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13-02-2019

13-02-2019 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन


“मीठे बच्चे – सदा बाप की याद का चिंतन और ज्ञान का विचार सागर मंथन करो तो नई-नई प्वाइंट्स निकलती रहेंगी, खुशी में रहेंगे”

प्रश्नः-

इस ड्रामा में सबसे बड़े से बड़ी कमाल किसकी है और क्यों?

उत्तर:-

1- सबसे बड़ी कमाल है शिवबाबा की क्योंकि वह तुम्हें सेकण्ड में परीज़ादा बना देते हैं। ऐसी पढ़ाई पढ़ाते हैं जिससे तुम मनुष्य से देवता बन जाते हो। दुनिया में ऐसी पढ़ाई बाप के सिवाए और कोई पढ़ा नहीं सकता। 2- ज्ञान का तीसरा नेत्र दे अन्धियारे से रोशनी में ले आना, ठोकर खाने से बचा देना, यह बाप का काम है इसलिए उन जैसी कमाल का वन्डरफुल कार्य कोई कर नहीं सकता।

ओम् शान्ति।

रूहानी बाप रोज़-रोज़ बच्चों को समझाते हैं और बच्चे अपने को आत्मा समझ बाप से सुनते हैं। जैसे बाप गुप्त है वैसे ज्ञान भी गुप्त है, किसको भी समझ में नहीं आता है कि आत्मा क्या है, परमपिता परमात्मा क्या है। तुम बच्चों की पक्की आदत पड़ जानी चाहिए कि हम आत्मा हैं। बाप हम आत्माओं को सुनाते हैं। यह बुद्धि से समझना है और एक्ट में आना है। बाकी धन्धा आदि तो करना ही है। कोई बुलायेंगे तो जरूर नाम से बुलायेंगे। नाम रूप है तब तो बोल सकते हैं। कुछ भी कर सकते हैं। सिर्फ यह पक्का करना है कि हम आत्मा हैं। महिमा सारी निराकार की है। अगर साकार में देवताओं की महिमा है तो उन्हों को भी महिमा लायक बाप ने बनाया है। महिमा लायक थे, अब फिर बाप महिमा लायक बना रहे हैं इसलिए निराकार की ही महिमा है। विचार किया जाता है, बाप की कितनी महिमा है और कितनी उनकी सर्विस है। वह समर्थ है, वह सब-कुछ कर सकते हैं। हम तो बहुत थोड़ी महिमा करते हैं। महिमा तो उनकी बहुत है। मुसलमान लोग भी कहते हैं अल्लाह मिया ने ऐसे फ़रमाया। अब फ़रमाया किसके आगे? बच्चों के आगे फ़रमाते हैं, जो तुम मनुष्य से देवता बनते हो। अल्लाह मिया ने किसके प्रति तो फ़रमाया होगा ना। तुम बच्चों को ही समझाते हैं, जिसका कोई को पता ही नहीं। अभी तुमको पता पड़ा है फिर यह नॉलेज ही गुम हो जायेगी। बौद्धी भी ऐसे कहेंगे, क्रिश्चियन भी ऐसे कहेंगे। परन्तु क्या फ़रमाया था, यह किसको पता ही नहीं। बाप तुम बच्चों को अल्फ और बे समझा रहे हैं। आत्मा को बाप की याद भूल नहीं सकती। आत्मा अविनाशी है तो याद भी अविनाशी रहती है। बाप भी अविनाशी है। गाते हैं अल्लाह मिया ने ऐसे कहा था परन्तु वह कौन हैं, क्या कहते थे – यह कुछ भी नहीं जानते। अल्लाह मिया को ठिक्कर-भित्तर में कह दिया है तो जानेंगे फिर क्या? भक्ति मार्ग में प्रार्थना करते हैं। अब तुम समझते हो जो भी आते हैं, उनको सतो, रजो, तमो में आना ही है। क्राइस्ट बौद्ध जो आते हैं, उनके पीछे सबको उतरना है। चढ़ने की बात नहीं। बाप ही आकर सबको चढ़ाते हैं। सर्व का सद्गति दाता एक है। और कोई सद्गति करने नहीं आते। समझो क्राइस्ट आया, किसको बैठ समझायेंगे। इन बातों को समझने लिए अच्छी बुद्धि चाहिए। नई-नई युक्तियां निकालनी चाहिए। मेहनत करनी है, रत्न निकालना है इसलिए बाबा कहते हैं विचार सागर मंथन करके लिखो, फिर पढ़ो कि क्या-क्या मिस हुआ? बाबा का जो पार्ट है, वह चलता रहेगा। बाप कल्प पहले वाली नॉलेज सुनाते हैं। यह बच्चे जानते हैं कि जो धर्म स्थापन करने आते हैं उनके पीछे उनके धर्म वालों को भी नीचे उतरना है। वह किसको चढ़ायेंगे कैसे? सीढ़ी नीचे उतरनी ही है। पहले सुख, पीछे दु:ख। यह नाटक बड़ा फाइन बना हुआ है। विचार सागर मंथन करने की जरूरत है, वह कोई की सद्गति करने नहीं आते। वह आते हैं धर्म स्थापन करने। ज्ञान का सागर एक है और कोई में ज्ञान नहीं है। ड्रामा में दु:ख-सुख का खेल तो सभी के लिए है। दु:ख से भी सुख जास्ती है। ड्रामा में पार्ट बजाते हैं तो जरूर सुख होना चाहिए। बाप दु:ख थोड़ेही स्थापन करेंगे। बाप तो सबको सुख देते हैं। विश्व में शान्ति हो जाती है। दु:खधाम में तो शान्ति हो न सके। शान्ति तब मिलनी है जब वापिस शान्तिधाम में जायेंगे।

