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18-01-07

18-01-07   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


‘‘अब स्वयं को मुक्त कर मास्टर मुक्तिदाता बन सबको मुक्ति दिलाने के निमित्त बनो’’

आज स्नेह के सागर बापदादा चारों ओर के स्नेही बच्चों को देख रहे हैं। दो प्रकार के बच्चे देख-देख हर्षित हो रहे हैं। एक हैं लवलीन बच्चे और दूसरे हैं लवली बच्चे, दोनों के स्नेह की लहरें बाप के पास अमृतवेले से भी पहले से पहुँच रही हैं। हर एक बच्चे के दिल से ऑटोमेटिक गीत बज रहा है – ‘‘मेरे बाबा’’। बापदादा के दिल से भी यही गीत बजता -’’मेरे बच्चे, लाडले बच्चे, बापदादा के भी सिरताज बच्चे’’। आज स्मृति दिवस के कारण सबके मन में स्नेह की लहर ज्यादा है। अनेक बच्चों की स्नेह के मोतियों की मालायें बापदादा के गले में पिरो रही हैं। बाप भी अपने स्नेही बांहों की माला बच्चों को पहना रहे हैं। बेहद के बापदादा की बेहद की बांहों में समा गये हैं। आज सब विशेष स्नेह के विमान में पहुंच गये हैं और दूर-दूर से भी मन के विमान में अव्यक्त रूप से, फरिश्तों के रूप से पहुंच गये हैं। सभी बच्चों को बापदादा आज स्मृति दिवस सो समर्थ दिवस की पदमापदम याद दे रहे हैं।

यह दिवस कितनी स्मृतियां दिलाता है और हर स्मृति सेकण्ड में समर्थ बना देती है। स्मृतियों की लिस्ट सेकण्ड में स्मृति में आ जाती है ना। स्मृति सामने आते समर्थी का नशा चढ़ जाता है। पहलीपहली स्मृति याद है ना! जब बाप के बने तो बाप ने क्या स्मृति दिलाई? आप कल्प पहले वाली भाग्यवान आत्मा हो। याद करो इस पहली स्मृति से क्या परिवर्तन आ गया? आत्म अभिमानी बनने से परमात्म बाप के स्नेह का नशा चढ़ गया। क्यों नशा चढ़ा? दिल से पहला स्नेह का शब्द कौन सा निकला? ‘‘मेरा मीठा बाबा’’और इस एक गोल्डन शब्द निकलने से नशा क्या चढ़ा? सारी परमात्म प्राप्तियां मेरा बाबा कहने से, जानने से, मानने से आपकी अपनी प्राप्तियां हो गई। अनुभव है ना! मेरा बाबा कहने से कितनी प्राप्तियां आपकी हो गई! जहाँ प्राप्तियां होती हैं वहाँ याद करनी नहीं पड़ती लेकिन स्वत: ही आती है, सहज ही आती है क्योंकि मेरी हो गई ना! बाप का खज़ाना मेरा खज़ाना हो गया, तो मेरापन याद किया नहीं जाता है, याद रहता ही है। मेरा भुलाना मुश्किल होता है, याद करना मुश्किल नहीं होता। जैसे अनुभव है मेरा शरीर, तो भूलता है?भुलाना पड़ता है, क्यों? मेरा है ना! तो जहाँ मेरापन आता है वहाँ सहज याद हो जाती है। तो स्मृति ने समर्थ आत्मा बना दिया। एक शब्द मेरा बाबा ने। भाग्य विधाता अखुट खज़ाने के दाता को मेरा बना लिया। ऐसी कमाल करने वाले बच्चे हो ना! परमात्म पालना के अधिकारी बन गये, जो परमात्म पालना सारे कल्प में एक बार मिलती है, आत्मायें और देव आत्माओं की पालना तो मिलती है लेकिन परमात्म पालना सिर्फ एक जन्म के लिए मिलती है।

