हैं। भगवानुवाच – मैं ब्रह्मा तन द्वारा बैठ तुमको राजयोग सिखलाता हूँ। जगत अम्बा भी है। प्रजापिता ब्रह्मा भी है और ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ भी हैं। अधर कुमारियाँ भी हैं। मन्दिर वाले खुद नहीं जानते कि कुमारियाँ कौन, अधरकुमारियाँ कौन हैं? जरूर जगत अम्बा, जगत पिता के बच्चे होंगे। उन सबको बैठ राजयोग सिखाते हैं। पहले-पहले ब्रह्मा को कैसे रचते हैं? वह भी बताते हैं। साधारण तन में, वानप्रस्थ अवस्था में प्रवेश करता हूँ। तो यह आदि देव हुआ ना। प्रजापिता ब्रह्मा जिसको महावीर कहते हैं – वह किसका बच्चा है? बाप बैठ समझाते हैं कि मैं इस ब्रह्मा तन में प्रवेश करता हूँ। मेरा नाम है शिव। ऐसे नहीं, बाबा आते ही नहीं है। गाया हुआ है यदा यदाहि…. इस समय यह है ही पतित दुनिया। पावन दुनिया कैसे बनती है – वह समझना चाहिए। बाबा समझाते हैं – मैं ही सद्गति दाता हूँ। गंगा नदी को गति-सद्गति दाता नहीं कह सकते। पतित-पावन परमपिता परमात्मा ही है। वह हेविनली गॉड फादर ही स्वर्ग की स्थापना करते हैं। जबकि उनकी सन्तान हैं तो फिर क्यों नहीं गॉड फादर से स्वर्ग का वर्सा मिलना चाहिए। समझ की बात है ना। देलवाड़ा मन्दिर में भी पूरा यादगार है। नीचे तपस्या में बैठे हैं, ऊपर में स्वर्ग का यादगार है। देवी-देवतायें भारत में ही थे। जरूर बाप आते हैं पतितों को पावन बनाने। कहते हैं – मैं कल्प-कल्प, कल्प के संगमयुगे-युगे आता हूँ। संगमयुग है आस्पीशियस युग। जबकि कलियुग के अन्त में मैं आकर सतयुग की स्थापना करता हूँ। यह बाप बैठ समझाते हैं। वह जन्म-मरण रहित है। मनुष्य को भगवान नहीं कहा जा सकता। मनुष्य तो 84जन्म लेते हैं।

तुम बच्चे जानते हो यह है मृत्युलोक। सतयुग को कहा जाता है अमरलोक। यह है रौरव नर्क। मनुष्यमात्र सब एक दो को काटते रहते हैं। भारत ही पावन था, जिसमें देवी-देवतायें राज्य करते थे। बाप आते ही हैं पतित दुनिया, पतित शरीर में। जरूर जो पहले सतयुग में आये होंगे, उनके ही अन्तिम जन्म के तन में बाप आये होंगे। गाया भी जाता है आत्मा-परमात्मा अलग रहे बहुकाल…पूरा हिसाब हो गया ना। पहले-पहले आदि सनातन देवी-देवता धर्म वाले ही थे। 84 जन्म भी उन्हों के ही हैं। इस्लामी, बौद्धी आदि 84 जन्म नहीं ले सकते हैं। भारत है ही परमपिता परमात्मा का बर्थ प्लेस। सब खण्डों से ऊंच है भारत खण्ड। परन्तु अभी है कलियुग। बाबा ने समझाया है वह है अविनाशी वर्ल्ड ड्रामा। इसका कभी विनाश नहीं होता। वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होती है। जो इस नॉलेज को जान स्वदर्शन चक्रधारी बनते हैं, वो ही चक्रवर्ती राजा बनेंगे। भारत में जब देवी-देवताओं का राज्य था तो और कोई धर्म नहीं था। नये भारत में नई राजधानी देवी-देवताओं की थी। वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी का राज्य था। उन पर कोई जीत पा न सके। श्री लक्ष्मी-नारायण सारे विश्व के मालिक थे। उन्हों को विश्व का मालिक बनाने वाला जरूर विश्व का रचयिता ही होगा। वह है परमपिता परमात्मा, गॉड फादर। इस समय देवी-देवताओं का नाम-निशान नहीं है। देवी-देवताओं के सिर्फ चित्र हैं। परन्तु उनके आक्यूपेशन को कोई भी जानते नहीं। इस समय गवर्मेन्ट में भी कोई ताकत नहीं रही है। अपने धर्म का पता नहीं है। कहा जाता है रिलीजन इज माइट। रिलीजन स्थापन करने वाला है बाप। उनको ही सर्वशक्तिमान कहा जाता है। तो गॉड फादर, फादर भी है, फिर उनको नॉलेजफुल कहा जाता है तो टीचर भी है और फिर उनको पतित-पावन कहा जाता है तो सतगुरू भी है। उनका कोई फादर नहीं। वह है सुप्रीम फादर, सुप्रीम टीचर क्योंकि नॉलेजफुल है। और कोई भी मनुष्य ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज को नहीं जानते। सद्गति दाता भी सबका वह एक है। उनका कोई गुरू नहीं। वही बेहद का बाप, बेहद का टीचर और बेहद का सतगुरू है।

बाप समझाते हैं भारत अब कंगाल पतित है। पतित बनाती है माया रावण। अभी भारत आसुरी राजस्थान है। सतयुग में दैवी राजस्थान था, जिसको स्वर्ग, हेविन कहा जाता है। भारत ही ऊंच से ऊंच अविनाशी खण्ड है। अविनाशी बाप का यह बर्थ प्लेस है। भारत खण्ड कभी विनाश को नहीं पायेगा और सब खत्म हो जायेंगे। तो बाप का भी इस ड्रामा में पार्ट है, जो इस पतित सृष्टि को पावन बनाकर आदि सनातन धर्म की स्थापना करते हैं। शंकर द्वारा अनेक धर्मो का विनाश। यह विनाश कोई अकल्याणकारी नहीं है। यह है रुद्र ज्ञान यज्ञ, जिससे विनाश ज्वाला प्रज्जवलित हुई है। बाप कहते हैं गीता का रचयिता मैं निराकार परमपिता परमात्मा हूँ। मनुष्यों ने फिर श्रीकृष्ण का नाम डाल दिया है। भगवानुवाच – मैं तुमको राजयोग सिखलाता हूँ। तुम राजयोगी हो। तुम्हें सारी पुरानी सृष्टि का, देह सहित जो कुछ है सबका त्याग करना है। मैं गाइड बन सबको वापिस ले चलने आया हूँ। बाप ही दु:खों से लिबरेट करते हैं। आधा कल्प है भक्ति अर्थात् रावण राज्य और आधा कल्प है राम राज्य। यह बाप बैठ समझाते हैं। कोई मनुष्य नहीं समझाते। अभी बाप आत्माओं से बात करते हैं। समझाते हैं – बच्चे, तुम्हारा यह है प्रवृत्ति मार्ग। भारत में प्योरिटी थी तो पीस प्रासपर्टी भी थी। अभी प्योरिटी नहीं तो पीस प्रासपर्टी भी नहीं। सब रोगी, दु:खी हैं। अभी भारत दु:खधाम है। भारत ही सुखधाम था। अब बाप कहते हैं – बच्चे, मेरे साथ योग लगाओ। पहले तो निश्चय होना चाहिए कि हम आत्मा हैं, न कि परमात्मा। जैसे सन्यासी कहते हैं ईश्वर सर्वव्यापी है। परमात्मा की तो महिमा बहुत भारी है। तुम भी सतयुग में सब पवित्र थे। अब अपवित्र बन गये हो। ब्राहमण, देवता, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र – यह वर्ण हैं ना। तुम हो प्रजापिता ब्रह्मा की औलाद ब्राह्मण। अदि देव ब्रह्मा को किसने जन्म दिया? बाप कहते हैं मैंने इसमें प्रवेश कर इनका नाम ब्रह्मा रखा। इनको एडाप्ट किया। यह भागीरथ है। इनके द्वारा मैं तुम्हें माया पर जीत प्राप्त कराता हूँ। बाकी कोई युद्ध आदि का मैदान नहीं है। तुम हो अहिंसक। हिंसा डबल होती है – एक तो काम कटारी की हिंसा, दूसरी फिर एक दो को मारने की हिंसा। बाबा कहते हैं यह काम महाशत्रु है, इनसे तुमने आदि-मध्य-अन्त दु:ख पाया है। रावण राज्य द्वापर से शुरू होता है। जबकि ब्रह्मा की रात शुरू होती है। यह संगमयुग ही सबसे कल्याणकारी है। पीछे तो नीचे उतरते जाते हैं। देवता से क्षत्रिय, क्षत्रिय से वैश्य, शूद्र वर्ण में आना ही है। जो ब्राह्मण धर्म के होंगे वो ही आकर ब्रह्माकुमार, ब्रह्माकुमारियाँ बनेंगे। बाप समझाते हैं – भारत जीवन्मुक्त था, अभी जीवनबन्ध है। बाबा आकर सेकेण्ड में जीवन्मुक्ति देते हैं। बाप से भारत को कल्प-कल्प बेहद सुख का वर्सा मिलता है। मुक्ति-जीवन्मुक्ति का वर्सा मनुष्य, मनुष्य को दे न सके। पार ले जाने वाला एक ही सतगुरू है। तुम विश्व के रचयिता बाप द्वारा विश्व के मालिक बन रहे हो। बाप कहते हैं मैं तो निष्काम हूँ। ब्रह्मा द्वारा तुमको विश्व का मालिक बनाकर मैं वानप्रस्थ में बैठ जाता हूँ। गाया जाता है दु:ख में सिमरण सब करें, सुख में करे न कोई…. अब सब भक्त एक भगवान को याद करते हैं। फिर सर्वव्यापी कह देते हैं, तो भक्त कैसे ठहरे? यह उल्टा ज्ञान है। बाप तो रचते हैं मुख वंशावली। तुम हो प्रजापिता ब्रह्मा की मुखवंशावली। वह ब्राह्मण हैं कुख वंशावली। वे जिस्मानी पण्डे, तुम हो रूहानी पण्डे।

बाप सब आत्माओं को कहते हैं – अब तुम मुझ बाप को याद करो। बाप को थोड़े-ही भूलना चाहिए। बाप को भूला तो वर्सा कैसे मिलेगा। बाप कहते हैं मामेकम् याद करो। बाकी सब हैं रचना, उनसे वर्सा नहीं मिल सकता। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) ड्रामा के राज़ को अच्छी रीति जानकर पार्ट बजाना है। अभी हम धणी बाप के बने हैं, कब आपस में लड़ना-झगड़ना नहीं है।

2) बाप गाइड बन सबको लेने आया है, अब देह सहित सब कुछ भूल एक बाप को ही याद करना है।

वरदान:-

हिम्मत के संकल्प द्वारा माया को हिम्मतहीन बनाने वाले हिम्मतवान आत्मा भव

जो बच्चे एक बल एक भरोसे में रहते हैं, हिम्मत का संकल्प करते हैं कि हमें विजयी बनना ही है तो हिम्मते बच्चे मददे बाप का सदा अनुभव होता है। हिम्मत से मदद के पात्र बन जाते हैं। हिम्मत के संकल्प के आगे माया हिम्मतहीन बन जाती है। जो कमजोर संकल्प करते कि पता नहीं होगा या नहीं, मैं कर सकूंगा या नहीं, ऐसे संकल्प ही माया का आह्वान करते हैं इसलिए सदा उमंग-उत्साह सम्पन्न हिम्मत के संकल्प करो तब कहेंगे हिम्मतवान आत्मा।

स्लोगन:-

निर्माणचित के तख्त पर बैठ, जिम्मेवारी का ताज धारण करना ही श्रेष्ठता है।

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