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08-08-2020

08-08-2020 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन


“मीठे बच्चे – जैसे बाप गाइड है, ऐसे गाइड बन सबको घर का रास्ता बताना है, अंधों की लाठी बनना है”

प्रश्नः-

इस बने-बनाये अनादि ड्रामा का राज़ कौन सा है, जो तुम बच्चे ही जानते हो?

उत्तर:-

यह बना बनाया अनादि ड्रामा है इसमें न तो कोई एक्टर एड हो सकता है, न कोई कम हो सकता है। मोक्ष किसी को भी मिलता नहीं। कोई कहे कि हम इस आवागमन के चक्र में आयें ही नहीं। बाबा कहते हाँ कुछ समय के लिए। लेकिन पार्ट से कोई बिल्कुल छूट नहीं सकते। यह ड्रामा का राज़ तुम बच्चे ही जानते हो।

ओम् शान्ति। मीठे-मीठे बच्चे यह जानते हैं कि भोलानाथ किसको कहा जाता है। तुम संगमयुगी बच्चे ही जान सकते हो, कलियुगी मनुष्य रिंचक भी नहीं जानते। ज्ञान का सागर एक बाप है, वही सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान समझाते हैं। अपनी पहचान देते हैं। तुम बच्चे अभी समझते हो, आगे कुछ नहीं जानते थे। बाप कहते हैं मैं ही आकर भारत को स्वर्ग बनाता हूँ, बेहद का वर्सा देता हूँ। जो तुम अभी ले रहे हो। जानते हैं हम बेहद के बाप से बेहद सुख का वर्सा ले रहे हैं। यह बना बनाया ड्रामा है, एक भी एक्टर न एड हो सकता, न कम हो सकता है। सभी को अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है। मोक्ष को पा नहीं सकते। जो-जो जिस धर्म का है फिर उस धर्म में जाने वाले हैं। बौद्धी वा क्रिश्चियन आदि इच्छा करें हम स्वर्ग में जायें, परन्तु जा नहीं सकते। जब उनका धर्म स्थापक आता है तब ही उनका पार्ट है। यह तुम बच्चों की बुद्धि में है। सारी दुनिया के मनुष्य मात्र इस समय नास्तिक हैं अर्थात् बेहद के बाप को न जानने वाले हैं। मनुष्य ही जानेंगे ना। यह नाटकशाला मनुष्यों की है। हर एक आत्मा निर्वाणधाम से आती है पार्ट बजाने। फिर पुरूषार्थ करती है निर्वाणधाम में जाने के लिए। कहते हैं बुद्ध निर्वाण गया। अब बुद्ध का शरीर तो नहीं गया, आत्मा गई। परन्तु बाप समझाते हैं, जाता कोई भी नहीं है। नाटक से निकल ही नहीं सकते। मोक्ष पा नहीं सकते। बना-बनाया ड्रामा है ना। कोई मनुष्य समझते हैं मोक्ष मिलता है, इसलिए पुरूषार्थ करते रहते हैं। जैसे जैनी लोग पुरूषार्थ करते रहते हैं, उनकी अपनी रस्म-रिवाज है, उनका अपना गुरू है, जिसको मानते हैं। बाकी मोक्ष किसको भी मिलता नहीं है। तुम तो जानते हो हम पार्टधारी हैं, इस ड्रामा में। हम कब आये, फिर कैसे जायेंगे, यह किसको भी पता नहीं है। जानवर तो नहीं जानेंगे ना। मनुष्य ही कहते हैं हम एक्टर्स पार्टधारी हैं। यह कर्मक्षेत्र है, जहाँ आत्मायें रहती हैं। उनको कर्मक्षेत्र नहीं कहा जाता। वह तो निराकारी दुनिया है। उसमें कोई खेलपाल नहीं है, एक्ट नहीं। निराकारी दुनिया से साकारी दुनिया में आते हैं पार्ट बजाने, जो फिर रिपीट होता रहता है। प्रलय कभी होती ही नहीं। शास्त्रों में दिखाते हैं – महाभारत लड़ाई में यादव और कौरव मर गये, बाकी 5 पाण्डव बचे, वह भी पहाड़ों पर गल मरे। बाकी कुछ रहा नहीं। इससे समझते हैं प्रलय हो गई। यह सब बातें बैठ बनाई हैं, फिर दिखाते हैं समुद्र में पीपल के पत्ते पर एक बच्चा अंगूठा चूसता आया। अब इनसे फिर दुनिया कैसे पैदा होगी। मनुष्य जो कुछ सुनते हैं वह सत-सत करते रहते हैं। अभी तुम बच्चे जानते हो कि शास्त्रों में भी क्या-क्या लिख दिया है। यह सब हैं भक्ति मार्ग के शास्त्र। भक्तों को फल देने वाला एक भगवान बाप ही है। कोई मुक्ति में, कोई जीवनमुक्ति में चले जायेंगे। हर एक पार्टधारी आत्मा का जब पार्ट आयेगा तब फिर आयेगी। यह ड्रामा का राज़ सिवाए तुम बच्चों के और कोई नहीं जानते। कहते हैं हम रचता और रचना को नहीं जानते। ड्रामा के एक्टर्स होकर और ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त, ड्युरेशन आदि को न जानें तो बेसमझ कहेंगे ना। समझाने से भी समझते नहीं। 84 लाख समझने कारण ड्युरेशन भी लाखों वर्ष दे देते हैं।