बाप बैठ समझाते हैं। यह कभी भूलना नहीं चाहिए कि हम बाबा के साथ हैं, बाबा आया हुआ है असुर से देवता बनाने। यह देवतायें सद्गति में रहते हैं तो बाकी सब आत्मायें मूलवतन में रहती हैं। ड्रामा में सबसे बड़ी कमाल है बेहद के बाप की, जो तुमको परीज़ादा बनाते हैं। पढ़ाई से तुम परी बनते हो। भक्ति मार्ग में समझते कुछ भी नहीं, माला फेरते रहते हैं। कोई हनुमान को, कोई किसको याद करते हैं, उनको याद करने से फायदा क्या? बाबा ने कहा है ‘महारथी’, तो उन्होंने बैठ हाथी पर सवारी दिखा दी है। यह सब बातें बाप ही समझाते हैं। बड़े-बड़े आदमी कहाँ जाते हैं तो कितनी आजयान (आवभगत) करते हैं। तुम और किसको आजयान नहीं देंगे। तुम जानते हो इस समय सारा झाड़ जड़ जड़ीभूत है। विष की पैदाइस है। तुमको अब फीलिंग आनी चाहिए कि सतयुग में विष की बात नहीं। बाप कहते हैं मैं तुमको पद्मापद्मपति बनाता हूँ। सुदामा पद्मापद्मपति बना ना। सब अपने लिए ही करते हैं। बाप कहते हैं इस पढ़ाई से तुम कितने ऊंच बनते हो। वह गीता सब सुनते, पढ़ते हैं। यह भी पढ़ता था परन्तु जब बाप ने बैठ सुनाया तो वन्डर खाया। बाप की गीता से सद्गति हुई। यह मनुष्यों ने क्या बैठ बनाया है। कहते हैं अल्लाह मिया ने ऐसे कहा। परन्तु समझते कुछ भी नहीं – अल्लाह कौन? देवी-देवता धर्म वाले ही भगवान् को नहीं जानते हैं तो जो पीछे आते हैं वह क्या जानें। सर्व शास्त्र मई शिरोमणी गीता ही रांग कर दी है तो बाकी फिर शास्त्रों में क्या होगा? बाप ने जो हम बच्चों को सुनाया वह प्राय: लोप हो गया। अब तुम बाप से सुनकर देवता बन रहे हो। पुरानी दुनिया का हिसाब तो सबको चुक्तू करना है फिर आत्मा पवित्र बन जाती है। उनका भी कुछ हिसाब-किताब होगा तो वह चुक्तू होगा। हम ही पहले-पहले जाते हैं फिर पहले-पहले आते हैं। बाकी सब सजायें खाकर हिसाब-किताब चुक्तू करेंगे। इन बातों में जास्ती न जाओ। पहले तो निश्चय कराओ कि सबका सद्गति दाता बाप है। टीचर गुरू भी वह एक ही बाप है। वह है अशरीरी। उस आत्मा में कितना ज्ञान है। ज्ञान का सागर, सुख का सागर है। कितनी उनकी महिमा है। है वह भी आत्मा। आत्मा ही आकर शरीर में प्रवेश करती है। सिवाए परमपिता परमात्मा के तो कोई आत्मा की महिमा कर नहीं सकते। और सब शरीरधारियों की महिमा करेंगे। यह है सुप्रीम आत्मा। बिगर शरीर आत्मा की महिमा सिवाए एक निराकार बाप के कोई की हो नहीं सकती। आत्मा में ही ज्ञान के संस्कार हैं। बाप में कितने ज्ञान के संस्कार हैं। प्यार का सागर, ज्ञान का सागर…. क्या यह आत्मा की महिमा है? कोई मनुष्य की यह महिमा हो न सके। कृष्ण की हो न सके। वह तो पहला नम्बर प्रिन्स है। बाप में सारी नॉलेज है जो आकर बच्चों को वर्सा देते हैं इसलिए महिमा गाई जाती है। शिव जयन्ती हीरे तुल्य है। धर्म स्थापक आते हैं, क्या करते हैं? समझो क्राइस्ट आया, उस समय क्रिश्चियन तो हैं नहीं। किसको क्या नॉलेज देंगे? करके कहेंगे अच्छी चलन चलो। यह तो बहुत मनुष्य समझाते रहते हैं। बाकी सद्गति की नॉलेज कोई दे न सके। उनको अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है। सतो, रजो, तमो में आना ही है। आने से ही क्रिश्चियन की चर्च कैसे बनेंगी। जब बहुत होंगे, भक्ति शुरू होगी तब चर्च बनायेंगे। उसमें बहुत पैसे चाहिए। लड़ाई में भी पैसे चाहिए। तो बाप समझाते हैं यह मनुष्य सृष्टि झाड़ है। झाड़ कभी लाखों वर्ष का होता है क्या? हिसाब नहीं बनता। बाप कहते हैं – हे बच्चे, तुम कितने बेसमझ बन गये थे। अभी तुम समझदार बनते हो। पहले से ही तैयार होकर आते हो, राज्य करने। वह तो अकेले आते हैं फिर बाद में वृद्धि होती है। झाड़ का फाउन्डेशन देवी-देवता, उनसे फिर 3 ट्यूब निकलती हैं। फिर छोटे-छोटे मठ-पंथ आते हैं। वृद्धि होती है फिर उनकी कुछ महिमा हो जाती है। परन्तु फायदा कुछ भी नहीं। सबको नीचे आना ही है। तुमको अभी सारी नॉलेज मिल रही है। कहते हैं गॉड इज नॉलेजफुल। परन्तु नॉलेज क्या है-यह किसको मालूम नहीं है। तुमको अभी नॉलेज मिल रही है। भाग्यशाली रथ तो जरूर चाहिए। बाप साधारण तन में आते हैं तब यह भाग्यशाली बनते हैं। सतयुग में सब पद्मापद्म भाग्यशाली हैं। अब तुमको ज्ञान का तीसरा नेत्र मिलता है, जिससे तुम लक्ष्मी-नारायण जैसे बनते हो। ज्ञान तो एक ही बार मिलता है। भक्ति में तो धक्के खाते हैं। अन्धियारा है। ज्ञान है दिन, दिन में धक्के नहीं खाते। बाप कहते हैं भल घर में गीता पाठशाला खोलो। बहुत ऐसे हैं जो कहते हैं हम तो नहीं उठाते, दूसरों के लिए जगह देते हैं। यह भी अच्छा।

