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28-07-2020

28-07-2020 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन


“मीठे बच्चे – इस बेहद नाटक में तुम वन्डरफुल एक्टर हो, यह अनादि नाटक है, इसमें कुछ भी बदली नहीं हो सकता”

प्रश्नः-

बुद्धिवान, दूरादेशी बच्चे ही किस गुह्य राज़ को समझ सकते हैं?

उत्तर:-

मूलवतन से लेकर सारे ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त का जो गुह्य राज़ है, वह दूरादेशी बच्चे ही समझ सकते हैं, बीज और झाड़ का सारा ज्ञान उनकी बुद्धि में रहता है। वह जानते हैं – इस बेहद के नाटक में आत्मा रूपी एक्टर जो यह चोला पहनकर पार्ट बजा रही है, इसे सतयुग से लेकर कलियुग तक पार्ट बजाना है। कोई भी एक्टर बीच में वापिस जा नहीं सकता।

गीत:-

तूने रात गँवाई……..

ओम् शान्ति। यह गीत बच्चों ने सुना। अब इसमें कोई अक्षर राइट भी हैं, तो रांग भी हैं। सुख में तो सिमरण किया नहीं जाता। दु:ख को भी आना है जरूर। दु:ख हो तब तो सुख देने के लिए बाप को आना पड़े। मीठे-मीठे बच्चों को मालूम है, अभी हम सुखधाम के लिए पढ़ रहे हैं। शान्तिधाम और सुखधाम। पहले मुक्ति फिर होती है जीवनमुक्ति। शान्तिधाम घर है, वहाँ कोई पार्ट नहीं बजाया जाता। एक्टर्स घर में चले जाते हैं, वहाँ कोई पार्ट नहीं बजाते। पार्ट स्टेज पर बजाया जाता है। यह भी स्टेज है। जैसे हद का नाटक होता है वैसे यह बेहद का नाटक है। इनके आदि-मध्य-अन्त का राज़ सिवाए बाप के कोई और समझा न सके। वास्तव में यह यात्रा अथवा युद्ध अक्षर सिर्फ समझाने में काम में लाते हैं। बाकी इसमें युद्ध आदि कुछ है नहीं। यात्रा भी अक्षर है। बाकी है तो याद। याद करते-करते पावन बन जायेंगे। यह यात्रा पूरी भी यहाँ ही होगी। कहाँ जाना नहीं है। बच्चों को समझाया जाता है पावन बनकर अपने घर जाना है। अपवित्र तो जा न सकें। अपने को आत्मा समझना है। मुझ आत्मा में सारे चक्र का पार्ट है। अभी वह पार्ट पूरा हुआ है। बाप राय देते हैं बहुत सहज, मुझे याद करो। बाकी बैठे तो यहाँ ही हो। कहाँ जाते नहीं हो। बाप आकर कहते हैं मुझे याद करो तो तुम पावन बन जायेंगे। युद्ध कोई है नहीं। अपने को तमोप्रधान से सतोप्रधान बनाना है। माया पर जीत पानी है। बच्चे जानते हैं 84 का चक्र पूरा होना है, भारत सतोप्रधान था। उसमें जरूर मनुष्य ही होंगे। जमीन थोड़ेही बदलेगी। अभी तुम जानते हो हम सतोप्रधान थे फिर तमोप्रधान बने अब फिर सतोप्रधान बनना है। मनुष्य पुकारते भी हैं कि आकर हमको पतित से पावन बनाओ। परन्तु वह कौन है, कैसे आते हैं, कुछ नहीं जानते। अभी बाबा ने तुम्हें समझदार बनाया है। कितना ऊंच मर्तबा तुम पाते हो। वहाँ के गरीब भी बहुत ऊंच हैं, यहाँ के साहूकारों से। भल कितने भी बड़े-बड़े राजायें थे, धन बहुत था परन्तु हैं तो विकारी ना। इनसे वहाँ की साधारण प्रजा भी बहुत ऊंच बनती है। बाबा फर्क बतलाते हैं। रावण का परछाया आने से पतित बन जाते हैं। निर्विकारी देवताओं के आगे अपने को पतित कह माथा जाकर टेकते हैं। बाप यहाँ आते हैं तो फट से ऊंच चढ़ा देते हैं। सेकण्ड की बात है। अभी बाप ने तीसरा नेत्र दिया है ज्ञान का। तुम बच्चे दूरादेशी बन जाते हो। ऊपर मूलवतन से लेकर सारे ड्रामा का चक्र तुम्हारी बुद्धि में याद है। जैसे हद का ड्रामा देखकर फिर आए सुनाते हैं ना – क्या-क्या देखा। बुद्धि में भरा हुआ है, जो वर्णन करते हैं। आत्मा में भरकर आते हैं फिर आकर डिलेवरी करते हैं। यह फिर हैं बेहद की बातें। तुम बच्चों की बुद्धि में इस बेहद ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त का राज़ रहना चाहिए। जो रिपीट होता रहता है। उस हद के नाटक में तो एक एक्टर निकल जाता है तो फिर बदले में दूसरा आ सकता है। कोई बीमार हुआ तो उनके बदले फिर दूसरा एड कर देंगे। यह तो चैतन्य ड्रामा है, इसमें ज़रा भी अदली-बदली नहीं हो सकती। तुम बच्चे जानते हो हम आत्मा हैं। यह शरीर रूपी चोला है, जो पहनकर हम बहुरूपी पार्ट बजाते हैं। नाम, रूप, देश, फीचर्स बदलते जाते हैं। एक्टर्स को अपनी एक्ट का तो मालूम होता है ना। बाप बच्चों को यह चक्र का राज़ तो समझाते रहते हैं। सतयुग से लेकर कलियुग तक आते हैं फिर जाते हैं फिर नये सिर आकर पार्ट बजाते हैं। इनकी डिटेल समझाने में टाइम लगता है। बीज में भल नॉलेज है फिर भी समझाने में टाइम तो लगता है ना। तुम्हारी बुद्धि में सारा बीज और झाड़ का राज़ है, सो भी जो अच्छे बुद्धिवान हैं, वही समझते हैं कि इसका बीज ऊपर में हैं। इनकी उत्पत्ति, पालना और संहार कैसे होता है, इसलिए त्रिमूर्ति भी दिखाया है। यह समझानी जो बाप देते हैं, और कोई भी मनुष्य दे न सके। जब यहाँ आये तब पता पड़े इसलिए तुम सबको कहते हो यहाँ आकर समझो। कोई-कोई बहुत कट्टर होते हैं तो कहते हैं हमको कुछ सुनना नहीं है। कोई तो फिर सुनते भी हैं, कोई लिटरेचर लेते हैं, कोई नहीं लेते हैं। तुम्हारी बुद्धि अभी कितनी विशाल, दूरादेशी हो गई है। तीनों लोकों को तुम जानते हो, मूलवतन जिसको निराकारी दुनिया कहा जाता है। बाकी सूक्ष्मवतन का कुछ भी है नहीं। कनेक्शन सारा है मूलवतन और स्थूलवतन से। बाकी सूक्ष्मवतन तो थोड़ा टाइम के लिए है। बाकी आत्मायें सब ऊपर से यहाँ आती हैं पार्ट बजाने। यह झाड़ सब धर्मों का नम्बरवार है। यह है मनुष्यों का झाड़ और बिल्कुल एक्यूरेट है। कुछ भी आगे-पीछे हो न सके। न आत्मायें और कोई जगह बैठ सकती हैं। आत्मायें ब्रह्म महतत्व में खड़ी होती हैं, जैसे स्टार्स आकाश में खड़े हैं। यह स्टार्स तो दूर से छोटे-छोटे देखने में आते हैं। हैं तो बड़े। लेकिन आत्मा तो न छोटी-बड़ी होती है, न विनाश को पाती है। तुम गोल्डन एज में जाते हो फिर आइरन एज में आते हो। बच्चे जानते हैं हम गोल्डन एज में थे, अब आइरन एज में आ गये हैं। कोई वैल्यु नहीं रही है। भल माया की चमक कितनी भी है परन्तु यह है रावण की गोल्डन एज, वह है ईश्वरीय गोल्डन एज।

मनुष्य कहते रहते हैं – 6-7 वर्षों में इतना अनाज होगा, जो बात मत पूछो। देखो, उन्हों का प्लैन क्या है और तुम बच्चों का प्लैन क्या है? बाप कहते हैं मेरा प्लैन है पुरानी को नया बनाना। तुम्हारा एक ही प्लैन है। जानते हो बाप की श्रीमत से हम अपना वर्सा ले रहे हैं। बाबा रास्ता बताते हैं, श्रीमत देते हैं, याद में रहने की मत देते हैं। मत अक्षर तो है ना। संस्कृत अक्षर तो बाप नहीं बोलते हैं। बाप तो हिन्दी में ही समझाते रहते हैं। भाषायें तो ढेर हैं ना। इन्टरप्रेटर भी होते हैं, जो सुनकर फिर सुनाते हैं। हिन्दी और इंगलिश तो बहुत जानते हैं। पढ़ते हैं। बाकी मातायें घर में रहने वाली इतना नहीं पढ़ती हैं। आजकल विलायत में अंग्रेजी सीखते हैं तो फिर यहाँ आने से भी इंगलिश बोलते रहते हैं। हिन्दी बोल ही नहीं सकते। घर में आते हैं तो माँ से इंगलिश में बात करने लग पड़ते हैं। वह बिचारी मूँझ पड़ती हैं हम क्या जानें इंगलिश से। फिर उनको टूटी-फूटी हिन्दी सीखनी पड़े। सतयुग में तो एक राज्य एक भाषा थी, जो अब फिर से स्थापन कर रहे हैं। हर 5 हज़ार वर्ष बाद यह सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है सो बुद्धि में रहना चाहिए। अब एक बाप की ही याद में रहना है। यहाँ तुमको फुर्सत अच्छी रहती है। सवेरे में स्नान आदि कर बाहर घूमने फिरने में बड़ा मज़ा आता है, अन्दर में यही याद रहे हम सब एक्टर्स हैं। यह भी अभी स्मृति आई है। बाबा ने हमको 84 के चक्र का राज़ बताया है। हम सतोप्रधान थे, यह बड़ी खुशी की बात है। मनुष्य घूमते-फिरते हैं, उनकी कुछ भी कमाई नहीं। तुम तो बहुत कमाई करते हो। बुद्धि में चक्र भी याद रहे फिर बाप को भी याद करते रहो। कमाई करने की युक्तियां बाबा बहुत अच्छी-अच्छी बताते हैं। जो बच्चे ज्ञान का विचार सागर मंथन नहीं करते हैं उनकी बुद्धि में माया खिट-खिट करती है। उन्हें ही माया तंग करती है। अन्दर में यह विचार करो हमने यह चक्र कैसे लगाया है। सतयुग में इतने जन्म लिए फिर नीचे उतरते आये। अब फिर सतोप्रधान बनना है। बाबा ने कहा है – मुझे याद करो तो सतोप्रधान बन जायेंगे। चलते-फिरते बुद्धि में याद रहे तो माया की खिट-खिट समाप्त हो जायेगी। तुम्हारा बहुत-बहुत फ़ायदा होगा। भल स्त्री-पुरूष साथ जाते हो। हर एक को अपनेसिर मेहनत करनी है, अपना ऊंच पद पाने। अकेले में जाने से तो बहुत ही मज़ा है। अपनी ही धुन में रहेंगे। दूसरा साथ में होगा तो भी बुद्धि इधर-उधर जायेगी। है बहुत सहज, बगीचे आदि तो सब जगह हैं, इन्जीनियर होगा तो उनका यही चिंतन चलता रहेगा कि यहाँ पुल बनानी है, यह करना है। बुद्धि में प्लैन आ जाता है। तुम भी घर में बैठो फिर भी बुद्धि उस तरफ लगी रहे। यह आदत रखो तो तुम्हारे अन्दर यही चिन्तन चलता रहे। पढ़ना भी है, धंधा आदि भी करना है। बूढ़े, जवान, बच्चों आदि सबको पावन बनना है। आत्मा को हक है, बाप से वर्सा लेने का। बच्चों को भी छोटेपन में ही यह बीज पड़ जाए तो बहुत अच्छा। आध्यात्मिक विद्या और कोई सिखा न सके।

