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02-02-07

02-02-07   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


“परमात्म प्राप्तियों से सम्पन्न आत्मा की निशानी- होलीएस्ट, हाइएस्ट और रिचेस्ट”

आज विश्व परिवर्तक बापदादा अपने साथी बच्चों से मिलने आये हैं। हर एक बच्चे के मस्तक में तीन परमात्म विशेष प्राप्तियां देख रहे हैं। एक है होलीएस्ट, 2- हाइएस्ट और 3- रिचेस्ट। इस ज्ञान का फाउण्डेशन ही है होली अर्थात् पवित्र बनना। तो हर एक बच्चा होलीएस्ट है, पवित्रता सिर्फ ब्रह्मचर्य नहीं लेकिन मन-वाणी-कर्म, सम्बन्ध-सम्पर्क में पवित्रता। आप देखो, आप परमात्म ब्राह्मण आत्मायें आदि-मध्य-अन्त तीनों ही काल में होलीएस्ट रहती हो। पहले-पहले आत्मा जब परमधाम में रहते हो तो वहाँ भी होलीएस्ट हो फिर जब आदि में आते हो तो आदिकाल में भी देवता रूप में होलीएस्ट आत्मा रहे। होलीएस्ट अर्थात् पवित्र आत्मा की विशेषता है – प्रवृत्ति में रहते सम्पूर्ण पवित्र रहना। और भी पवित्र बनते हैं लेकिन आपकी पवित्रता की विशेषता है – स्वप्नमात्र भी अपवित्रता मन-बुद्धि में टच नहीं करे। सतयुग में आत्मा भी पवित्र बनती और शरीर भी आपका पवित्र बनता। आत्मा और शरीर दोनों की पवित्रता जो देव आत्मा रूप में रहती है, वह श्रेष्ठ पवित्रता है। जैसे होलीएस्ट बनते हो, इतना ही हाइएस्ट भी बनते हो। सबसे ऊंचे ते ऊंचे ब्राह्मण आत्मायें और ऊंचे ते ऊंचे बाप के बच्चे बने हो। आदि में परमधाम में भी हाइएस्ट अर्थात् बाप के साथ-साथ रहते हो। मध्य में भी पूज्य आत्मायें बनते हो। कितने सुन्दर मन्दिर बनते हैं और कितनी विधिपूर्वक पूजा होती है। जितनी विधिपूर्वक आप देवताओं के मन्दिर में पूजा होती है उतने औरों के मन्दिर बनते हैं लेकिन विधिपूर्वक पूजा आपके देवता रूप की होती है। तो होलीएस्ट भी हो और हाइएस्ट भी हो, साथ में रिचेस्ट भी हो। दुनिया में कहते हैं रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड लेकिन आप श्रेष्ठ आत्मायें रिचेस्ट इन कल्प हैं। सारा कल्प रिचेस्ट हो। अपने खज़ाने स्मृति में आते हैं, कितने खज़ानों के मालिक हो! अविनाशी खज़ाने जो इस एक जन्म में प्राप्त करते हो वह अनेक जन्म चलते हैं। और कोई का भी खज़ाना अनेक जन्म नहीं चलते। लेकिन आपके खज़ाने आध्यात्मिक हैं। शक्तियों का खज़ाना, ज्ञान का खज़ाना, गुणों का खज़ाना, श्रेष्ठ संकल्प का खज़ाना और वर्तमान समय का खज़ाना, यह सर्व खज़ाने जन्म-जन्म चलते हैं। एक जन्म के प्राप्त हुए खज़ाने साथ चलते हैं क्योंकि सर्व खज़ानों के दाता परमात्मा बाप द्वारा प्राप्त होता है। तो यह नशा है कि हमारे खज़ाने अविनाशी हैं?