यहाँ बहुत साइलेन्स होनी चाहिए। यह है होलीएस्ट ऑफ होली क्लास। जहाँ शान्ति में तुम बाप को याद करते हो। हमको अब शान्तिधाम जाना है, इसलिए बाप को बहुत प्यार से याद करना है। सतयुग में 21 जन्म के लिए तुम सुख-शान्ति दोनों पाते हो। बेहद का बाप है बेहद का वर्सा देने वाला। तो ऐसे बाप को फालो करना चाहिए। अहंकार नहीं आना चाहिए, वह गिरा देता है। बहुत धैर्यवत अवस्था चाहिए। हठ नहीं। देह-अभिमान को हठ कहा जाता है। बहुत मीठा बनना है। देवतायें कितने मीठे हैं, कितनी कशिश होती है। बाप तुमको ऐसा बनाते हैं। तो ऐसे बाप को कितना याद करना चाहिए। तो बच्चों को यह बातें बार-बार सिमरण कर हर्षित होना चाहिए। इनको तो निश्चय है कि हम शरीर छोड़ यह (लक्ष्मी-नारायण) बनेंगे। एम ऑब्जेक्ट का चित्र पहले-पहले देखना चाहिए। वह तो पढ़ाने वाले देहधारी टीचर होते हैं। यहाँ पढ़ाने वाला निराकार बाप है, जो आत्माओं को पढ़ाते हैं। यह चिंतन करने से ही खुशी होती है। इनको यह नशा रहता होगा कि ब्रह्मा सो विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा कैसे बनते हैं। यह वन्डरफुल बातें तुम ही सुनकर धारण कर फिर सुनाते हो। बाप तो सबको विश्व का मालिक बनाते हैं। बाकी यह समझ सकते हैं कि राजाई के लायक कौन-कौन बनेंगे। बाप का फ़र्ज है बच्चों को ऊंचा उठाना। बाप सबको विश्व का मालिक बनाते हैं। बाप कहते हैं मैं विश्व का मालिक नहीं बनता हूँ। बाप इस मुख द्वारा बैठ नॉलेज सुनाते हैं। आकाशवाणी कहते हैं परन्तु अर्थ नहीं समझते। सच्ची आकाशवाणी तो यह है जो बाप ऊपर से आकर इस गऊमुख द्वारा सुनाते हैं। इस मुख द्वारा वाणी निकलती है।