तुम्हारी यह जो आध्यात्मिक विद्या है, यह तुमको बाप ही आकर पढ़ाते हैं। उन स्कूलों में मिलती है जिस्मानी विद्या। और वह है शास्त्रों की विद्या। यह फिर है रूहानी विद्या, जो तुमको भगवान सिखलाते हैं। इनका किसको भी पता नहीं। इनको कहा ही जाता है स्प्रीचुअल नॉलेज। जो रूह आकर पढ़ाते हैं, उनका और कोई नाम नहीं रखा जा सकता। यह तो स्वयं बाप आकर पढ़ाते हैं। भगवानुवाच है ना। भगवान एक ही बार इस समय आकर समझाते हैं, इसको रूहानी नॉलेज कहा जाता है। वह शास्त्रों की विद्या अलग है। तुमको पता है कि नॉलेज एक है जिस्मानी कॉलेज आदि की, दूसरी है आध्यात्मिक शास्त्रों की विद्या, तीसरी है यह रूहानी नॉलेज। वह भल कितने भी बड़े-बड़े डॉक्टर ऑफ फिलॉसॉफी हैं, परन्तु उन्हों के पास भी शास्त्रों की बातें हैं। तुम्हारी यह नॉलेज बिल्कुल अलग है। यह स्प्रीचुअल नॉलेज जो स्प्रीचुअल फादर सभी आत्माओं का बाप है, वही पढ़ाते हैं। उनकी महिमा है शान्ति, सुख का सागर……। कृष्ण की महिमा बिल्कुल अलग है, गुण-अवगुण मनुष्य में होते हैं, जो बोलते रहते हैं। बाप की महिमा को भी यथार्थ रीति तुम जानते हो। वह तो सिर्फ तोते मुआफिक गाते हैं, अर्थ कुछ नहीं जानते। तो बच्चों को बाबा राय देते हैं अपनी उन्नति कैसे करो। पुरूषार्थ करते रहेंगे तो फिर पक्का होता जायेगा फिर ऑफिस में काम करने समय भी यह स्मृति आयेगी, ईश्वर की स्मृति रहेगी। माया की स्मृति तो आधाकल्प चली है, अभी बाप यथार्थ रीति बैठ समझाते हैं। अपने को देखो – हम क्या थे, अब क्या बन गये हैं! फिर हमको बाबा ऐसा देवता बनाते हैं। यह भी तुम बच्चे ही नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार जानते हो। पहले-पहले भारत ही था। भारत में ही बाप भी आते हैं पार्ट बजाने। तुम भी आदि सनातन देवी-देवता धर्म के हो ना। तुमको पवित्र बनना है, नहीं तो पिछाड़ी में आयेंगे, फिर क्या सुख पायेंगे। भक्ति जास्ती नहीं की होगी तो आयेंगे नहीं। समझ जायेंगे यह इतना उठाने वाला नहीं है। समझ तो सकते हैं ना। बहुत मेहनत करते हैं फिर भी कोई बिरले निकलते हैं लेकिन थकना नहीं है। मेहनत तो करनी है। मेहनत बिगर कुछ मिलता थोड़ेही है। प्रजा तो बनती रहती है।

