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30-08-2018

30-08-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन


“मीठे बच्चे – कर्म, अकर्म, विकर्म की गति को ध्यान में रखते हुए इन कर्मेन्द्रियों से कोई भी पाप कर्म नहीं करना, दे दान तो छूटे ग्रहण”

प्रश्नः-

किस बात में ब्रह्मा बाप को फालो करने वाले बच्चे भविष्य में तख्तनशीन बनते हैं?

उत्तर:-

जैसे ब्रह्मा बाप देह सहित पूरा बलि चढ़े, अपना सब कुछ ईश्वर अर्थ बच्चों की सेवा में लगा दिया, डायरेक्ट इनश्योर किया इसलिए विश्व की राजाई मिली, ऐसे ही फालो फादर। सपूत बनने का सर्टीफिकेट लेना है। सगे बन तन-मन-धन से सेवा करनी है। बाप का पूरा मददगार बनना है। सब कुछ इनश्योर कर 21 जन्मों की राजाई का हकदार बन सकते हो।

गीत:-

बचपन के दिन भुला न देना……..  

ओम् शान्ति।

मीठे-मीठे बच्चों ने गीत सुना। अब बच्चों ने जीते जी इस दुनिया से मरकर उस दुनिया में जाने के लिए बाप की गोद ली है। कौन-सा बाप है? परमपिता परम आत्मा माना परमात्मा। हमेशा जब समझाते हो तो ऐसे मत कहो बाबा ज्योतिर्लिंगम हैं, अथाह ज्योति स्वरूप है, हजार सूर्यों से तेजोमय हैं, यह कहना वास्तव में रांग है। क्या कहना है? परमपिता परमात्मा यानी परम आत्मा, वह सदैव परमधाम में रहते हैं। परम अर्थात् ऊंच ते ऊंच इनकारपोरियल फादर। वह सभी आत्माओं का बाप है इसलिए उनको सुप्रीम कहा जाता है। वह जन्म-मरण के चक्र में नहीं आते हैं। समझाते हैं – बच्चे, मैं भी अगर जन्म-मरण के चक्र में आऊं तो फिर सबका उद्धार कौन करे? मैं ही आकर सभी को दु:खों से पार कर ले जाता हूँ। दु:ख हर्ता और सुख देने वाला मैं हूँ परन्तु जानते नहीं हैं। भक्ति मार्ग में गाते रहते हैं – ओ परमपिता परमात्मा! जरूर समझते हैं वह फादर है। परन्तु हमारा बाप कैसे है, वह क्या चीज़ है – यह नहीं जानते हैं। मनुष्य जैसा रूप तो है नहीं। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को भी याद करते हैं। वह तो इन आंखों से देखने में आते हैं। बाकी यह (शिव) कौन हैं, शिव के मन्दिर में जाते हैं परन्तु उनको क्यों याद करते हैं, यह नहीं जानते।