अभी तुम समझते हो बाबा हम आपसे कल्प-कल्प आकर स्वर्ग की बादशाही लेते हैं। 5 हज़ार वर्ष पहले भी आपसे मिले थे, बेहद का वर्सा लेने। यथा राजा-रानी तथा प्रजा सब विश्व के मालिक बनते हैं। प्रजा भी कहेगी हम विश्व के मालिक हैं। तुम जब विश्व के मालिक बनते हो, उस समय चन्द्रवंशी राज्य नहीं होता है। तुम बच्चे ड्रामा के सारे आदि-मध्य-अन्त को जानते हो। मनुष्य भक्ति मार्ग में जिसकी पूजा करते हैं उनको भी जानते नहीं। जिसकी भक्ति करनी होती है तो उनकी बायोग्राफी को भी जानना चाहिए। तुम बच्चे अभी सबकी बायोग्राफी जानते हो बाप के द्वारा। तुम बाप के बने हो। बाप की बायोग्राफी का पता है। वह बाप है पतित-पावन, लिबरेटर, गाइड। तुमको कहते हैं पाण्डव। तुम सबके गाइड बनते हो, अन्धों की लाठी बनते हो सबको रास्ता बताने के लिए। यथा बाप गाइड तथा तुम बच्चों को भी बनना है। सबको रास्ता बताना है। तुम आत्मा, वह परमात्मा है, उनसे बेहद का वर्सा मिलता है। भारत में बेहद का राज्य था, अब नहीं है। तुम बच्चे जानते हो हम बेहद के बाप से बेहद सुख का वर्सा लेते हैं अर्थात् मनुष्य से देवता बनते हैं। हम ही देवतायें थे फिर 84 जन्म लेकर शूद्र बने हैं। बाप आकर शूद्र से ब्राह्मण बनाते हैं। यज्ञ में ब्राह्मण जरूर चाहिए। यह है ज्ञान यज्ञ, भारत में यज्ञ बहुत रचते हैं। इसमें खास आर्य समाजी बहुत यज्ञ करते हैं। अब यह तो है रूद्र ज्ञान यज्ञ, जिसमें सारी पुरानी दुनिया स्वाहा होनी है। अब बुद्धि से काम लेना पड़ता है। कलियुग में तो बहुत मनुष्य हैं, इतनी सारी पुरानी दुनिया खलास हो जायेगी। कोई भी चीज काम में नहीं आनी है। सतयुग में तो फिर सब कुछ नया होगा। यहाँ तो कितना गन्द है। मनुष्य कैसे गन्दे रहते हैं। धनवान बड़े अच्छे महलों में रहते हैं। गरीब तो बिचारे गन्द में, झोपड़ियों में पड़े हैं। अब इन झोपड़ियों को डिस्ट्राय करते रहते हैं। उनको दूसरी जगह दे वह जमीन फिर बेचते रहते हैं। नहीं उठते तो जबरदस्ती उठाते हैं। गरीब दु:खी बहुत हैं, जो सुखी हैं वह भी स्थाई सुखी नहीं। अगर सुख होता तो क्यों कहते कि यह काग विष्टा समान सुख है।

