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14-08-2018

14-08-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन


“मीठे बच्चे – तुम्हें नशा होना चाहिए कि हमारी तकदीर स्वयं बाप ने जगाई है, अभी हम भारत की सोई हुई तकदीर जगाने के निमित्त बने हैं”

प्रश्नः-

निरन्तर खुशी में खग्गियां कौन मारते हैं?

उत्तर:-

1- जो दिन-रात अपने को सेवा में बिज़ी रखते हैं। 2-जो कभी भी मात-पिता से रूठते नहीं। अगर किसी भी बात से आपस में या मात पिता से रूठ जाते, पढ़ाई छोड़ देते तो खुशी में खग्गियां नहीं मार सकते। माया उनको थप्पड़ मार देती है। जो सबको हंसाने वाले हैं वह कभी किसी से रूठ नहीं सकते।

गीत:-

आने वाले कल की तुम तकदीर हो……..  

ओम् शान्ति।

बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं। पतित-पावन है ही सतगुरू। सतगुरू की भेंट में झूठे भी जरूर हैं। जैसे गाया जाता है झूठी माया झूठी काया…….सतयुग में ऐसे नहीं कहेंगे। उसका नाम ही है सचखण्ड। भारत सचखण्ड था। सचखण्ड नाम क्यों पड़ा? क्योंकि बेहद के बाप की यह जन्मभूमि है। यह बात और कोई की बुद्धि में नहीं है कि परमपिता परमात्मा को ट्रूथ अर्थात् सत कहते हैं और भारत उनकी जन्म भूमि है। बाप आकर यह समझाते हैं। यह भारत वास्तव में स्वर्ग था, अब तो नर्क है। मैं भारत को स्वर्ग बनाने आता हूँ।