तो आज के स्मृति सो समर्थी दिवस पर परमात्म पालना का नशा और खुशी सहज याद रही ना! क्योंकि आज का वायुमण्डल सहज याद का था। तो आज के दिन सहजयोगी रहे कि आज के दिन भी युद्ध करनी पड़ी याद के लिए? क्योंकि आज का दिन स्नेह का दिन कहेंगे ना, तो स्नेह मेहनत को मिटा देता है। स्नेह सब बातें सहज कर देता है। तो सभी आज के दिन विशेष सहजयोगी रहे या मुश्किल आई? जिसको आज के दिन मुश्किल आई हो वह हाथ उठाओ। किसको भी नहीं आई? सब सहजयोगी रहे। अच्छा जो सहजयोगी रहे वह हाथ उठाओ। अच्छा -सहजयोगी रहे? आज माया को छुट्टी दे दी थी। आज माया नहीं आई? आज माया को विदाई दे दी? अच्छा आज तो विदाई दे दी, उसकी मुबारक हो, अगर ऐसे ही स्नेह में समाये रहो तो माया को तो विदाई सदा के लिए हो जायेगी क्योंकि अभी 70 साल पूरे हो रहे हैं, तो बापदादा इस वर्ष को न्यारा वर्ष, सर्व का प्यारा वर्ष, मेहनत से मुक्त वर्ष, समस्या से मुक्त वर्ष मनाने चाहते हैं। आप सभी को पसन्द है? पसन्द है? मुक्त वर्ष मनायेंगे? क्योंकि मुक्तिधाम में जाना है, अनेक दु:खी अशान्त आत्माओं को मुक्तिदाता बाप से साथी बन मुक्ति दिलाना है। तो मास्टर मुक्तिदाता जब स्वयं मुक्त बनेंगे तब तो मुक्ति वर्ष मनायेंगे ना! क्योंकि आप ब्राह्मण आत्मायें स्वयं मुक्त बन अनेकों को मुक्ति दिलाने के निमित्त हो। एक भाषा जो मुक्ति दिलाने के बजाए बंधन में बांधती है, समस्या के अधीन बनाती है, वह है ऐसा नहीं, वैसा। वैसा नहीं ऐसा। जब समस्या आती है तो यही कहते हैं बाबा ऐसा नहीं था, वैसा था ना। ऐसा नहीं होता, ऐसा होता ना। यह है बहाने बाजी करने का खेल।

बापदादा ने सबका फाइल देखा, तो फाइल में क्या देखा? मैजॉरिटी का फाइल प्रतिज्ञा करने के पेपर से फाइल भरा हुआ है। प्रतिज्ञा करने के टाइम बहुत दिल से करते हैं, सोचते भी हैं लेकिन अभी तक देखा कि फाइल बड़ा होता जाता है लेकिन फाइनल नहीं हुआ है। दृढ़ प्रतिज्ञा के लिए कहा हुआ है – जान चली जाए लेकिन प्रतिज्ञा न जाए। तो बापदादा ने आज सबके फाइल देखे। बहुत प्रतिज्ञायें अच्छी-अच्छी की है। मन से भी की है और लिख करके भी की है। तो इस वर्ष क्या करेंगे? फाइल को बढ़ायेंगे या प्रतिज्ञा को फाइनल करेंगे? क्या करेंगे? पहली लाइन वाले बताओ, पाण्डव सुनाओ, टीचर्स सुनाओ। इस वर्ष जो बापदादा के पास फाइल बड़ा होता जाता है, उसको फाइनल करेंगे या इस वर्ष भी फाइल में कागज एड करेंगे? क्या करेंगे? बोलो पाण्डव? फाइनल करेंगे? जो समझते हैं – झुकना पड़े, बदलना पड़े, सहन करना भी पड़े, सुनना भी पड़े, लेकिन बदलना ही है, वह हाथ उठाओ। देखो टी.वी. में सबका फोटो निकालो। सभी का फोटो निकालना, दो तीन चार टी.वी. हैं, सब तरफ के फोटो निकालो। यह रिकार्ड रखना, बाप को यह फोटो निकाल के देना। कहाँ है टी.वी. वाले? बापदादा भी फाइल का फायदा तो उठावे। मुबारक हो, मुबारक हो, अपने आपके लिए ही ताली बजाओ। देखो जैसे एक तरफ साइन्स दूसरे तरफ भ्रष्टाचारी, तीसरे तरफ पापाचारी, सब अपने-अपने कार्य में और वृद्धि करते जा रहे हैं। बहुत नये-नये प्लैन बनाते जाते हैं। तो आप तो क्रियेटर के बच्चे हो, वर्ल्ड क्रियेटर के बच्चे हो तो आप इस वर्ष ऐसी नवीनता के साधन अपनाओ जो प्रतिज्ञा दृढ़ हो जाए क्योंकि सभी प्रत्यक्षता चाहते हैं। कितना खर्चा कर रहे हैं, जगह-जगह पर बड़े-बड़े प्रोग्राम कर रहे हैं। हर एक वर्ग मेहनत अच्छी कर रहे हैं लेकिन अभी इस वर्ष यह एडीशन करो कि जो भी सेवा करो, मानो मुख की सेवा करते हो, तो सिर्फ मुख की सेवा नहीं, मन्सा वाचा और स्नेह सहयोग रूपी कर्म एक ही समय में तीन सेवायें इकट्ठी हों। अलग-अलग नहीं हों।

