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16-09-18

16-09-18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ”अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज: 16-01-84 मधुबन


‘स्वराज्य’ – आपका बर्थ राईट है।

आज बापदादा राज्य अधिकारी सभा देख रहे हैं। सारे कल्प में बड़े ते बड़ी राज्य अधिकारी सभा इस संगमयुग पर ही लगती है। बापदादा सारे विश्व के ब्राह्मण बच्चों की सभा देख रहे हैं। सभी राज्य अधिकारी नम्बरवार अपने सम्पूर्ण स्थिति की सीट पर सेट हो स्वराज्य के रूहानी नशे में कैसे बेफिकर बादशाह बन बैठे हुए हैं। हर एक के मस्तक के बीच चमकती हुई मणि कितनी सुन्दर सज रही है। सभी के सिर पर नम्बरवार चमकता हुआ लाइट का ताज देख रहे हैं। ताजधारी तो सब हैं लेकिन नम्बरवार हैं। सभी के नयनों में बापदादा की याद समाई हुई होने कारण नयनों से याद का प्रकाश चारों ओर फैल रहा है। ऐसी सजी-सजाई सभा देख बापदादा हर्षित हो रहे हैं। वाह मेरे राज्य अधिकारी बच्चे वाह! यह स्वराज्य, मायाजीत का राज्य सभी को जन्म सिद्ध अधिकार में मिला है। विश्व रचता के बच्चे स्वराज्य अधिकारी स्वत: ही हैं। स्वराज्य आप सभी का अनेक बार का बर्थ राइट है। अब का नहीं लेकिन बहुत पुराना अनेक बार प्राप्त किया हुआ अधिकार याद है। याद है ना! अनेक बार स्वराज्य द्वारा विश्व का राज्य प्राप्त किया है। डबल राज्य अधिकारी हो। स्वराज्य और विश्व का राज्य। स्वराज्य सदा के लिए राजयोगी सो राज्य अधिकारी बना देता है। स्वराज्य त्रिनेत्री, त्रिकालदर्शी, तीनों लोकों के नॉलेजफुल अर्थात् त्रिलोकीनाथ बना देता है। स्वराज्य सारे विश्व में कोटों में कोई, कोई में भी कोई विशेष आत्मा बना देता है। स्वराज्य बाप के गले का हार बना देता है। भक्तों के सिमरण की माला बना देता है। स्वराज्य बाप के तख्तनशीन बना देता है। स्वराज्य सर्व प्राप्तियों के खजाने का मालिक बना देता है। अटल, अचल, अखण्ड सर्व अधिकार प्राप्त करा देता है। ऐसे स्वराज्य अधिकारी श्रेष्ठ आत्मायें हो ना!

”मैं कौन” यह पहेली अच्छी तरह से जान ली है ना! मैं कौन, इस टाइटल्स की माला कितनी बड़ी है! याद करते जाओ और एक-एक मणके को चलाते जाओ। कितनी खुशी होगी। अपनी माला स्मृति में लाओ तो कितना नशा रहेगा। ऐस नशा रहता है? डबल विदेशियों को डबल नशा होगा ना। अविनाशी नशा है ना! इस नशे को कोई कम कर सकता है क्या! आलमाइटी अथॉरिटी के आगे और कौन-सी अथॉरिटी है! सिर्फ अलबेलेपन की गहरी नींद में सो जाते हो तो आपके अथॉरिटी की चाबी अर्थात् स्मृति माया चोरी कर लेती है। कई ऐसे नींद में सोते हैं जो पता नहीं पड़ता है। यह अलबेलेपन की नींद कभी-कभी धोखा भी दे देती है और फिर अनुभव ऐसे करते कि मैं सोया हुआ ही नहीं हूँ, जाग रहा हूँ। लेकिन चोरी हो जाती है, वह पता नहीं पड़ता है। वैसे जागती ज्योत आलमाइटी अथॉरिटी के आगे कोई अथॉरिटी है ही नहीं। स्वप्न में भी कोई अथॉरिटी हिला नहीं सकती। ऐसे राज्य अधिकारी हो। समझा। अच्छा-

आज तो मिलन महफिल में आये हैं। जैसे बच्चे इन्तजार करते हैं अपने मिलने के टर्न का। वैसे बाप भी बच्चों से मिलने का आह्वान करते हैं। बाप को सभी से प्यारे ते प्यारा काम है ही बच्चों से मिलने का। चाहे अव्यक्त रूप में, चाहे व्यक्त रूप में। बाप की दिनचर्या का विशेष कार्य सिकीलधे स्नेही बच्चों से मिलने का है। उन्हों को सजाने, पालना करने, समान बनाए विश्व के आगे निमित्त बनाना, यही कार्य है। इसी में बिज़ी रहते हैं। साइन्स वालों को प्रेरते हैं, वह भी बच्चों के लिए। भक्तों को भावना का फल देते हैं तो भी बच्चों को ही आगे करते हैं। बिन्दू को तो कोई जानता नहीं। देवी-देवताओं को ही जानते हैं। भक्तों के आगे भी बच्चों को ही प्रत्यक्ष करते हैं। सबको मुक्ति में ले जाते हैं तो भी आप बच्चों को सुख-शान्तिमय राज्य देने के लिए। अच्छा।