इस आध्यात्मिक खज़ानों को प्राप्त करने के लिए सहजयोगी बने हो। याद की शक्ति से खज़ाने जमा करते हो। इस समय भी इन सर्व खज़ानों से सम्पन्न बेफिक्र बादशाह हो, कोई फिक्र है? है फिक्र? क्योंकि यह खज़ाने जो हैं इसको न चोर लूट सकता, न राजा खा सकता, न पानी डुबो सकता, इसलिए बेफिक्र बादशाह हो। तो यह खज़ाने सदा स्मृति में रहते हैं ना! और याद भी सहज क्यों है? क्योंकि सबसे ज्यादा याद का आधार होता है एक सम्बन्ध और दूसरा प्राप्ति। जितना प्यारा सम्बन्ध होता है उतनी याद स्वत: आती है क्योंकि सम्बन्ध में स्नेह होता है और जहाँ स्नेह होता है तो स्नेही की याद करना मुश्किल नहीं होता,लेकिन भूलना मुश्किल होता है। तो बाप ने सर्व सम्बन्ध का आधार बना दिया है। सभी अपने को सहजयोगी अनुभव करते हो? वा मुश्किल योगी हैं? सहज है? कि कभी सहज है, कभी मुश्किल है? जब बाप को सम्बन्ध और स्नेह से याद करते हो तो याद मुश्किल नहीं होती और प्राप्तियों को याद करो। सर्व प्राप्तियों के दाता ने सर्व प्राप्तियां करा दी। तो अपने को सर्व खज़ानों से सम्पन्न अनुभव करते हो? खज़ानों को जमा करने की सहज विधि भी बापदादा ने सुनाई – जो भी अविनाशी खज़ाने हैं उन सभी खज़ानों की प्राप्ति करने की विधि है- बिन्दी। जैसे विनाशी खज़ानों में भी बिन्दी लगाते जाओ तो बढ़ता जाता है ना। तो अविनाशी खज़ानों की जमाकरने की विधि है बिन्दी लगाना। तीन बिन्दियां हैं – एक मैं आत्मा बिन्दी,बाप भी बिन्दी और ड्रामा में जो भी बीत जाता वह फुलस्टाप अर्थात् बिन्दी। तो बिन्दी लगाने आती है?सबसे ज्यादा सहज मात्रा कौन सी है? बिन्दी लगाना ना! तो आत्मा बिन्दी हूँ, बाप भी बिन्दी है, इस स्मृति से स्वत: ही खज़ाने जमा हो जाते हैं। तो बिन्दी को सेकण्ड में याद करने से कितनी खुशी होती है! यह सर्व खज़ाने आपके ब्राह्मण जीवन का अधिकार हैं क्योंकि बच्चे बनना अर्थात् अधिकारी बनना। और विशेष तीन सम्बन्ध का अधिकार प्राप्त होता है – परमात्मा को बाप भी बनाया है, शिक्षक भी बनाया है और सतगुरू भी बनाया है। इन तीनों सम्बन्ध से पालना, पढ़ाई से सोर्स आफ इनकम और सतगुरू द्वारा वरदान मिलता है। कितना सहज वरदान मिलता है? क्योंकि बच्चे का जन्म सिद्ध अधिकार है बाप के वरदान प्राप्त करने का।

बापदादा हर बच्चे का जमा का खाता चेक करते हैं। आप सभी भी अपने हर समय का जमा का खाता चेक करो। जमा हुआ वा नहीं हुआ, उसकी विधि है जो भी कर्म किया, उस कर्म में स्वयं भी सन्तुष्ट और जिसके साथ कर्म किया वह भी सन्तुष्ट। अगर दोनों में सन्तुष्टता है तो समझो कर्म का खाता जमा हुआ। अगर स्वयं में वा जिससे सम्बन्ध है, उसमें सन्तुष्टता नहीं आई तो जमा नहीं होता।

बापदादा सभी बच्चों को समय की सूचना भी देते रहते हैं। यह वर्तमान संगम का समय सारे कल्प में श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ समय है क्योंकि यह संगम ही श्रेष्ठ कर्मो के बीज बोने का समय है। प्रत्यक्ष फल प्राप्त करने का समय है। इस संगम समय में एक एक सेकण्ड श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ है। सभी एक सेकण्ड में अशरीरी स्थिति में स्थित हो सकते हो? बापदादा ने सहज विधि सुनाई है कि निरन्तर याद के लिए एक विधि बनाओ – सारे दिन में दो शब्द सभी बोलते हो और अनेक बार बोलते हो वह दो शब्द हैं ‘‘मैं’’ और ‘‘मेरा’’। तो जब मैं शब्द बोलते हो तो बाप ने परिचय दे दिया है कि मैं आत्मा हूँ। तो जब भी मैं शब्द बोलते हो तो यह याद करो कि मैं आत्मा हूँ। अकेला मैं नहीं सोचो, मैं आत्मा हूँ, यह साथ में सोचो क्योंकि आप तो जानते हो ना कि मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ, परमात्म पालना के अन्दर रहने वाली आत्मा हूँ और जब मेरा शब्द बोलते हो तो मेरा कौन? मेरा बाबा अर्थात् बाप परमात्मा। तो जब भी मैं और मेरा शब्द कहते हो उस समय यह एडीशन करो, मैं आत्मा और मेरा बाबा। जितना मेरापन लायेंगे बाप में, उतना याद सहज होती जायेगी क्योंकि मेरा कभी भूलता नहीं है। सारे दिन में देखो मेरा ही याद आता है। तो इस विधि से सहज निरन्तर योगी बन सकते हो। बापदादा ने हर बच्चे को स्वमान की सीट पर बिठाया है। स्वमान की लिस्ट अगर स्मृति में लाओ तो कितनी लम्बी है! क्योंकि स्वमान में स्थित हैं तो देह अभिमान नहीं आ सकता। या देह अभिमान होगा या स्वमान होगा। स्व मान का अर्थ ही है – स्व अर्थात् आत्मा का श्रेष्ठ स्मृति का स्थान। तो सभी अपने स्वमान में स्थित हैं? जितना स्वमान में स्थित होंगे उतना दूसरे को सम्मान देना स्वत: ही हो जाता है। तो स्वमान में स्थित रहना कितना सहज है!