एक सेवा में देखा जाता है कि जो बापदादा रिजल्ट देखने चाहते हैं वह नहीं होती। जो आप भी चाहते हो,प्रत्यक्षता हो जाए, अभी तक यह रिजल्ट अच्छी है। पहले से बहुत अच्छी रिजल्ट है, सब अच्छा अच्छा,बहुत अच्छा कहके जाते हैं। लेकिन अच्छा बनना अर्थात् प्रत्यक्षता होना। तो अब एडीशन करो कि एक ही समय पर मन्सा-वाचा-कर्मणा में स्नेही सहयोगी बनना, हर एक साथी चाहे ब्राह्मण साथी हैं, चाहे बाहर वाले सेवा के निमित्त जो बनते हैं, वह साथी हों लेकिन सहयोग और स्नेह देना यह है कर्मणा सेवा में नम्बर लेना। यह भाषा नहीं कहना, यह ऐसा किया ना, तभी ऐसा करना पड़ा। स्नेह के बजाए थोड़ा-थोड़ा कहना पड़ा, बाबा शब्द नहीं बोलता। यह करना ही पड़ता है, कहना ही पड़ता है, देखना ही पड़ता है… यह नहीं। इतने वर्षो में देख लिया, बापदादा ने छुट्टी दे दी। ऐसा नहीं वैसा करते रहे, लेकिन अभी कब तक?बापदादा से सभी रूहरिहान में मैजॉरिटी कहते हैं बाबा आखिर भी पर्दा कब खोलेंगे? कब तक चलेगा? तो बापदादा आपको कहते हैं कि यह पुरानी भाषा, पुरानी चाल, अलबेलेपन की, कडुवेपन की कब तक?बापदादा का भी क्वेश्चन है कब तक? आप उत्तर दो तो बापदादा भी उत्तर देगा कब तक विनाश होगा। क्योंकि बापदादा विनाश का पर्दा तो अभी भी खोल सकता है, इस सेकण्ड लेकिन पहले राज्य करने वाले तो तैयार हों। तो अब से तैयारी करेंगे तब समाप्ति समीप लायेंगे। किसी भी कमज़ोरी की बात में कारण नहीं बताओ, निवारण करो, यह कारण था ना।

