Bkvarta

18-07-2019

18-07-2019 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन


“मीठे बच्चे – शान्तिधाम पावन आत्माओं का घर है, उस घर में चलना है तो सम्पूर्ण पावन बनोˮ

प्रश्नः-

बाप सभी बच्चों से कौन-सी गैरन्टी करते हैं?

उत्तर:-

मीठे बच्चे, तुम मुझे याद करो तो मैं गैरन्टी करता हूँ कि बिगर सज़ा खाये तुम मेरे घर में चलेंगे। तुम एक बाप से दिल लगाओ, इस पुरानी दुनिया को देखते भी नहीं देखो, इस दुनिया में रहते पवित्र बनकर दिखाओ, तो बाबा तुम्हें विश्व की बादशाही अवश्य देंगे।

ओम् शान्ति।

रूहानी बच्चों से रूहानी बाप पूछ रहे हैं, यह तो बच्चे जानते हैं बाप आया है हम बच्चों को अपने घर ले जाने लिए, अब घर जाने की दिल होती है? वह है सब आत्माओं का घर। यहाँ सब जीव आत्माओं का घर एक नहीं है। यह तो समझते हो बाप आया हुआ है। निमंत्रण पर बुलाया है बाप को। हमको घर अर्थात् शान्तिधाम ले चलो। अब बाप कहते हैं अपने दिल से पूछो – हे आत्मायें, तुम पतित कैसे चल सकेंगी? पावन तो जरूर बनना है। अब घर चलना है और तो कोई बात नहीं कहते। भक्ति मार्ग में तुमने इतना समय पुरूषार्थ किया है, किसके लिए? मुक्ति के लिए। तो अब बाप पूछते हैं घर चलने का विचार है? बच्चे कहते – बाबा इसके लिए ही तो इतनी भक्ति की है। यह भी जानते हो जो भी जीव आत्मायें हैं, सबको ले जाना है। परन्तु पवित्र बनकर घर जाना है फिर पवित्र आत्मायें ही पहले-पहले आती हैं। अपवित्र आत्मायें तो घर में रह नहीं सकती। अभी जो भी करोड़ों आत्मायें हैं, सबको घर जरूर जाना है। उस घर को शान्तिधाम वा वानप्रस्थ कहा जाता है। हम आत्माओं को पावन बनकर पावन शान्तिधाम जाना है। बस। कितनी सहज बात है। वह है पावन शान्तिधाम आत्माओं का। वह है पावन सुखधाम जीव आत्माओं का। यह है पतित दु:खधाम जीव आत्माओं का। इसमें मूँझने की तो बात ही नहीं। शान्तिधाम जहाँ सब पवित्र आत्मायें निवास करती हैं। वह है आत्माओं की पवित्र दुनिया – वाइसलेस, इनकारपोरियल वर्ल्ड। यह पुरानी दुनिया है सब जीव आत्माओं की। सब पतित हैं। अब बाप आये हैं आत्माओं को पावन बनाकर, पावन दुनिया शान्तिधाम में ले जाने। फिर जो राजयोग सीखते हैं वही पावन सुखधाम में आयेंगे। यह तो बहुत सहज है, इसमें कोई भी बात का विचार नहीं करना है। बुद्धि से समझना है। हम आत्माओं का बाप आया हुआ है, हमको पावन शान्तिधाम में ले जाने। वहाँ जाने का रास्ता जो हम भूल गये थे, सो अब बाप ने बताया है। कल्प-कल्प मैं ऐसे ही आकर कहता हूँ – हे बच्चे, मुझ शिवबाबा को याद करो। सर्व का सद्गति दाता एक सतगुरू है। वही आकर बच्चों को पैगाम अथवा श्रीमत देते हैं कि बच्चों अभी तुमको क्या करना है? आधाकल्प तुमने बहुत भक्ति की है, दु:ख उठाया है। खर्चा करते-करते कंगाल बन गये हो। आत्मा भी सतोप्रधान से तमोप्रधान बन गई है। बस, यह थोड़ी बात ही समझने की है। अब घर चलना है वा नहीं? हाँ बाबा, जरूर चलना है। वह हमारा स्वीट साइलेन्स होम है। यह भी समझते हो बरोबर अभी हम पतित हैं इसलिए जा नहीं सकते हैं। अब बाप कहते हैं मुझे याद करो तो तुम्हारे पाप कट जायेंगे। कल्प-कल्प यही पैगाम देता हूँ। अपने को आत्मा समझो, यह देह तो खलास हो जानी है। बाकी आत्माओं को वापिस जाना है। उनको कहते हैं निराकारी दुनिया। सब निराकारी आत्मायें वहाँ रहती हैं। वह घर है आत्माओं का। निराकार बाप भी वहाँ रहते हैं। बाप आते हैं सबसे पिछाड़ी में क्योंकि फिर सबको वापिस ले जाना है। एक भी पतित आत्मा रहती नहीं है, इसमें कोई मूँझने वा तकलीफ की बात नहीं है। गाते भी हैं हे पतित-पावन आकर हमको पावन बनाए साथ ले चलो। सबका बाप है ना। फिर जब हम नई दुनिया में पार्ट बजाने आते हैं तो बहुत थोड़े रहते हैं। बाकी इतनी करोड़ आत्मायें कहाँ जाकर रहती हैं? यह भी जानते हो सतयुग में थोड़ी जीव आत्मायें थी, छोटा झाड़ था फिर वृद्धि को पाया है। झाड़ में अनेक धर्मों की वैराइटी है। उसको ही कल्प वृक्ष कहा जाता है। कुछ भी अगर नहीं समझते हो तो पूछ सकते हो। कई कहते हैं – बाबा, हम कल्प की आयु 5 हज़ार वर्ष कैसे मानें? अरे, बाप तो सत्य ही सुनाते हैं। चक्र का हिसाब भी बताया है।

