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महत्वपूर्ण खबरे

 

19 मई (आबूरोड) आध्यात्मिकता और भौतिकता के संगम से होगा विश्व परीवर्तन.

19 मई (आबूरोड) आध्यात्मिकता और भौतिकता के संगम से होगा विश्व परीवर्तन. केंद्रीय मंत्री कलराज मिश्र. संस्था के 80 वर्ष कार्यक्रम में वक्तव्य.Read more…

18 मई (गोरखपूर) मुख्यमंत्री महोदय का सम्मान.

18 मई (गोरखपूर) मुख्यमंत्री महोदय का सम्मान. मा. आदित्य योगी जी मुख्यमंत्री चुने जाने पर ब्रह्माकुमारीज् की ओरसे किया सम्मान.Read more…

17 मई (लखनौ) उपमुख्यमंत्री महोदय का सम्मान.

17 मई (लखनौ) उपमुख्यमंत्री महोदय का सम्मान. डॉ. दिनेश शर्माजी उपमुख्यमंत्री चुने जाने पर ब्रह्माकुमारीज् की ओरसे किया सम्मान.Read more…

अन्य ख़बरे

24-01-18

24-01-18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन “मीठे बच्चे – तुम राजऋषि हो, तुम्हें बेहद का बाप सारी पुरानी दुनिया का सन्यास सिखलाते हैं जिससे तुम राजाई पद पा सको” प्रश्न:…Read more…

युवा शिविर का सफल आयोजन.

त्रिनिदाद) युवा शिविर का सफल आयोजन. टोका त्रिनिदाद मेंे हासन्ना बीच रिसोर्ट पर युवा शिविर का आयोजन किया गया. Read more…

सफल रही ईश्वरीय सेवा यात्रा.

(नैरोबी) सफल रही ईश्वरीय सेवा यात्रा. ब्र.कु. चंद्रिका बहन समवेत भाई बहनोंने नैरोबी निवासीयों को किया ईश्वरीय ज्ञान से भरपूरRead more…

 

आज का मुरली प्रवचन

आज का मुरली प्रवचन सुबह 7 से 8 बजे तक देखीए आज     

   01-11-2019 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

 


 

“मीठे बच्चे – अपने ऊपर पूरी नज़र रखो, कोई भी बेकायदे चलन नहीं चलना, श्रीमत का उल्लंघन करने से गिर जायेंगे”

 

प्रश्न:

 

पद्मापद्मपति बनने के लिए कौन-सी खबरदारी चाहिए?

 

उत्तर:

 

सदैव ध्यान रहे – जैसा कर्म हम करेंगे हमें देख और भी करने लगेंगे। किसी भी बात का मिथ्या अहंकार न आये। मुरली कभी भी मिस न हो। मन्सा-वाचा-कर्मणा अपनी सम्भाल रखो। यह आंखें धोखा न दें तो पद्मों की कमाई जमा कर सकेंगे। इसके लिए अन्तर्मुखी होकर बाप को याद करो और विकर्मों से बचे रहो।

 

ओम् शान्ति।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:

 

1) बाप की आज्ञा अनुसार हर कार्य करना है। कभी भी श्रीमत का उल्लंघन न हो तब ही सर्व मनोकामनायें बिना मांगे पूरी होंगी। ध्यान दीदार की इच्छा नहीं रखनी है, इच्छा मात्रम् अविद्या बनना है।

 

2) आपस में मिलकर झरमुई झगमुई (एक दूसरे का परचिंतन) नहीं करना है। अन्तर्मुख हो अपनी जांच करनी है कि हम बाबा की याद में कितना समय रहते हैं, ज्ञान का मंथन अन्दर चलता है?

 

वरदान:

 

बिन्दी रूप में स्थित रह औरों को भी ड्रामा के बिन्दी की स्मृति दिलाने वाले विघ्न-विनाशक भव

 

जो बच्चे किसी भी बात में क्वेश्चन मार्क नहीं करते, सदा बिन्दी रूप में स्थित रह हर कार्य में औरों को भी ड्रामा की बिन्दी स्मृति में दिलाते हैं – उन्हें ही विघ्न-विनाशक कहा जाता है। वह औरों को भी समर्थ बनाकर सफलता की मंजिल के समीप ले आते हैं। वह हद की सफलता की प्राप्ति को देख खुश नहीं होते लेकिन बेहद के सफलतामूर्त होते हैं। सदा एक-रस, एक श्रेष्ठ स्थिति में स्थित रहते हैं। वह अपनी सफलता की स्व-स्थिति से असफलता को भी परिवर्तन कर देते हैं।

 

स्लोगन:

 

दुआयें लो, दुआयें दो तो बहुत जल्दी मायाजीत बन जायेंगे।

 

 


 

   बीकेवार्ता वेबपोर्टल : उदघाटन के ऐतिहासिक क्षण प्रकाशन शुभारम्भ दि 28 नवम्बर, 2009


  

बीकेवार्ता आर्टिकल बँक

बीकेवार्ता आर्टिकल बँक – ब्रहृमाकुमारीज वार्ता का अनोखा प्रयास  

आध्यात्मिक ज्ञान के आधार पर विभिन्न प्रकार के आर्टिकल्स्

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आर्टिकल बँक के उद्देश्य :

बहूतसे सेवाकेंद्र की तथा प्रेस के भाई बहनों की माँग रहती है की उन्हें नये विषय पर ब्राहृाकुमारीज् आर्टिकल्स की आवश्यकता रहती है. जैसे मन की शांती, जीवन में सुख शांती प्राप्त करने की बातें, तनाव मुक्त जीवन आदि विषयोंपर समाचार पत्रों के लिए तथा पढने के लिए तथा दुसरों को समझाने हेतू आर्टिकल्स चाहिए और वह भी हिंदी तथा अपनी प्रादेशिक/रिजनल भाषाओं में, बीकेवार्ता ने इस बात को देखते हूए बहनों तथा भाइयों की मांग को कुछ हद तक पूरी करने का प्रयास किया है, ज्ञानसागर परमात्मा से कुछ ज्ञान की अंजली को जनमाध्यमोंको देने हेतू ज्ञानांजली – बीकेवार्ता आर्टिकल बँक को शुरु किया है,

 

लेख डिपॉझिट करने वाले लेखकों के लिए सूचना 

0 जो लेखक भाई – बहन लिखने की क्षमता रखतें है तथा अपना लेख, विचारों से आध्यात्मिक क्रांती लाना चाहतें है वह अपना लेख इस बँक में डिपॉझिट कर सकतें है . इस बँक में केवल आध्यात्मिक विचारों तथा वैचारिक क्षमताओं को उजागर करनेवालें ही लेख स्विकारें जायेगे. उचित लेखों को लेखक के नाम सहित इस आर्टिकल्स बँक की लिस्ट में शामील किया जायेगा. 

 

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 विश्व पर्यावरण दिवस

संयुक्त राष्ट्र द्वारा सकारात्मक पर्यावरण कार्य हेतु दुनियाभर में मनाया जाने वाला ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ सबसे बड़ा उत्सव है। पर्यावरण और जीवन का अन्योन्याश्रित संबंध है तथापि हमें अलग से यह दिवस मनाकर पर्यावरण के संरक्षण, संवर्धन और विकास का संकल्प लेने की आवश्यकता पड़ रही है। यह चिंताजनक ही नहीं, शर्मनाक भी है। पर्यावरण प्रदूषण की समस्या पर सन् 1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने स्टाकहोम (स्वीडन) में विश्व भर के देशों का पहला पर्यावरण सम्मेलन आयोजित किया। इसमें 119 देशों ने भाग लिया और पहली बार एक ही पृथ्वी का सिद्धांत मान्य किया। इसी सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) का जन्म हुआ तथा प्रति वर्ष 5 जून को पर्यावरण दिवस आयोजित करके नागरिकों कोप्रदूषण की समस्या से अवगत कराने का निश्चय किया गया। तथा इसका मुख्य उद्देश्य पर्यावरण के प्रति जागरूकता लाते हुए राजनीतिक चेतना जागृत करना और आम जनता को प्रेरित करना था। उक्त गोष्ठी में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने ‘पर्यावरण की बिगड़ती स्थिति एवं उसका विश्व के भविष्य पर प्रभाव’ विषय पर व्याख्यान दिया था। पर्यावरण-सुरक्षा की दिशा में यह भारत का प्रारंभिक क़दम था। तभी से हम प्रति वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाते आ रहे हैं।

 


 

विचारपुष्प  –   जो संकल्प करो उसे बीच-बीच में दृढ़ता का ठप्पा लगाओ तो विजयी बन जायेंगे ! 

 [ विचारपुष्प का वीडिओ ] 


ब्रह्माकुमारीज खबरे -अन्य वेबसाइट पर 


संस्कार धन – बोध कथा  : मन का राजा 

राजा भोज वन में शिकार करने गए लेकिन घूमते हुए अपने सैनिकों से बिछुड़ गए और अकेले पड़ गए। वह एक वृक्ष के नीचे बैठकर सुस्ताने लगे। तभी उनके सामने से एक लकड़हारा सिर पर बोझा उठाए गुजरा। वह अपनी धुन में मस्त था। उसने राजा भोज को देखा पर प्रणाम करना तो दूर, तुरंत मुंह फेरकर जाने लगा।
भोज को उसके व्यवहार पर आश्चर्य हुआ। उन्होंने लकड़हारे को रोककर पूछा, ‘तुम कौन हो?’ लकड़हारे ने कहा, ‘मैं अपने मन का राजा हूं।’ भोज ने पूछा, ‘अगर तुम राजा हो तो तुम्हारी आमदनी भी बहुत होगी। कितना कमाते हो?’ लकड़हारा बोला, ‘मैं छह स्वर्ण मुद्राएं रोज कमाता हूं और आनंद से रहता हूं।’ भोज ने पूछा, ‘तुम इन मुद्राओं को खर्च कैसे करते हो?’ लकड़हारे ने उत्तर दिया, ‘मैं प्रतिदिन एक मुद्रा अपने ऋणदाता को देता हूं। वह हैं मेरे माता पिता। उन्होंने मुझे पाल पोस कर बड़ा किया, मेरे लिए हर कष्ट सहा। दूसरी मुद्रा मैं अपने ग्राहक असामी को देता हूं ,वह हैं मेरे बालक। मैं उन्हें यह ऋण इसलिए देता हूं ताकि मेरे बूढ़े हो जाने पर वह मुझे इसे लौटाएं।

तीसरी मुद्रा मैं अपने मंत्री को देता हूं। भला पत्नी से अच्छा मंत्री कौन हो सकता है, जो राजा को उचित सलाह देता है ,सुख दुख का साथी होता है। चौथी मुद्रा मैं खजाने में देता हूं। पांचवीं मुद्रा का उपयोग स्वयं के खाने पीने पर खर्च करता हूं क्योंकि मैं अथक परिश्रम करता हूं। छठी मुद्रा मैं अतिथि सत्कार के लिए सुरक्षित रखता हूं क्योंकि अतिथि कभी भी किसी भी समय आ सकता है। उसका सत्कार करना हमारा परम धर्म है।’ राजा भोज सोचने लगे, ‘मेरे पास तो लाखों मुद्राएं है पर जीवन के आनंद से वंचित हूं।’ लकड़हारा जाने लगा तो बोला, ‘राजन् मैं पहचान गया था कि तुम राजा भोज हो पर मुझे तुमसे क्या सरोकार।’ भोज दंग रह गए।

