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29-09-2018

29-09-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन


”मीठे बच्चे – तुम्हें 100 परसेन्ट सर्वगुणों में सम्पन्न बनना है, दिल दर्पण में देखना है कि हम कहाँ तक पावन बने हैं”

प्रश्नः-

तुम बच्चे कौनसा उत्सव रोज़ मनाते हो और मनुष्य कौनसा उत्सव मनाते हैं?

उत्तर:-

तुम दैवी धर्म की स्थापना का अर्थात् भारत को स्वर्ग बनाने का उत्सव रोज़ मनाते हो। रोज़ तुम्हें मनुष्य को देवता बनाने की सैपलिंग लगानी है। वे मनुष्य तो जंगल के कांटों की सैपलिंग लगाते और नाम देते हैं वनोत्सव। तुम कांटों से फूल बनाने का उत्सव रोज़ मनाते हो। तुम्हारे जैसा उत्सव और कोई मना नहीं सकता।

गीत:-

मुखड़ा देख ले प्राणी……..  

ओम् शान्ति।

यह किसने कहा? यहाँ तो है ही बाप और बच्चों का सम्मुख मिलन। बच्चों को अब दिव्य चक्षु, ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है – देखने के लिए क्योंकि पतित अथवा पाप आत्मायें तो सब थे। पतितों को पावन बनाने के लिए बाप श्रीमत देते हैं। यह श्रीमत देने वाला कौन है, उनको भी समझना चाहिए। वही बोलते हैं आत्माओं को। आत्मा जानती है मैंने इस शरीर से अच्छे कर्म किये हैं या बुरे कर्म किये हैं। बाबा तुम बच्चों को समझ देते हैं। यह तो जरूर है सब पतित थे। अभी तुम देखो हम कहाँ तक पावन बने हैं और दैवी गुण धारण किये हैं? दैवी गुण धारण कराने वाला है सर्वगुणों का सागर बाप, वह बैठ समझाते हैं। मनुष्य तो गाते हैं मुझ निर्गुण हारे में कोई गुण नाही। खुद कहते हैं हमारे में गुण नहीं हैं। अब तुम बच्चों को फिर 100 प्रतिशत सर्वगुण सम्पन्न बनना है। कहते हैं अपने दिल दर्पण में देखो। जब सर्वगुण सम्पन्न बनेंगे तब ही तुम श्री लक्ष्मी वा श्री नारायण को वर सकेंगे। पहले-पहले तो बाप का परिचय देना चाहिए। ऐसा जो बेहद का बाप है जिसके लिए गाते हैं तुम मात-पिता…… उस परमपिता की बड़ी महिमा है। कहते हैं शिवाए नम:, अब वह तो स्वर्ग का रचयिता है। जरूर हमको बाप से स्वर्ग का वर्सा लेने का हक है। बेहद के बाप का वर्सा स्वर्ग की बादशाही है जो हमको देते हैं। भारत को स्वर्ग की बादशाही थी, अभी नहीं है। जरूर बाप से ही मिली थी। भारत ही सचखण्ड बनता है। सच शिवबाबा का यह जन्म स्थान है – यह कोई नहीं जानते। शिव रात्रि गाई जाती है वह कौनसी? कृष्ण की भी रात्रि, शिव की भी रात्रि दिखाते हैं। कृष्ण का तो माँ के गर्भ से जन्म हुआ है। शिवबाबा के लिए जन्माष्टमी तो वास्तव में नहीं कहेंगे। शिवबाबा आते ही तब हैं जब ब्रह्मा की रात होती है। रात के बाद दिन अर्थात् कलियुग का अन्त और सतयुग की आदि होती है। इसको कहा जाता है घोर अन्धियारी रात। यह बेहद की बात हो गई। हद की रात तो होती ही है परन्तु कलियुग अन्त को घोर अन्धियारा कहा जाता है। ज्ञान अंजन सतगुरू दिया……। सतगुरू ज्ञान सूर्य बाप को कहा जाता है। पहले-पहले तो बाप और वर्से का परिचय देना है। समझो कोई बादशाह को बच्चा नहीं है, किसी गरीब के बच्चे को गोद में लेता है तो बच्चा दिल में जानता है ना कि मैं गरीब था, अब मैं बादशाह का बच्चा हूँ। तुम भी जानते हो हम रावण का बनने से बहुत गरीब, कंगाल बन गये थे। अभी हम बेहद के बाप के बने हैं। उनसे हमें स्वर्ग का वर्सा मिलता है। यह अच्छी तरह परिचय देना है और फिर लिखाकर लेना है हमको बेहद बाप से बेहद का वर्सा मिलता है। यह ज्ञान और कोई दे नहीं सकता। सन्यासी तो घरबार छोड़ जाते हैं। वह फिर माँ, बाप, चाचा, मामा आदि कहलाने से निकल गये, ख़लास। यहाँ तो गृहस्थ धर्म की बात है। वह गृहस्थ धर्म का त्याग करते हैं।