बापदादा सारे दिन में बच्चों का खेल तो देखते हैं ना, बच्चों से प्यार है ना, तो बार-बार खेल देखते रहते हैं। बापदादा की टी.वी. बहुत बड़ी है। एक समय पर वर्ल्ड दिखाई दे सकती है, चारों ओर के बच्चे दिखाई दे सकते हैं। जैसे अमेरिका हो, चाहे गुडगांव हो, सब दिखाई देते हैं। तो बापदादा खेल बहुत देखते हैं। टालने की भाषा बहुत अच्छी है, यह कारण था ना, बाबा मेरी गलती नहीं है, ऐसा किया ना। उसने तो किया लेकिन आपने समाधान किया? कारण को कारण ही बनने दिया या कारण को निवारण में बदली किया? तो सभी पूछते हैं ना कि बाबा आपकी क्या आशा है। तो बापदादा आशा सुना रहे हैं। बापदादा की एक ही आशा है निवारण दिखाई देवे, कारण खत्म हो जाए। समस्या समाप्त हो जाए, समाधान होता रहे। हो सकता है? हो सकता है? पहली लाइन – हो सकता है? कांध तो हिलाओ। पीछे वाले हो सकता है? हो सकता है? अच्छा। तो कल अगर टी.वी. खोलेंगे, टी.वी में देखेगे जरूर ना। तो कल टी.वी. देखेंगे तो चाहे फारेन चाहे इन्डिया, चाहे छोटे गांव चाहे बहुत बड़ी स्टेट, कहाँ भी कारण दिखाई नहीं देगा? पक्का? इसमें हाँ नहीं कर रहे हैं? होगा? हाथ उठाओ। हाथ बहुत अच्छा उठाते हो, बापदादा खुश हो जाता। कमाल है हाथ उठाने की। खुश करना तो आता है बच्चों को। क्योंकि बापदादा देखते हैं सोचो – जो आप कोटों में कोई, कोई में कोई निमित्त बने हो, अभी इन बच्चों के सिवाए और कौन करेगा? आपको ही तो करना है ना! तो बापदादा की आप बच्चों में उम्मीदें हैं। और आयेंगे ना, वह तो आपकी अवस्था देख करके ही ठीक हो जायेंगे, उन्हों को मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। आप बन जाओ बस क्योंकि आप सभी ने जन्म लेते ही बाप से वायदा किया है – साथ रहेंगे, साथी बनेंगे और साथ चलेंगे और ब्रह्मा बाप के साथ राज्य में आयेंगे। यह वायदा किया है ना? जब साथ रहेंगे, साथ चलेंगे तो साथ में सेवा के साथी भी तो हो ना!

तो अभी क्या करेंगे? हाथ तो बहुत अच्छा उठाया, बापदादा खुश हो गये लेकिन जब भी कोई बात आवे ना तो यह दिन, यह तारीख, यह टाइम याद करना तो हमने क्या हाथ उठाया था। मदद मिल जायेगी। बनना तो पड़ेगा आपको। अभी सिर्फ जल्दी बन जाओ। आप सोचते हो ना, हम ही कल्प पहले भी थे, अभी भी हैं और हर कल्प हमें ही बनना है, यह तो पक्का है ना कि दो साल बनेंगे तीसरे साल जायेंगे, ऐसे तो नहीं होगा। तो सदा याद रखो हम ही निमित्त हैं, हम ही कोटों में कोई, कोई में कोई हैं। कोटो में कोई तो आयेंगे लेकिन आप कोई में कोई हो।

तो आज स्नेह का दिन है, तो स्नेह में कुछ भी करना मुश्किल नहीं होता। इसलिए बापदादा आज ही सभी को याद दिला रहे हैं। शिवबाबा को, ब्रह्मा बाबा से कितना बच्चों का प्यार है, यह देख करके बहुत खुशी होती है। चारों ओर देखा चाहे सप्ताह का स्टूडेन्ट है, चाहे 70 साल वाला है। 70 साल वाला और 7 दिन वाला भी आज के दिन प्यार में समाया हुआ है। तो शिव बाप भी ब्रह्मा बाप से बच्चों का प्यार देख करके हर्षित होते हैं।आज के दिन का और समाचार सुनायें। आज के दिन एडवान्स पार्टी भी बापदादा के पास इमर्ज होती है। तो एडवांस पार्टी भी आपको याद कर रही है कि कब बाप के साथ मुक्तिधाम का दरवाजा खोलेंगे! आज सारी एडवांस पार्टी बापदादा को यही कह रही थी कि हमको तारीख बताओ। तो क्या जवाब दें? बताओ क्या जवाब दें? जवाब देने में कौन होशियार है? बापदादा तो यही उत्तर देते हैं कि जल्द से जल्द हो ही जायेगा। लेकिन इसमें आप बच्चों का बाप को सहयोग चाहिए। सभी साथ चलेंगे ना! साथ चलने वाले हैं या रूक-रूक कर चलने वाले हैं? साथ में चलने वाले हैं ना! पसन्द है ना साथ में चलना?तो समान तो बनना पड़ेगा ना। अगर साथ में चलना है तो समान तो बनना ही पड़ेगा ना! कहावत क्या है? हाथ में हाथ हो, साथ में साथ हो। तो हाथ में हाथ अर्थात् समान। तो बोलो दादियां बोलो, तैयारी हो जायेगी? दादियां बोलो। दादियां हाथ उठाओ। दादायें हाथ उठाओ। आपको कहा जाता है ना बड़े दादा। तो बताओ दादियां, दादायें क्या तारीख है कोई? (अभी नहीं तो कभी नहीं) अभी नहीं तो कभी नहीं का अर्थ क्या हुआ? अभी तैयार है ना! जवाब तो अच्छा दिया। दादियां? पूरा होना ही है। हर एक अपने को जिम्मेवार समझे। छोटे बड़े, इसमें छोटे नहीं होना है। 7 दिन का बच्चा भी जिम्मेवार है। क्यों साथ चलना है ना। अकेला बाप जाने चाहे तो चला जाए लेकिन बाप जा नहीं सकता। साथ चलना है। वायदा है बाप का भी और आप बच्चों का भी। वायदा तो निभाना है ना! निभाना है ना? यह मधुबन वाले बैठते हैं ना!