तो सभी खुशनुमा रहते हैं? क्योंकि खुशनुमा रहने वाला दूसरे को भी खुशनुमा बना देता है। बापदादा सदा कहते हैं कि सारे दिन में खुशी कभी नहीं गंवाओ। क्यों? खुशी ऐसी चीज़ है जो एक ही खुशी में हेल्थ भी है, वेल्थ भी है और हैपी भी है। खुशी नहीं तो जीवन नीरस रहती है। खुशी को ही कहा जाता है – ‘‘खुशी जैसा कोई खज़ाना नहीं।’’ कितने भी खज़ाने हो लेकिन खुशी नहीं तो खज़ाने से भी प्राप्ति नहीं कर सकते हैं। खुशी के लिए कहा जाता है – खुशी जैसी कोई खुराक नहीं। तो वेल्थ भी है खुशी और खुशी हेल्थ भी है और नाम ही खुशी है तो हैपी तो है ही है। तो खुशी में तीनों ही चीजे हैं। और बाप ने अविनाशी खुशी का खज़ाना दिया है, बाप का खज़ाना गंवाना नहीं। तो सदा खुश रहते? बापदादा ने होमवर्क दिया तो खुश रहना है और खुशी बांटनी है क्योंकि खुशी ऐसी चीज़ है जो जितनी बांटेंगे उतनी बढ़ेगी। अनुभव करके देखा है! किया है ना अनुभव? अगर खुशी बांटते हैं तो बांटने से पहले अपने पास बढ़ती है। खुश करने वाले से पहले स्वयं खुश होते हैं। तो सभी ने होमवर्क किया है? किया है? जिसने किया है वह हाथ उठाओ। जिसने किया है – खुश रहना है, कारण नहीं निवारण करना है, समाधान स्वरूप बनना है। हाथ उठाओ। अभी यह तो नहीं कहेंगे ना – यह हो गया! बापदादा के पास कई बच्चों ने अपनी रिजल्ट भी लिखी है कि हम कितने परसेन्ट ओ.के. रहे हैं। और लक्ष्य रखेंगे तो लक्ष्य से लक्षण स्वत: ही आते हैं। अच्छा। अभी क्या करना है?

