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21-12-2019

21-12-2019 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन


“मीठे बच्चे – आत्मा रूपी बैटरी को ज्ञान और योग से भरपूर कर सतोप्रधान बनाना है, पानी के स्नान से नहीं”

प्रश्न:

इस समय सभी मनुष्य आत्माओं को भटकाने वाला कौन है? वह भटकाता क्यों है?

उत्तर:

सभी को भटकाने वाला रावण है क्योंकि वह खुद भी भटकता है। उसे अपना कोई घर नहीं है। रावण को कोई बाबा नहीं कहेंगे। बाप तो परमधाम घर से आता है अपने बच्चों को ठिकाना देने। अभी तुम्हें घर का पता चल गया इसलिए तुम भटकते नहीं हो। तुम कहते हो हम बाप से पहले-पहले जुदा हुए अब फिर पहले-पहले घर जायेंगे।

ओम् शान्ति।

मीठे-मीठे बच्चे यहाँ बैठकर समझते हैं, इनमें जो शिवबाबा आये हैं, कैसे भी करके हमको साथ घर जरूर ले जायेंगे। वह आत्माओं का घर है ना। तो बच्चों को जरूर खुशी होती होगी, बेहद का बाप आकरके हमको गुल-गुल बनाते हैं। कोई कपड़ा आदि नहीं पहनाते हैं। इसको कहा जाता है योगबल, याद का बल। जितना टीचर का मर्तबा है उतना और बच्चों को भी मर्तबा दिलाते हैं। पढ़ाई से स्टूडेन्ट जानते हैं कि हम यह बनेंगे। तुम भी समझते हो हमारा बाबा टीचर भी है, सतगुरू भी है। यह है नई बात। हमारा बाबा टीचर है, उनको हम याद करते हैं। हमको टीच कर यह बना रहे हैं। हमारा बेहद का बाबा आया हुआ है – हमको वापिस घर ले जाने। रावण का कोई घर नहीं होता, घर राम का होता है। शिवबाबा कहाँ रहते हैं? तुम झट कहेंगे परमधाम में। रावण को तो बाबा नहीं कहेंगे। रावण कहाँ रहते हैं? पता नहीं। ऐसे नहीं कहेंगे कि रावण परमधाम में रहते हैं। नहीं, उनका जैसेकि ठिकाना ही नहीं। भटकता रहता है, तुमको भी भटकाता है। तुम रावण को याद करते हो क्या? नहीं। कितना तुमको भटकाते हैं। शास्त्र पढ़ो, भक्ति करो, यह करो। बाप कहते हैं इसको कहा जाता है भक्ति मार्ग, रावण राज्य। गांधी भी कहते थे रामराज्य चाहिए। इस रथ में हमारा शिवबाबा आया हुआ है। बड़ा बाबा है ना। वह आत्माओं से बच्चे-बच्चे कह बात करते हैं। अभी तुम्हारी बुद्धि में है रूहानी बाप और रूहानी बाप की बुद्धि में हो तुम रूहानी बच्चे क्योंकि हमारा कनेक्शन है ही मूलवतन से। आत्मायें परमात्मा अलग रहे बहुकाल…..। वहाँ तो आत्मायें बाप के साथ इकट्ठी रहती हैं। फिर अलग होती हैं अपना-अपना पार्ट बजाने। बहुतकाल का हिसाब चाहिए ना। वह बाप बैठ बतलाते हैं। तुम अब पढ़ाई पढ़ रहे हो। तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं जो अच्छी रीति पढ़ते हैं। वही पहले-पहले मेरे से जुदा हुए हैं। वही फिर मुझे बहुत याद करेंगे तो फिर पहले-पहले आ जायेंगे।