मधुबन में जो भी चार्ज के हेडस हैं, चार्जेज तो बहुत हैं ना, शान्तिवन, ज्ञान सरोवर, पाण्डव भवन सब जगह हैं। तो जो चार्ज वाले हैं उनके नामों की लिस्ट बापदादा को देना, उनसे हिसाब लेंगे। और जो सभी टीचर्स इन्चार्ज हैं, सेन्टर इन्चार्ज हैं या जोन इन्चार्ज है, उन्हों का एक दिन संगठन करेंगे, हिसाब-किताब तो पूछेंगे ना! क्योंकि बापदादा के पास बहुत दु:ख और अशान्ति के आवाज आते हैं। परेशानी के आवाज आते हैं। आप लोगों के पास नहीं सुनने आते, आपके भी तो भक्त होंगे ना! तो भक्तों की पुकार आप इष्ट देवों को नहीं आती? टीचर्स को भक्तों की आवाज सुनाई देती है? अच्छा।

महाराष्ट्र जोन, बम्बई और आंध्रप्रदेश के सेवाधारी:- अच्छा सभी चांस अच्छा ले लेते हैं। नाम ही महाराष्ट्र है। अच्छी संख्या आई है। तो महाराष्ट्र अर्थात् महान आत्माओं का राष्ट्र है। तो बापदादा देखते हैं कि महाराष्ट्र में बापदादा के महान बच्चे बहुत अच्छे-अच्छे हैं क्योंकि बापदादा की नजर, महाराष्ट्र के बाम्बे और दिल्ली में ज्यादा है। बाम्बे नरदेसावर है और दिल्ली आवाज बुलन्द करने के निमित्त है और ड्रामानुसार महाराष्ट्र बाम्बे या आसपास और दिल्ली दोनों को साकार ब्रह्मा बाप और जगदम्बा की पालना मिली है। विशेष पालना मिली है। तो कोई भी कार्य होता है तो बापदादा महाराष्ट्र और दिल्ली को याद करते हैं। बाकी जो भी हैं वह तो साथी बन ही जाते हैं। दूसरे छोटे जोन नहीं हैं, दूसरे भी बड़े बड़े जोन हैं लेकिन साकार पालना के लिए विशेष बापदादा दिल्ली और बाम्बे को याद करते हैं। छोटे जोन भी कमाल कर सकते हैं,छोटे को हमेशा बापदादा कहता है बड़े तो बड़े हैं लेकिन छोटे समान बाप हैं। अभी महाराष्ट्र को कुछ महान कार्य करना पड़ेगा। अभी बहुत टाइम हो गया है कोई नये कार्य की इन्वेन्शन नहीं निकाली है। वर्गीकरण का कार्य भी अभी काफी टाइम चल चुका, कानफरेन्सेज भी चल चुकी, यूथ यात्रायें भी चल गई। अभी कोई नई सेवा की विधि निकालो। सोचो। जिससे आवाज सहज फैल जाये। अभी तक जो भी किया है, सेवा के प्लैन बापदादा को पसन्द हैं और वृद्धि भी हुई है। लेकिन बहुत समय यह प्रोग्रामस चल चुके। अभी कोई नई इन्वेन्शन तैयार करो। कोई भी करे, छोटे करे तो इनएडवांस मुबारक हैं। अच्छा है महाराष्ट्र में भी वृद्धि अच्छी हो रही है। अभी महाराष्ट्र का टर्न है तो महाराष्ट्र क्यों नहीं नम्बरवन में बाप के स्नेह का रिटर्न देवे। बापदादा ने सुना दिया है – बापदादा को स्नेह का रिटर्न है – स्वयं को और