 


ब्रह्माकुमारीज् की प्रमुख खबरें –

 

 

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बोध कथा-

विचार की पवित्रता

एक राजा और नगर सेठ में गहरी मित्रता थी। वे रोज एक दूसरे से मिले बिना नहीं रह पाते थे। नगर सेठ चंदन की लकड़ी का व्यापार करता था। एक दिन उसके मुनीम ने बताया कि लकड़ी की बिक्री कम हो गई है। तत्काल सेठ के मन में यह विचार कौंधा कि अगर राजा की मृत्यु हो जाए, तो मंत्रिगण चंदन की लकडि़यां उसी से खरीदेंगे। उसे कुछ तो मुनाफा होगा। शाम को सेठ हमेशा की तरह राजा से मिलने गया। उसे देख राजा ने सोचा कि इस नगर सेठ ने उससे दोस्ती करके न जाने कितनी दौलत जमा कर ली है, ऐसा कोई नियम बनाना होगा जिससे इसका सारा धन राज खजाने में जमा हो जाए।
दोनों इसी तरह मिलते रहे, लेकिन पहले वाली गर्मजोशी नहीं रही। एक दिन नगर सेठ ने पूछ ही लिया, ‘पिछले कुछ दिनों से हमारे रिश्तों में एक ठंडापन आ गया है। ऐसा क्यों?’ राजा ने कहा, ‘मुझे भी ऐसा लग रहा है। चलो, नगर के बाहर जो महात्मा रहते हैं, उनसे इसका हल पूछा जाए।’ उन्होंने महात्मा को सब कुछ बताया। महात्मा ने कहा, ‘सीधी सी बात है। आप दोनों पहले शुद्ध भाव से मिलते रहे होंगे, पर अब संभवत: एक दूसरे के प्रति आप लोगों के मन में कुछ बुरे विचार आ गए हैं इसलिए मित्रता में पहले जैसा सुख नहीं रह गया।’ नगर सेठ और राजा ने अपने-अपने मन की बातें कह सुनाईं। महात्मा ने सेठ से कहा,’ तुमने ऐसा क्यों नहीं सोचा कि राजा के मन में चंदन की लकड़ी का आलीशान महल बनवाने की बात आ जाए? इससे तुम्हारा चंदन भी बिक जाता। विचार की पवित्रता से ही संबंधों में मिठास आती है। तुमने राजा के लिए गलत सोचा इसलिए राजा के मन में भी तुम्हारे लिए अनुचित विचार आया। गलत सोच ने दोनों के बीच दूरी बढ़ा दी। अब तुम दोनों प्रायश्चित करके अपना मन शुद्ध कर लो, तो पहले जैसा सुख फिर से मिलने लगेगा।’ 5

03/04/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन


“मीठे बच्चे – तुम दु:ख हर्ता सुख कर्ता बाप के बच्चे हो, तुम्हें मन्सा-वाचा-कर्मणा किसी को भी दु:ख नहीं देना है, सबको सुख दो”

प्रश्न:

तुम बच्चे मनुष्य से देवता बनते हो इसलिए तुम्हारी मुख्य धारणा क्या होनी चाहिए?

उत्तर:

तुम्हारे मुख से जो भी बोल निकलें – वह एक-एक बोल मनुष्यों को हीरे जैसा बना दें। तुम्हें बहुत मीठा बनना है, सबको सुख देना है। किसी को भी दु:ख देने का ख्याल न आये। तुम अभी ऐसी सतयुगी स्वर्ग की दुनिया में जाते हो जहाँ सदा सुख ही सुख है। दु:ख का नाम निशान नहीं। तो तुम्हें बाप की श्रीमत मिली है बच्चे, बाप समान दु:ख हर्ता सुख कर्ता बनो। तुम्हारा धन्धा ही है सबके दु:ख हरकर सुख देना।

गीत:-

इस पाप की दुनिया से …….  

ओम् शान्ति।

बच्चों ने यह गीत सुना। बच्चे जानते हैं कि हम पुरुषार्थ करते हैं – ऐसी दुनिया में जाने के लिए, जहाँ एक तो माया नहीं होती और कभी भी मन्सा-वाचा-कर्मणा कोई को कोई भी दु:ख नहीं देते इसलिए उनका नाम ही है स्वर्ग, पैराडाइज, बैकुण्ठ और बरोबर वहाँ के मालिक लक्ष्मी-नारायण का चित्र भी दिखाते हैं। प्रजा का तो चित्र नहीं दिखायेंगे। लक्ष्मी-नारायण का चित्र है, जिससे सिद्ध होता है कि उन्हों की राजधानी में जरूर ऐसे ही मनुष्य होंगे। भारत में ही यह स्वर्ग के मालिक थे, जहाँ दु:ख का नाम निशान नहीं रहता। मन्सा-वाचा-कर्मणा कोई भी किसको दु:ख नहीं देते। बाप भी कभी किसको दु:ख नहीं देते हैं। उनका नाम बाला है – दु:ख हर्ता सुख कर्ता। वह बैठ तुम बच्चों को पढ़ाते हैं। इस दुनिया में सभी मन्सा-वाचा-कर्मणा एक दो को दु:ख देने वाले हैं। वहाँ मन्सा-वाचा-कर्मणा सब सुख देने वाले हैं। परमपिता परमात्मा के सिवाए कोई भी स्वर्ग का मालिक बना नहीं सकता। बरोबर स्वर्ग था। यहाँ भी देखो साइन्स से क्या-क्या बनता रहता है। एरोप्लेन, मोटरें, महल आदि कैसे बन जाते हैं। वहाँ भी साइंस सारी काम में आती है। ऐसे नहीं जमीन से कोई बैकुण्ठ निकल आयेगा। जैसे दिखाते हैं द्वारिका समुद्र के नीचे चली गई। जो समुद्र के नीचे जायेगी वह तो गलकर खत्म हो जायेगी। नयेसिर सब कुछ बनना है तो बाप से जबकि हम बादशाही प्राप्त कर रहे हैं तो मन्सा-वाचा-कर्मणा किसके प्रति बुद्धि में दु:ख देने का ख्याल नहीं आना चाहिए। भल यह है ही माया का राज्य। मन्सा तूफान तो आयेंगे। बाकी दिल में किसको दु:ख देने का ख्याल भी नहीं आना चाहिए। इस समय सब एक दो को दु:ख ही देते हैं। समझते सुख हैं, परन्तु वह है दु:ख। बाप से सबको बेमुख करते हैं। यह भक्ति मार्ग भी ड्रामा में है। ड्रामा को कोई भी जानते ही नहीं। वह लोग समझते हैं हम यह शास्त्र आदि सुनाते हैं, यह भी ज्ञान देते हैं। जप तप आदि करने से मनुष्य मुक्ति जीवनमुक्ति को पा लेंगे। अनेक प्रकार के रास्ते बताते हैं। कहेंगे बहुत समय से भक्ति करते आये हैं तब तो भगवान आया है। हम भी कहते हैं भक्ति का जब अन्त होता है तब भगवान को आना होता है, आकर भक्ति का फल देते हैं। तो वह सब भक्ति की लाइन में चले जाते हैं। इसको ज्ञान नहीं कहेंगे। शास्त्रों के ज्ञान से सद्गति नहीं होती। सृष्टि के आदि मध्य अन्त का ज्ञान तो उन्हों को है ही नहीं। यह तुम जानते हो प्राचीन ज्ञान और योग से भारत स्वर्ग बना था, सो जरूर भगवान ही सिखलायेगा। मनुष्य तो राजयोग सिखला न सके। भगवान ने जो सहज राजयोग सिखलाया उनका बाद में शास्त्र बनाया है। यहाँ तो भगवान खुद बैठ नॉलेज समझाते हैं। गीता में सिर्फ एक भूल की है जो नाम बदली कर दिया है और समय भी दूसरा लिख दिया है।

तुम जानते हो अभी भगवान हमको ज्ञान और राजयोग सिखला रहे हैं। सृष्टि के आदि मध्य अन्त का ज्ञान और कोई शास्त्र में नहीं है। कल्प की आयु भी लम्बी चौड़ी कर दी है। मनुष्य तो वही शास्त्र पढ़ते रहते हैं। बाप ने समझाया है – यह सृष्टि रूपी झाड़ है। झाड़ में पहले थोड़े पत्ते फिर बढ़ते जाते हैं। भिन्न-भिन्न धर्म के पत्ते दिखाये जाते हैं। वास्तव में यह जो भी वेद शास्त्र हैं वह सब भगवत गीता के पत्ते हैं अर्थात् उनसे निकले हुए सब शास्त्र हैं। तुम देखते हो बरोबर नये झाड़ की स्थापना होती है। तूफान आदि में कोई तो झट मुरझा जाते हैं, गिर पड़ते हैं। तुम जानते हो अभी हमारे दैवी झाड़ का फाउन्डेशन लग रहा है। और जो धर्म स्थापक हैं वह यह नहीं जानते कि हम क्रिश्चियन धर्म का अथवा फलाने धर्म का फाउन्डेशन लगाते हैं। पीछे समझ में आता है कि फलाने ने यह फाउन्डेशन लगाया। यहाँ तो कांटों को फूल बनाना होता है। तुम जानते हो हमको तो देवता बनना है। सबको सुख देना है। किसको दु:ख देने का ख्याल भी नहीं आना चाहिए। एक-एक अक्षर मुख से ऐसा निकले जो मनुष्य को हीरे जैसा बना दे। बाप भी हमको ज्ञान सुनाते हैं, जिसको धारण करते-करते हम हीरे जैसा बन जाते हैं। वास्तव में टीचर किसको दु:ख क्यों देवे, वह तो पढ़ाते हैं। हाँ समझाया जाता है – अगर अच्छी रीति नहीं पढ़ेंगे तो 21 जन्म के लिए घाटा पड़ जायेगा। 21 जन्मों के लिए अब ही पुरुषार्थ करना है। बाप मिला है, जिसको ही भक्ति मार्ग में याद करते थे – हे भगवान। साधू सन्त आदि सब याद करते हैं। भगवान तो एक है। परन्तु वह कौन है – यह नहीं जानते। श्रीकृष्ण तो सतयुग में प्रिन्स था। उनको तो ऐसे कोई नहीं कहेंगे कि वह सर्व का दु:ख हर्ता सुख कर्ता है। वही श्रीकृष्ण की आत्मा जो सुख में थी, अब दु:ख में है। भगवान के लिए ऐसे नहीं कहेंगे ना। वह तो दु:ख सुख से न्यारा है। उनको मनुष्य का तन है नहीं। बाप जो स्थापना करते हैं, वहाँ सुख ही सुख है। तब गाया जाता है दु:ख हर्ता सुख कर्ता।