सेवा का टर्न कर्नाटक का है:- कर्नाटक वाले उठो। अच्छा है कर्नाटक वालों ने सेवा का गोल्डन चांस ले लिया है क्योंकि अब संगमयुग में प्रत्यक्ष फल मिलता है। जमा भी होता है लेकिन प्रत्यक्षफल मिलता है जो उसी समय खुशी प्राप्त होती है। तो जितना दिन भी सेवा की है, तो प्रत्यक्षफल अपने में खुशी अनुभव किया? खुशी मिली? हाथ उठाओ। माया आई? नहीं आई? जिसको माया नहीं आई वह हाथ उठाओ। पाण्डवों को माया आई? थोड़ी-थोड़ी आई है? अच्छा है, यहाँ का वायुमण्डल बहुत सहयोग देता है। जैसे साइन्स वाले साइन्स की शक्ति से वायुमण्डल को परिवर्तन कर देते हैं ना। गर्मी में सर्दी, हवा का वायुमण्डल बना देते हैं ना! सर्दी में गर्मी का वायुमण्डल बना देते हैं, तो साइलेन्स की शक्ति आध्यात्मिक स्मृति का वायुमण्डल बना देता है क्योंकि यहाँ सेवा करते वृत्ति में क्या रहता है? यज्ञ सेवा है, यज्ञ का पुण्य बहुत बड़ा होता है। तो इस अविनाशी यज्ञ में सेवा करने से वृत्ति श्रेष्ठ बन जाती है। तो वायुमण्डल भी श्रेष्ठ बन जाता है। अभी कर्नाटक वाले क्या विशेषता दिखायेंगे? कोई नया कार्य करके दिखाओ। देखो कर्नाटक में संख्या बहुत है और एरिया भी बहुत है। सेवा की एरिया बहुत बड़ी है। कर्नाटक वाले बड़े ते बड़ी सेवा यही कर सकते हैं जो कर्नाटक के कोई भी छोटे बड़े कोई स्थान नहीं रहें जो आपको उल्हना देवें कि हमारा बाप आया और हमें आपने सूचना नहीं दी, सन्देश नहीं दिया। यह उल्हना नहीं रह जाये। जैसे अफ्रीका वालों ने अपनी एरिया को सन्देश देने का कार्य सफल किया है। बापदादा को यह कार्य अच्छा लगता है, कोई का भी उल्हना नहीं रह जाना चाहिए। आपका काम है सन्देश देना, वह अभी आवे या पीछे आवे लेकिन आपने अपना कार्य सम्पन्न किया तो कर्नाटक वाले दूसरे वर्ष में जब आयेंगे, क्या करके आयेंगे? कोई भी एरिया खाली नहीं रहनी चाहिए। क्योंकि आप तो जानते हो ना – कि बाप का परिचय मिलने से, बाप के सम्बन्ध में आने से आत्मायें कितनी सुखी बन जायेंगी। अभी तो दिन-प्रतिदिन दु:ख और अशान्ति बढ़ती जा रही है क्योंकि दिन-प्रतिदिन भ्रष्टाचार, पापाचार बढ़ रहा है। अति में जा रहा है। लेकिन आप जानते हो कि अति के बाद क्या होता है? अन्त आती है। और अन्त किसको लाती है? आदि को। तो अपने भाई फिर भी बाप तो एक ही है ना, चाहे जाने चाहे मानें, नहीं भी मानें लेकिन बाप तो बाप ही है। तो अपने भाईयों को, अपनी बहनों को सन्देश जरूर दे दो। तो क्या करेंगे? रिकार्ड बनायेंगे, टीचर्स?कोई गांव भी नहीं रहना चाहिए। हाथ उठाओ, जो करेगा, ऐसेही नहीं हाथ उठाना। करेंगे? रिजल्ट जाके भेजना, प्लैन बनाना। कमाल तो करना है ना! जितनी कमाल करने में लग जायेंगे, उतनी छोटी छोटी धमाल खत्म हो जायेगी। तो बहुत अच्छा चांस मिला है, चांस लिया है और चांस का जो काम मिला है वह भी करके आयेंगे। पक्का है ना? पाण्डव, पक्का? थक नहीं जाना। कितना पुण्य जमा होगा! तो अच्छा है,बापदादा को भी खुशी होती है कि बच्चे अपने पुण्य का खाता भिन्नभिन्न विधि से आगे बढ़ा रहे हैं। बापदादा ने सुनाया ना – तीन खाते जमा करने हैं – एक अपने पुरूषार्थ से जमा हुआ खाता और दूसरा है – दूसरी आत्माओं को सन्तुष्ट करने में पुण्य का खाता। सन्तुष्टता पुण्य का खाता जमा करती है और तीसरा है मन्सा-वाचा-स्नेह सम्बन्ध द्वारा सेवा का खाता। तो तीनों खाते चेक करना। तीनों में कमी नहीं होनी चाहिए। तो नम्बरवन लेंगे? जमा के खाते में नम्बरवन लेना। कर्नाटक है, कम थोड़ेही है। बापदादा की नज़र में है कर्नाटक। बहुत कुछ कर सकते हैं, इस नज़र में है। हाँ आगे लाइन में खड़े हुए क्या करेंगे?कमाल करेंगे ना! करो कमाल, लो नम्बर। स्व-उन्नति और सेवा की उन्नति, दोनों का बैलेन्स रखना। ठीक है बैठ जाओ। (बैंगलोर की सेवा मम्मा ने शुरू की और दादी ह्दयपुष्पा और सुन्दरी बहन ने बहुत प्यार से सेवा की है) ह्दयपुष्पा बच्ची ने बहुत प्यार से सेवा की है। तो प्यार का सबूत देना है। जगदम्बा माँ की सेवा का रिटर्न करना है। तो कितने दिनों में समाचार देंगे। हर मास अपने समाचार देते रहना, कि यह कर रहे हैं और यह हुआ है, यह होना है। बापदादा तो हर जोन को कहते हैं लेकिन जिसका विशेष टर्न होता है उसको विशेष अटेन्शन रखना है।