बाप बैठ समझाते हैं देवी-देवतायें जब वाममार्ग में आते हैं तो सोमनाथ का मन्दिर बनाते हैं। सिर्फ इतना समझते हैं कि शिवबाबा है, परन्तु यह नहीं जानते कि वह स्वर्ग का रचयिता है। हमको स्वर्ग का मालिक बनाने वाला है। अगर जानते तो औरों को शिवबाबा की बायोग्राफी बतलाते। ड्रामा में नूँध ही न जानने की है। जानना अर्थात् वर्सा पाना। न जानना अर्थात् वर्सा गँवाना। बाप कहते हैं मैं स्वर्ग का रचयिता तुमको सुख देता हूँ, पावन बनाता हूँ। फिर 5 विकार तुमको पतित बनाते हैं। कलायें कमती होती जाती हैं। तुम काले हो जाते हो। पहले तुम 16 कला सम्पूर्ण चन्द्रमा थे, पावन थे, अब तुम्हारे को ग्रहण लग गया है। बाबा कहते हैं दे दान तो छूटे ग्रहण। पांच विकारों को ही ग्रहण कहा जाता है। जिससे तुम आत्मा दु:खी, काली बन पड़ती हो। बाप कहते हैं मैं तुम ब्राह्मणों का बाप हूँ। हे ब्राह्मणों, तुम्हारे पास जो यह 5 विकार हैं यह मुझे दान में दे दो तो ग्रहण छूटे। आज से दान देकर फिर कभी उनसे कुछ नहीं करना। माया के तूफान तो बहुत आयेंगे। लेकिन कर्मेन्द्रियों से क्रोध आदि करने से पाप हो जायेगा। कर्म-अकर्म-विकर्म की गति भी तुमको समझाता हूँ। तुम्हारा कर्म विकर्म नहीं बनना चाहिए। मैं तुम बच्चों को विकर्माजीत बनाता हूँ। यह तो राहू का ग्रहण है। दे दान तो छूटे ग्रहण। बाप कहते हैं – मेरे मीठे बच्चे, यह 5 भूतों का दान दो, इसमें पैसे आदि की तो कोई बात नहीं। यह तो बाप है, तुम सगे बच्चे हो। बाप को तो सगे बच्चों को मदद करनी ही है। तुम भी तन-मन-धन से सेवा करते हो। बाप का भी फ़र्ज है तुम्हारी सेवा करे। बाप कहते हैं – यह सब कुछ तुम बच्चों का है। भक्ति मार्ग में तुम भगवान् को देते आये हो। परन्तु ईश्वर कोई भूखा थोड़ेही है। यह तुम इनश्योर करते हो। ईश्वर को देने से ईश्वर फिर दूसरे जन्म में तुमको देंगे। यह इनश्योर करना हुआ ना। दूसरे जन्म में इसका फल मिलता है। ईश्वर है दाता। अभी तुम अपने को इनश्योर करते हो – 21 जन्म लिए। वह इनश्योर करते हैं एक जन्म के लिए। यहाँ तो सब कुछ इनश्योर हो जाता है – 21 जन्मों के लिए। कहा जाता है सन शोज़ फादर। देखो फादर (ब्रह्मा बाबा) के पास जो कुछ था सब ईश्वर अर्थ बच्चों की सेवा में लगा दिया, शिवबाबा को वारिस बना दिया, तन-मन-धन सब कुछ दे दिया तो उनके बदले में फिर अपने पुरुषार्थ से विश्व की बादशाही मिलती है क्योंकि डायरेक्ट है ना। तुम मेरा बनने से 21 जन्म स्वर्ग के मालिक बनते हो परन्तु जितना बलि चढ़ेंगे, उतना वर्सा मिलेगा। देह सहित सब कुछ बलि चढ़ाना है। जो मदर-फादर को फालो करेंगे वही तख्त पर भी बैठेंगे। तो बाप कहते हैं दे दान तो छूटे ग्रहण। दान देकर और फिर अगर वापिस ले लिया तो दुर्गति को ही पायेंगे। पूरा पुरुषार्थ करना है। पुरुषार्थी स्टूडेन्ट अच्छी रीति पढ़ते तो नम्बर भी लेते हैं। तुम भी पुरुषार्थ कर ऊंच नम्बर लो। इसमें कोई तकलीफ की बात नहीं, सिर्फ पवित्र रहना है। इसके लिए बाबा से बल भी मिलता है। खुशी का पारा भी चढ़ता है।