तुम जानते हो हम रावण के राज्य में आधाकल्प दु:खी थे। अल्पकाल का सुख रहता है बाकी दु:ख ही दु:ख है। जिसको सन्यासी लोग काग विष्टा समान सुख कहते हैं क्योंकि विकार से पैदा होते हैं ना। लेकिन कोई पवित्र प्रवृत्ति मार्ग भी होगा, जहाँ कोई भी विकार नहीं होगा। बरोबर वह सतयुग में था। उसका नाम ही है स्वर्ग। वह है पवित्र मार्ग, स्वर्ग। फिर पतित बनते हैं तो उनको कहा जाता है नर्क, भ्रष्टाचारी मार्ग। यह दु:ख सुख का खेल बना हुआ है। मनुष्यों को अभी-अभी सुख, अभी-अभी दु:ख। उनको यह मालूम ही नहीं कि स्वर्ग में सदा सुख होता है, दु:ख का नाम निशान भी नहीं रहता। यहाँ फिर सुख का नाम-निशान भी नहीं है। विकार में जाना – यह तो दु:ख ही है, तब तो सन्यासी भी सन्यास करते हैं परन्तु वह है निवृत्ति मार्ग। सतयुग में प्रवृत्ति मार्ग था, वह था शिवालय। देवी देवतायें, लक्ष्मी-नारायण आदि के जड़ चित्र मन्दिरों में भी कैसे ताज व तख्त से सजे हुए हैं। भारत ही है जिसमें राजा-रानी दैवी सप्रदाय थे, और कोई धर्म में ऐसे नहीं हैं। भल राजायें तो हुए हैं परन्तु डबल ताज नहीं है। सतयुग में शुरू से ही राजाई चलती है। आदि सनातन डबल सिरताज देवी-देवता धर्म था। वह धर्म कैसे स्थापन हुआ, यह सब बातें तुम बच्चे ही जानते हो। शिवबाबा की मत से तुम दु:ख हर्ता सुख कर्ता बनते हो। तुम्हारा धन्धा ही यह है – सबका दु:ख हरकर सुख देना। अगर तुम भी किसको दु:ख देंगे तो कौन कहेगा कि यह दु:ख हर्ता सुख कर्ता की सन्तान हैं। पहले मन्सा में ख्यालात आते हैं फिर एक्ट में आते हैं। तुम बच्चों को तो अति मीठा बनना है। भगवान पढ़ाते हैं तो जब तक चलन तुम्हारी दैवी नहीं होगी तो मनुष्य तुम पर विश्वास कैसे करेंगे। गीता में भी लिखा है भगवानुवाच मैं तुमको नर से नारायण बनाता हूँ। भगवान जरूर संगम पर होगा। भगवानुवाच – मैं तुमको राजयोग सिखाता हूँ तो जरूर पुरानी दुनिया का विनाश भी हुआ होगा। यह काम कोई कृष्ण का नहीं है। त्रिमूर्ति दिखाते हैं परन्तु शिव को उड़ा दिया है। फिर कहते हैं ब्रह्मा को तो 3 मुख होते हैं। यह एक मुख वाला ब्रह्मा कहाँ से आया। अब मनुष्य को 3 मुख कैसे होंगे। बाप कहते हैं तुम मेरे समझू सयाने बच्चे हो। तुम ही विश्व पर राज्य करते थे। अब बाबा तुमको देही-अभिमानी बना रहे हैं। अब अपने को आत्मा समझो। मुक्तिधाम में सबको अशरीरी बनाए भेज देते हैं। यहाँ आकर तुमने यह शरीर धारण किया है। शरीर धारण करते-करते तुमको देह-अभिमान पक्का हो गया है। अभी तुम अपने को आत्मा समझो। मुझ आत्मा ने 84 जन्मों का पार्ट बजाया है। अभी यह अन्तिम जन्म है, ऐसे-ऐसे अपने साथ बातें करो। बाप कहते हैं अभी तुम देही-अभिमानी बनो, वापिस लौटना है, फिर तुम स्वर्ग में आयेंगे। अभी तुम मेरे द्वारा स्वर्ग की बादशाही लेने की मेहनत कर रहे हो। बाप को तुम भूल जाते हो तो खुशी का पारा नही चढ़ता है। शास्त्रों में कितनी भारी भूल कर दी है, शिवबाबा को ही उड़ा दिया है। पूजा करते भी कह देते हैं नाम रूप से न्यारा है। अरे तब पूजा किसकी करते हो! याद किसको करते हो! कहते भी हो आत्मा भ्रकुटी के बीच में रहती है। परन्तु आत्मा किसकी सन्तान है – यह नहीं जानते। मैं आत्मा भ्रकुटी के बीच में रह इस शरीर द्वारा पार्ट बजाता हूँ, इस पुतले को नचाता हूँ। कठपुतलियों का डांस होता है ना। वह दूसरे आदमी बैठ डांस कराते हैं। पहले-पहले तो देही-अभिमानी बनना है और बाप जो कुछ समझाते हैं उसको धारण करना है। प्रदर्शनी में पहले-पहले तो बाप का परिचय समझाना है कि यह सबका बाबा है, वह निराकार, दूसरा साकार प्रजापिता – दो बाबायें हैं। तुम जानते हो लौकिक बाप भी है, पारलौकिक बाप भी है। वह हद का, वह बेहद का। अब नई रचना रच रहे हैं। हम वर्सा शिवबाबा से लेते हैं। ऐसी-ऐसी बातें अपने साथ करके पक्का कर देना है। देही-अभिमानी बनना है। हम शिवबाबा के पास पढ़ने जाते हैं, परमपिता परमात्मा निराकार है। साकार है प्रजापिता ब्रह्मा। तुम हो प्रजापिता बह्मा के मुख वंशावली ब्राह्मण। तुमको ब्रह्मा ने एडाप्ट किया है। तुम हो गये नई रचना – ब्राह्मण। वह हैं पुराने जिस्मानी ब्राह्मण। वह जिस्मानी यात्रा कराते हैं। तुम रूहानी।

तुम बच्चे अभी श्रेष्ठ बन रहे हो। यह है ही ईश्वरीय मिशन – भ्रष्टाचारी से श्रेष्ठाचारी बनने की। मनुष्य तो बना न सकें। वास्तव में सच्ची-सच्ची सदाचार समिती तुम्हारी है। तुम्हारा लीडर देखो कौन है! बाप कहते हैं मैं फिर से राजयोग सिखलाने आया हूँ, यह वही संगमयुग है। अभी मनुष्य से देवता बनाता हूँ। तुम जानते हो हम शूद्र से अभी ब्राह्मण बन रहे हैं। ब्राह्मणों की है चोटी। ब्रह्मा भी चोटी है। ब्रह्मा में जो प्रवेश करते हैं, उनको इन आँखों से देख नहीं सकते। बाकी तो सबको देखते हैं, बुद्धि से जानते हैं, निराकार बाप हमको पढ़ाते हैं। ब्रह्मा को तो ब्राह्मण यहाँ चाहिए। सूक्ष्मवतन में हो न सकें। एडाप्ट करते हैं, व्यक्त ब्रह्मा सो अव्यक्त बनता है। यह बड़ी समझने की बातें हैं। पहले-पहले लक्ष्य को समझ लिया फिर भल कहाँ भी बैठ पढ़ सकते हैं। मुरली रोजाना सुननी पड़े। एक दिन भी मिस होने से बड़ा घाटा पड़ जाता है क्योंकि प्वाइंट्स बड़ी गुह्य, हीरे रत्न निकलते हैं। कोई फर्स्टक्लास रत्न निकला हो और मिस कर दिया तो घाटा पड़ जाए। रेगुलर स्टूडेन्ट बड़े एक्यूरेट होते हैं। अच्छी रीति पुरुषार्थ नहीं करेंगे तो ऊंच पद पा नहीं सकेंगे। यह तो बहुत ऊंची पढ़ाई है। सरस्वती को बैन्जों और कृष्ण को मुरली दी है। वास्तव में कृष्ण को भूल से दे दी है। है तो ब्रह्मा। तुम जानते हो यह शिवबाबा का मुख है। कृष्ण का और सरस्वती का तो कोई भी कनेक्शन नहीं है। सारी मूँझ कर दी है। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:

1) मैं आत्मा इस शरीर रूपी पुतले को नचा रही हूँ। मैं इससे अलग हूँ, ऐसा अभ्यास करते-करते देही-अभिमानी बनना है।

2) मुरली कभी भी मिस नहीं करनी है, रेग्युलर बनना है। पढ़ाई में बहुत-बहुत एक्यूरेट रहना है।

वरदान:

“एक बाप दूसरा न कोई”-इस स्थिति द्वारा सदा एकरस और लवलीन रहने वाले सहजयोगी भव

“एक बाप दूसरा न कोई”-जो बच्चे ऐसी स्थिति में सदा रहते हैं उनकी बुद्धि सार स्वरूप में सहज स्थित हो जाती है। जहाँ एक बाप है वहाँ स्थिति एकरस और लवलीन है। अगर एक के बजाए कोई दूसरा-तीसरा आया तो खिटखिट होगी इसलिए अनेक विस्तारों को छोड़ सार स्वरूप का अनुभव करो, एक की याद में एकरस रहो तो सहजयोगी बन जायेंगे।

स्लोगन:

दिल में सदा यही अनहद गीत बजता रहे कि मैं बाप की, बाप मेरा।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:

1) श्रीमत पर चलकर अपने ऊपर आपेही दया करनी है। सर्वोदया बन पतित दुनिया को पावन बनाना है।

2) अमृतवेले रूहानी धन्धा कर कमाई जमा करनी है। विचार सागर मंथन करना है। देही-अभिमानी बनने की मेहनत जरूर करनी है।

वरदान:

बाप के प्यार की पालना द्वारा सहज योगी जीवन बनाने वाले स्मृति सो समर्थी स्वरूप भव

सारे विश्व की आत्मायें परमात्मा को बाप कहती हैं लेकिन पालना और पढ़ाई के पात्र नहीं बनती हैं। सारे कल्प में आप थोड़ी सी आत्मायें अभी ही इस भाग्य के पात्र बनती हो। तो इस पालना का प्रैक्टिकल स्वरूप है-सहजयोगी जीवन। बाप बच्चों की कोई भी मुश्किल बात देख नहीं सकते। बच्चे खुद ही सोच-सोच कर मुश्किल बना देते हैं। लेकिन स्मृति स्वरूप के संस्कारों को इमर्ज करो तो समर्थी आ जायेगी।

स्लोगन:

सदा निश्चिंत स्थिति का अनुभव करना है तो आत्म-चिंतन और परमात्म-चिंतन करो।

 

05-06-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 


“मीठे बच्चे – तुम्हें किसी भी देहधारी के नाम रूप में नहीं फँसना है, तुम अशरीरी बन बाप को याद करो तो आयु बढ़ेगी, निरोगी बनते जायेंगे”

प्रश्न:

सेन्सीबुल बच्चों की मुख्य निशानियां क्या होंगी?