विश्व को टर्न करना। बस रिटर्न में रि निकाल दो तो टर्न हो जायेगा क्योंकि बापदादा को बच्चों में बहुत-बहुत, अच्छी-अच्छी उम्मीदें हैं, उम्मींदवार हो। तो क्या करेगा महाराष्ट्र? रिटर्न देगा? अच्छा है, अच्छे अच्छे महारथी हैं महाराष्ट्र में। संगठित रूप में मीटिंग करो, चारों ओर महाराष्ट्र में बापदादा ने देखा है उम्मींदवार सितारे हैं। जो चाहे वह कर सकते हैं। तो ऐसे संगठित रूप में प्रोग्राम करना और नया कोई प्लैन बनाना, कर सकते हैं। महाराष्ट्र कर सकता है। करेंगे ना! अरे नाम ही महाराष्ट्र है तो महान कार्य करना ही है ना! क्या समझते हैं पाण्डव?करेंगे? पाण्डव सेना करेंगे, शक्ति सेना करेंगे? टीचर्स भी बहुत हैं। बहुत अच्छा है।

डबल विदेशी:- बहुत अच्छा – बापदादा ने पहले भी कहा तो जब डबल विदेशी आते हैं तो मधुबन का श्रृंगार हो जाता है। डबल विदेशियों से सभी का प्यार बहुत है। जब भी आपके ग्रुप को देखते हैं ना तो सभी खुश हो जाते हैं क्योंकि आप भी कोटों में कोई, कोई में कोई निकले हो और आजकल विदेश सेवा की अच्छी न्यूज है। अच्छे-अच्छे मुस्लिम धर्म में भी सन्देश दे रहे हैं। डबल विदेशियों की विशेषता एक बहुत अच्छी गाई हुई है कि डबल विदेशी अगर किसी भी कार्य में लगेंगे तो हाँ तो हाँ, ना तो ना। जिस कार्य में लगेंगे उस कार्य में फिर विजयी बनेंगे। तो आप जो भी ग्रुप में है वह विजयी ग्रुप है ना। विजय का तिलक लगा हुआ है ना। बापदादा देख रहे हैं कि सेवा में वृद्धि भी हो रही है, सन्देश दे रहे हैं, रहमदिल आत्मा बनके आत्माओं को सन्देश देना यह बाप समान सेवाधारी बनना है। अभी सुनाया ना आज अभी एक समय पर एक सेवा नहीं करो, तीनों ही सेवायें इकट्ठी-इकट्ठी हों तो उसका प्रभाव जल्दी होगा। अपने चेहरे से, अपनी चलन से भी सेवा कर सकते हैं। चलते-फिरते म्युजियम हो। जैसे म्युजियम में वा प्रदर्शनी में भिन्न-भिन्न चित्र होते हैं ना वैसे आपके नयन, आपका मस्तक, आपके मुस्कराते हुए होंठ, यह भिन्न-भिन्न जो साधन हैं, उससे सेवा कर सकते हैं। अच्छे हैं, बापदादा को हिम्मत वाले भी लगते हैं सिर्फ अभी थोड़ा सा रियलाइजेशन सूक्ष्म चाहिए। रियलाइज करते हो लेकिन थोड़ा सा सूक्ष्म रूप से रियलाइजे- शन करके नम्बरवन बन जाओ। विन करो और वन, सेकण्ड नम्बर नहीं, वन। ठीक है ना! वन है ना, टू तो नहीं ना! वन नम्बर हैं? कांध हिलाओ। अच्छा। अच्छा है, बापदादा को विदेशियों का ग्रुप मधुबन में आता रहे, यह अच्छा लगता है। सज जाता है मधुबन। अच्छा।