हमको देवता बनना है तो कोई अवगुण नहीं होना चाहिए। 16 कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी यहाँ ही बनना है तो कोई अवगुण नहीं होना चाहिए। आधाकल्प विकारी बने हो तो माया भी कहती है अभी यह निर्विकारी बनते हैं, हम फिर विकारी बनाती हूँ। यह चलती है माया की युद्ध। यह है मुश्किलात। माया पर जीत पानी है। उन्होंने फिर हिंसक लड़ाई दिखाए खण्डन कर दिया है। तुम माया पर जीत पाने से विश्व के मालिक बनते हो। बच्चे समझते हैं बाप को 5 विकारों का दान नहीं देंगे तो श्री नारायण वा लक्ष्मी को वर नहीं सकेंगे। तो तुम बच्चों को दिल दर्पण में देखना चाहिए – मैंने कर्मेन्द्रियों से तो नहीं कुछ किया? माया के तूफान तो आगे से भी जबरदस्त आयेंगे। वैद्य लोग दवाई देते हैं तो कहते हैं कि पहले वाली पुरानी बीमारी बाहर निकलेगी। इसमें डरना नहीं है। यह तो आयेंगे। यह भी सर्जन है। कहते हैं कि तुम मेरे बच्चे बनेंगे तो फिर तुम्हारी खूब रावण से युद्ध होगी। माया खूब वार करने लगेगी इसलिए तूफान से डरना नहीं है। बाप के बने हो तो यह बचपन भूल नहीं जाना। यह है ईश्वरीय बचपन। ईश्वर की गोद में एक बार आये फिर देवताई गोद में 21 बार जायेंगे। ईश्वरीय जन्म के बाद तुम स्वर्ग में जाते हो। सर्टीफिकेट लेना है। बाबा, हम आपका सपूत बच्चा हूँ या कपूत? तो बाबा बतला सकते हैं, सपूत भी किस नम्बर में हो? क्या ख़ामी है? बाबा बतला सकते हैं। खुद भी समझ सकते हैं कि हम सर्विस नहीं करते हैं तो इतना ऊंच पद कैसे पायेंगे? अच्छा, बाबा कहते हैं तुम क्या करो, एक हॉस्पिटल अथवा कॉलेज खोल दो। भल तुम इसमें जाना नहीं, और बहुत लोग शफा पायेंगे तो उसका इज़ाफा तुमको मिलेगा। मनुष्य धर्मशाला बनाते हैं, इसलिए कि बहुत आकर विश्राम पायेंगे तो दूसरे जन्म में उसको अच्छा महल मिलेगा। बाबा के पास बहुत आते हैं, कहते हैं यह हॉस्पिटल खोलो, हम मदद देंगे। बड़ी हॉस्पिटल खोलो। अगर ज्ञान उठाने की खुद को फुर्सत नहीं, तो अच्छा तीन पैर पृथ्वी के लेकर यह हॉस्पिटल कम कॉलेज खोल दो। हॉस्पिटल से एवरहेल्दी बनेंगे। कॉलेज से एवरवेल्दी बनते हैं। बहुत आकर बनेंगे तो तुम्हारा पुण्य होगा। जास्ती खर्चा भी नहीं है। आजकल पैसे कितने कमाते हैं, करोड़ों के आसामी हैं! क्या उनके पुत्र-पोत्रे खायेंगे? धूर भी नहीं, सब विनाश हो जायेगा। राजाई गरीबों को मिलती है। गरीब निवाज है ना। यह बाबा नम्बरवन साधारण था। हजार दो हैं तो उनको गरीब कहेंगे। यहाँ गरीब भी अच्छा पद पा सकते हैं। किसका लाख-करोड़ लेकर क्या करेंगे? गरीबों की पाई-पाई से ही स्थापना करते हैं। गांधी को कितना दान देते थे, उसमें कितने मरे! कितनी तकलीफें सहन की! तुमको तो कोई तकलीफ नहीं। बाप कहते हैं तुम पहले राजयोग सीखो तो तुमको राजाई देंगे। यह राज्य तो मृगतृष्णा सदृश्य है। कहानी है ना द्रोपदी ने दुर्योधन को निमंत्रण दिया। वह आया तो तालाब समझ वस्त्र उतारने लगा तो द्रोपदी ने कहा – अन्धे की औलाद अन्धे, यह तो रुण्य का पानी (मृगतृष्णा) है। सभी समझते हैं हमने स्वराज्य पा लिया है, परन्तु कितना दु:ख है! प्रजा कितनी दु:खी हैं, मौत सामने खड़ा है। बाप कहते हैं यह सब मरे पड़े हैं। कब्रिस्तान है, तुमको फिर परिस्तान बनाना है। हीरे-मोतियों के महल बनायेंगे। यहाँ तो यह पत्थरपुरी है, वहाँ होगी सोने की इसलिए बाप समझाते हैं – दे दान तो छूटे ग्रहण, फिर 16 कला सम्पूर्ण हो जायेंगे। अभी तुम पतित हो, मनुष्य कितने दु:खी हैं। लड़ाई लगती है तो नींद फिट जाती है। आराम नहीं आता है, नींद की गोली लेकर नींद करते हैं। यह है ही रावण राज्य। अभी दशहरे पर रावण को जलायेंगे, यह अन्त तक जलाते रहेंगे, जब तक कि विनाश हो। विनाश के बाद फिर रावण जलेगा नहीं। फिर द्वापर के बाद रावण निकालते हैं जलाने के लिए। साल-साल रावण को जलाते हैं परन्तु मरता ही नहीं। साल-साल तुम रक्षाबंधन मनाती हो, राखी बांधती हो फिर अपवित्र बन जाते हैं।