बाप बच्चों को बैठ सारे सृष्टि चक्र का गुह्य राज़ समझाते हैं, जो और कोई भी नहीं जानते। गुह्य भी कहा जाता, गुह्यतम् भी कहा जाता है। यह तुम जानते हो बाप कोई ऊपर से बैठ नहीं समझाते हैं, यहाँ आकर समझाते हैं-मैं इस कल्प वृक्ष का बीजरूप हूँ। इस मनुष्य सृष्टि रूपी झाड़ को कल्प वृक्ष कहा जाता है। दुनिया के मनुष्य तो बिल्कुल कुछ नहीं जानते। कुम्भकरण की नींद में सोये हुए हैं फिर बाप आकर जगाते हैं। अभी तुम बच्चों को जगाया है और सब सोये पड़े हैं। तुम भी कुम्भकरण की आसुरी नींद में सोये हुए थे। बाप ने आकर जगाया है, बच्चों जागो। तुम गाफिल हो (अलबेले हो) सोये पड़े हो, इसको कहा जाता है अज्ञान नींद। वह नींद तो सब करते हैं। सतयुग में भी करते हैं। अभी सब हैं अज्ञान की नींद में। बाप आकर ज्ञान देकर सबको जगाते हैं। अब तुम बच्चे जागे हो, जानते हो बाबा आया हुआ है, हमको ले जायेगा। अभी तो न यह शरीर काम का रहा है, न आत्मा, दोनों पतित बन पड़े हैं, एकदम मुलम्मे का है। 9 कैरेट कहें अर्थात् बहुत थोड़ा सोना, सच्चा सोना 24 कैरेट का होता है। अब बाप तुम बच्चों को 24 कैरेट में ले जाना चाहते हैं। तुम्हारी आत्मा को सच्चा-सच्चा गोल्डन एजेड बनाते हैं। भारत को सोने की चिड़िया कहते थे। अभी तो लोहे की, ठिक्कर भित्तर की चिड़िया कहेंगे। है तो चैतन्य ना। यह समझने की बाते हैं। जैसे आत्मा को समझते हो वैसे बाप को भी समझ सकते हो। कहते भी हैं चमकता है सितारा। बहुत छोटा सितारा है। डॉक्टरों आदि ने बहुत कोशिश की है देखने की परन्तु दिव्य दृष्टि बिगर देख नहीं सकते। बहुत सूक्ष्म है। कोई कहते हैं आंखों से आत्मा निकल गई, कोई कहते हैं मुख से निकल गई। आत्मा निकलकर जाती कहाँ है? दूसरे तन में जाकर प्रवेश करती है। अभी तुम्हारी आत्मा ऊपर चली जायेगी शान्तिधाम। यह पक्का मालूम है बाप आकर हमको घर ले जायेंगे। एक तरफ है कलियुग, दूसरे तरफ है सतयुग। अभी हम संगम पर खड़े हैं। वन्डर है। यहाँ करोड़ों मनुष्य हैं और सतयुग में सिर्फ 9 लाख! बाकी सबका क्या हुआ? विनाश हो जाता है। बाप आते ही हैं नई दुनिया की स्थापना करने। ब्रह्मा द्वारा स्थापना होती है। फिर पालना भी होती है दो रूप में। ऐसे तो नहीं 4 भुजा वाले कोई मनुष्य होंगे। फिर तो शोभा ही नहीं है। बच्चों को भी समझा देते हैं – चतुर्भुज है श्री लक्ष्मी, श्री नारायण का कम्बाइन्ड रूप। श्री अर्थात् श्रेष्ठ। त्रेता में दो कला कम हो जाती हैं। तो बच्चों को यह जो नॉलेज अभी मिलती है इसकी स्मृति में रहना है। मुख्य हैं ही दो अक्षर, बाप को याद करो। दूसरे कोई की समझ में नहीं आयेगा। बाप ही पतित-पावन सर्व शक्तिमान् है। गाते भी हैं बाबा, आपने हमको सारा आसमान धरती सब कुछ दे दिया। ऐसी कोई चीज़ नहीं जो न दी हो। सारे विश्व का राज्य दे दिया है।