इण्डियन यूथ ग्रुप:- यूथ ग्रुप आया है ना – इन्डियन यूथ ग्रुप उठो। अच्छा इन्डिया का यूथ ग्रुप क्या कमाल करेगा? सन्देश देने में चारों ओर आवाज फैलाने में यूथ में डबल ताकत है। बापदादा ने सुना,टॉपिक बहुत अच्छी रखी है, विक्ट्री। ऐसा है ना। तो सदा विजयी बन, विजयी बनाने वाले। तो विजयी तब बनेंगे जो बापदादा ने इस वर्ष का काम दिया है, वह एक्जैम्पुल बनकर दिखाना। सब कहें यूथ ग्रुप विजयी अर्थात् निर्विघ्न। ऐसा संकल्प किया है? किया है? कोई कारण तो नहीं बतायेंगे ना! ऐसा वैसा तो नहीं कहेंगे ना! मुझे बदलना है। मुझे एडजेस्ट होना है। मुझे सहयोग देना है। मुझे स्नेह देना है। पहले मैं,इसमें पहले मैं भले करो। अच्छा है आपस में संगठन फॉरेन वालों ने भी किया, इन्डिया वाले भी कर रहे हैं, अच्छा है। मुबारक हो। आगे उड़ते रहना। अच्छा।

बापदादा के पास फूलों के श्रृंगार वाले ग्रुप की यादप्यार भी आई है, (कलकत्ता के भाई बहिनें) वह संगठन उठो कहाँ है। देखो सभी को फूलों का श्रृंगार अच्छा लगा ना। फूलों का श्रृंगार तो कामन बात है, लोग भी करते हैं लेकिन आपके श्रृंगार और लोगों के श्रृंगार में फर्क है कि आपने स्नेही स्वरूप बन श्रृंगार किया है,वह ड्युटी समझके करते हैं और आपने स्नेह से किया है तो जहाँ स्नेह होता है वह फूलों की सुगन्ध और श्रृंगार और सुन्दर हो जाती है। तो बापदादा को अच्छा लगा कि स्नेह देखो कलकत्ता से यहाँ ले आते हैं तो स्नेह के विमान में लाये ना, ट्रेन में नहीं लाये, स्नेह के विमान में लाये हैं, अच्छा है। जो आने वाले आपके भाई-बहिन हैं वह भी देख करके खुश हो जाते हैं, वाह! कमाल है, कमाल है। तो आप सभी ने जिस स्नेह से सजाया है, तो बापदादा उससे ज्यादा पदमगुणा आपको स्नेह दे रहा है, मुबारक हो। अच्छा। चारों ओर के पत्र, याद-पत्र ईमेल, फोन, चारों ओर के बहुत-बहुत आये हैं, यहाँ मधुबन में भी आये हैं तो वतन में भी पहुंचे हैं। आज के दिन जो बंधन वाली मातायें हैं, उन्हों की भी बहुत स्नेह भरी मन की यादें बापदादा के पास पहुंच गई हैं। बापदादा ऐसे स्नेही बच्चों को बहुत याद भी करते और दुआयें भी देते हैं। आजकल बापदादा देख रहे हैं सब बहुत खुशी खुशी से दूर बैठे भी नजदीक में अनुभव कर रहे हैं। लेकिन मधुबन में सम्मुख आना, अपनी झोली भरना, इतने बड़े परिवार से मिलना, यह परिवार कम नहीं है, किसी भी र ति से देख लिया लेकिन सम्मुख परिवार को देख कितनी खुशी होती है क्योंकि 5 हजार वर्ष के बाद मिले हैं। तो वह अनुभव अपना है लेकिन मधुबन निवासी बनना यह गोल्डन चांस बहुत सहयोग देता है। अनुभव भी करते हैं सभी। लेकिन बापदादा खुश है कि सभी को मुरली से प्यार है और मुरली से प्यार अर्थात् मुरलीधर से प्यार। कोई कहे मुरलीधर से तो प्यार है लेकिन मुरली कभी कभी सुन लेते हैं, बापदादा कहते हैं बापदादा उसका प्यार, प्यार नहीं समझते हैं। प्यार निभाना अलग है, प्यार करना अलग है। जिसको मुरली से प्यार है वह है प्यार निभाने वाले और मुरली से प्यार नहीं तो प्यार करने वालों की लिस्ट में है निभाने वाले नहीं। मधुबन में मुरली बाजे, मधुबन का गायन है। मधुबन की धरनी का ही महत्व है। अच्छा।