तो सभी सदा मन को बिजी रखो क्योंकि मन ही धोखा देता, मन में ही टेन्शन आता, मन ही यहाँ वहाँ भागता है। तो मन को बिजी रखना अर्थात् सम्पन्न स्थिति में जल्दी से जल्दी स्थित रहना। बापदादा कहते हैं जब स्थूल कर्मेन्द्रियों को मेरा कहते हो, मेरा हाथ कहते हो, तो हाथ को कन्ट्रोल कर सकते हो ना! जहाँ चाहे जैसे चाहे वैसे करते हो ना! तो मन मेरा है, या आप मन के हो? मन के मालिक भी तो आप हो ना! मैं मन तो नहीं है ना? मन राजा तो नहीं है, आत्मा राजा है। तो कन्ट्रोलिंग पावर रूलिंग पावर धारण करेंगे तो मन आपके अच्छे ते अच्छा नम्बरवन सहयोगी साथी बन जायेगा। करके देखो। सिर्फ मालिक बनो, राजा बनो। इस दुनिया में तीन शक्तियां तो चल रही हैं – देखो यह राजनीति की आई है ना?

(राजस्थान की राज्यपाल महामहिम प्रतिभा पाटिल जी बापदादा से मिलने आई हैं) तो तीन सत्तायें तो चल रही हैं, राज्य सत्ता भी चल रही है। धर्मसत्ता भी चल रही है और साइन्स की सत्ता भी चल रही है, लेकिन रिजल्ट? आपमें कितनी सत्तायें हैं? आपमें चार सत्तायें हैं क्योंकि विश्व में आध्यात्मिक शक्ति की कमी है। आपमें राज्य सत्ता है? अपनी कर्मेन्द्रियों के राजा बने हो ना! स्वराज्य अधिकारी हो ना! और धर्मसत्ता भी है, धर्म का अर्थ है दिव्य गुणों की धारणा, श्रेष्ठ चरित्र की धारणा, श्रेष्ठ कर्म की धारणा। जहाँ चरित्र है वहाँ सब कुछ है। चरित्र नहीं तो सब कुछ होते हुए भी कुछ नहीं है। और साइन्स की सत्ता, उसके साधन हैं आपके साइलेन्स की साधना है। तो चारों ही सत्ता जब इकट्ठी होती है तब विश्व परिवर्तन होता है। इसलिए बापदादा कहते हैं, बच्ची को भी कहते हैं, बहुत अच्छा किया पहुंच गई है। राज्य सत्ता में है ना तो अभी कम से कम राजस्थान को तो आध्यात्मिक सत्ता से भरपूर करो। राजस्थान पान का बीड़ा उठावे, विश्व परिवर्तन तो आपेही हो जायेगा। पहले राजस्थान को परिवर्तन करो। (बाबा राजस्थान तो आध्यात्मिकता का गढ़ है, यहाँ से विश्व में परिवर्तन का कार्य चल रहा है) विश्व को मिल तो रही है लेकिन राजस्थान के राज्य अधिकारी भी सहयोगी बन जायें। देखो आप शक्ति रूप हो, बापदादा ने शक्तियों को आगे रखा है। तो आप भी शिव शक्ति हो। शक्ति जो चाहे वह कर सकती है। अच्छा है, बापदादा ने देखा है उमंग इनको बहुत है, राजस्थान को बहुत अच्छे ते अच्छा बनायें, लेकिन आपके सभी सहयोगी भी हैं, सब मिल करके करेंगे तो क्या नहीं हो सकता। राजस्थान दीपक जगायेगा, चरित्र का और वह दीपक चारों ओर दौड़ेगा। अच्छा किया। बापदादा को बच्चों का इस कार्य में सहयोगी बनने का उमंग-उत्साह देख खुशी होती है। आपके साथ और भी तो आये हैं ना। जो साथ में आये हैं वह हाथ उठाओ। बापदादा को बहुत अच्छा लगता है,अभी आप सभी आपस में मीटिंग करना, प्लैन बनाना कि क्या-क्या कर सकते हैं। और सब यहाँ के आपके सहयोगी बनेंगे। उमंग है ना! अच्छा है। राजस्थान को निमित्त बनना चाहिए। अच्छा है।