तुम जानते हो यह लक्ष्मी-नारायण विश्व के मालिक थे। फिर ड्रामा का चक्र फिरता है। सम्पूर्ण निर्विकारी बनना है, नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। यह भी जानते हो विकारी से निर्विकारी, निर्विकारी से विकारी, यह 84 जन्मों का पार्ट अनगिनत बार बजाया है। उसकी गिनती नहीं कर सकते। आदमशुमारी भल गिनती कर लेते हैं। बाकी यह जो तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान, सतोप्रधान से तमोप्रधान बनते हो, इनका हिसाब निकाल नहीं सकते कि कितना बार बने हो। बाबा कहते हैं 5 हज़ार वर्ष का यह चक्र है। यह ठीक है। लाखों वर्ष की बात तो याद भी न रह सके। अभी तुम्हारे में गुणों की धारणा होती है। ज्ञान का तीसरा नेत्र मिल जाता है। इन आंखों से तुम पुरानी दुनिया को देखते हो। तीसरा नेत्र जो मिलता है, उनसे नई दुनिया को देखना है। यह दुनिया तो कोई काम की नहीं है। पुरानी दुनिया है। नई और पुरानी दुनिया में फ़र्क देखो कितना है। तुम जानते हो हम ही नई दुनिया के मालिक थे फिर 84 जन्म लेते-लेते यह बने हैं। यह अच्छी रीति याद रखना चाहिए और फिर दूसरे को भी समझाना है-कैसे हम यह बनते हैं? ब्रह्मा सो विष्णु, फिर विष्णु सो ब्रह्मा बनते हैं। ब्रह्मा और विष्णु का फ़र्क देखते हो ना। विष्णु कैसा सजा-सजाया बैठा है और यह ब्रह्मा कैसे साधारण बैठा है। तुम जानते हो यह ब्रह्मा, वह विष्णु बनने वाला है। यह किसको समझाना भी बहुत सहज है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर का आपस में क्या सम्बन्ध है? तुम जानते हो यह विष्णु के दो रूप लक्ष्मी-नारायण हैं। यही विष्णु देवता सो फिर यह मनुष्य ब्रह्मा बनते हैं। वह विष्णु सतयुग का है, ब्रह्मा यहाँ का है। बाप ने समझाया है ब्रह्मा से विष्णु बनना सेकण्ड में, फिर विष्णु से ब्रह्मा बनने में 5 हज़ार वर्ष लगते हैं। ततत्वम्। केवल एक ब्रह्मा ही तो नहीं बनते हैं ना! यह बातें सिवाए बाप के और कोई समझा न सके। यहाँ कोई मनुष्य गुरू की बात नहीं है। इनका भी गुरू शिवबाबा, तुम ब्राह्मणों का भी गुरू शिवबाबा है। उनको सद्गुरू कहा जाता है। तो बच्चों को शिवबाबा को ही याद करना है। कोई को भी यह समझाना तो बहुत सहज है-शिवबाबा को याद करो। शिवबाबा स्वर्ग नई दुनिया रचते हैं। ऊंच ते ऊंच भगवान् शिव है। वह हम आत्माओं का बाबा है। तो भगवान् बच्चों को कहते हैं मुझ बाप को याद करो। याद करना कितना सहज है। बच्चा पैदा होता है और झट माँ-माँ उनके मुख से आपेही निकलता है। माँ-बाप के सिवाए और कोई पास नहीं जायेगा। माँ मर जाती है, वह फिर और बात है। पहले हैं माँ और बाप फिर पीछे और मित्र-सम्बन्धी आदि होते हैं। उसमें भी जोड़ी-जोड़ी होगी। चाचा-चाची दो है ना। कुमारी होगी फिर बड़ी होते ही कोई चाची कहेंगे, कोई मामी कहेंगे।

अभी तुमको बाप समझाते हैं तुम सब भाई-भाई हो। बस, और सब सम्बन्ध कैन्सल करते हैं। भाई-भाई समझेंगे तो एक बाप को याद करेंगे। बाप भी कहते हैं-बच्चों, मुझ एक बाप को याद करो। कितना बड़ा बेहद का बाप है। वह बड़ा बाबा तुमको बेहद का वर्सा देने आये हैं। घड़ी-घड़ी कहते हैं मनमनाभव। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो, यह बात भूलो मत। देह-अभिमान में आने से ही भूल जाते हैं। पहले-पहले तो अपने को आत्मा समझना है-हम आत्मा सालिग्राम हैं और एक बाप को ही याद करना है। बाप ने समझाया है मैं पतित-पावन हूँ, मुझे याद करने से तुम्हारी बैटरी जो खाली हो गई है वह भरपूर हो जायेगी, तुम सतोप्रधान बन जायेंगे। पानी की गंगा में तो जन्म-जन्मान्तर घुटका खाया है लेकिन पावन बन नहीं सके। पानी कैसे पतित-पावन हो सकता है? ज्ञान से ही सद्गति होती है। इस समय है ही पाप आत्माओं की झूठी दुनिया। लेन-देन भी पाप आत्माओं से ही होती है। मन्सा-वाचा-कर्मणा पाप आत्मा ही बनते हैं। अभी तुम बच्चों को समझ मिली है। तुम कहते हो हम यह लक्ष्मी-नारायण बनने के लिए पुरूषार्थ करते हैं। अभी तुम्हारी भक्ति करना बंद है। ज्ञान से सद्गति होती है। यह (देवतायें) सद्गति में हैं ना। बाप ने समझाया है यह बहुत जन्मों के अन्त में हैं। बाप कितना सहज समझाते हैं। तुम बच्चे कितनी मेहनत करते हो। कल्प-कल्प करते हो। पुरानी दुनिया को बदल नई दुनिया बनानी है। कहते हैं ना भगवान जादूगर है, रत्नागर है, सौदागर है। जादूगर तो है ना। पुरानी दुनिया को हेल से बदल हेविन बना देते हैं। कितना जादू है अभी तुम हेविन के रहवासी बन रहे हो। जानते हो अभी हम हेल के रहवासी हैं। हेल और हेविन अलग है। 5 हज़ार वर्ष का चक्र है। लाखों वर्ष की तो बात ही नहीं। यह बातें भूलनी नहीं चाहिए। भगवानुवाच है ना-कोई जरूर है जो पुनर्जन्म रहित है। कृष्ण को तो शरीर है। शिव को है नहीं। उनको मुख तो जरूर चाहिए। तुमको सुनाने के लिए आकर पढ़ाते हैं ना। ड्रामा अनुसार सारी नॉलेज ही उनके पास है। वह सारे कल्प में एक ही बार आते हैं दु:खधाम को सुखधाम बनाने। सुख-शान्ति का वर्सा जरूर बाप से मिला है तब तो मनुष्य चाहते हैं ना, बाप को याद करते हैं।