उत्तर:

जो सेन्सीबुल होंगे वह पहले स्वयं में धारणा कर फिर दूसरों को करायेंगे। बादल भरकर जाए वर्षा करेंगे। पढ़ाई के समय उबासी नहीं लेंगे। ब्राह्मणियों पर रेस्पान्सिबिल्टी है – यहाँ उन्हें ही लेकर आना है जो रिफ़्रेश होकर जाए फिर वर्सा करें। 2- यहाँ वही आने चाहिए जो योग में अच्छी तरह रहकर वायुमण्डल को पावरफुल बनाने में मदद करें। विघ्न न डाले। यहाँ आस-पास बड़ी शान्ति रहनी चाहिए। कोई भी प्रकार का आवाज न हो।

गीत:-

ओम् नमो शिवाए …  

ओम् शान्ति।

धारणा के लिए मुख्य सार:

1) सच्चे-सच्चे ब्राह्मण बन इस रूद्र ज्ञान यज्ञ की सम्भाल भी करनी है और साथ-साथ जैसे व्यक्त ब्रह्मा अव्यक्त बनता है, ऐसे अव्यक्त बनने का पुरूषार्थ करना है।

2) 21 जन्मों तक सुखी बनने के लिए इस एक जन्म में बाप से पावन रहने की प्रतिज्ञा करनी है। काम चिता को छोड़ ज्ञान चिता पर बैठना है। श्रीमत पर जरूर चलना है।

वरदान:

रूहानी सिम्पेथी द्वारा सर्व को सन्तुष्ट करने वाले सदा सम्पत्तिवान भव

आज के विश्व में सम्पत्ति वाले तो बहुत हैं लेकिन सबसे बड़े से बड़ी आवश्यक सम्पत्ति है सिम्पेथी। चाहे गरीब हो, चाहे धनवान हो लेकिन आज सिम्पेथी नहीं है। आपके पास सिम्पेथी की सम्पत्ति है इसलिए किसी को और भले कुछ भी नहीं दो लेकिन सिम्पेथी से सबको सन्तुष्ट कर सकते हो। आपकी सिम्पेथी ईश्वरीय परिवार के नाते से है, इस रूहानी सिम्पेथी से तन मन और धन की पूर्ति कर सकते हो।

स्लोगन:

हर कार्य में साहस को साथी बना लो तो सफलता अवश्य मिलेगी।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:

1) किसी भी बात में संशय उठाकर पढ़ाई नहीं छोड़नी है। बाप और वर्से को याद करना है।

2) एक बाप से ही सुनना है, बाकी जो पढ़ा है वह सब भूल जाना है। हियर नो ईविल, सी नो ईविल, टॉक नो ईविल…।

वरदान:

क्या, क्यों, ऐसे और वैसे के सभी प्रश्नों से पार रहने वाले सदा प्रसन्नचित्त भव

जो प्रसन्नचित आत्मायें हैं वे स्व के संबंध में वा सर्व के संबंध में, प्रकृति के संबंध में, किसी भी समय, किसी भी बात में संकल्प-मात्र भी क्वेश्चन नहीं उठायेंगी। यह ऐसा क्यों वा यह क्या हो रहा है, ऐसा भी होता है क्या? प्रसन्नचित आत्मा के संकल्प में हर कर्म को करते, देखते, सुनते, सोचते यही रहता है कि जो हो रहा है वह मेरे लिए अच्छा है और सदा अच्छा ही होना है। वे कभी क्या, क्यों, ऐसा- वैसा इन प्रश्नों की उलझन में नहीं जाते।

स्लोगन:

स्वयं को मेहमान समझकर हर कर्म करो तो महान और महिमा योग्य बन जायेंगे।

 

26/11/17 मधुबन “अव्यक्त-बापदादा” ओम् शान्ति 30-03-83


सहजयोगी बनने का साधन – अनुभवों की अथॉरिटी का आसन (कुमारियों के साथ मुलाकात)