अभी तुम जानते हो कि बरोबर पहले फॉरेनर्स का राज्य था, तब भी नर्क था, अभी तो और ही रौरव नर्क है। आपस में कितना मतभेद में आकर लड़ते हैं। भाषाओं पर भी कितनी फ्रैक्शन पड़ गई है। गपोड़े मारते रहते हैं – हम सब एक ही हैं। वास्तव में इतने सब मनुष्य ब्रदरहुड हैं। कोई मतभेद नहीं होना चाहिए। धर्मों में भी मतभेद नहीं होना चाहिए। परन्तु कितना मतभेद है! अभी तो भाषाओं का भी मतभेद हो गया है। भावी ड्रामा की। भारत रौरव नर्क बन गया है। कितनी आपस में दुश्मनी है! कौरवों और पाण्डवों की लड़ाई तो लगी नहीं। पाण्डव तो तुम यहाँ बैठे हो। तुम सच्चे-सच्चे ब्राह्मण कुल भूषण भारत की तकदीर हो। तुम्हारा नाम कितना अच्छा है – स्वदर्शन चक्रधारी, त्रिनेत्री, त्रिकालदर्शी। त्रिमूर्ति शिवबाबा तुम्हें ब्रह्मा द्वारा त्रिकालदर्शी बनाते हैं। तीसरा नेत्र खोलते हैं। तीजरी की कथा अथवा सत्य नारायण की कथा वा अमरकथा बात एक ही है। तुम सब भारतवासी अमरकथा सुन रहे हो। जैसे बाप समझाते हैं वैसे तुम बच्चों को भी समझाना चाहिए। पूछते हैं – बाबा, सर्विस कैसे करें? बाबा ने समझाया है जो ब्राह्मण कुल भूषण मनुष्य को हीरे जैसा बनाते हैं, वह अपने पास बोर्ड लगा दें। शिवबाबा का चित्र लगा हुआ हो। शिवबाबा के चित्र के नीचे लिखना है – “बेहद के बाप से जन्म सिद्ध अधिकार स्वर्ग की बादशाही कैसे प्राप्त होती है – वह आकर समझो।” तो मनुष्य आकर समझेंगे। समझानी तो सहज है। बाप आया है, आकर स्वर्ग बना रहा है। यह शिवबाबा की अवतरण भूमि है। परमधाम से बाबा भारत में ही आते हैं। भारत ही सबसे बड़ा तीर्थ स्थान है। सबको मानना चाहिए। गुरुनानक, बुद्ध आदि जो भी हैं सबका पतित-पावन बाप जो है उनकी यह जन्म भूमि है। अभी तो आसुरी राज्य है। यथा राजा रानी काले तथा प्रजा भी काली होगी फिर गोरे बन जायेंगे। इसको कहा जाता है आइरन एज, वह है गोल्डन एज। पावन दुनिया तो है शिवालय। अंग्रेज लोग भी समझते हैं कि गॉड-गॉडेज का राज्य भारत में था। परन्तु कब था, यह नहीं समझते। भारत बहुत साहूकार था, अब तो कंगाल है इसलिए भारत को पैसे देते हैं। गरीब को दान दिया जाता है, तो अब दान देते हैं। भारत से ही बहुत पैसे ले गये हैं। अब फिर भारत को देते रहते हैं। बाप कहते हैं मेरा पार्ट है भारत को हीरे जैसा बनाना। तुम ब्रह्माकुमार-कुमारियां हो, तुमको ही देवी-देवता बनाते हैं। गाया जाता है परमपिता परमात्मा ब्रह्मा द्धारा ब्राह्मण और देवता धर्म स्थापन करते हैं। परन्तु भारतवासी जानते नहीं। न जानना ही नूँध है। तो यह बोर्ड लगा दो कि लौकिक बाप से जन्म-जन्मान्तर हद का वर्सा लेते आये हो, अब पारलौकिक बाप से आकर स्वर्ग का वर्सा लो। प्रजापिता ब्रह्मा की सन्तान संगम पर ही होते हैं। तुम ब्रह्माकुमारियां हो तो जरूर शिवबाबा के पोत्रे-पोत्रियां ठहरे। यह सबको समझाओ कि तुम प्रजापिता ब्रह्मा की औलाद हो और सतयुगी दैवी स्वराज्य के हकदार हो। कितनी सहज बाते हैं। यह ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ शिवबाबा के पोत्रे-पोत्रियां ठहरे। कल्प पहले भी बने थे, अभी फिर बने हो, सो देवी-देवता बनने के लिए। शिवबाबा का चित्र भी साथ में हो। भारत को स्वर्ग बनाने में जो मदद करते हैं, उनको इज़ाफा जरूर मिलता है। जो ब्राह्मण जैसी-जैसी सेवा करते हैं, वैसा पद लेंगे। बाप से पूरा वर्सा लेने के लिए पवित्र जरूर बनना है। तुम बच्चों को अन्दर में खुशी होती है कि हम श्रीमत पर चल स्वर्ग की राजाई का वर्सा पा रहे हैं। नशा तो जरूर चढ़ना चाहिए। स्वर्ग के मालिक तो सब बनेंगे परन्तु पुरुषार्थ कर अपना ऊंच मर्तबा प्राप्त करो। बाप का नाम बाला करो। गाते हैं – गुरू का निंदक ठौर न पाये। परन्तु उनसे पूछो – कौन सी ठौर? अब तो यह सतगुरू गैरन्टी करते हैं – मैं आया हूँ तुम सबको वापिस ले जाने। तुमको दु:खों से छुड़ाए घर वापिस ले जाऊंगा। यह बाबा ही कह सकते हैं। गाया हुआ है कि मच्छरों सदृश्य गये। विनाश होगा तो भंभोर को आग लगेगी। यह भी गाया हुआ है कि पाण्डवों के लाखा भवन को आग लगाई। लाखा भवन था ना। इनका नाम लखीराज था। तो बरोबर घासलेट ले आये थे जलाने के लिए। प्रैक्टिकल की बातें हैं। आग लगी नहीं, यह तो सिर्फ लिख दिया है। तो तुम बच्चों को कितना फ़खुर से रहना चाहिए क्योंकि तुम भारत की तकदीर बनाने वाले हो। उन्हों ने तो तकदीर को लकीर लगा दी है। अब पैसे आदि सब बाहर से आ रहे हैं। यह रिटर्न सर्विस हो रही है। विनाश सामने खड़ा है। उन्होंने तुम्हारे से बहुत लिया है, भारत को बहुत लूटा है। कितना गुप्त राज़ ड्रामा में नूंधा हुआ है! विलायत वाले तो अब भारत के प्रति दाता हैं। ड्रामा अनुसार यह नूँध है। कल्प पहले भी ऐसे हुआ था। बाप समझाते हैं कल्प-कल्प हम तुम मिले हैं। कल्प-कल्प श्रीमत द्वारा बाप से तुम अपना स्वराज्य पाते हो और कुछ करना नहीं है। अहिंसा परमोधर्म से श्रीमत पर तुम विश्व के मालिक बनते हो। ‘श्री श्री’ गुरूओं को नहीं कहा जा सकता है। शिवबाबा को ही ‘श्री श्री’ कहा जा सकता है। भगवानुवाच – यह वही समय है 5000 वर्ष पहले वाला, जब मैं सभी का उद्धार करने आया हूँ। तुम भी शिवबाबा के पोत्रे-पोत्रियाँ ब्रह्मा के बच्चे ब्रह्माकुमार-कुमारी हो। बड़ी पोजीशन वालों को भी समझा सकते हो। कोई सोशल वर्कर होते हैं, उन्हों को भी अच्छी रीति समझा सकते हो। सर्विस से ही वृद्धि होती है। हिम्मत करनी चाहिए। यह तो जानते हो कि माया भी कम नहीं है। चमाट मारकर ऐसा मुँह फेर देती है, जो राम से विपरीत बुद्धि हो जाते हैं। एक खिलौना है ना – अभी राम के, अभी रावण के बन पड़ते हैं। बाबा ने कहा था विराट रूप भी बनाओ। उसमें वर्ण दिखाने हैं – देवता वर्ण, फिर क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र वर्ण में आये। शूद्र से अब फिर ब्राह्मण वर्ण में आये हो। चौरासी का चक्र भारत का ऐसा चलता है। तुम किसको भी यह समझा सकते हो। इसको कहा जाता है सहज राजयोग। तुम राजयोगी राजऋषि हो, वह हठयोग ऋषि हैं।