डबल विदेशी:- विदेशियों को अपना ओरीज्नल विदेश तो नहीं भूलता होगा। ओरीज्नल आप किस देश के हो, वह तो याद रहता है ना। इसलिए सभी आपको कहते हैं डबल विदेशी। सिर्फ विदेशी नहीं हो, डबल विदेशी। तो आपको अपना स्वीट होम कभी भूलता नहीं होगा। तो कहाँ रहते हो? बापदादा के दिलतख्त नशीन हो ना। बापदादा कहते हैं जब कोई भी छोटी मोटी समस्या आये, समस्या नहीं है लेकिन पेपर है आगे बढ़ाने के लिए। तो बापदादा का दिलतख्त तो आपका अधिकार है। दिलतख्तनशीन बन जाओ तो समस्या खिलौना बन जायेगी। समस्या से घबरायेंगे नहीं, खेलेंगे। खिलौना है। सब उड़ती कला वाले हो ना?उड़ती कला है? या चलने वाले हो? उड़ने वाले हो या चलने वाले हैं? जो उड़ने वाले हैं वह हाथ उठाओ। उड़ने वाले। आधा आधा हाथ उठा रहे हैं। उड़ने वाले हैं? अच्छा। कभी कभी उड़ना छोड़ते हैं क्या? चल रहे हैं नहीं, कई बापदादा को कहते हैं बाबा हम बहुत अच्छे चल रहे हैं। तो बापदादा कहते हैं चल रहे हो या उड़ रहे हो? अभी चलने का समय नहीं है, उड़ने का समय है। उमंग-उत्साह के, हिम्मत के पंख हर एक को लगे हुए हैं। तो पंखों से उड़ना होता है। तो रोज चेक करो, उड़ती कला में उड़ रहे हैं? अच्छा है,रिजल्ट में बापदादा ने देखा है कि सेन्टर्स विदेश में भी बढ़ रहे हैं। और बढ़ते जाने ही हैं। जैसे डबल विदेशी हैं वैसे डबल सेवा मंसा भी, वाचा भी साथ-साथ करते चलो। मन्सा शक्ति द्वारा आत्माओं की आत्मिक वृत्ति बनाओ। वायुमण्डल बनाओ। अभी दु:ख बढ़ता हुआ देख रहम नहीं आता है? आपके जड़ चित्र के आगे चिल्लाते रहते हैं, मर्सी दो, मर्सी दो, अब दयालु कृपालु रहमदिल बनो। अपने ऊपर भी रहम और आत्माओं के ऊपर भी रहम। अच्छा है – हर सीजन में, हर टर्न में आ जाते हैं। यह सभी को खुशी होती है। तो उड़ते चलो और उड़ाते चलो। अच्छा है, रिजल्ट में देखा है कि अभी अपने को परिवर्तन करने में भी फास्ट जा रहे हैं। तो स्व के परिवर्तन की गति विश्व परिवर्तन की गति बढ़ाता है। अच्छा।

जो पहली बार आये हैं वह उठो:- तो आप सभी को ब्राह्मण जन्म की मुबारक हो। अच्छा मिठाई तो मिलेगी लेकिन बापदादा दिलखुश मिठाई खिला रहे हैं। पहले बारी मधुबन आने की यह दिलखुश मिठाई सदा याद रखना। वह मिठाई तो मुख में डाला और खत्म हो जायेगी लेकिन यह दिलखुश मिठाई सदा साथ रहेगी। भले आये, बापदादा और सारा परिवार देश विदेश में आप अपने भाई बहनों को देख खुश हो रहे हैं। सभी देख रहे हैं, अमेरिका भी देख रही है, रशिया वाले भी देख रहे हैं, लण्डन वाले भी देख रहे हैं, 5 खण्ड ही देख रहे हैं। तो जन्म दिन की आप सबको वहाँ बैठे बैठे मुबारक दे रहे हैं। अच्छा।

बापदादा की रूहानी ड्रिल याद है ना! अभी बापदादा हर बच्चे से चाहे नये हैं, चाहे पुराने हैं, चाहे छोटे हैं चाहे बड़े हैं, छोटे और ही समान बाप जल्दी बन सकते हैं। तो अभी सेकण्ड में जहाँ मन को लगाने चाहो वहाँ मन एकाग्र हो जाए। यह एकाग्रता की ड्रिल सदा ही करते चलो। अभी एक सेकण्ड में मन के मालिक बन मैं और मेरा बाबा संसार है, दूसरा न कोई, इस एकाग्र स्मृति में स्थित हो जाओ। अच्छा।