इस कल्प के संगम पर ही बाप आकर दैवी राजधानी स्थापन करते हैं, जो अभी नहीं है। सतयुग में फिर एक दैवी राजधानी होगी। इस समय तुमको रचता और रचना का ज्ञान सुनाते हैं। बाप कहते हैं मैं कल्प-कल्प, कल्प के संगमयुगे आता हूँ। नई दुनिया की स्थापना करता हूँ। पुरानी दुनिया खत्म हो जानी है। ड्रामा प्लैन अनुसार, नई से पुरानी, पुरानी से नई बनती है। इसके 4 भाग भी पूरे हैं जिसको स्वास्तिका भी कहते हैं परन्तु समझते कुछ भी नहीं हैं। भक्तिमार्ग में तो जैसे गुड़ियों का खेल खेलते रहते हैं। अथाह चित्र हैं, दीपमाला पर खास दुकान निकालते हैं, अनेकानेक चित्र हैं। अभी तुम समझ गये हो एक है शिवबाबा और हम बच्चे। फिर यहाँ आओ तो लक्ष्मी-नारायण का राज्य, फिर राम-सीता का राज्य, फिर बाद में और-और धर्म आते हैं, जिससे तुम बच्चों का कनेक्शन ही नहीं है। वह अपने-अपने समय पर आते हैं फिर सबको वापिस जाना है। तुम बच्चों को भी अब घर जाना है। यह सारी दुनिया विनाश होनी है। अब इसमें क्या रहना है। इस दुनिया से दिल ही नहीं लगती। दिल लगानी है एक माशुक से, वह कहते हैं मुझ एक के साथ दिल लगाओ तो तुम पावन बनेंगे। अब बहुत गई थोड़ी रही, टाइम जाता रहता है। योग में नहीं रहे होंगे तो फिर अन्त में वह बहुत पश्चाताप् करेंगे, सजा खायेंगे, पद भी भ्रष्ट हो जायेगा। यह भी तुमको अभी मालूम पड़ा है कि अपना घर छोड़े हमको कितना समय हुआ है। घर जाने लिए ही तो माथा मारते हैं ना। बाप भी घर में ही मिलेगा। सतयुग में तो नहीं मिलेगा। मुक्तिधाम में जाने के लिए मनुष्य कितनी मेहनत करते हैं। उसको कहा जाता है भक्ति मार्ग। अभी भक्ति मार्ग खलास होना है ड्रामा अनुसार। अभी मैं तुमको घर ले जाने के लिये आया हूँ। जरूर ले जाऊंगा। जितना जो पावन बनेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे। इसमें मूँझने की बात ही नहीं। बाप कहते हैं – बच्चे तुम मुझे याद करो, मैं गैरन्टी करता हूँ तुम बिगर सजा खाये घर चले जायेंगे। याद से तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। अगर याद नहीं करेंगे तो सजायें खानी पड़ेगी, पद भी भ्रष्ट हो जायेगा। हर 5 हज़ार वर्ष बाद मैं यही आकर समझाता हूँ। मैं अनेकानेक बार आया हूँ तुमको वापिस ले जाने। तुम बच्चे ही हार-जीत का पार्ट बजाते हो, फिर मैं आता हूँ ले जाने। यह है पतित दुनिया, इसलिए गाते भी हैं पतित-पावन आओ, हम विकारी पतित हैं, आकर निर्विकारी पावन बनाओ। यह है विकारी दुनिया। अभी तुम बच्चों को सम्पूर्ण निर्विकारी बनना है। जो पीछे आते हैं वह सजा खाकर जाते हैं इसलिए फिर आते भी ऐसी दुनिया में हैं जहाँ दो कला कम हो जाती हैं। उनको सम्पूर्ण पवित्र नहीं कहेंगे इसलिए अब पुरूषार्थ भी पूरा करना चाहिए। ऐसा न हो कि कम पद हो जाए। भल रावण राज्य नहीं है परन्तु पद तो नम्बरवार है ना। आत्मा में खाद पड़ती है तो फिर उसको शरीर भी ऐसा मिलेगा। आत्मा गोल्डन एजेड से सिलवर एजेड बन जाती है। चांदी की खाद आत्मा में पड़ती है फिर दिन-प्रतिदिन जास्ती छी-छी खाद पड़ती है मुलम्मे की। बाप बहुत अच्छी रीति समझाते हैं। कोई नहीं समझते हैं तो हाथ उठाओ। जिसने 84 जन्मों का चक्र लगाया है, उनको ही समझायेंगे। बाप कहते हैं इनके 84 जन्मों के अन्त में मैं आकर प्रवेश करता हूँ। इनको ही फिर पहले नम्बर में आना है। जो पहले था, वह लास्ट में है। उनको ही पहले नम्बर में जाना है, जो बहुत जन्मों के अन्त में पतित बन गया है, मैं पतित-पावन उनके ही शरीर में आता हूँ, उनको पावन बनाता हूँ। कितना क्लीयर कर समझाता हूँ।