आज बेहद ड्रामा के रचयिता बाप बेहद ड्रामा के वन्डरफुल संगमयुग के दिव्य दृश्य के अन्दर मधुबन के विशेष दृश्य को देख रहे हैं। मधुबन स्टेज पर हर घड़ी कितने दिलपसन्द रमणीक पार्ट चलते हैं। जिसको बापदादा दूर बैठे भी समीप से देखते रहते हैं। इस समय स्टेज के हीरो एक्टर कौन हैं? डबल पावन आत्मायें, श्रेष्ठ आत्मायें। लौकिक जीवन से भी पवित्र और आत्मा भी पवित्र। तो डबल पावन विशेष आत्माओं का हीरो पार्ट मधुबन स्टेज पर चलता हुआ देख बापदादा भी अति हर्षित होते हैं। क्या क्या प्लैन बनाते हो, क्या क्या संकल्प करते हो, कौन सी हलचल में आते हो, यह हिम्मत और हलचल दोनों ही खेल देख रहे थे। हिम्मत भी बहुत अच्छी रखते हो। उमंग-उल्लास भी बहुत आता है लेकिन साथ-साथ थोड़ा सा हाँ वा ना का मिक्स संकल्प भी रहता है। बापदादा हँसी का खेल देख रहे थे। चाहना बहुत श्रेष्ठ है कि दिखायेंगे, करके दिखायेंगे। लेकिन मन के उमंग की चाहना वा संकल्प चेहरे पर झलक के रूप में नहीं दिखाई देता है। शुद्ध संकल्प की चमक चेहरों पर चमकती हुई दिखाई दे, वह परसेन्टेज में देखा। यह क्यों? इसका कारण? शुभ संकल्प है लेकिन संकल्प में शक्ति कुछ मात्रा में है। संकल्प रूपी बीज तो है लेकिन शक्तिशाली बीज जो प्रत्यक्ष फल अर्थात् प्रत्यक्ष रूप में रौनक दिखाई दे, वह अभी और चाहिए।
सबसे ज्यादा चेहरे पर उमंग-उल्लास की रौनक वा चमक आने का साधन है – हर गुण, हर शक्ति, हर ज्ञान की प्वाइंट के अनुभवों से सम्पन्नता। अनुभव बड़े ते बड़ी अथॉरिटी है। अथॉरिटी की झलक चेहरे पर और चलन पर स्वत: ही आती है। बापदादा वर्तमान के हीरो पार्टधारियों को देखते हुए मुस्करा रहे थे। खुशी में नाच भी रहे हैं लेकिन कोई कोई नाचते हैं तो सारे वायुमण्डल को ही नचा देते हैं। उनकी एक्ट में रौनक दिखाई देती है। जिसको आप लोग कहते हैं कि रास करते-करते मचा लिया अर्थात् सभी को नचा लिया। तो ऐसी रौनक वाली झलक अभी और दिखानी है। उसका आधार सुन लिया। सुनने सुनाने वाले तो बन ही गये हो। साथ-साथ अनुभवी मूर्त बनने का विशेष पार्ट बजाओ। अनुभव की अथॉरिटी वाला कभी भी किसी प्रकार की माया के भिन्न-भिन्न रॉयल रूपों में धोखा नहीं खायेंगे। अनुभवी अथॉरिटी वाली आत्मा सदा अपने को भरपूर आत्मा अनुभव करेगी। निर्णय शक्ति, सहन शक्ति वा किसी भी शक्ति से खाली नहीं होंगे। जैसे बीज भरपूर होता है वैसे ज्ञान, गुण, शक्तियाँ सबसे भरपूर। इसको कहा जाता है मास्टर आलमाइटी अथॉरिटी। ऐसे के आगे माया झुकेगी न कि झुकायेगी। जैसे हद की अथॉरिटी वाले विशेष व्यक्तियों के आगे सब झुकते हैं ना क्योंकि अथॉरिटी की महानता सबको स्वत: ही झुकाती है। तो विशेष क्या देखा? अनुभव की अथॉरिटी की सीट पर अभी सेट हो रहे हैं। स्पीकर की सीट ले ली है लेकिन ”सर्व अनुभवों की अथॉरिटी का आसन” अभी यह लेना है। सुनाया था ना, दुनिया वालों का है सिंहासन और आप सबका है अथॉरिटी का आसन। इसी आसन पर सदा स्थित रहो। तो सहज योगी, सदा के योगी, स्वत: योगी हैं ही।
अभी तो अमृतवेले का दृश्य भी हँसने हँसाने वाला है। कोई निशाना लगाते-लगाते थक जाते हैं। कोई डबल झूलों में झूलते हैं। कोई हठयोगी बन करके बैठते हैं। कोई तो सिर्फ नेमीनाथ हो बैठते हैं। कोई-कोई लगन में मगन भी होते हैं। याद शब्द के अर्थ स्वरूप बनने में अभी विशेष अटेन्शन दो। योगी आत्मा की झलक चेहरे से अनुभव हो। जो मन में होता है वह मस्तक पर झलक जरूर रहती है। ऐसे नहीं समझना मन में तो हमारा बहुत है। मन की शक्ति का दर्पण चेहरा अर्थात् मुखड़ा है। कितना भी आप कहो कि हम खुशी में नाचते हैं लेकिन चेहरा उदास देख कोई नहीं मानेगा। खोया-खोया हुआ चेहरा और पाया हुआ चेहरा इसका अन्तर तो जानते हो ना! ”पा लिया” इसी खुशी की चमक चेहरे से दिखाई दे। खुश्क चेहरा नहीं दिखाई दे, खुशी का चेहरा दिखाई दे। बापदादा हीरो पार्टधारी बच्चों की महिमा भी गाते हैं। फिर भी आजकल की फैशनेबल दुनिया से, मन से, तन से किनारा कर बाप को सहारा तो बना दिया। इस दृढ़ संकल्प की बहुत-बहुत मुबारक। सदा इसी संकल्प में जीते रहो। बापदादा यह वरदान देते हैं। इसी श्रेष्ठ भाग्य की खुशी में, स्नेह के पुष्प भी चढ़ाते हैं। साथ-साथ हर बच्चा सम्पन्न बाप समान अथॉरिटी हो, इस शुद्ध संकल्प की विधि बताते हैं। बधाई भी देते हैं और विधि भी बताते हैं।
सभी ने समारोह तो मना लिया ना! सभी समारोह मनाते सम्पन्न बनने का लक्ष्य लेते हुए जा रहे हो ना! पहले वाले पुराने तो पुराने रहे लेकिन आप सुभान अल्ला हो जाओ। सबका फोटो तो निकला है ना। फोटो तो यादगार हो गया ना यहाँ। अब दीदी दादी भी देखेंगी कि अथॉरिटी के आसन पर कौन कौन कितने स्थित हुए! सेन्टर पर रहना भी कोई बड़ी बात नहीं लेकिन विशेष पार्टधारी बन पार्ट बजाना, यह है कमाल। जो सभी कहें कि इस ग्रुप की हर आत्मा बाप समान सम्पन्न स्वरूप है। खाली नहीं बनो। खाली चीज में हलचल होती है। सयाने बनो अर्थात् सम्पन्न बनो। सिर्फ कुमारियों के लिए नहीं है लेकिन सभी के लिए है। सम्पन्न तो सभी को बनना है ना। जो भी सभी आये हैं मधुबन की विशेष सौगात ”सर्व अनुभवों की अथॉरिटी का आसन” यह साथ में ले जाना। इस सौगात को कभी भी अपने से अलग नहीं करना। सबको सौगात है ना कि सिर्फ कुमारियों को है? मधुबन निवासियों को भी आज की यह सौगात है। चाहे कहाँ भी बैठे हैं लेकिन बाप के सम्मुख हैं।
आने वाले सर्व कमल पुष्प समान बच्चों को, मधुबन निवासियों को, चारों ओर के देश विदेश के बच्चों को और वर्तमान स्टेज के हीरो पार्टधारी श्रेष्ठ आत्माओं को, सभी को ‘अनुभवी भव’ के वरदान के साथ वरदाता बाप की याद और प्यार और नमस्ते।
कुमारियों ने विशेष संकल्प किया! विशेष संकल्प द्वारा विशेष आत्मायें बनीं? विशेष संकल्प क्या लिया? सदा महावीरनी बन विजयी रहेंगी, यही संकल्प लिया है ना! सदा विजयी, सदा महावीरनी या थोड़े समय के लिए लिया? इसके बाद कभी भी किसी प्रकार की माया नहीं आयेगी ना! आधाकल्प के लिए खत्म हुई, कभी संकल्पों का टक्कर तो नहीं होगा! कभी व्यर्थ संकल्प का तूफान तो नहीं आयेगा? अगर बार बार माया के वार से हार खाते तो कमजोर हो जाते हैं। जैसे कोई बार बार धक्का खाता तो उसकी हड्डी कमज़ोर हो जाती है ना। फिर प्लास्टर लगाना पड़ता इसलिए कभी भी कमज़ोर बन हार नहीं खाना। तो महावीरनी अर्थात् संकल्प किया और स्वरूप बन गये। ऐसे नहीं वहाँ जाकर देखेंगे, करेंगे…यह गें गें वाली नहीं। जो संकल्प लिया है उसमें दृढ़ रहना तो विजय का झण्डा लहरा जायेगा। इतने दृढ़ संकल्प वाली अपने अपने स्थान पर जायेंगी तो जय-जयकार हो जायेगी। संकल्प से सब सहज हो जाता है। जो संकल्प किया है उसे पानी देते रहना। हर मास अपनी रिज़ल्ट लिखना। कभी भी कमज़ोर संकल्प नहीं करना। यह संस्कार यहाँ खत्म करके जाना। आगे बढ़ेंगी, विजयी बनेंगी – यह दृढ़ संकल्प करके जाना। अच्छा।
सभी की आशायें पूरी हुई? कुमारियों की आशायें पूरी हुई तो माताओं की तो हुई पड़ी हैं। अभी आप लोग थोड़े आये हो इसलिए अच्छा चांस मिल गया। इस बारी सभी कुमारियों का उल्हना तो पूरा हुआ। कोई कम्पलेन्ट नहीं, सभी कम्पलीट होकर जा रही हो ना! अभी देखेंगे, नदियाँ कहाँ बहती हैं। तालाब बनती हैं, बड़ी नदी बनती हैं, छोटी बनती हैं या कुआं बनता है। तालाब से भी छोटा कुआं होता है ना। तो देखेंगे क्या बनती हैं! वह रिजल्ट आयेगी ना! कुमारियों को देखकर आता है इतने हैन्डस निकलें, माताओं को देखकर कहेंगे कि निकलना थोड़ा मुश्किल है। तो अब निर्विघ्न हैन्ड बनना। ऐसे नहीं सेवा भी करो और सेवा के साथ-साथ मेहनत भी लेते रहो, यह नहीं करना। सेवा के साथ अगर कम्पलेन्ट निकलती रहे तो सेवा का फल नहीं निकलता इसलिए निर्विघ्न हैन्ड बनना। ऐसे नहीं आप ही विघ्न रूप बन, दादी दीदी के सामने आते रहो, मददगार हैन्ड बनना। खुद सेवा नहीं लेना। तो सदा निर्विघ्न रहेंगे और सेवा को निर्विघ्न बढ़ायेंगे – ऐसा पक्का संकल्प करके जाना। अच्छा।
कुमारियों के ग्रुप से:-
आप सब कुमारियाँ अपने को विशेष आत्मायें समझती हो ना? विशेष आत्मायें अर्थात् विशेष कार्य के निमित्त। एक-एक विशेष कार्य के निमित्त बनी हुई हो। एक-एक कुमारी 21 कुल तारने वाली हैं। जब भी जहाँ भी आर्डर मिले तो हाजिर। ऐसे निर्विघ्न सेवाधारी हो ना! जिस समय जो भी सेवा मिले, हाजिर। सेवा करना अर्थात् प्रत्यक्ष फल खाना। जब प्रत्यक्षफल मिल जाता है, तो फल खाने से शक्ति आती है। प्रत्यक्षफल खाने से आत्मा शक्तिशाली बन जाती है। जब ऐसी प्राप्ति हो तो करनी चाहिए ना। लौकिक में तो एक मास नौकरी करेंगे फिर पीछे तनख्वाह मिलेगी। यहाँ तो प्रत्यक्षफल मिलता है। भविष्य तो जमा ही होता है लेकिन वर्तमान में भी मिलता है। तो ऐसे डबल फल मिलने वाला कार्य तो पहले करना चाहिए ना! कईयों को बापदादा, दादी-दीदी डायरेक्शन देते हैं सर्विस करो, श्रीमत पर करने से जिम्मेवार खुद नहीं रहते। अपने मन के लगाव से, कमजोरी से करते तो श्रेष्ठ नहीं बन सकते। ट्रायल में स्वयं भी सन्तुष्ट रहें और दूसरों को भी करें तो सर्टिफिकेट मिल जाता है। अपने को मिलाकर चलने का लक्ष्य हो। मुझे बदलना है। स्वयं को बदलने की भावना वाला सभी बातों में विजयी हो जाता है। दूसरा बदले यह देखने वाला धोखा खा लेते हैं इसलिए सदैव मुझे बदलना है, मुझे करना है, पहले हर बात में स्वयं को आगे करना है, अभिमान में नहीं – करने में आगे करो तो सफलता ही सफलता है।
पार्टियों से मुलाकात:- बापदादा ने बच्चों की विशेषता के गुण तो सुना ही दिये। जो बापदादा के समान सेवाधारी हैं उन बच्चों को बापदादा सदा कहाँ रखते हैं? (नयनों में) नयन सारे शरीर में सूक्ष्म हैं और नयनों में भी जो नूर है वह कितना सूक्ष्म है, बिन्दी है ना। तो बाप के नयनों में समाने वाले अर्थात् अति सूक्ष्म। अति न्यारे और बाप के प्यारे। ऐसे ही अनुभव करते हो ना। बहुत अच्छा चांस ड्रामा अनुसार मिला है। क्यों अच्छा कहते हैं? क्योंकि जितना बिजी रहेंगे उतना ही मायाजीत हो जायेंगे। बिजी रहने का अच्छा साधन मिला है ना। सेवा बिजी रहने का साधन है। चाहे किसी भी समय माया का विघ्न आया हुआ है लेकिन जब सेवा वाले सामने आयेंगे तो अपने को ठीक करके उनकी सेवा करेंगे। क्या भी होगा, तैयार होकर के ही मुरली सुनायेंगे ना! और सुनाते सुनाते स्वयं को भी सुना लेंगे। दूसरों की सेवा करने से स्वयं को भी मदद मिल जाती है इसलिए बहुत-बहुत श्रेष्ठ साधन मिला हुआ है। एक होता है अपना पुरुषार्थ करना, एक होता है दूसरे के सहयोग का साधन। तो डबल हो गया ना। प्रवृत्ति सम्भालते सेवा की जिम्मेवारी सम्भाल रहे हो, यह भी डबल लाभ हो गया। यह तो रास्ते चलते खुदा दोस्त द्वारा बादशाही मिल गई। डबल प्राप्ति, डबल जिम्मेवारी, लेकिन डबल जिम्मेवारी होते भी डबल लाइट समझने से कभी लौकिक जिम्मेवारी थकायेगी नहीं क्योंकि ट्रस्टी हो ना। ट्रस्टी को क्या थकावट। अपनी गृहस्थी, अपनी प्रवृत्ति समझेंगे तो बोझ है। अपना है ही नहीं तो बोझ किस बात का। पाण्डवों को कभी लौकिक व्यवहार, लौकिक वायुमण्डल में बोझ तो नहीं लगता? बिल्कुल न्यारे और प्यारे। बालक सो मालिक, ऐसा नशा रहता है? मालिकपन का नशा बेहद का है। बेहद का नशा बेहद चलेगा और हद का नशा हद तक चलेगा। सदा इस बेहद के नशे को स्मृति में लाओ कि क्या-क्या बाप ने दिया है, उस दिये हुए खजाने को सामने लाते हुए फिर अपने को देखो कि सर्व खजानों से सम्पन्न हुए हैं? अगर नहीं तो कौन सा खजाना और क्यों नहीं धारण हुआ है, फिर उसी प्रमाण से देखो और धारण करो। समय कौन सा है? बाप भी श्रेष्ठ, प्राप्ति भी श्रेष्ठ और स्वयं भी। जहाँ श्रेष्ठता है वहाँ जरूर प्राप्ति है ही। साधारणता है तो प्राप्ति भी साधारण। अच्छा !
प्रश्न:-
बाप को किन बच्चों पर बहुत नाज़ रहता है?
उत्तर:-
जो बच्चे कमाई करने वाले होते, ऐसे कमाई करने वाले बच्चों पर बाप को बहुत नाज़ रहता, एक-एक सेकेण्ड में पद्मों से भी ज्यादा कमाई जमा कर सकते हो। जैसे एक के आगे एक बिन्दी लगाओ तो 10 हो जाता, फिर एक बिन्दी लगाओ तो 100 हो जाता, ऐसे एक सेकण्ड बाप को याद किया, सेकण्ड बीता और बिन्दी लग गई, इतनी बड़ी कमाई अभी ही जमा करते हो फिर अनेक जन्म तक खाते रहेंगे।

वरदान:

एकाग्रता के अभ्यास द्वारा मन-बुद्धि को अनुभवों की सीट पर सेट करने वाले निर्विघ्न भव!