चारों ओर के सर्व तीव्र पुरूषार्थी बच्चों को सदा उमंग-उत्साह के पंखों से उड़ती ला के अनुभवी मूर्त बच्चों को, सदा अपने स्वमान की सीट पर सेट रहने वाले बच्चों को, सदा रहमदिल बन विश्व की आत्माओं को मन्सा शक्ति द्वारा कुछ न कुछ अंचली सुख-शान्ति की देने वाले दयालु, कृपालु बच्चों को, सदा बाप के स्नेह में समाये हुए दिलतख्तनशीन बच्चों को, बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

दादियों से:- अच्छा है – सभी आदि रत्न हैं। आदि रत्नों में विशेषता है, सभी रत्नों को देख खुश हो जाते हैं। दादी को भी सभी याद कर रहे हैं। (दादी जी को विशेष ट्रीटमेंट और चेकिंग निमित्त बम्बई हॉस्पिटल में 31जनवरी को लेकर गये हैं। मोहिनी बहन, मुन्नी बहन, निर्वैर भाई, योगिनी बहन आदि सबने याद भेजी है) बड़ों के आगे कुछ तो अनुभव आयेंगे ना। न्यारे और बाप के प्यारे, न्यारे रहते छोटी-छोटी बातों में पार होने का एक एक्जैम्पुल बनते हैं। बिल्कुल 100 परसेन्ट सम्पन्न बनना है क्योंकि पहले नम्बर वाले जरा भी अंश का अंश भी रह नहीं जाए, सब यहाँ खत्म होना है क्योंकि इन्हों के आधार से नई दुनिया का राज्य स्थापन होना है और राज्य घराना बनना है। तो अंश मात्र को भी भस्म कर रहे हैं। इसीलिए कुछ भी होता है लेकिन फिर भी न्यारापन रहता है। सर्वगुण सम्पन्न, सम्पूर्ण निर्विकारी, मर्यादा पुरूषोत्तम यह प्रैक्टिकल सम्पन्न बनने के लिए थोड़ा बहुत यह खेल तो करना ही पड़ता है। (दादी जानकी जी ने कहा बाबा के लिए खेल है) आपके लिए भी खेल है, यह भी पार्ट है। जैसे और पार्ट बजाते हैं, यह भी पार्ट नूंधा हुआ है। यह जरा सा भी भस्म हो रहा है। बिल्कुल प्युअर, अंश मात्र भी नहीं रहे। तो सभी को प्यार तो है, और प्यार की दुआयें दादी को भी मिल रही हैं। अच्छा है, आप सब मिल करके, निमित्त बनके चला रहे हैं, यह भी बहुत अच्छा है। (परदादी ने भी याद दी है) यह भी एक खेल में खेल है कि सभी इकट्ठे प्युअर बन रहे हैं। इसने (शान्तामणि दादी) तो हिम्मत दिखाई और करके दिखाया। डाक्टरों को भी अपनी हिम्मत तो दिखा दी ना। हर एक की अपनी अपनी विशेषता है। तो अच्छा है मिलके, साथी बनके, यज्ञ का कार्य तो रूकना है ही नहीं, अमर है, चलना है और बढ़ना है। सभी साक्षी होके खेल देख रहे हो या क्वेश्चन मार्क उठता है? क्यों, क्या तो नहीं उठता ना! जो होता है, उसमें कई रा ज समाये हुए होते हैं। वह बाप जाने और ड्रामा जाने। अच्छा। सब ठीक है ना! अच्छा है।