बाप कहते हैं मुझे याद करो तो तुम्हारे पाप भस्म होंगे। गीता का ज्ञान तो तुमने बहुत सुना और सुनाया है परन्तु उनसे भी तुमने सद्गति को नहीं पाया। बहुत सन्यासियों ने तुमको मीठी-मीठी आवाज़ से शास्त्र सुनाये, जिस आवाज़ को सुनकर बड़े-बड़े आदमी जाकर इकट्ठे होते हैं। कनरस है ना। भक्ति मार्ग है ही कनरस। इसमें तो आत्मा को बाप को याद करना है। भक्ति मार्ग अब पूरा होता है। बाप कहते हैं मैं तुम बच्चों को ज्ञान देने आया हूँ, जो कोई नहीं जानते। मैं ही ज्ञान का सागर हूँ। ज्ञान कहा जाता है नॉलेज को। तुमको सब कुछ पढ़ाते हैं। 84 का चक्र भी समझाते हैं, तुम्हारे में सारी नॉलेज है। स्थूलवतन से सूक्ष्मवतन क्रास कर फिर मूलवतन में जाते हो। पहले-पहले है लक्ष्मी-नारायण की डिनायस्टी। वहाँ विकारी बच्चे नहीं होते, रावण राज्य ही नहीं। योगबल से सब कुछ होता है, तुमको साक्षात्कार होता है – अब बच्चा बन गर्भ महल में जाना है। खुशी से जाते हैं। यहाँ तो मनुष्य कितना रोते चिल्लाते हैं। यहाँ तो गर्भ जेल में जाते हैं ना। वहाँ रोने पीटने की बात नहीं। शरीर तो बदलना जरूर है। जैसे सर्प का मिसाल है, इसमें मूँझने की बात ही नहीं। जास्ती पूछने का रहता नहीं है। एकदम पावन बनने के पुरुषार्थ में लग जाना चाहिए। बाप को याद करना मुश्किल होता है क्या! बाप के सामने बैठे हो ना। मैं तुम्हारा बाप तुमको सुख का वर्सा देता हूँ। तुम यह एक अन्तिम जन्म याद में नहीं रह सकते हो! यहाँ अच्छी रीति समझते भी हैं फिर घर में जाकर स्त्री आदि का चेहरा देखते हैं तो माया खा जाती है। बाप कहते हैं कोई में भी ममत्व नहीं रखो। वह तो सब कुछ खत्म होना ही है। याद तो एक बाप को ही करना है। चलते फिरते बाप और अपनी राजधानी को याद करो। दैवीगुण भी धारण करने हैं। सतयुग में यह गन्दी चीजें मास आदि होता ही नहीं। बाप कहते हैं विकारों को भी छोड़ दो। हम तुमको विश्व की बादशाही देता हूँ, कितनी आमदनी होती है। तो क्यों नहीं पवित्र रहेंगे। सिर्फ एक जन्म पवित्र रहने से कितनी भारी आमदनी हो जाती है। भल इकट्ठे रहो, ज्ञान तलवार बीच में हो। पवित्र रह दिखाया तो सबसे ऊंच पद पायेंगे क्योंकि बाल ब्रह्मचारी ठहरे। फिर नॉलेज भी चाहिए। औरों को आप समान बनाना है। सन्यासियों को दिखाना है कि कैसे हम इकट्ठे रहते पवित्र रहते हैं। तो समझेंगे इनमें तो बड़ी ताकत है। बाप कहते हैं इस एक जन्म पवित्र रहने से 21 जन्म तुम विश्व के मालिक बनेंगे। कितनी बड़ी प्राइज़ मिलती है तो क्यों नहीं पवित्र रह दिखायेंगे। टाइम ही बाकी थोड़ा है। आवाज़ भी होता रहेगा, अखबार में भी पड़ेगा। रिहर्सल तो देखी है ना। एक एटम बॉम से क्या हाल हो गया। अभी तक हॉस्पिटल में पड़े हैं। अभी तो ऐसे बॉम्ब्स आदि बनाते हैं जो कोई तकलीफ नहीं, फट से खत्म। और यह रिहर्सल होकर फिर फाइनल होगा। देखेंगे फट से मरते हैं वा नहीं? फिर और युक्ति रचेंगे। हॉस्पिटल आदि होंगी नहीं। कौन बैठ खिदमत (सेवा) करेंगे। कोई ब्राह्मण आदि खिलाने वाला नहीं रहेगा। बॉम छोड़ा और खलास। अर्थ क्वेक में सब दब जायेंगे। देरी नहीं लगेगी। यहाँ ढेर मनुष्य हैं। सतयुग में बहुत थोड़े होते हैं। तो इतने सब कैसे विनाश होंगे! आगे चल देखना है, वहाँ तो शुरू में 9 लाख हैं।