एकाग्रता की शक्ति सहज ही निर्विघ्न बना देती है। इसके लिए मन और बुद्धि को किसी भी अनुभव की सीट पर सेट कर दो। एकाग्रता की शक्ति स्वत: ही एक बाप दूसरा न कोई – यह अनुभूति कराती है। इससे सहज ही एकरस स्थिति बन जाती है। सर्व के प्रति कल्याण की वृत्ति रहती है, एकाग्रता के अभ्यास से भाई-भाई की दृष्टि रहती है। उसे कभी भी कोई कमजोर संस्कार, कोई आत्मा वा प्रकृति, किसी भी प्रकार की रॉयल माया अपसेट नहीं कर सकती।

स्लोगन:

सेकण्ड में विस्तार को सार में समाने का अभ्यास ही अन्तिम सर्टीफिकेट दिलायेगा।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) श्रीमत पर पूरा नष्टोमोहा बनना है। परहेज और युक्ति से चलना है। रजिस्टर खराब होने नहीं देना है।

2) नींद को जीतने वाला बन अमृतवेले विशेष आत्मा को साफ बनाने के लिए बाप की याद में रहना है। ज्ञान-योग से आत्मा को पावन बनाना है।

वरदान:-

सदा साक्षी स्थिति में स्थित रह निर्लेप अवस्था का अनुभव करने वाले सहजयोगी भव

जो देह के संबंध और देह से साक्षी अर्थात न्यारे हैं वह इस पुरानी दुनिया से भी साक्षी हो जाते हैं। वे सम्पर्क में आते हुए, देखते हुए भी सदा न्यारे और प्यारे रहते हैं। यह स्टेज ही सहजयोगी का अनुभव कराती है। इसी को कहते हैं साथ में रहते हुए भी निर्लेप। आत्मा निर्लेप नहीं है लेकिन आत्म-अभिमानी स्टेज निर्लेप अर्थात् माया के लेप व आकर्षण से परे है। इस अवस्था में रहने वाले माया के वार से बच जाते हैं।

स्लोगन:-

शुभ भावना और शुभ कामना द्वारा सूक्ष्म सेवा करने वाले ही महान आत्मा हैं।

 

 

03-06-18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ”अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज: 05-12-83 मधुबन


संगमयुग – बाप बच्चों के मिलन का युग

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) सर्व की मनोकामनायें पूर्ण करने वाली कामधेनु (जगदम्बा) बनना है। दान देते रहना है।

2) स्तुति-निंदा में स्थिति समान रखनी है। यह सब होते पढ़ाई नहीं छोड़नी है। इसे खेल समझ पार करना है।

वरदान:-

शुद्ध मन और दिव्य बुद्धि के विमान द्वारा सेकण्ड में स्वीट होम की यात्रा करने वाले मा. सर्वशक्तिवान भव

साइन्स वाले फास्ट गति के यंत्र निकालने का प्रयत्न करते हैं, उसके लिए कितना खर्चा करते हैं, कितना समय और एनर्जी लगाते हैं, लेकिन आपके पास इतनी तीव्रगति का यंत्र है जो बिना खर्च के सोचा और पहुंचा, आपको शुभ संकल्प का यंत्र मिला है, दिव्य बुद्धि मिली है। इस शुद्ध मन और दिव्य बुद्धि के विमान द्वारा जब चाहे तब चले जाओ और जब चाहे तब लौट आओ। मास्टर सर्वशक्तिवान को कोई रोक नहीं सकता।

स्लोगन:-

दिल सदा सच्ची हो तो दिलाराम बाप की आशीर्वाद मिलती रहेगी।

 
 
ब्रह्माकुमारीज् की प्रमुख खबरें

 श्रद्धा एवं भक्ति के साथ मना मां जगदंबे स्मृति दिवस

झुमरीतिलैया (कोडरमा): झुमरीतिलैया के रेलवे कॉलोनी स्थित ईश्वरीय ब्रह्माकुमारी संस्थान में रविवार को आदि देवी मातेश्वरी जगदंबे का 49वां स्मृति दिवस विश्व शांति दिवस के रूप में मनाया गया। इस अवसर पर अधिवक्ता सत्यनारायण प्रसाद, केंद्र संचालिका लक्ष्मी बहन ने जगदंबे के चित्र पर पुष्प अर्पित किया। ब्रह्माकुमारी लक्ष्मी बहन ने कहा कि मातेश्वरी जगदंबे की विशेषता और शिक्षाओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि 1937 में परमात्मा शिव ने सृष्टि पर अपना दिव्य कर्तव्य व मानवीय तन प्रजापिता ब्रह्माकुमारी का आधार लिया जो बाद में ज्ञान की देवी मातेश्वरी जगदंबे कहलायी जिनको ब्रह्मा वत्स प्यार से मम्मा भी कहा करते थे। उन्होंने कहा कि जगदंबे बेहद योगिनी एवं तपस्विनी थी और दिव्य गुणों की खान थी। वह विश्व के लिए प्यार, दुलार, ममता की छांव थी। मौके पर अधिवक्ता सत्यनारायण प्रसाद ने कहा कि मातेश्वरी जगदंबे, सरस्वती पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि मां जैसा दुनिया कोई शब्द नहीं हो सकता। अगर मां नहीं होती तो हम भी न होते। मां पूरे परिवार को अपने साथ चलाती है। इस अवसर पर बलदेव प्रसाद, अमरदीप, राम चौधरी, शंकर चौरसिया, शिव बजाज आदि उपस्थित थे।

राजयोग शिविर का आयोजन 25 से

झुमरीतिलैया: प्रजापति ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय रेलवे कॉलोनी में 25 से 30 जून तक निश्शुल्क तनावमुक्ति, राजयोग शिविर का आयोजन किया जाएगा। यह जानकारी केंद्र संचालिका ब्रह्माकुमारी लक्ष्मी बहन ने दी।


दोहरी जिंदगी से सुख-शांति नहीं- प्राची बहन

रायपुर । मनुष्य की दिनोदिन बढ़ रही इच्छाएं चिंता और तनाव पैदा कर रही हैं। यदि हम सफल जीवन जीना चाहते हैं तो जीवन के प्रति अपने दृष्टिकोण को बदलना होगा। ये विचार प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय चौबे कॉलोनी में रविवार से शुरू हुए ‘स्वस्थ विचार-खुशनुमा परिवार’ राजयोग शिविर में ब्रह्माकुमारी प्राची बहन ने व्यक्त किए।

जीवन का उद्देश्य विषय पर उन्होंने कहा कि हरेक मनुष्य दोहरी जिंदगी जी रहा है, जो वह है वह दिखना नहीं चाहता और जो वह नहीं है वह दिखना चाहता है। यदि हमारे मन में व्यर्थ विचार आते हैं तो जीवन में शांति नहीं आ सकती है। इन विचारों का हमारे शरीर पर सूक्ष्म व गहरा प्रभाव पड़ता है। हमारे विचार ही हमारा व्यक्तित्व बनाते हैं। आप कैसे दिखते हैं, यह महत्वपूर्ण नहीं है, लेकिन आप कैसा सोचते हैं, यह अधिक महत्वपूर्ण है।

धन से सुख नहीं खरीद सकते

प्राची बहन ने कहा कि वर्तमान समय में धन कमाना ही मनुष्य के जीवन का एकमात्र लक्ष्य रह गया है। वह धन को ही सब कुछ समझकर इसकी ही साधना, आराधना में अपना पूरा जीवन लगा देता है। हमें इस तथ्य को समझना होगा कि धन ही सब कुछ नहीं है। धन से हम भौतिक साधन तो खरीद सकते हैं, लेकिन भौतिक साधन स्थायी खुशी नहीं दे सकते।

एक उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि अमेरिका, स्वीडन व जापान ऐसे देश हैं, जहां प्रति व्यक्ति आय सबसे अधिक है, लेकिन सबसे ज्यादा आत्महत्या की घटनाएं इन्हीं देशों में होती हैं और सबसे ज्यादा मनोरोगी भी यहीं हैं। इससे सिद्ध होता है धन से सुख नहीं मिल सकता। सुखी जीवन के लिए शारीरिक, भौतिक, सामाजिक व आध्यात्मिक सभी क्षेत्रों में सामंजस्य बनाकर चलना होगा, तभी हमारा जीवन पूर्ण रूप से सुखमय होगा।

 


 

नशे से होने वाले दुष्प्रभाव बताए

बिलासपुर : राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला बंदला में वीरवार को प्रजापति ईश्वरीय ब्रह्माकुमारी विश्वविद्यालय के सौजन्य से मेरा व्यसन मुक्त हिमाचल अभियान के अंतर्गत कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसमें मुख्य अतिथि के रूप में संस्थान से जेबी शर्मा ने नशे से होने वाले दुष्प्रभाव बताए।

उन्होंने विद्यार्थियों को नशे से दूर रहने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि नशा न केवल शारीरिक, मानसिक बल्कि पारिवारिक व सामाजिक रूप से प्रभावित करता है। इस दौरान बच्चों ने भाषण के माध्यम से भी नशे के खिलाफ जागरूक किया। इस दौरान कार्यकारी प्रधानाचार्य राकेश शर्मा, विक्रम चंद, नारायण देव, बाबू राम, कासी राम, पूनम कुमारी, शशि शर्मा, बाबू राम, प्ररेणा ठाकुर, भूषण सहित स्टाफ सदस्य मौजूद थे।


ब्रह्माकुमारी का शांति महोत्सव

इंदौर। प्रजापति ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय द्वारा रविवार को अमितेश नगर में शांति महोत्सव का आयोजन किया गया इस अवसर पर टी. वी. धारावाहिक रामायण में मन्दोदरी की भूमिका अदा करने वाली प्रभा मिश्रा बहन भी मौजूद थी। इसमें उन्होंने उपस्थित लोगों को संबोधित किया है। गायक युगरतन भाई ने अपने सुन्दर गीतों की परस्तुति दी। –


 

नशा बीमारियां व मानसिक व्याधियों की जड़

 

एटा-कासगंज : तंबाकू के नशे की जड़ें आज सारे समाज पर विष बेल की भाति फैल चुकीं हैं। छोटे बच्चों से लेकर बड़ों तक सभी इसे फैशन, गौरव का प्रतीक मानकर प्रयोग करते हैं। फिर बाद में पश्चाताप के सिवाय उनके हाथ कुछ भी नहीं लगता। यह विचार ब्रह्माकुमारी सरोज बहिन ने प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के सेवा केंद्र में तंबाकू मुक्ति दिवस के मौके पर आयोजित गोष्ठी में व्यक्त किए।

इस बुराई से समाज को मुक्त करने के लिए कई उपाय एक साथ में अपनाए जाएं तभी इसकी जड़ें समाप्त होंगी। एक तो सकारात्मक स्वास्थ्य शिक्षा द्वारा जागरुकता फैलानी चाहिए। राजयोग के अभ्यास से सुस्वास्थ्य, एकाग्रता एवं मानसिक शान्ति की प्राप्ति होती है। कार्यक्रम को प्रसिद्ध व्यवसाई संदीप माहेश्वरी, वीरेन्द्र किशोर भाई तथा रूबी बहन ने भी संबोधित किया।

तंबाकू मुक्ति दिवस पर आयोजित कार्यक्रमों के अंतर्गत रेलवे स्टेशन पर जागरुकता प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया। जिसका शुभारंभ स्टेशन अधीक्षक देशराज तथा बहन रजनेश दीक्षित द्वारा दीप प्रज्ज्वलन कर किया गया। इस मौके पर डा. सतीश शर्मा, रामबाबू प्रतिहार, शरद भाटिया, सत्यनारायण, ओमप्रकाश, रामप्रकाश यादव, माधुरी बहन, प्रीती बहन, ओमप्रकाश, राजकमल माहेश्वरी, महेश एडवोकेट, मीना शर्मा, कृष्णा भाई, राममूल भाई, स्वराज भाई, रवींद्र सिंह पुंढीर, रीना बहन, नीरज बहन आदि लोग उपस्थित थे।


सहन शक्ति विघ्नों से बचने का कवच है : आत्मप्रकाश भाई

हिसार : प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के केंद्र द्वारा एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। ब्रह्माकुमारी मुख्यालय माउट आबू से आए वरिष्ठ राजयोग शिक्षक आत्म प्रकाश भाई ने विघ्नों में स्थिर रहने की युक्ति बताई।