तुम बच्चों को बाप समझाते हैं – तुम सो देवी-देवता गृहस्थ धर्म में थे, सर्वगुण सम्पन्न, सम्पूर्ण निर्विकारी थे और तुम स्वर्ग के मालिक भी थे। फिर पूज्य से तुम पुजारी बन अपनी पूजा भी करते हो। जब तुम पूज्य सो देवी-देवता हो तो तुमको वहाँ पूजा करने की दरकार नहीं है। वैसे ही भारत देवी-देवताओं का पूज्य कुल था। अभी पूज्य से पुजारी बने हो। फिर तुम बच्चों को पुजारी से पूज्य देवी-देवता बनना है इसलिए ही गाया जाता है आपेही पूज्य, आपेही पुजारी। बाप पूज्य और पुजारी नहीं बनते। बाप तो सदा पूज्य है ही। भक्ति मार्ग में ब्राह्मण लोग मन्दिर में शिवलिंग रखते हैं फिर बाप की बैठ पूजा करते हैं। हम उनके बच्चे हैं। हे परमपिता परमात्मा, ऐसे कहेंगे ना। वह तो है निराकार, आत्मा भी है निराकार। शिव के पास जाते हैं तो कहते हैं परमपिता परमात्मा निराकार शिव। यह आत्मा ने कहा इन आरगन्स द्वारा। अभी तुम बच्चे यह भी जान गये हो कि जो अच्छे कर्तव्य करके जाते हैं तो उन्हों की महिमा की जाती है। अभी तुम मात-पिता उस निराकार को ही कहते हो। तुम्हारे सहज राजयोग और ज्ञान की शिक्षा से हम सुख घनेरे पायेंगे। उसके लिए तुम पुरुषार्थ कर रहे हो। कितनी सहज बात है। तुम प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे बी.के. प्रैक्टिकल में हो, सम्मुख बैठे हो। शिवबाबा और ब्रह्मा बाबा दोनों के सम्मुख हो। शिवबाबा को अपना शरीर तो है नहीं। तुम जानते हो शिवबाबा इनके मुख द्वारा राजयोग सिखला रहे हैं। कृष्ण तो छोटा बच्चा है, वह कैसे कहेगा कि देह सहित देह के सभी सम्बन्धों को भूलो, अपने को आत्मा समझो। यह कृष्ण तो कह न सके। यह तो बाप ही कह सकते हैं। तो यह बड़ी भूल हुई है ना। लक्ष्मी-नारायण से लेकर यथा राजा-रानी तथा प्रजा उन सबको तो सुख मिला हुआ था। वही सब 84 जन्म ले तमोप्रधान बने हैं। मूल लक्ष्मी-नारायण हुए ना। यथा राजा रानी तथा प्रजा। अभी फिर तुम आकर शूद्र से ब्राह्मण बने हो। यह तुम्हारा लीप जन्म है। लीप कहा जाता है धर्माऊ को। तुम जानते हो हमारा यह ईश्वरीय जन्म है।

दिन-प्रतिदिन बाबा नई-नई प्वाइन्ट्स समझाते रहते हैं। जहाँ तक जीना है अन्त तक तुमको पढ़ना है। प्वाइंट्स निकलती रहेंगी, एड होती जायेंगी। ज्ञान यज्ञ भी अन्त तक चलना है। रूद्र यज्ञ रचते हैं, मिट्टी के सालिग्राम बनाकर उनकी बैठ पूजा करते हैं। आत्मा की पूजा होती है। तुम जीव आत्माओं ने ही भारत को सिरताज बनाया है, तो आत्माओं की पूजा करते हैं। परमपिता परमात्मा बाप के साथ तुम भी सर्विस कर रहे हो तो शिवलिंग के साथ सालिग्राम भी बनाते हैं। तो मुख्य पहले-पहले बाप का परिचय देना है। शिवबाबा ने जन्म लिया परन्तु माता के गर्भ से थोड़ेही जन्म लेते हैं। वह है ही निराकार।