बाबा बच्चों को उन्नति के लिए युक्ति बताते हैं – बच्चे, अपनी उन्नति करनी है तो सवेरे-सवेरे स्नान आदि कर एकान्त में जाकर चक्र लगाओ वा बैठ जाओ। तन्दुरूस्ती के लिए पैदल करना भी अच्छा है। बाबा भी याद पड़ेगा और ड्रामा का राज़ भी बुद्धि में रहेगा, कितनी कमाई है। यह है सच्ची कमाई, वह कमाई पूरी हुई फिर इस कमाई का चिंतन करो। डिफीकल्ट कुछ भी नहीं है। बाबा का देखा हुआ है सारी जीवन कहानी लिखते हैं – आज इतने बजे उठा, फिर यह किया…… समझते हैं पिछाड़ी वाले पढ़कर सीखेंगे। बड़े-बड़े मनुष्यों की बायोग्राफी पढ़ते हैं ना। बच्चों के लिए लिखते हैं फिर बच्चे भी घर में ऐसे अच्छे स्वभाव के होते हैं। अभी तुम बच्चों को पुरूषार्थ कर सतोप्रधान बनना है। सतोप्रधान दुनिया का फिर से राज्य लेना है। तुम जानते हो कल्प-कल्प हम राज्य लेते हैं और फिर गँवाते हैं। तुम्हारी बुद्धि में यह सब है। यह है नई दुनिया, नये धर्म के लिए नई नॉलेज, इसलिए मीठे-मीठे बच्चों को फिर भी समझाते हैं – जल्दी-जल्दी पुरूषार्थ करो। शरीर पर भरोसा थोड़ेही है। आजकल मौत बहुत इज़ी हो गया है। वहाँ अमरलोक में ऐसी मृत्यु कब होती नहीं, यहाँ तो बैठे-बैठे कैसे मर जाते हैं इसलिए अपना पुरूषार्थ करते रहो। जमा करते रहो। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) बुद्धि को ज्ञान चिन्तन में बिजी रखने की आदत डालनी है। जब भी समय मिले एकान्त में जाकर विचार सागर मंथन करना है। बाप को याद कर सच्ची कमाई जमा करनी है।

2) दूरादेशी बनकर इस बेहद के नाटक को यथार्थ रीति समझना है। सभी पार्टधारियों के पार्ट को साक्षी होकर देखना है।

वरदान:-

मास्टर ज्ञान सागर बन गुड़ियों का खेल समाप्त करने वाले स्मृति सो समर्थ स्वरूप भव

जैसे भक्ति मार्ग में मूर्ति बनाकर पूजा आदि करते हैं, फिर उन्हें डुबो देते हैं तो आप उसे गुड़ियों की पूजा कहते हो। ऐसे आपके सामने भी जब कोई निर्जीव, असार बातें ईर्ष्या, अनुमान, आवेश आदि की आती हैं और आप उनका विस्तार कर अनुभव करते या कराते हो कि यही सत्य हैं, तो यह भी जैसे उनमें प्राण भर देते हो। फिर उन्हें ज्ञान सागर बाप की याद से, बीती सो बीती कर, स्वउन्नति की लहरों में डुबोते भी हो लेकिन इसमें भी टाइम तो वेस्ट जाता है ना, इसलिए पहले से ही मास्टर ज्ञान सागर बन स्मृति सो समर्थी भव के वरदान से इन गुड़ियों के खेल को समाप्त करो।

स्लोगन:-

जो समय पर सहयोगी बनते हैं उन्हें एक का पदमगुणा फल मिल जाता है।

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