ऐसे सदा के स्वराज्य अधिकारी, सदा अटल अखण्ड, अचल स्थिति में स्थित रहने वाले, सदा रुहानी नशे में अविनाशी रहने वाले, डबल राज्य अधिकारी, बापदादा के नयनों में समाये हुए नूरे रत्नों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।

दादी जी मद्रास, बैंगलूर, मैसूर तथा कलकत्ता का चक्र लगाकर मधुबन पहुँची हैं, दादी जी को देख बापदादा बोले:-

कदमों में पदमों की सेवा समाई हुई है। चक्रवर्ती बन चक्र लगाए अपने यादगार स्थान बना लिए। कितने तीर्थ बने! महावीर बच्चों का चक्र लगाना माना यादगार बनना। हर चक्र में अपनी-अपनी विशेषता होती है। इस चक्र में भी कई आत्माओं के दिलों की आशा पूर्ण करने की विशेषता रही। यह दिल की आशा पूर्ण करना अर्थात् वरदानी बनना। वरदानी भी बनी और महादानी भी बनी। ड्रामा अनुसार जो प्रोग्राम बनता है उसमें कई राज़ भरे हुए होते हैं। राज़ उड़ाके ले जाते हैं। अच्छा-

जानकी दादी से:- आप सभी को नाम का दान देती हो! नाम का दान क्या है? आपका नाम क्या है! नाम का दान देना अर्थात् ट्रस्टी बनकर वरदान देना। आपका नाम लेते ही सबको क्या याद आयेगा? सेकण्ड में जीवन मुक्ति। ट्रस्टी बनना। यह आपके नाम की विशेषता है इसलिए नामदान भी दे दो तो किसका भी बेड़ा पार हो जायेगा। बाप ने अभी आपके ट्रस्टीपन की विशेषता का गायन किया है, वही यादगार है। वही जनक अक्षर उनको मिल गया होगा। एक ही जनक की दो कहानियां हैं। एक जनक जो सेकण्ड में विदेही बन गया। दूसरा जनक जो सेकण्ड में ट्रस्टी बन गया। मेरा नहीं तेरा। त्रेता वाला जनक भी दिखाते हैं। लेकिन आप तो बाप की जनक हो, सीता वाली नहीं। नाम दान का महत्व क्यों हैं, इस पर क्लास कराना। नाम की नईया द्वारा भी पार हो जाते हैं। और कुछ समझ में न भी आये लेकिन शिवबाबा, शिवबाबा भी कहा तो स्वर्ग की गेट पास तो मिल जाती है। अच्छा।

आस्ट्रेलिया पार्टी से:- बापदादा को आस्ट्रेलिया निवासी अति प्रिय हैं, क्यों? आस्ट्रेलिया की विशेषता क्या है? आस्ट्रेलिया की विशेषता है जो स्वयं में हिम्मत रख चारों ओर सेवाधारी बन सेवा स्थान खोलने की विधि अच्छी है। जहाँ हिम्मत है वहाँ बाप हिम्मत वाले बच्चों को देख विशेष खुश होते हैं। लण्डन की भी विशेषता है वहाँ विशेष पालना अनेक अनुभवी रत्नों द्वारा मिलती रहती है और आस्ट्रेलिया को इतनी पालना का चांस नहीं मिलता है। लेकिन फिर भी अपने पांव पर खड़े होकर सेवा में वृद्धि और सफलता अच्छी कर रहे हैं। सभी याद और सेवा के शौक में अच्छे रहते हैं। याद में अच्छी रुचि रखते हैं इसलिए आगे बढ़ रहे हैं और बढ़ते रहेंगे। मैजारिटी निर्विघ्न हैं। कुछ अच्छे-अच्छे बच्चे चले भी गये हैं। लेकिन फिर भी बाप को अभी भी याद करते रहते हैं इसलिए उन्हों के प्रति भी सदा शुभ भावना रख उन्हों को भी फिर से बाप के समीप जरूर लाना है। ऐसा उमंग आता है ना। थोड़ा बहुत वृक्ष से फल तो गिरते ही हैं, नई बात नहीं है इसलिए अभी स्वयं को और दूसरों को ऐसा पक्का बनाओ जो भी सफलता स्वरूप बनें। यह ग्रुप जो आया है, वह पक्का है ना। माया तो नहीं पकड़ेगी। अगर कोई कमजोरी हो भी तो यहाँ मधुबन में सम्पन्न होकर ही जाना। मधुबन से अमर भव का वरदान लेकर जाना। ऐसा वरदान सदा अपने साथ रखना और दूसरों को भी इसी वरदान से सुरजीत करना। बापदादा को डबल विदेशी बच्चों पर नाज़ हैं। आपको भी बाप पर नाज़ है ना! आपको भी यह नशा है ना कि सारे विश्व में से हमने बाप को पहचाना। सदा इसी नशे और खुशी में अविनाशी रहो। अभी बापदादा ने सभी का फोटो निकाल लिया है। फिर फोटो दिखायेंगे कि देखो आप आये थे। माया के भी नॉलेजफुल बनकर चलो। नॉलेजफुल कभी भी धोखा नहीं खाते क्योंकि माया कब आती और कैसे आती, इसकी नॉलेज होने कारण सदा सेफ रहते हैं। मालूम है ना कि माया कब आती है? जब बाप से किनारा कर अकेले बनते हो तब माया आती है। सदा कम्बाइन्ड रहने से माया कभी नहीं आयेगी। आस्ट्रेलिया की विशेषता है जो अधिकतर पाण्डव सेना जिम्मेवार है। नहीं तो मैजारिटी शक्तियां होती हैं। यहाँ पाण्डवों ने कमाल की है। पाण्डव अर्थात् पाण्डव पति के सदा साथ रहने वाले। हिम्मत अच्छी की है, बापदादा बच्चों की सेवा पर मुबारक देते हैं। अभी सिर्फ अविनाशी भव का वरदान सदा साथ रखना। अच्छा।