फ़कीर भी तुम हो, साहेब भी तुमको प्यारा है। अभी सबको छोड़ अपने को आत्मा समझ लिया है, ऐसे फ़कीरों को बाप प्यारा लगता है। सतयुग में बहुत छोटा-सा झाड़ होगा। बातें तो बहुत समझाते हैं। जो भी एक्टर्स हैं, सब आत्मायें अविनाशी हैं, अपना-अपना पार्ट बजाने आती हैं। कल्प-कल्प तुम ही आकर बाप से स्टूडेण्ट बन पढ़ते हो। जानते हो बाबा हमको पवित्र बनाकर साथ ले जायेंगे। बाबा भी ड्रामा अनुसार बंधायमान हैं, सबको वापिस जरूर ले जायेंगे इसलिए नाम ही है पाण्डव सेना। तुम पाण्डव क्या कर रहे हो? तुम बाप से राज्य भाग्य ले रहे हो, हूबहू कल्प पहले मिसल। नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) बाप का प्यारा बनने के लिए पूरा फ़कीर बनना है। देह को भी भूल स्वयं को आत्मा समझना ही फ़कीर बनना है। बाप से बड़े ते बड़ी प्राइज़ लेने के लिए सम्पूर्ण पावन बनकर दिखाना है।

2) वापस घर जाना है इसलिए पुरानी दुनिया से दिल नहीं लगानी है। एक माशूक से ही दिल लगानी है। बाप और राजधानी को याद करना है।

वरदान:-

अपनी पावरफुल स्थिति में स्थित रह मन्सा द्वारा सेवा करने वाले नम्बरवन सेवाधारी भव

यदि किसी को वाणी की सेवा का चांस नहीं मिलता तो भी मन्सा सेवा का चांस हर समय है ही। पावरफुल और सबसे बड़े से बड़ी सेवा मन्सा सेवा है। वाणी की सेवा सहज है लेकिन मन्सा सेवा के लिए पहले अपने को पावरफुल बनाना पड़ता है। वाणी की सेवा तो स्थिति नीचे ऊपर होते भी कर लेंगे लेकिन मन्सा सेवा ऐसे नहीं हो सकती। जो अपनी श्रेष्ठ स्थिति द्वारा सेवा करते हैं वही नम्बरवन सेवाधारी फुल मार्क्स ले सकते हैं।

स्लोगन:-

लौकिक कार्य करते अलौकिकता का अनुभव करना ही सरेन्डर होना है।

admin

Related post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *