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26-07-20

26-07-20 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज: 27-02-86 मधुबन


रूहानी सेना कल्प-कल्प की विजयी

सभी रूहानी शक्ति सेना, पाण्डव सेना, रूहानी सेना सदा विजय के निश्चय और नशे में रहेते है न, और कोई भी सेना जब लड़ाई करती है तो विजय की गैरन्टी नहीं होती है। निश्चय नहीं होता कि विजय निश्चित ही है। लेकिन आप रूहानी सेना, शक्ति सेना सदा इस निश्चय के नशे में रहते कि न सिर्फ अब के विजयी है लेकिन कल्प-कल्प के विजयी हैं। अपने कल्प पहले के विजय की कथायें भी भक्ति मार्ग में सुन रहे हो। पाण्डवों के विजय की यादगार कथा अभी भी सुन रहे हो। अपने विजय के चित्र अब भी देख रहे हो। भक्ति में सिर्फ अहिंसक के बजाए हिंसक दिखा दिया है। रूहानी सेना को जिस्मानी साधारण सेना दिखा दिया है। अपना विजय का गायन अभी भी भक्तों द्वारा सुन हर्षित होते हो। गायन भी है प्रभु-प्रीत बुद्धि विजयन्ती। विपरीत बुद्धि विनशन्ति। तो कल्प पहले का आपका गायन कितना प्रसिद्ध है! विजय निश्चित होने के कारण निश्चयबुद्धि विजयी हो इसलिए माला को भी विजय माला कहते हैं। तो निश्चय और नशा दोनों हैं ना। कोई भी अगर पूछे तो निश्चय से कहेंगे कि विजय तो हुई पड़ी है। स्वप्न में भी यह संकल्प नहीं उठ सकता कि पता नहीं विजय होगी वा नहीं, हुई पड़ी है। पास्ट कल्प और भविष्य को भी जानते हो। त्रिकालदर्शी बन उसी नशे से कहते हो। सभी पक्के हो ना! अगर कोई कहे भी कि सोचो, देखो तो क्या कहेंगे? अनेक बार देख चुके हैं। कोई नई बात हो तो सोचें भी, देखें भी। यह तो अनेक बार की बात अब रिपीट कर रहे हैं। तो ऐसे निश्चय बुद्धि ज्ञानी तू आत्मायें योगी तू आत्मायें हो ना!

आज अफ्रीका के ग्रुप का टर्न है। ऐसे तो सभी अब मधुबन निवासी हो। परमानेंट एड्रेस तो मधुबन है ना। वह तो सेवास्थान है। सेवा-स्थान हो गया दफ्तर, लेकिन घर तो मधुबन है ना। सेवा के अर्थ अफ्रीका, यू.के. आदि चारों तरफ गये हुए हो। चाहे धर्म बदली किया, चाहे देश बदली किया लेकिन सेवा के लिए ही गये हो। याद कौन-सा घर आता है? मधुबन या परमधाम। सेवा स्थान पर सेवा करते भी सदा ही मधुबन और मुरली यही याद रहता है ना! अफ्रीका में भी सेवा अर्थ गये हो ना। सेवा ने ज्ञान गंगा बना लिया। ज्ञान गंगाओं में ज्ञान स्नान कर आज कितने पावन बन गये! बच्चों को भिन्न-भिन्न स्थानों पर सेवा करते हुए देख बापदादा सोचते हैं कि कैसे-कैसे स्थानों पर सेवा के लिए निर्भय बन बहुत लगन से रहे हुए हैं। अफ्रीकन लोगों का वायुमण्डल, उन्हों का आहार-व्यवहार कैसा है, फिर भी सेवा के कारण रहे हुए हो। सेवा का बल मिलता रहता। सेवा का प्रत्यक्ष फल मिलता है, वह बल निर्भय बना देता है। कभी घबराते तो नहीं हो ना! और ऑफीशल निमंत्रण पहले यहाँ से मिला। विदेश सेवा का निमंत्रण मिलने से ऐसे-ऐसे देशों में पहुंच गये। निमंत्रण की सेवा का फाउन्डेशन यहाँ से ही शुरू हुआ। सेवा के उमंग-उत्साह का प्रत्यक्ष फल यहाँ के बच्चे ने दिखाया। बलिहारी उस एक निमित्त बनने वाले की जो कितने अच्छे-अच्छे छिपे हुए रत्न निकल आये। अभी तो बहुत वृद्धि हो गई है। वह छिप गया और आप प्रत्यक्ष हो गये। निमंत्रण के कारण नम्बर आगे हो गया। तो अफ्रीका वालों को बापदादा आफरीन लेने वाले कहते हैं। आफरीन लेने का स्थान है क्योंकि वातावरण अशुद्ध है। अशुद्ध वातावरण के बीच वृद्धि हो रही है। इसके लिए आफरीन कहते हैं।

शक्ति सेना और पाण्डव सेना दोनों ही शक्तिशाली हैं, मैजारिटी इन्डियन्स हैं। लेकिन इन्डिया से दूर हो गये, तो दूर होते भी अपना हक तो नहीं छोड़ सकते। वहाँ भी बाप का परिचय मिल गया। बाप के बन गये। नैरोबी में मेहनत नहीं लगी। सहज ही बिछुड़े हुए पहुँच गये और गुजरातियों के यह विशेष संस्कार हैं। जैसे उन्हों की यह रीति है – सभी मिलकर गर्बा रास करते हैं। अकेले नहीं करते। छोटा हो चाहे मोटा हो, सब मिलकर गर्बा डान्स जरूर करते हैं। यह संगठन की निशानी है। सेवा में भी देखा गया है गुजराती संगठन वाले होते। एक आता तो 10 को जरूर लाता। यह संगठन की रीति अच्छी है उन्हों में, इसलिए वृद्धि जल्दी हो जाती है। सेवा की वृद्धि और विस्तार भी हो रहा है। ऐसे-ऐसे स्थानों पर शान्ति की शक्ति देना, भय के बदले खुशी दिलाना यही श्रेष्ठ सेवा है। ऐसे स्थानों पर आवश्यकता है। विश्व कल्याणकारी हो तो विश्व के चारों ओर सेवा बढ़नी है, और निमित्त बनना ही है। कोई भी कोना अगर रह गया तो उल्हना देंगे। अच्छा है हिम्मते बच्चे मददे बाप। हैण्डस भी वहाँ से ही निकल और सेवा कर रहे हैं। यह भी सहयोग हो गया ना। स्वयं जगे हो तो बहुत अच्छा लेकिन जगकर फिर जगाने के भी निमित्त बनें, यह डबल फायदा हो गया। बहुत करके हैण्डस भी वहाँ के ही हैं। यह विशेषता अच्छी है। विदेश सेवा में मैजारिटी सब वहाँ से निकल वहाँ ही सेवा के निमित्त बन जाते। विदेश ने भारत को हैण्डस नहीं दिया है। भारत ने विदेश को दिये हैं। भारत भी बहुत बड़ा है। अलग-अलग ज़ोन हैं। स्वर्ग तो भारत को ही बनाना है। विदेश तो पिकनिक स्थान बन जायेगा। तो सभी एवररेडी हो ना। आज किसको कहाँ भेजें तो एवररेडी हो ना! जब हिम्मत रखते हैं तो मदद भी मिलती है। एवररेडी जरूर रहना चाहिए। और जब समय ऐसा आयेगा तो फिर आर्डर तो करना ही होगा। बाप द्वारा आर्डर होना ही हैं। कब करेंगे, वह डेट नहीं बतायेंगे। डेट बतावें फिर तो सब नम्बरवन पास हो जाएं। यहाँ डेट का ही अचानक एक ही क्वेश्चन आयेगा! एवररेडी हो ना। कहें यहाँ ही बैठ जाओ तो बाल-बच्चे घर आदि याद आयेगा? सुख के साधन तो वहाँ हैं लेकिन स्वर्ग तो यहाँ बनना है। तो सदा एवररेडी रहना यह हैं ब्राह्मण जीवन की विशेषता। अपनी बुद्धि की लाइन क्लीयर हो। सेवा के लिए निमित्त मात्र स्थान बाप ने दिया है। तो निमित्त बनकर सेवा में उपस्थित हुए हो। फिर बाप का इशारा मिला तो कुछ भी सोचने की जरूरत ही नहीं है। डायरेक्शन प्रामाण सेवा अच्छी कर रहे हो, इसलिए न्यारे और बाप के प्यारे हो। अफ्रीका ने भी वृद्धि अच्छी की है। वी.आई.पी. की सेवा अच्छी हो रही है। गवर्मेन्ट के भी कनेक्शन अच्छे हैं। यह विशेषता है जो सर्व प्रकार वाले वर्ग की आत्माओं का सम्पर्क कोई न कोई समय समीप ले ही आता है। आज सम्पर्क वाले कल सम्बन्ध वाले हो जायेंगे। उन्हों को जगाते रहना चाहिए। नहीं तो थोड़ी ऑख खोल फिर सो जाते हैं। कुम्भकरण तो हैं ही। नींद का नशा होता है तो कुछ भी खा-पी भी लेते तो भूल जाते। कुम्भकरण भी ऐसे हैं। कहेंगे हाँ फिर आयेंगे, यह करेंगे। लेकिन फिर पूछो तो कहेंगे याद नहीं रहा, इसलिए बार-बार जगाना पड़ता है। गुजरातियों ने बाप का बनने में, तन-मन-धन से स्वयं को सेवा में लगाने में नम्बर अच्छा लिया है। सहज ही सहयोगी बन जाते हैं। यह भी भाग्य है। संख्या गुजरातियों की अच्छी है। बाप का बनने की लॉटरी कोई कम नहीं है।