बच्चे बहुत मीठे होते हैं। कहते हैं बाबा आज टोली खिलाओ। झझी (बहुत) टोली बच्चे। अच्छे बच्चे कहेंगे हम बच्चे भी हैं तो हम सर्वेन्ट भी हैं। बाबा को बहुत खुशी होती है बच्चों को देखकर। बच्चे जानते हैं समय बहुत थोड़ा है। इतने जो बाम्ब्स बनाये हैं, वह ऐसे ही फेंक देंगे क्या? जो कल्प पहले हुआ था सो फिर भी होगा। समझते हैं विश्व में शान्ति हो। परन्तु ऐसे तो हो न सके। विश्व में शान्ति तुम स्थापन करते हो। तुमको ही विश्व के बादशाही की प्राइज़ मिलती है। देने वाला है बाप। योगबल से तुम विश्व की बादशाही लेते हो। शारीरिक बल से विश्व का विनाश होता है। साइलेन्स से तुम विजय पाते हो। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) अपनी अवस्था बहुत धैर्यवत बनानी है। बाप को फालो करना है। किसी भी बात में अंहकार नहीं दिखाना है। देवताओं जैसा मीठा बनना है।

2) सदा हर्षित रहने के लिए ज्ञान का सिमरण करते रहो। विचार सागर मंथन करो। हम भगवान् के बच्चे भी हैं तो सर्वेन्ट भी हैं – इसी स्मृति से सेवा पर तत्पर रहो।

वरदान:-

हर घड़ी को अन्तिम घड़ी समझ सदा रूहानी मौज में रहने वाली विशेष आत्मा भव

संगमयुग रूहानी मौजों में रहने का युग है इसलिए हर घड़ी रूहानी मौज का अनुभव करते रहो, कभी किसी भी परिस्थिति या परीक्षा में मूंझना नहीं क्योंकि यह समय अकाले मृत्यु का है। थोड़ा समय भी अगर मौज के बजाए मूंझ गये और उसी समय अन्तिम घड़ी आ जाए तो अन्त मती सो गति क्या होगी इसलिए एवररेडी का पाठ पढ़ाया जाता है। एक सेकण्ड भी धोखा देने वाला हो सकता है इसलिए स्वयं को विशेष आत्मा समझकर हर संकल्प, बोल और कर्म करो और सदा रूहानी मौज में रहो।

स्लोगन:-

अचल बनना है तो व्यर्थ और अशुभ को समाप्त करो।

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