लक्ष्मी-नारायण के पास तो कितना अथाह धन था! कितनी उन्हों की पूजा होती है! पूजा सिर्फ लक्ष्मी की थोड़ेही करते हैं, चतुर्भुज की करते हैं। उसमें दोनों आ जाते हैं। लक्ष्मी के साथ नारायण तो जरूर चाहिए। इसलिए दोनों की पूजा करते हैं। जोड़ी बिगर काम कैसे चलेगा? प्रवृत्ति मार्ग है ना। तुम विश्व के मालिक बनते हो। बच्चे पूछते हैं दीवाली पर सब कहते हैं – अगर लक्ष्मी की पूजा नहीं करेंगे तो धन तुम्हारे पास नहीं आयेगा इसलिए बाबा राय देते हैं- बच्चे, इसमें भी साक्षी होकर पार्ट बजाओ, नहीं तो खिट-खिट होगी। जैसे बाबा कहते हैं – बच्ची की शादी करानी है तो साक्षी होकर पार्ट बजाओ, नहीं तो झगड़ा होगा। बच्चियां निर्विकारी नहीं रहना चाहती तो लाचारी हालत में उनकी शादी करा दो। पवित्र रहना नहीं चाहती हैं तो रवाना कर देना है, तंग नहीं करना है। कुमारी वह जो 21 कुल का उद्धार करे। तुम सब ब्रह्माकुमारियां हो, तुम्हारा धन्धा है ही सभी को स्वर्ग का मालिक बनाना। दिल से पूछो – हम कितने को आपसमान बनाते हैं? मिशन है ना। यहाँ तुम मनुष्य को देवता बनाते हो तो बहुत मेहनत करनी चाहिए। तुम खुदाई खिदमतगार हो। मैं तुमको दु:ख से छुड़ाए स्वर्ग का मालिक बनाता हूँ। मैं हूँ ही निष्काम। तुमको राजाई देकर मैं वानप्रस्थ में चला जाता हूँ। मुझे राजाई करने की तमन्ना नहीं है। तुमको राज्य देता हूँ। तुम अपना राज्य-भाग्य फिर से ले लो। तुम जानते हो हम सो देवी-देवता थे, 84 जन्म पास कर आज हम रावण की सम्प्र दाय बने। रावण को हमेशा जलाते हैं। रावण की कभी पूजा नहीं करते हैं। जो सुख देता है उनको पूजा जाता है। रावण का चित्र बनाया और जलाया, वह तो सदैव दु:ख देने वाला है। दु:ख देने वाले की महिमा फिर कैसे करेंगे? शिवबाबा है सुखदाता। उन पर रोज़ जाकर फूल चढ़ाते हैं। आक्यूपेशन तो कुछ भी नहीं जानते। आजकल तो अन्धश्रद्धा बहुत है।

बाबा कहते हैं जिससे तुमको स्वर्ग का सुख मिलता है ऐसे बाप को भूल नहीं जाना। फिर स्वर्ग के सुख घनेरे मिल नहीं सकेंगे। मम्मा-बाबा कहा तो स्वर्ग में तो आयेंगे परन्तु आकर नौकर चाकर बनेंगे। गीत का अर्थ भी बच्चों ने समझा। ईश्वर का बनकर इस बचपन को भूल नहीं जाना। आसुरी सन्तान से बदल तुम ईश्वरीय सन्तान बनते हो फिर दैवी सन्तान बनेंगे। यह है ईश्वरीय जन्म। इस समय तुम सेवाधारी हो। तुम हो रूहानी सोशल वर्कर। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) ईश्वरीय जन्म ले कोई भी अकर्तव्य नहीं करना है। सपूत बच्चा बनना है। अवगुण निकाल देवताई गुण धारण करने हैं।

2) खुदाई खिदमतगार बन रूहानी सेवा से सबको आप समान बनाना है। तीन पैर पृथ्वी लेकर रूहानी हॉस्पिटल वा कॉलेज खोल देना है। तन-मन-धन से पूरा मददगार बनना है।

वरदान:-

पुराने हिसाब-किताब को समाप्त कर सम्पूर्णता का समारोह मनाने वाले बन्धनमुक्त भव

इस पराये देश में जब सभी बंधन-युक्त आत्मा बन जाते हैं तब बाप आकर स्वरूप और स्वदेश की स्मृति दिलाकर बन्धनमुक्त बनाए स्वदेश में ले जाते हैं और स्वराज्य अधिकारी बनाते हैं। तो अपने स्वदेश में चलने के लिए सब हिसाब-किताब के समाप्ति का समाप्ति समारोह मनाओ। जब अभी यह समारोह मनायेंगे तब अन्त में सम्पूर्णता समारोह मना सकेंगे। बहुतकाल के बन्धनमुक्त ही बहुतकाल के जीवनमुक्त पद को प्राप्त करते हैं।

स्लोगन:-

अपने उमंग-उत्साह के सहयोग और मीठे बोल से कमजोर को शक्तिशाली बना देना ही शुभचिंतक बनना है।

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