जैसे कोई शरीर छोड़ देता है फिर उनकी आत्मा को बुलाते हैं – श्राध खाने के लिए। तो आत्मा को खिलाते हैं ना। आत्मा ही स्वाद लेती है। कडुवा, मीठा, दु:ख-सुख यह आत्मा को भासता है। आत्मा में ही संस्कार हैं। आत्मा को सुख वा दु:ख तब भासता है जबकि शरीर है। बाबा ने समझाया है सज़ा कैसे मिलती है। सूक्ष्म शरीर भी नहीं, स्थूल शरीर धारण कराए सजा देते हैं। गर्भजेल में सज़ा खाते हैं। त्राहि-त्राहि करते हैं। बस, मुझे बाहर निकालो। गर्भ महल का भी मिसाल दिया हुआ है। बाहर निकलने नहीं चाहते थे। यह दृष्टान्त है। सतयुग में गर्भ भी महल बन जाता है। वहाँ कोई पाप होता नहीं।

अभी तुम जानते हो पतित कैसे हुए हैं। नाम ही है अजामिल जैसे पतित। बहुत पाप करते हैं। पावन माना निर्विकारी। मूल बात ही विकार की है इसलिए पावन बनने के लिए सन्यासी घरबार छोड़ देते हैं तो उनको महात्मा कहते हैं। मनुष्य सब पतित हैं इसलिए गाते रहते हैं पतित-पावन सीताराम, रघुपति राघव राजा राम…… अब राजा राम तो शिवबाबा को नहीं कहेंगे। राम परमपिता परमात्मा को कहा जाता है। राजा राम नहीं। मैं तो राजा-महाराजा बनता नहीं हूँ। श्री लक्ष्मी महारानी, नारायण महाराजा तुम बनते हो, हम नहीं। मैं तो निराकार पुनर्जन्म रहित हूँ। शरीरधारी जो हैं वह सब पुनर्जन्म लेते रहते हैं। बाप कहते हैं मैं हूँ निराकार। मुझे भी प्रकृति का आधार लेना पड़ता है। मैं गर्भ में प्रवेश नहीं करता हूँ, मैं इनमें प्रवेश करता हूँ। यह अपने जन्मों को नहीं जानते हैं।

बाप बैठ समझाते हैं तुम सो देवी-देवता थे, फिर शूद्र बने, अभी तुम सो ब्राह्मण बने हो। मैं तुमको समझाता हूँ। तुम अपने जन्मों को नहीं जानते। जो ब्राह्मण बनेंगे वही आकर समझेंगे। बाप कहते हैं इस प्रकार तुमने 84 जन्म पूरे किये हैं। कहा जाता है 21 पीढ़ी का वर्सा। बेहद का बाप, बेहद सुख का वर्सा देंगे ना। लौकिक बाप से तो अल्पकाल का सुख मिलता है। अमरलोक में आदि-मध्य-अन्त सुख है। यहाँ आदि-मध्य-अन्त दु:ख है। तुम पार्वतियों को अमरनाथ शिवबाबा अमरकथा सुनाते हैं। सत्य नारायण की कथा भी वह सुनाते हैं। ज्ञान का तीसरा नेत्र देने की कथा है। भारतवासी सदा सुखी थे, बहुत पवित्र थे। पवित्रता, हेल्थ, वेल्थ थी। कभी कोई बीमार नहीं पड़ते थे। नाम ही है स्वर्ग। भारत प्राचीन स्वर्ग था और कोई धर्म खण्ड आदि वहाँ नहीं थे। झाड़ का थुर तो होगा ना। थुर में कौन रहते थे? बरोबर देवी-देवताओं के चित्र हैं। वह था फाउन्डेशन। परन्तु अपने को देवी-देवता धर्म वाले कहलाते नहीं। अभी उन्हों की राजधानी स्थापन हो रही है। तुम सतयुग का, राधे कृष्ण का जोड़ा बन सकते हो। आओ तो हम आपको समझायें – तुम सच-सच स्वर्ग का प्रिन्स कैसे बन सकते हो! इस समय तो सब पतित हैं, कोई भी युक्ति से लिख सकते हो। कहते हैं सब धर्म मिलकर एक हो जाएं परन्तु यह कैसे हो सकता? एक धर्म तो सतयुग में ही था, एक मत एक भाषा थी। ताली नहीं बजती थी। विश्व के मालिक थे, और कोई धर्म नहीं था। वह कैसे बने, फिर और धर्म कैसे आये – यह कोई भी बुद्धि नहीं चलाते हैं। जब बिल्कुल ही पतित बन जाते हैं तब ही पतित-पावन बाप आते हैं और धर्मों की पावन आत्मायें ऊपर से आती है। पहले धर्म स्थापक खुद आते हैं फिर अपने पिछाड़ी औरों को बुलाते हैं, आओ। उनको तो सतो, रजो, तमो में आना है। जो भी आते हैं सबको सतो, रजो से फिर तमो बनना ही है। परन्तु अभी तुम पतित से पावन बनते हो। सब बुलाते हैं – गॉड फादर आओ, आकरके हमको हेविन में ले जाओ। वह हेविन कोई मुक्ति को, कोई जीवनमुक्ति को समझते हैं। तुम समझते हो हेविन जीवनमुक्ति को कहा जाता है। तुम्हारा सैपलिंग लग रहा है। वह फिर जंगल के कांटों का सैपलिंग लगा रहे हैं। रात-दिन का फ़र्क है। उनका भी उत्सव मनाते हैं। वनोत्सव, झाड़ उगाने के लिए उत्सव मनाते हैं। तुम दैवी धर्म स्थापना का अर्थात् भारत को स्वर्ग बनाने का रोज़ उत्सव मनाते हो। रोज़ मनुष्य से देवता बनाने का पुरुषार्थ करते हो। कांटों से फूल बनाना – यह तुम्हारा रोज़ का उत्सव होता है। बागवान फिर जरूर इतना इनाम भी देंगे।