उन्होंने कहा कि विघ्नों में घबराना नहीं चाहिए। घबराने से मनुष्य अपनी शक्तियों का प्रयोग नहीं कर पाता है। विघ्नों में धैर्य एवं सहन शक्ति बनाए रखें। सहन शक्ति विघ्नों से बचने का कवच है। विघ्नों में अक्सर नकारात्मक संकल्प आते है जो मन एवं शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव डालते है। इनसे बचने के लिए मन को शक्तिशाली एवं सकारात्मक संकल्पों की प्रोग्रामिंग दो। उन्होंने कुछ शक्तिशाली संकल्प/स्वमान बताए जिन्हे चिंतन करने से विघ्न दूर हो जाते है। आपसी संबंधों में टकराव से बचने के लिए हमें एक-दूसरे के गुण व विशेषताएं देखनी चाहिए। इससे आपसी स्नेह बढ़ेगा और संबंधों में प्रगाढ़ता आएगी। इस अवसर पर डॉ. आरपी गलहोत्रा, मुलकराज, एमएल बजाज, डा. राकेश मलिक, प्रो. वेद गुलयानी, प्रो. विरेद्र कौशिक, सोमप्रकाश, महेश, पवन, तनू, सुनीता आदि शामिल है।


 


 

शिव जयंती का शुभारंभ 

नसीराबाद – प्रजापिता ब्रह्माकुमारी सदस्यों ने रविवार को झूलेलाल मंदिर के पास शिव जयंती का शुभारंभ झंडारोहण कर किया। पार्षद चारू बाबानी ने बताया कि जिला रसद अधिकारी सुरेश सिंधी ने झंडारोहण कर शुभारंभ किया और ईश्वरीय ब्रह्माकुमारी संस्था के सेवा कार्यों की सराहना की। कार्यक्रम में ब्रह्माकुमारी आशा बहन, ब्रह्माकुमारी अंकिता बहन और ब्रह्माकुमारी नीलम बहन ने निराकार परमात्मा शिव और उनके द्वारा रचित तीन लोकों मनुष्य लोक, सूक्ष्म देव लोक और ब्रह्मलोक की जानकारी देकर मायावी संसार के बारे में समझाया। नीलम बहन ने प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा नई सृष्टि की स्थापना विष्णु द्वारा नई सृष्टि की पालना और शंकर द्वारा पुरानी सृष्टि के विनाश पर प्रकाश डाला और शिव शंकर में अंतर के गूढ़ रहस्य की जानकारी दी। अंत में आशा बहन ने नगर में प्रवचन की धर्मसभाओं की जानकारी दी।


 

 

एक कल्प होता है. यह पांच हजार वर्ष का : ब्रह्माकुमारी प्रेमलता

DEHRADUN : प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के सुभाषनगर सेवाकेंद्र में संडे को प्रवचन का आयोजन किया गया. राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी प्रेमलता ने कहा कि सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलयुग का एक कल्प होता है. यह पांच हजार वर्ष का एक स्वचालित कल्प है. सतयुग, त्रेतायुग को ब्रह्मा का दिन माना जाता है. द्वापरयुग व कलयुग को ब्रह्मा की रात्रि माना जाता है. ब्रह्मा के दिन के आरंभ में आत्माएं अपने मूल घर परमधाम से व्यक्त प्रकृति का आधार लेते हुए इस संसार में आती हैं. जब ब्रह्मा की रात्रि का अंत होता है तो सभी आत्माएं इस श्रृष्टि से परमधाम चली जाती हैं. यही दुनिया का चक्र है.


 

 
भाईचारे का संदेश दिया
 
 
 कासगंज: होली पर्व के उपलक्ष्य में ब्रह्माकुमारी संस्थान पर कार्यक्रम में एक दूसरे को रंग गुलाल लगाकर आपसी भाईचारे का संदेश दिया गया। वहीं विद्यालयों में भी विद्यार्थियों ने होली पर्व को धूमधाम से मनाया।

 

ब्रह्माकुमारी संस्थान पर आयोजित कार्यक्रम में सरोज बहन ने कहा कि सद विचारों के साथ ज्ञान योग को धारण कर इस होली पर्व को मनाने से आपसी द्वेष मिट जाते हैं। रूबी बहन, नीरज बहन व रूपा बहन ने भी अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन रीना बहन ने किया। इस मौके पर भगवान शरण अग्रवाल, राजकमल माहेश्वरी, राजेन्द्र, रवीन्द्र पुण्ढीर, रामप्रकाश यादव, रामबाबू प्रतिहार, डा. सतीश शर्मा, अनिल तोशनीवाल, गौरीशकर शर्मा, शरद भाटिया, राममूल भाई, जयप्रकाश, विजय, श्याम, बीना गुप्ता, कान्ती देवी, प्रेमवती बहन, मंजू बहिन आदि उपस्थित रहे।

 

वहीं नगर के जेपी पब्लिक ऐकेडमी एवं लोटस एकेडमी में भी विद्यार्थियों ने एक दूसरे को रंग लगा आपसी भाईचारे का संदेश दिया।

 

 


 

आध्यात्मिक होली मिलन कार्यक्रम का आयोजन

पूर्वी दिल्ली : ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय पांडव नगर सेवा केंद्र द्वारा होली मंगल मिलन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसमें एक बनो, नेक बनो का संदेश लोगों तक पहुंचाने की कोशिश की गई। राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष न्यायाधीश वी ईश्वरैया कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए।

 

इस अवसर पर बच्चों ने देवगीत, संगीत एवं नृत्य प्रस्तुति से जनसमूह को आत्मविभोर कर दिया। न्यायाधीश वी ईश्वरैया ने कहा कि होली का त्योहार केवल हिंदुओं तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह जाति, धर्म व भाषा सभी को राष्ट्रीय एकता एवं भाईचारा के सूत्र में बाधने का एक आध्यात्मिक उत्सव है। इस दौरान सहायक आयुक्त वीर सिंह त्यागी ने कहा कि समाज में बढ़ती हिंसा, अपराध, भ्रष्टाचार और व्यभिचार का मूल कारण लोगों की अत्यधिक भौतिक तथा भोगवादी मानसिकता है, जिसे केवल आध्यात्मिक एवं नैतिक शिक्षा, प्रशिक्षण एवं मेडिटेशन के माध्यम से दूर किया जा सकता है। कार्यक्रम की मुख्य आयोजिका राजयोग शिक्षिका ब्रह्माकुमारी मंजुल ने उपस्थित लोगों को सामूहिक ध्यान करवाया। इस अवसर पर स्थानीय थाना प्रभारी ओमप्रकाश, मुकेश आहुजा, कवयित्री डॉ. ऋतु मंजरी सहित काफी संख्या में लोग मौजूद थे।

 


 

माता बच्चों की निर्माता भी होती है : चक्रधारी

माता बच्चों की निर्माता भी होती है : चक्रधारी

मुजफ्फरनगर। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के महिला प्रभाग ने अखिल भारतीय अभियान ‘नारी सुरक्षा हमारी सुरक्षा’ के तहत नगर में स्थानीय सेवा केंद्र दिव्य धाम केशवपुरी से पदयात्रा निकाली। राजयोगिनी चक्रधारी दीदी ने कहा माता बच्चों की माता ही नहीं, बल्कि निर्माता भी है।

शिव चौक के निकट तुलसी पार्क में मुख्य अतिथि सिटि मजिस्ट्रेट विंध्यावासिनी राय ने ईश्वरीय ध्वज दिखाकर पदयात्रा का शुभारंभ किया। तुलसी पार्क से प्रारम्भ होकर पद यात्रा झांसी रानी चौक, प्रकाश चौक व महावीर चौक से होते हुए अर्पण बैंक्वेट हाल पहुंची। यहां हुए कार्यक्रम में रूस से पधारी ब्रह्माकुमारी महिला प्रभाग की अध्यक्षा राजयोगिनी चक्रधारी दीदी ने कहा कि माता बच्चों की केवल माता ही नहीं बल्कि निर्माता भी होती है। उन्होंने कहा कि यदि नारी अपमानित होती है। हम सबमें से किसी की मां, बहन, पत्नी, बेटी, चाची, बुआ ही अपमानित होती है। हमारा उनसे कोई न कोई संबंध जरूर होता है। नगर पालिका चेयरमैन पंकज अग्रवाल ने नारी सुरक्षा को अति महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि जिन देशों में नारी का शोषण होता है, वह देश तरक्की नहीं कर पाते। उन्होंने नारी सुरक्षा के लिए नगर की 50 प्रतिशत युवतियों को अगले वर्ष तक मार्शल आर्ट का प्रशिक्षण दिलाने की घोषणा की। महिला अस्पताल की सीएमएस डा. मृदुला अग्रवाल, बीके गणेश, बीके अंजली, बीके लवली ने अपने विचार रखे। बीके जयंती, बीके पूनम, सरला, केतन कर्णवाल का योगदान रहा।


पुण्यतिथि पर हुई सामूहिक प्रार्थना सभा

 

पुण्यतिथि पर हुई सामूहिक प्रार्थना सभा

मीरजापुर : शुक्लहां स्थित प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के नवीन सेवा केंद्र में शनिवार को संस्थापक प्रजापिता ब्रह्मा बाबा की 45वीं पुण्यतिथि विश्व शांति दिवस के रूप में श्रद्धापूर्वक मनाई गई।

सेवा केंद्र में इस अवसर पर सुबह सामूहिक प्रार्थना सभा का आयोजन किया गया। इसमें बाबा के महान त्याग और तपस्या को याद किया गया। सभी ने विश्वशांति, मानवीय एकता, देश की खुशहाली, सुख एवं समृद्धि के लिए सामूहिक रूप से राजयोग का अभ्यास किया गया। संस्थान की सेवा केंद्र प्रभारी बीके बिंदु बहन ने कहा कि आज मानवता पर बहुत बड़ा संकट आया है।

हमें दु:खी व अशांत आत्माओं को अपनी शुभभावना, शुभकामना के प्रकम्पनों से शांति, सुख और आनंद की अनुभूति करानी है। बीके प्रदीप भाई ने कविता के माध्यम से बाबा को श्रद्धांजलि अर्पित की। इस अवसर पर सुदर्शन भाई, मालबर भाई, रामजी भाई, राधा बहन ने भी बाबा के जीवन दर्शन पर प्रकाश डाला। किरन, नीता व रूपाली बहनों ने सभी को सामूहिक योग अभ्यास कराया। विशेष भोग भी लगाया गया। बाबा का स्मृति दिवस विश्व के 140 देशों में ब्रह्माकुमारी के लगभग नौ हजार सेवा केंद्रों पर विश्व शांति दिवस के रूप में मनाया जाता है।