तुम अभी श्रीमत पर चल पवित्र बनते हो। सतयुग-त्रेता में है ही सम्पूर्ण निर्विकारी दुनिया। वहाँ माया होती नहीं। बच्चे जैसे पैदा होने होंगे वैसे होंगे। तुम यह प्रश्न क्यों करते हो कि बच्चे कैसे पैदा होंगे? पहले वर्सा तो ले लो। रस्म-रिवाज जो होगी सो होगी। यह क्यों पूछते हो? तुमको तो निर्विकारी बनना है, फिर रस्म जो होगी वही चलेगी। श्रीकृष्ण ने भी गर्भ से जन्म लिया। उनको सम्पूर्ण निर्विकारी कहा जाता है। वह तो गर्भ महल में बड़े आराम से बैठा था। यहाँ तो गर्भ जेल में बहुत सजायें खाकर त्राहि-त्राहि करते हैं। तो ऐसी-ऐसी बातें समझानी हैं। सर्विस करनी है। मित्र, सम्बन्धी, पड़ोसी आदि सबको ज्ञान देना है। बाप का परिचय देते चलो। बेहद का बाप स्वर्ग की स्थापना करने वाला है। बाप कहते हैं मुझे याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश हो जायेंगे। प्रतिज्ञा करो कि – बाबा, मैं आपका मददगार बन पवित्रता का वर्सा जरूर लूँगा। पुरुषार्थ पर सारा मदार है। फालो मदर-फादर। पूछना क्या है? एम ऑब्जेक्ट है ही राजयोग, राजाई के लिए योग। प्रजा का योग नहीं है। राजा बनेंगे तो प्रजा भी जरूर चाहिए। भारत में सदैव राजा-रानी का राज्य चला आया है। अभी तो नो राजा-रानी। बाप फिर से राजा-रानी का राज्य स्थापन कर रहे हैं। इसको कहा जाता है प्रवृत्ति मार्ग। पतित-पावन बाप बैठ समझाते हैं। पतित-पावन जरूर कहना पड़े। पतित-पावन बाप हमको राजयोग सिखलाते हैं। तो सत बाप भी हो गया। सत शिक्षक और सतगुरू भी हो गया। पतित-पावन है फर्स्ट। गुरू की महिमा बहुत भारी है।