बच्चों ने गीत सुना – हे प्राणी अपने दिल दर्पण में देखो – तुम स्वर्ग के देवी-देवता बनने अथवा लक्ष्मी को वरने लायक बने हो? कोई अवगुण तो नहीं है? भल त़ूफान तो खूब आयेंगे। माया छोड़ती कोई को नहीं है। बड़े-बड़े दीपकों को भी बुझा देती है। उल्टे-सुल्टे संकल्प तो खूब वार करेंगे। मजबूत रहना है। इसमें मुरझाने की बात नहीं है। बाप से योग तोड़ नहीं देना है। सबका खिवैया वह बाप है। विषय वैतरणी की बड़ी खाड़ी है। उसे तुम योगबल से पार करते हो। विषय सागर से पार होकर तुम क्षीरसागर में चले जायेंगे। विष्णु का राज्य क्षीरसागर में है अर्थात् घी की नदी बहती है। यहाँ तो घासलेट की, रक्त की नदियां बहती हैं।

तुम बच्चे जानते हो शिवबाबा की श्रीमत से हम शिवालय में जा रहे हैं, जहाँ हम सदैव सुखी रहेंगे। तुम सदा सुखी थे, माया ने दु:खी बनाया है। गृहस्थ व्यवहार को अधर्मी बना दिया है। वहाँ है गृहस्थ व्यवहार धर्मी। अभी तुमको बाप श्रेष्ठाचारी दैवी गृहस्थ धर्म वाला बना रहे हैं। पहले-पहले मुख्य है बाप का परिचय। तुम बाप का बनने से स्वर्ग का मालिक बन सकते हो। यह तो दु:खधाम है। तुम स्वर्ग में जाते हो वाया मुक्तिधाम इसलिए शिवपुरी, विष्णुपुरी को याद करो। याद करते-करते अन्त मती सो गति हो जायेगी। यह याद रखो – हमारे 84 जन्म पूरे हुए। फिर हम कल आकर राज्य करेंगे, दिल दर्पण में अपनी शक्ल देखते रहो, कोई अवगुण तो हमारे में नहीं है? अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिये मुख्य सार :-

1) योगबल से विषय वैतरणी की बड़ी खाड़ी को पार करना है। उल्टे संकल्पों में मुरझाना नहीं है। मजबूत रहना है।

2) पूज्यनीय बनने के लिए बाप के साथ भारत को सिरताज बनाने की सेवा करनी है।

वरदान:-

सम्पर्क में आने वाली आत्माओं को सदा सुख की अनुभूति कराने वाले मास्टर सुखदाता भव

आप सुखदाता के बच्चे मास्टर सुखदाता हो इसलिए सुख का खाता जमा करते रहो। सिर्फ यह चेक नहीं करो कि आज सारे दिन में किसी को दु:ख तो नहीं दिया? लेकिन चेक करो कि सुख कितनों को दिया? जो भी सम्पर्क में आये आप मास्टर सुखदाता द्वारा हर कदम में सुख की अनुभूति करे, इसको कहा जाता है दिव्यता वा अलौकिकता। हर समय स्मृति रहे कि इस एक जन्म में 21 जन्मों का खाता जमा करना है।

स्लोगन:-

एक बाप को अपना संसार बना लो तो अविनाशी प्राप्तियाँ होती रहेंगी।

 

 

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