हर स्थान पर कोई न कोई बाप के बिछुड़े हुए रत्न हैं ही। जहाँ भी पांव रखते हैं तो कोई न कोई निकल ही आते। बेपरवाह, निर्भय हो करके सेवा में लगन से आगे बढ़ते हैं तो पदम गुणा मदद भी मिलती है। आफिशियल निमंत्रण तो फिर भी यहाँ से ही आरम्भ हुआ। फिर भी सेवा का जमा तो हुआ ना। वह जमा का खाता समय पर खींचेगा जरूर। तो सभी नम्बरवन, तीव्र पुरूषार्थी आफरीन लेने वाले हो ना। नम्बरवन सम्बन्ध निभाने वाले नम्बरवन सेवा में सबूत दिखाने वाले सबमें नम्बरवन होना ही है, तब तो आफरीन लेंगे ना। आफरीन ते आफरीन लेते ही रहना है। सभी की हिम्मत देख बापदादा खुश होते हैं। अनेक आत्माओं को बाप का सहारा दिलाने के लिए निमित्त बने हुए हो। अच्छे ही परिवार के परिवार हैं। परिवार को बाबा गुलदस्ता कहते हैं। यह भी विशेषता अच्छी है। वैसे तो सभी ब्राह्मणों के स्थान हैं। अगर कोई नैरोबी जायेंगे वा कहाँ भी जायेंगे तो कहेंगे हमारा सेन्टर, बाबा का सेन्टर है। हमारा परिवार है। तो कितने लकी हो गये! बापदादा हर एक रत्न को देख खुश होते। चाहे कोई भी स्थान के हैं लेकिन बाप के हैं और बाप बच्चों का है, इसलिए ब्राह्मण आत्मा अति प्रिय है। विशेष है। एक दो से जास्ती प्यारे लगते हैं। अच्छा।

अब रूहानी पर्सनैलिटी द्वारा सेवा करो (अव्यक्त महावाक्य चुने हुए)

1- आप ब्राह्मणों जैसी रूहानी पर्सनैलिटी सारे कल्प में और किसी की भी नहीं है क्योंकि आप सबकी पर्सनैलिटी बनाने वाला ऊंचे ते ऊंचा स्वयं परम आत्मा है। आपकी सबसे बड़े ते बड़ी पर्सनैलिटी है – स्वप्न वा संकल्प में भी सम्पूर्ण प्युरिटी। इस प्युरिटी के साथ-साथ चेहरे और चलन में रूहानियत की भी पर्सनैलिटी है – अपनी इस पर्सनैलिटी में सदा स्थित रहो तो सेवा स्वत: होगी। कोई कैसी भी परेशान, अशान्त आत्मा हो आपकी रूहानी पर्सनैलिटी की झलक, प्रसन्नता की नज़र उन्हें प्रसन्न कर देगी। नज़र से निहाल हो जायेंगे। अभी समय की समीपता के अनुसार नज़र से निहाल करने की सेवा करने का समय है। आपकी एक नज़र से वह प्रसन्नचित हो जायेंगे, दिल की आश पूर्ण हो जायेगी।

जैसे ब्रह्मा बाप के सूरत वा सीरत की पर्सनैलिटी थी तब आप सब आकर्षित हुए, ऐसे फालो फादर करो। सर्व प्राप्तियों की लिस्ट बुद्धि में इमर्ज रखो तो चेहरे और चलन में प्रसन्नता की पर्सनैलिटी दिखाई देगी और यह पर्सनैलिटी हर एक को आकर्षित करेगी। रूहानी पर्सनैलिटी द्वारा सेवा करने के लिए अपनी मूड सदा चियरफुल और केयरफुल रखो। मूड बदलनी नहीं चाहिए। कारण कुछ भी हो, उस कारण का निवारण करो। सदा प्रसन्नता की पर्सनैलिटी में रहो। प्रसन्नचित्त रहने से बहुत अच्छे अनुभव करेंगे। प्रसन्नचित आत्मा के संग में रहना, उनसे बात करना, बैठना सबको अच्छा लगता है। तो लक्ष्य रखो कि प्रश्नचित्त नहीं, प्रसन्नचित्त रहना है।

आप बच्चे बाहर के रूप में भल साधारण पर्सनैलिटी वाले हो लेकिन रुहानी पर्सनैलिटी में सबसे नम्बरवन हो। आपके चेहरे पर, चलन में प्योरिटी की पर्सनैलिटी है। जितना-जितना जो प्योर है उतनी उनकी पर्सनैलिटी न सिर्फ दिखाई देती है लेकिन अनुभव होती है और वह पर्सनैलिटी ही सेवा करती है। जो ऊंची पर्सनैलिटी वाले होते हैं उसकी कहाँ भी, किसी में भी आंख नहीं जाती क्योंकि वह सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न हैं। वे कभी अपने प्राप्तियों के भण्डार में कोई अप्राप्ति अनुभव नहीं करते। वह सदा मन से भरपूर होने के कारण सन्तुष्ट रहते हैं, ऐसी सन्तुष्ट आत्मा ही दूसरों को सन्तुष्ट कर सकती है।

जितनी पवित्रता है उतनी ब्राह्मण जीवन की पर्सनैलिटी है, अगर पवित्रता कम तो पर्सनैलिटी कम। ये प्योरिटी की पर्सनैलिटी सेवा में भी सहज सफलता दिलाती है। लेकिन यदि एक विकार भी अंशमात्र है तो दूसरे साथी भी उसके साथ जरूर होंगे। जैसे पवित्रता का सुख-शान्ति से गहरा सम्बन्ध है, ऐसे अपवित्रता का भी पांच विकारों से गहरा सम्बन्ध है इसलिए कोई भी विकार का अंशमात्र न रहे तब कहेंगे पवित्रता की पर्सनैलिटी द्वारा सेवा करने वाले।