जिसके भी घर में कलह होती है तो कहा जाता है कलह-क्लेष से पानी के मटके भी सूख जाते हैं। फिर विघ्न डालने वालों पर दोष पड़ जाता है। ड्रामा अनुसार उनकी बुद्धि का ताला बन्द हो जाता है। कुछ भी बोल नहीं सकेंगे। अगर जाकर निन्दा करेंगे तो गला घुट जाता है। सतगुरू का निन्दक ठौर न पाये। यह तो सत बाप, सत शिक्षक, सतगुरू है। बाप कहते हैं अगर मेरी निन्दा करायेंगे तो ऊंच पद पा नहीं सकेंगे। विनाश की रिहर्सल भी होती रहेगी। तो मनुष्य कुछ जागेंगे। तुम भल जगाते हो, लेकिन वह घोर नींद में बिल्कुल सोये पड़े हैं। शास्त्रों में तो ग्लानी की बातें लिख दी हैं। सतयुग का नाम गुम कर दिया है। खुशी में तो अन्दर में खग्गियाँ मारनी चाहिए। मात-पिता से मत रूठना। तूफान आयेंगे परन्तु कभी भी बाप को फ़ारकती नहीं देनी है। मात-पिता से कभी मुँह नहीं मोड़ना। माया बड़ी कड़ी है। तुम बच्चों को कभी भी रूठना नहीं चाहिए। तुम सबको हँसाते रहो। बाप द्वारा बड़ी लॉटरी मिली है तो सदैव हर्षित रहना चाहिए। कोई को भी दु:ख नहीं देना है। दु:ख देंगे तो दु:खी होकर मरेंगे। मुख से हमेशा रत्न ही निकलने चाहिए, पत्थर नहीं। पत्थर निकलेंगे तो पत्थरबुद्धि बन जायेंगे। अभी तो कोई सम्पूर्ण बने नहीं हैं। सम्पूर्ण बनने का पुरुषार्थ करना चाहिए। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) बाप का मददगार बन उनसे इज़ाफा (इनाम) लेना है। सतगुरू का नाम बाला करना है। ग्लानी नहीं करानी है।

2) आपस में कलह नहीं करनी है। मुख से सदैव रत्न निकालने हैं, पत्थर नहीं। सबको हँसाना है, रूठना नहीं है।

वरदान:-

समर्थ स्थिति के आसन पर बैठ व्यर्थ और समर्थ का निर्णय करने वाले स्मृति स्वरूप भव

इस ज्ञान का इसेन्स है स्मृति स्वरूप बनना। हर कार्य करने के पहले इस वरदान द्वारा समर्थ स्थिति के आसन पर बैठ निर्णय करो कि यह व्यर्थ है वा समर्थ है फिर कर्म में आओ, कर्म करने के बाद फिर चेक करो कि कर्म का आदि, मध्य और अन्त तीनों काल समर्थ रहा? यह समर्थ स्थिति का आसन ही हंस आसन है, इसकी विशेषता ही निर्णय शक्ति है। निर्णय शक्ति द्वारा सदा ही मर्यादा पुरुषोत्तम स्थिति में आगे बढ़ते जायेंगे।

स्लोगन:-

अनेक प्रकार के मानसिक रोगों को दूर भगाने का साधन है – साइलेन्स की शक्ति।

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