अव्यक्त बापदादा से राजस्थान की राज्यपाल महामहिम बहन प्रतिभा पाटिल जी की मुलाकात

आपने हिम्मत अच्छी की है और बापदादा को एक बात की खुशी है कि राजस्थान में दोनों ही विशेष मातायें हैं। त्रिमूर्ति है। (चीफ मिनिस्टर, राज्यपाल और स्पीकर तीनों ही बहनें हैं) तो बापदादा ने यहाँ भी माताओं द्वारा स्थापना की। तो अभी सहयोगी बन सेवा को बढ़ाओ। राजस्थान को नम्बरवन होना चाहिए। (हो जायेगा, आपका आशीर्वाद है) क्यों नहीं होगा, जहाँ दृढ़ संकल्प है वहाँ सफलता है ही है। सफलता की चाबी दृढ़ संकल्प है। यह चाबी सदा साथ रखना। अभी आप साथी बन गई। आशीर्वाद तो शुभ कार्य और हिम्मत वाले को स्वत: मिलती है। कहे न कहे जिसमें हिम्मत है, उमंग है उसको मिलती है। बाप का वायदा है एक कदम आपकी हिम्मत का, हजार कदम बाप की मदद का। यह सब साथी भी सहयोग देना। बहुत अच्छा। आप सभी सहयोग देना। क्या नहीं कर सकते हैं, जब मनुष्यात्मा विश्व को अकल्याण कर सकते हैं तो कल्याण क्यों नहीं कर सकते। अकल्याण का पार्ट बजा रहे हैं ना! (यह क्यों हो रहा है?) यह सब अति में जाना है। देखो 10 साल पहले भ्रष्टाचार, पापाचार गुप्त था, आजकल खुले बजार में हो गया है,अति में जाना है। कलियुग है ना। कलियुग अति में जा रहा है। (इसे खत्म करने का उपाय क्या है?)इसका उपाय है आध्यात्मिक शक्ति को बढ़ाना। यह सन्देश देके उन्हों में श्रेष्ठ कर्म की भावना पैदा करना। अच्छा।

(जयकुमार रावल, एम.एल.ए. दोढांइचा महाराष्ट्र) कुछ भी हैं लेकिन बाप के कार्य में सहयोगी बनना है।(राज्यपाल से) यह तो घर की बन गई है। देखो दादियों के साथ आ गई है। अच्छा।

पटना से कमिशनर आये हैं: कुछ भी हो, अभी ईश्वरीय कार्य में साथी बनना है। बस यह दृढ़ संकल्प करके जाओ, करना ही है। साथ देना ही है। हिलो नहीं, दृढ़ता रखो।

भ्राता प्रभाकर रेडी जी (जिलाध्यक्ष) आंध्र प्रदेश:- कुछ भी हो, अभी क्या करना है? अभी ईश्वरीय कार्य में सहयोगी बनके चलना। अच्छा।

दादियों की सेवा में रहने वाली बहनों से:- आप सेन्टर पर नहीं रहती हो, मधुबन में नहीं रहती हो, सब ब्राह्मण परिवार के बीच में रहती हो। सबकी नज़र आपके ऊपर है, बड़ी जिम्मेवारी है, थकना नहीं, साधारण नहीं हो। फरिश्तों जैसे चलो, दादियों को सम्भाल रही हो, कोई कम्पलेन नहीं है, बापदादा खुश है।

बापदादा ने बाम्बे हॉस्पिटल में दादी जी की सेवा में गये हुए सभी भाई बहिनों को विशेष याद दी:- बापदादा बॉम्बे में सबकी प्यारी, सबके दिल की दुलारी दादी की जो सेवा के निमित्त हैं उन सबको याद-प्यार दे रहे हैं। दादी का जो भी ड्रामा में देखते हो, देखते हए साक्षी होके, दुआओं की, दिल के स्नेह की और स्नेह की सकाश देने की सेवा करते रहते हैं, करते रहो। खेल में खेल देखते रहो। साक्षी होके देखो और उड़ते रहो। बापदादा दिल से सबको दुआयें दे रहे हैं और सब प्यार से सेवा कर रहे हैं। सेवा की भी मुबारक है। (दादी जानकी जी ने कहा डाक्टर्स भी बहुत अच्छी सेवा कर रहे हैं) जो भी होता है उसमें सेवा औरकल्याण तो भरा हुआ ही है। अच्छा। सभी बहुत-बहुत-बहुत खुश हैं, खुश है! बहुत खुश है? कितना बहुत? तो सदा ऐसे रहना। कुछ भी हो जाये होने दो, अभी खुश रहना है। हमें उड़ना है, कोई नीचे नहीं ला सकता। पक्का! पक्का वायदा है? कितना पक्का? बस, खुश रहो सबको खुशी दो। कोई भी बात अच्छी नहीं लगे तो भी खुशी नहीं गँवाओ। बात को चला लो, खुशी नहीं चली जाये। बात तो खत्म हो ही जानी है लेकिन खुशी तो साथ में चलनी है ना! तो जो साथ में चलने वाली है उसको छोड़ देते हो और जो छूटने वाली है उस छोड़ने वाली को पास में रख देते हो। यह नहीं करना। अमृतवेले रोज पहले अपने आपको खुशी की खुराक खिलाओ। अच्छा।

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