ब्राजील:- बापदादा जानते हैं कि स्नेही आत्मायें स्नेह के सागर में समाई हुई रहती हैं। कितना भी शरीर से दूर रहते हैं लेकिन सदा स्नेही बच्चे बापदादा के सम्मुख हैं। लगन सभी विघ्नों को पार कराते हुए बाप के समीप पहुँचाने में मददगार बनती हैं, इसीलिए बापदादा बच्चों को मुबारक दे रहे हैं। बापदादा जानते हैं कि कितनी मेहनत को मुहब्बत में परिवर्तन कर यहाँ तक पहुँचते हैं इसीलिए स्नेह के हाथों से बापदादा बच्चों को सदा दबाते रहते हैं। जो अति स्नेही बच्चे होते हैं उनकी माँ-बाप सदैव मालिश करते हैं ना प्यार से। बापदादा बच्चों के तकदीर के सितारे को देखते हैं। चमकते हुए सितारे हो। देश की हालत क्या भी हो लेकिन बाप के बच्चे सदा बाप के स्नेह में रहने के कारण सेफ रहेंगे। बापदादा की छत्रछाया सदा साथ है। ऐसे लाडले सिकीलधे हो। बच्चों ने अनेक पत्रों की माला बापदादा के गले में डाली, सभी बच्चों को इसके रिटर्न में बापदादा याद प्यार दे रहे हैं। सबको कहना कि जितने प्यार से पत्र लिखे हैं, समाचार दिये हैं, उतने ही स्नेह से उसे स्वीकार किया और हिम्मते बच्चे मददे बाप सदा ही है और सदा ही रहेगा। माला मिली और माला के मणकों की माला अभी भी बापदादा सिमरण कर रहे हैं।

बापदादा जानते हैं कि तन से भल दूर हैं लेकिन मन से मधुबन निवासी हैं। मन से सदा मनमनाभव होने के कारण बाप के समीप और सम्मुख हैं। ऐसे समीप और सम्मुख रहने वाले बच्चों को बापदादा सम्मुख देख नाम सहित हरेक को याद-प्यार दे रहे हैं और सदा श्रेष्ठ बन श्रेष्ठ बनाने की सेवा में आगे बढ़ते रहो, यह वरदान सभी सिकीलधे बच्चों को दे रहे हैं। सभी अपने नाम सहित याद-प्यार स्वीकार करें। अच्छा।

वरदान:-

शान्ति की शक्ति द्वारा सर्व को आकर्षित करने वाले मास्टर शान्ति देवा भव

जैसे वाणी द्वारा सेवा करने का तरीका आ गया है ऐसे अब शान्ति का तीर चलाओ, इस शान्ति की शक्ति द्वारा रेत में भी हरियाली कर सकते हो। कितना भी कड़ा पहाड़ हो उसमें भी पानी निकाल सकते हो। इस शान्ति की महान शक्ति को संकल्प, बोल और कर्म में प्रैक्टिकल लाओ तो मास्टर शान्ति देवा बन जायेंगे। फिर शान्ति की किरणें विश्व की सर्व आत्माओं को शान्ति के अनुभूति की तरफ आकर्षित करेंगी और आप शान्ति के चुम्बक बन जायेंगे।

स्लोगन:-

आत्म-अभिमानी स्थिति का व्रत धारण कर लो तो वृत्तियाँ परिवर्तन हो जायेंगी।

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