बाप ज्ञान देखो कैसे सहज रीति देते हैं। यहाँ बैठे भी बाप को याद करो, बाजोली याद करो तो भी मन्मनाभव ही है। बाप ही यह सारा ज्ञान देने वाला है। तुम कहेंगे हम बेहद के बाप पास जाते हैं। बाप हमको शान्तिधाम-सुखधाम ले जाने का रास्ता बताते हैं। यहाँ बैठे घर को याद करना है। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना है, घर को याद करना है और नई दुनिया को याद करना है। यह पुरानी दुनिया तो खत्म होनी ही है। आगे चलकर तुम वैकुण्ठ को भी बहुत याद करेंगे। घड़ी-घड़ी वैकुण्ठ में जाते रहेंगे। शुरू में बच्चियाँ घड़ी-घड़ी आपस में बैठ वैकुण्ठ में चली जाती थी। यह देखकर बड़े-बड़े घर वाले अपने बच्चों को भेज देते थे। नाम ही रखा था ओम निवास। कितने ढेर बच्चे आये फिर हंगामा हुआ। बच्चों को पढ़ाते थे। आपेही ध्यान में चले जाते थे। अभी यह ध्यान-दीदार का पार्ट बंद कर दिया है। यहाँ भी कब्रिस्तान बना देते थे। सबको सुला देते थे, कहते थे अब शिवबाबा को याद करो, ध्यान में चले जाते थे। अब तुम बच्चे भी जादूगर हो। किसको भी देखेंगे और वह झट ध्यान में चले जायेंगे। यह जादू कितना अच्छा है। नौधा भक्ति में तो जब एकदम प्राण देने तैयार होते हैं तब उनको दीदार होता है। यहाँ तो बाप खुद आये हैं, तुम बच्चों को पढ़ाकर ऊंच पद प्राप्त कराते हैं। आगे चल तुम बच्चे बहुत साक्षात्कार करते रहेंगे। बाप से अभी भी कोई पूछे तो बता सकते हैं कौन गुलाब का फूल है, कौन चम्पा का फूल है, कौन टांगर है? टूह भी होती है ना। (टांगर, टूह यह सब वैरायटी फूलों के नाम हैं)। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:

1) देह के सब सम्बन्ध कैन्सिल कर आत्मा भाई-भाई हैं, यह निश्चय करना है और बाप को याद कर पूरे वर्से का अधिकारी बनना है।

2) अब पाप आत्माओं से लेन-देन नहीं करनी है। अज्ञान नींद से सबको जगाना है, शान्तिधाम-सुखधाम जाने का रास्ता बताना है।

वरदान:

कमल पुष्प का सिम्बल बुद्धि में रख, अपने को सैम्पुल समझने वाले न्यारे और प्यारे भव

प्रवृत्ति में रहने वालों का सिम्बल है “कमल पुष्प”। तो कमल बनो और अमल करो। अगर अमल नहीं करते तो कमल नहीं बन सकते। तो कमल पुष्प का सिम्बल बुद्धि में रख स्वयं को सैम्पुल समझकर चलो। सेवा करते न्यारे और प्यारे बनो। सिर्फ प्यारे नहीं बनना लेकिन न्यारे बन प्यारे बनना क्योंकि प्यार कभी लगाव के रूप में बदल जाता है, इसलिए कोई भी सेवा करते न्यारे और प्यारे बनो।

स्लोगन:

स्नेह की छत्रछाया के अन्दर माया आ नहीं सकती।

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