तो चारों ओर के स्नेही बच्चों को लवली और लवलीन दोनों बच्चों को, सदा बाप के श्रीमत प्रमाण हर कदम में पदम जमा करने वाले नॉलेजफुल पावरफुल बच्चों को, सदा स्नेही भी और स्वमानधारी भी,सम्मानधारी भी, ऐसे सदा बाप की श्रीमत को पालन करने वाले विजयी बच्चों को, सदा बाप के हर कदम पर कदम उठाने वाले सहजयोगी बच्चों को बापदादा का लेकिन आज वतन में जो आपकी एडवांस पार्टी वाले बच्चे हैं, उन्होंने भी, एकएक ने यही कहा है कि हमारी तरफ से भी सभी को, चारों ओर के बच्चों को यादप्यार हमारी देना और हमारा सन्देश देना कि हम आपका इन्तजार कर रहे हैं। आप जल्दी से जल्दी इन्तजाम करो। विशेष आप सबकी प्यारी माँ, दीदी, भाऊ विश्वकिशोर और जो भी साथी गये हैं उन्होंने,सभी ने आप सबको याद प्यार दिया है और साथ-साथ मीठी माँ आपकी, उसने यही कहा है कि अभी विजयी बन दु:ख दर्द दूर कर जल्दी-जल्दी मुक्तिधाम का गेट खोलने के लिए बाप के साथी बन जाओ। ब्रह्मा बाप ने, जिन्होंने साकार में बाप को नहीं देखा है तो ब्रह्मा बाप भी विशेष आप सभी को बहुत दिल से यादप्यार दे रहे हैं। तो यादप्यार और नमस्ते।

दादियों से:- (दादी रतनमोहिनी, दादी मनोहर इन्द्रा से) आप भी देखो आलराउन्ड पार्ट बजा रही हो ना। जितना भी कर सकी सेवा में नम्बरवन। आप तो शुरू से नम्बरवन रही हैं। ब्रह्मा बाप के दिल में आपका नाम है। कुछ भी हो करते चलो, देख करके औरों को भी हिम्मत आती है। करावनहार साथ में है ही। दादी जी से:- बहुत अच्छी, आप मुस्कराती हो ना तो सभी खुश होते हैं। अभी एक बात करो, करेंगी? करेंगी पक्का? अभी खाना अच्छी तरह से खाओ। ऑख खोलके खाना खाओ। बन्द नहीं करो क्योंकि आपकी ऑखें बन्द होती है ना, तो सभी का संकल्प चलता है क्यों किया, क्यों किया। इसलिए अभी खाना बहुत प्यार से खाओ। अभी ऑखे बन्द नहीं करना। करेंगी ना। यह बहुत खुश हो जायेंगे। हाँ करेंगी। करना ही है, करना ही है। दादी शान्तामणी:- अरे वाह! आपको याद है ना, आपको बापदादा ने एक स्पेशल टाइटल दिया था,(सचली कौड़ी) बापदादा ने खास टाइटल दिया था – सचली कौड़ी। उस दिनों में कौड़ी का महत्व था। सभी को दादियों को देखकर खुशी होती है ना। क्या गीत गाते हो? वाह! दादियां वाह! और यह वाह! वाह! नहीं होते तो आप भी नहीं होते। अच्छा।


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