शिव भगवानुवाच, हम इन माताओं के द्वारा स्वर्ग के द्वार खोल रहे हैं। माताओं पर क्लष रखा है। वह फिर सबको ज्ञान अमृत पिलाती हैं। परन्तु तुम्हारा है प्रवृत्ति मार्ग। तुम हो सच्चे-सच्चे ब्राह्मण, तो सबको ज्ञान चिता पर बिठाते हो। अभी तुम बनते हो दैवी सम्प्रदाय। आसुरी सम्प्रदाय अर्थात् रावण राज्य। गांधी भी कहते थे राम राज्य हो। बुलाते हैं हे पतित-पावन आओ परन्तु अपने को पतित समझते थोड़ेही हैं। बाप बच्चों को सुजाग करते हैं, तुम घोर अन्धियारे से सोझरे में आये हो। मनुष्य तो समझते हैं गंगा स्नान करने से पावन बन जायेंगे। ऐसे ही गंगा में हरिद्वार का सारा किचड़ा पड़ता है। कहाँ फिर वह किचड़ा सारा खेती में ले जाते हैं। सतयुग में ऐसे काम होते नहीं। वहाँ तो अनाज ढेर के ढेर होता है। पैसा थोड़ेही खर्च करना पड़ता है। बाबा अनुभवी है ना। पहले कितना अनाज सस्ता था। सतयुग में बहुत थोड़े मनुष्य हैं हर चीज़ सस्ती रहती है। तो बाप कहते हैं – मीठे बच्चे, अभी तुमको पतित से पावन बनना है। युक्ति बहुत सहज बताते हैं, अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो। आत्मा में ही खाद पड़ने से मुलम्मे की बन गई है। जो पारसबुद्धि थे वही अब पत्थरबुद्धि बने हैं। तुम बच्चे अभी बाप के पास पत्थरनाथ से पारसनाथ बनने आये हो। बेहद का बाप तुमको विश्व का मालिक बनाते हैं, सो भी गोल्डन एजेड विश्व का। यह है आइरन एजेड विश्व। बाप बैठ बच्चों को पारसपुरी का मालिक बनाते हैं। तुम जानते हो यहाँ के इतने महल माड़ियाँ आदि कोई काम में नहीं आयेंगे। सब खत्म हो जायेंगे। यहाँ क्या रखा है! अमेरिका के पास कितना सोना है! यहाँ तो थोड़ा बहुत सोना जो माताओं के पास है, वह भी लेते रहते हैं क्योंकि उनको तो कर्ज में सोना देना है। तुम्हारे पास वहाँ सोना ही सोना होता है। यहाँ कौड़ियाँ, वहाँ हीरे होंगे। इनको कहा जाता है आइरन एज। भारत ही अविनाशी खण्ड है, कभी विनाश नहीं होता। भारत है सबसे ऊंच ते ऊंच। तुम मातायें सारे विश्व का उद्धार करती हो। तुम्हारे लिए जरूर नई दुनिया चाहिए। पुरानी दुनिया का विनाश चाहिए। कितनी समझने की बातें हैं। शरीर निर्वाह अर्थ धन्धा आदि भी करना है। छोड़ना कुछ भी नहीं है। बाबा कहते हैं सब कुछ करते हुए मुझे याद करते रहो। भक्ति मार्ग में भी तुम मुझ माशूक को याद करते आये हो कि हमको आकर सांवरे से गोरा बनाओ। उनको मुसाफिर कहा जाता है। तुम सब मुसाफिर हो ना। तुम्हारा घर वह है, जहाँ सब आत्मायें रहती हैं।

तुम सबको ज्ञान चिता पर बिठाते हो। सब हिसाब-किताब चुक्तू कर जाने वाले हैं। फिर नयेसिर तुम आयेंगे, जितना याद में रहेंगे उतना पवित्र बनेंगे और ऊंच पद पायेंगे। माताओं को तो फुर्सत रहती है। मेल्स की बुद्धि धन्धे आदि तरफ चक्र लगाती रहती है, इसलिए बाप ने कलष भी माताओं पर रखा है। यहाँ तो स्त्री को कहते हैं कि पति ही तुम्हारा ईश्वर गुरू सब कुछ है। तुम उनकी दासी हो। अभी फिर बाप तुम माताओं को कितना ऊंच बनाते हैं। तुम नारियाँ ही भारत का उद्धार करती हो। कोई-कोई बाबा से पूछते हैं – आवागमन से छूट सकते हैं? बाबा कहते हैं – हाँ, कुछ समय के लिए। तुम बच्चे तो आलराउन्ड आदि से अन्त तक पार्ट बजाते हो। दूसरे जो हैं वह मुक्तिधाम में रहते हैं। उनका पार्ट ही थोड़ा है। वह स्वर्ग में तो जाने वाले हैं नहीं। आवागमन से मोक्ष उसको कहेंगे जो पिछाड़ी को आये और यह गये। ज्ञान आदि तो सुन न सकें। सुनते वही हैं जो शुरू से अन्त तक पार्ट बजाते हैं। कोई कहते हैं – हमको तो यही पसन्द है। हम वहाँ ही बैठे रहें। ऐसे थोड़ेही हो सकता है। ड्रामा में नूँधा हुआ है, जाकर पिछाड़ी में आयेंगे जरूर। बाकी सारा समय शान्तिधाम में रहते हैं। यह बेहद का ड्रामा है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) सच्चा-सच्चा ब्राह्मण बन सबको ज्ञान अमृत पिलाना है। ज्ञान चिता पर बिठाना है।

2) शरीर निर्वाह अर्थ धन्धा आदि सब कुछ करते पतित से पावन बनने के लिए बाप की याद में रहना है और सबको बाप की याद दिलाना है।

वरदान:-

निरन्तर याद और सेवा के बैलेन्स से बचपन के नाज़ नखरे समाप्त करने वाले वानप्रस्थी भव

छोटी-छोटी बातों में संगम के अमूल्य समय को गंवाना बचपन के नाज़ नखरे हैं। अब यह नाज़ नखरे शोभते नहीं, वानप्रस्थ में सिर्फ एक ही कार्य रह जाता है – बाप की याद और सेवा। इसके सिवाए और कोई भी याद न आये, उठो तो भी याद और सेवा, सोओ तो भी याद और सेवा – निरन्तर यह बैलेन्स बना रहे। त्रिकालदर्शी बनकर बचपन की बातें वा बचपन के संस्कारों का समाप्ति समारोह मनाओ, तब कहेंगे वानप्रस्थी।

स्लोगन:-

सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न आत्मा की निशानी है सन्तुष्टता, सन्तुष्ट रहो और सन्तुष्ट करो।

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