ईश्वरीय विश्वविद्यालय के तत्वाधान में निश्शुल्क राज योग शिविर

त्रिवेणीगंज(सुपौल), बड़ी दुर्गा मंदिर के प्रागंण में प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के तत्वाधान में निश्शुल्क राज योग शिविर आयोजित की गई। जिसका उद्धाटन थानाध्यक्ष अमित कुमार ने किया। मौके पर ब्रह्माकुमारी सुपौल की संचालिका बीके शालिनी ने कहा कि कार्यक्रम 31 जनवरी तक आयोजित किए जाएंगे। जिसमें प्रथम दो दिनों तक राज योग शिविर के आध्यात्मिक प्रदर्शनी लगाये जाएंगे। शिविर को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि राज योग आध्यात्मिक प्रदर्शनी लोगों के तनाव, व्यसन एवं अनेक प्रकार के मानसिक विकारों को दूर करने का काम करती है। और जीवन में सुख शांति लाने में सहायक है। कहा कि आज के भाग दौड़ भरी जिदंगी में मानव का मानसिक संतुलन बिगड़ता जा रहा है। पारिवारिक संबंध भी टूट रहा है। इस प्रकार अनेक प्रकार की विकृतियों को भगाने में यह राज योग हमें बहुत मदद करता है। बोले कि प्रजापति ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय संसार में अपने 140, देशों में 10 हजार सेवा केन्द्रों के माध्यम से मानव सेवा में सतत रूप से जुड़े हैं। उन्होंने शिविर में भाग लेकर राज योग से लाभान्वित होने का लोगों से आह्वान किया। मौके पर सुनीति बहन, विवेकानंद भाई, सत्य नारायण भाई, चुन्नी लाल भरतिया, श्याम अग्रवाल, जवाहर गुप्ता, मनीष सिंह, रामावतार अग्रवाल, नवीन कुमार अग्रवाल आदि उपस्थित थे।


 

‘गुगल ब्वाय’ का सांपला पहुंचने पर स्वागत

सांपला. गुगल ब्वाय एवं जीनियस नाम से विख्यात छोटे कौटिल्य का सांपला पहुंचने पर शुक्रवार को स्वागत किया गया। ब्रह्माकुमारी आश्रम में स्वागत समारोह हुआ, जिसमें ब्रह्माकुमारी वंदना के नेतृत्व में क्षेत्र के प्रबुद्घ लोगो ने कौटिल्य शर्मा व उसके परिवार का अभिनंदन किया।

कौटिल्य ने उपस्थित विद्वानों द्वारा पूछे गए प्रश्नों का तत्काल सही उत्तर देकर हर किसी को अपनी प्रतिभा का कायल बना दिया। आश्रम में ब्रह्माकुमारी ललित की देखरेख में हुए समारोह में लेखक एवं इतिहासकार मधुकांत, समाज सेवी सुरेंद्र गुप्ता, मूलचंद शर्मा, डा. सुरेश राठी, शैलजा शर्मा, किशन मलिक और रामकुमार गहलोत ने प्रश्न पूछे। कौटिल्य के पिता ने कहा कि प्रतिभावान बच्चों की प्रतिभा को उजागर करने की जरूरत है।


 दीपावली महोत्सव धूमधाम से मनाया 

रामपुर मनिहारन, सहारनपुर : प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में दीपावली महोत्सव धूमधाम से मनाया गया। कार्यक्रम में चेयरमैन पूनम चौधरी ने कहा कि एकता व आपसी प्यार ही त्योहार का आनन्द है।

खुराना काम्प्लेक्स में प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में आयोजित दीपावली महोत्सव कार्यक्रम में क्षेत्र से आए भाई बहनों ने सामूहिक रुप से दीप प्रज्ज्वलित कर दीपोत्सव कार्यक्रम में भाग लिया। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय की सेवा केन्द्र इन्चार्ज बीके सन्तोष ने दीपावली पर्व के बारे में विस्तार से प्रकाश डाला और कहा कि मनुष्य हमेशा सच्चाई के रास्ते पर चले। मुख्य अतिथि नगर पंचायत चेयरमेन पूनम प्रदीप चौधरी ने कहा कि त्योहार व पर्व किसी भी जाति धर्म का हो उसे मिलजुल कर मनाने का आनन्द और ही है। मा. बाबूराम शर्मा, मा.सूरजमल, सेठपाल, बीके पूनम, जितेन्द्र, सुरेश, जनेश्वर, मोनू, सचिन, आदि काफी ब्रहम कुमार व ब्रह्माकुमारी रहे। 


 

विश्व शांति को युवा साइकल यात्रा निकाली

 

निज , जलेसर (एटा): नगर में बुधवार को ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय द्वारा युवा विश्व के आधार स्तंभ के दृष्टिगत शातिदूत साइकल यात्रा निकाली गई।

बुधवार को निकाली गई साइकल यात्रा नगर भर में घूमी। यात्रा ने लोगों को शांति का संदेश देते हुये युवाओं को जागरूक किया। इस अवसर पर ब्रह्माकुमारी सरोज बहन ने बताया कि युवाओं पर आज सभी की नजरें हैं, युवा विश्वका आधार स्तम्भ है। जैसे चार टागों के बगैर कुर्सी रुक नहीं सकती। वैसे ही युवा के बगैर समाज चारित्रिक, नैतिक सुदृढ़ नहीं बन सकता। इसका मुख्य उद्देश्य युवाओं को जागरूक करना है।

साइकल यात्रा को पूर्व पालिकाध्यक्ष के.जी.वाष्र्णेय ने ध्वज दिखाकर फीरोजाबाद के लिए रवाना किया। देश में ऐसी 94 साइकल यात्रा के जत्थे युवाओं में विश्व शाति और व्यसन मुक्ति का अलख जगा रहे हैं। सुभाष भाई ने सभी का आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर ओमप्रकाश, बबलेश, सुदेश, हरी सिंह, रामवीर सिंह, रामरक्षपाल सिंह, श्रीपाल सिंह, पुरूषोत्तम, रामपाल शर्मा, गौरव वर्मा सहित बड़ी संख्या में लोग शामिल थे।


नैतिक मूल्यों को भूलने से हुआ समाज का पतन- भगवान भाई, केआईटी में छात्रों को दिए मानव मूल्यों पर टिप्स

रायगढ़  । बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए भौतिक शिक्षा के साथ-साथ नैतिक शिक्षा की भी आवश्यकता है। नैतिक शिक्षा से ही सर्वांगीण विकास संभव है। उक्त उद्गार प्रजापिता ब्रह्माकमारी ईश्वरीय विश्य विद्यालय माउंट आबू राजस्थान से पधारे राजयोगी ब्रह्माकुमार भगवान भाई ने कहे। वे आज शनिवार को किरोड़ीमल इंजीनियरिंग कॉलेज ऑफ टेक्नालॉजी में नैतिक शिक्षा का महत्व विषय पर छात्र-छात्राओं को सम्बोधित करते हुए बोल रहे थे। भगवान भाई ने कहा कि शैक्षणिक जगत में विद्यार्थियों के लिए नैतिक मूल्यों को जीवन में धारण करने की प्रेरणा देना आज की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि नैतिक मूल्यों की कमी यही व्यक्तिगत, सामाजिक, पारिवारिक, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय सर्व समस्याओं का मूल कारण है। विद्यार्थियों का मूल्यांकन आचरण, अनुसरण, लेखन, व्यवहारिक ज्ञान एवं अन्य बातों के लिए प्रेरणा देने की आवश्यकता है। ज्ञान की व्याख्या करते हुए उन्होंने बताया कि जो शिक्षा विद्यार्थियों को अंधकार से प्रकाश की ओर, असत्य से सत्य की ओर, बन्धनों से मुक्ति की ओर ले जाए वही शिक्षा है। उन्होंने कहा कि अपराध मुक्त समाज के लिए संस्कारित शिक्षा जरुरी है। गुणगान बच्चे देश की संपत्ति भगवान भाई ने कहा कि आज के बच्चे कल का भावी समाज हैं। अगर कल के भावी समाज को इन्हीं बच्चों को नैतिक सद्गुणों की शिक्षा की आधार से चरित्रवान बनाए। तब समाज बेहतर बन सकता है। गुणवान व चरित्रवान बच्चे देश की सच्ची सम्पत्ति हैं। उन्होंने बताया कि ऐसे गुणवान और चरित्रवान बच्चे देश और समाज के लिए कुछ रचनात्मक कार्य कर सकते हैं। उन्होंने भारतीय संस्कृति को याद दिलाते हुए कहा कि प्राचीन संस्कृति आध्यात्मिकता की रही जिस कारण प्राचीन मानव भी वंदनीय और पूजनीय रहा। उन्होंने बताया कि नैतिक शिक्षा से ही मानव के व्यवहार में निखार लाता है। कुसंग, सिनेमा, व्यसन, फैशन से युवा भटके ब्रह्माकुमार भगवान भाई ने कहा कि वर्तमान समय कुसंग, सिनेमा, व्यसन और फैशन से युवा पीढ़ी भटक रही है। आध्यात्मिक ज्ञान और नैतिक शिक्षा के द्वारा युवा पीढ़ी को नई दिशा मिल सकती है। उन्होंने बताया कि सिनेमा इन्टरनेट व टीवी. के माध्यम से युवा पीढ़ी पर पाश्चात्य संस्कृति का आघात हो रहा है। इस आघात से युवा पीढ़ी को बचाने की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि युवा पीढ़ी को कुछ रचनात्मक कार्य सिखायें तब उनकी शक्ति सही उपयोग में ला सकेंगे। वरिष्ठ राजयोगी ब्रह्माकुमार भगवान भाई ने कहा कि हमारे मूल्य हमारी विरासत है। मूल्य की संस्कृति के कारण आज भारत की पूरे विश्व में पहचान है। इसलिए नैतिक मूल्य, मानवीय मूल्यों की पुर्नस्थापना के लिए सभी को सामूहिक रूप में प्रयास करने चाहिए। उन्होंने कहा कि मनुष्य की सोच ही उसके कर्मों का आधार बनता है। इसलिए कर्म विश्व के लिए हितकारी हो। सकारात्मक चिन्तन का महत्व बताते हुए उन्होंने कहा कि सकारात्मक चिन्तन से समाज में मूल्यों की खुशबू फैलती है। सकारात्मक चिन्तन से जीवन की हर समस्याओं का समाधान होता है। उन्होंने शिक्षा का मूल उद्देश्य बताते हुए कहा कि चरित्रवान, गुणवान बनना ही शिक्षा का उद्देश्य है। उन्होंने आध्यात्मिकता को मूल्यों का स्रोत बताते हुए कहा कि शांति, एकाग्रता, ईमानदारी, धैर्यता, सहनशीलता आदि सद्गुण मानव जाती का श्रृंगार है। स्थानीय ब्रह्माकुमारी राजयोग सेवाकेन्द्र की बी.के. ममता बहन ने अपना उद्बोधन देते हुए कहा कि कुसंग, सिनेमा, व्यसन और फैशन से वर्तमान युवा पीढ़ी भटक रही है। चरित्रवान बनने के लिए युवा को इससे दूर रहना है। अपराध राजयोग का महत्व बताते हुए कहा कि राजयोग से एकाग्रता आयेगी। इस अवसर पर नमिता वर्मा व्याख्याता उक्षमा सूर्यवंशी व्याख्याता केआईटी के.के. गुप्ता रजिस्टार कु. ममता बहन, कु. मधु भाई, कु. भगत भाई, मनोज भाई सहित बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं उपस्थित थे।


With coperation by Jagran, Daily Bhaskar and other news papers

 
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देहिअभिमानी से सेफटी – शिलू बहन – हिंदी भाषा – Date: 14-11-2013 | Size: 205.34 MB | वीडिओ

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वत्तीसे सेवा  ब्रजमोहन भाई – हिंदी भाषा Date: 14-11-2013 | Size: 6.44 MB वीडिओ

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वत्तीसे वायुमंडल ब्रजमोहन भाई – हिंदी भाषा -Date: 13-11-2013 | Size: 9.27 MB |

 


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