आजकल दो प्रकार की पर्सनैलिटी गाई जाती है – एक शारीरिक पर्सनैलिटी, दूसरी पोजीशन की पर्सनैलिटी। ब्राह्मण जीवन में जिस ब्राह्मण आत्मा में सन्तुष्टता की महानता है – उनकी सूरत में, उनके चेहरे में भी सन्तुष्टता और श्रेष्ठ स्थिति के पोजीशन की पर्सनैलिटी दिखाई देती है। जिनके नयन-चैन में, चेहरे में, चलन में सन्तुष्टता की पर्सनैलिटी दिखाई देती है वही तपस्वी हैं। उनका चित्त सदा प्रसन्न होगा, दिल-दिमाग सदा आराम में, सुख-चैन की स्थिति में होगा, कभी बेचैन नहीं होंगे। हर बोल और कर्म से, दृष्टि और वृत्ति से रूहानी पर्सनैलिटी और रॉयल्टी का अनुभव करायेंगे।

विशेष आत्माओं वा महान आत्माओं को देश की वा विश्व की पर्सनैलिटीज़ कहते हैं। पवित्रता की पर्सनैलिटी अर्थात् हर कर्म में महानता और विशेषता। रूहानी पर्सनैलिटी वाली आत्मायें अपनी इनर्जी, समय, संकल्प वेस्ट नहीं गँवाते, सफल करते हैं। ऐसी पर्सनैलिटी वाले कभी भी छोटी-छोटी बातों में अपने मन-बुद्धि को बिज़ी नहीं रखते हैं। रूहानी पर्सनैलिटी वाली विशेष आत्माओं की दृष्टि, वृत्ति, बोल.. सबमें अलौकिकता होगी, साधारणता नहीं। साधारण कार्य करते भी शक्तिशाली, कर्मयोगी स्थिति का अनुभव करायेंगे। जैसे ब्रह्मा बाप को देखा – चाहे बच्चों के साथ सब्जी भी काटते रहे, खेल करते रहे लेकिन पर्सनैलिटी सदा आकर्षित करती रही। तो फालो फादर।

ब्राह्मण जीवन की पर्सनैलिटी ‘प्रसन्नता’ है। इस पर्सनैलिटी को अनुभव में लाओ और औरों को भी अनुभवी बनाओ। सदा शुभ-चिन्तन से सम्पन्न रहो, शुभ-चिन्तक बन सर्व को स्नेही, सहयोगी बनाओ। शुभ-चिन्तक आत्मा ही सदा प्रसन्नता की पर्सनैलिटी में रह विश्व के आगे विशेष पर्सनैलिटी वाली बन सकती है। आजकल पर्सनैलिटी वाली आत्मायें सिर्फ नामीग्रामी बनती हैं अर्थात् नाम बुलन्द होता है लेकिन आप रूहानी पसनैलिटी वाले सिर्फ नामी-ग्रामी अर्थात् गायन-योग्य नहीं लेकिन गायन-योग्य के साथ पूजनीय योग्य भी बनते हो। कितने भी बड़े धर्म-क्षेत्र में, राज्य-क्षेत्र में, साइंस के क्षेत्र में पर्सनैलिटी वाले प्रसिद्ध हुए हैं लेकिन आप रूहानी पर्सनैलिटी समान 63 जन्म पूजनीय नहीं बने हैं।

वरदान:-

कम्बाइन्ड स्वरूप की स्मृति द्वारा श्रेष्ठ स्थिति की सीट पर सेट रहने वाले सदा सम्पन्न भव

संगमयुग पर शिव शक्ति के कम्बाइन्ड स्वरूप की स्मृति में रहने से हर असम्भव कार्य सम्भव हो जाता है। यही सर्व श्रेष्ठ स्वरूप है। इस स्वरूप में स्थित रहने से सम्पन्न भव का वरदान मिल जाता है। बापदादा सभी बच्चों को सदा सुखदाई स्थिति की सीट देते हैं। सदा इसी सीट पर सेट रहो तो अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलते रहेंगे सिर्फ विस्मृति के संस्कार समाप्त करो।

स्लोगन:-

पावरफुल वृत्ति द्वारा आत्माओं को योग्य और योगी बनाओ।

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