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17-08-2020

17-08-2020 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन


“मीठे बच्चे – ज्ञान सागर बाप आये हैं ज्ञान वर्षा कर इस धरती को सब्ज बनाने, अभी स्वर्ग की स्थापना हो रही है, उसमें चलने के लिए दैवी सम्प्रदाय का बनना है”

प्रश्नः-

सर्वोत्तम कुल वाले बच्चों का मुख्य कर्तव्य क्या है?

उत्तर:-

सदा ऊंची रूहानी सेवा करना। यहाँ बैठे वा चलते-फिरते खास भारत और आम सारे विश्व को पावन बनाना, श्रीमत पर बाप के मददगार बनना – यही सर्वोत्तम ब्राह्मणों का कर्तव्य है।

गीत:-

जो पिया के साथ है……..

ओम् शान्ति। मीठे-मीठे रूहानी बच्चों प्रति रूहानी बाप समझा रहे हैं जो रूहानी बाप के साथ हैं क्योंकि बाप है ज्ञान का सागर। कौन सा बाप? शिवबाबा। ब्रह्मा बाबा को ज्ञान का सागर नहीं कहेंगे। शिवबाबा जिसको ही परमपिता परमात्मा कहा जाता है। एक है लौकिक जिस्मानी पिता, दूसरा है पारलौकिक रूहानी पिता। वह शरीर का पिता, वह आत्माओं का पिता। यह बड़ी अच्छी रीति समझने की बातें हैं और यह ज्ञान सुनाने वाला है ज्ञान सागर। जैसे भगवान सबका एक है, वैसे ज्ञान भी एक दे सकते हैं। बाकी जो शास्त्र गीता आदि पढ़ते हैं, भक्ति करते हैं वह कोई ज्ञान नहीं, उनसे ज्ञान वर्षा नहीं होती है, इसलिए भारत बिल्कुल ही सूख गया है। कंगाल हो गया है। वह बरसात भी नहीं पड़ती है तो जमीन आदि सब सूख जाती है। वह है भक्ति मार्ग। उसको ज्ञान मार्ग नहीं कहेंगे। ज्ञान से स्वर्ग की स्थापना होती है। वहाँ हमेशा धरनी सब्ज रहती है, कभी सूखती नहीं। यह है ज्ञान की पढ़ाई। ईश्वर बाप ज्ञान देकर दैवी सम्प्रदाय बनाते हैं। बाप ने समझाया है मैं तुम सभी आत्माओं का बाप हूँ। परन्तु मुझे और मेरे कर्तव्य को न जानने कारण ही मनुष्य इतने पतित दु:खी निधनके बन गये हैं। आपस में लड़ते रहते हैं। घर में बाप नहीं होता है, बच्चे लड़ते हैं तो कहते हैं ना कि तुम्हारा बाप है या नहीं है? इस समय भी सारी दुनिया बाप को जानती नहीं। न जानने कारण इतनी दुर्गति हुई है। जानने से सद्गति होती है। सर्व का सद्गति दाता एक है। उनको बाबा कहा जाता है। उनका नाम शिव ही है। उनका नाम कभी बदल नहीं सकता। जब सन्यास करते हैं तो नाम बदलते हैं ना। शादी में भी कुमारी का नाम बदलते हैं। यह यहाँ भारत में रिवाज है। बाहर में ऐसा नहीं होता है। यह शिवबाबा सभी का माई बाप है। गाते भी हैं तुम मात पिता…… भारत में ही पुकारते हैं – तुम्हरी कृपा ते सुख घनेरे। ऐसे नहीं कि भक्ति मार्ग में भगवान कृपा करते आये हैं। नहीं, भक्ति में सुख घनेरे होते ही नहीं। बच्चे जानते हैं स्वर्ग में बहुत सुख हैं। वह नई दुनिया है। पुरानी दुनिया में दु:ख ही होता है। जो जीते जी अच्छी रीति मरे हुए हैं उनके नाम बदल सकते हैं। परन्तु माया जीत लेती है तो ब्राह्मण से बदल शूद्र बन जाते हैं इसलिए बाबा नाम नहीं रखते हैं। ब्राह्मणों की माला तो होती नहीं। तुम बच्चे सर्वोत्तम ऊंच कुल वाले हो। ऊंच रूहानी सेवा करते हो। यहाँ बैठे वा चलते फिरते तुम भारत की खास और विश्व की आम सेवा करते हो। विश्व को तुम पवित्र बनाते हो। तुम हो बाप के मददगार। बाप की श्रीमत पर चल तुम मदद करते हो। यह भारत ही पावन बनने का है। तुम कहेंगे हम कल्प-कल्प इस भारत को पवित्र बनाए पवित्र भारत पर राज्य करते हैं। ब्राह्मण से फिर हम भविष्य देवी-देवता बनते हैं। विराट रूप का चित्र भी है। प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे ब्राह्मण ही ठहरे। ब्राह्मण तब होंगे जब प्रजापिता सम्मुख होगा। अभी तुम सम्मुख हो। तुम हर एक प्रजापिता ब्रह्मा की औलाद अपने को समझते हो। यह युक्ति है। औलाद समझने से भाई-बहन हो जाते हैं। भाई-बहन की कभी क्रिमिनल आंख नहीं होनी चाहिए। अभी बाप आर्डीनेन्स निकालते हैं कि तुम 63 जन्म पतित रहे हो, अब पावन दुनिया स्वर्ग में चलना चाहते हो तो पवित्र बनो। वहाँ पतित आत्मा जा नहीं सकती इसलिए ही मुझ बेहद के बाप को तुम बुलाते हो। यह आत्मा शरीर द्वारा बात करती है। शिवबाबा भी कहते हैं मैं इस शरीर द्वारा बात करता हूँ। नहीं तो मैं कैसे आऊं? मेरा जन्म दिव्य है। सतयुग में हैं दैवीगुणों वाले देवतायें। इस समय हैं आसुरी गुणों वाले मनुष्य। यहाँ के मनुष्यों को देवता नहीं कहेंगे। फिर भल कोई भी हो नाम तो बहुत बड़े-बड़े रख देते हैं। साधू अपने को श्री श्री कहते हैं और मनुष्यों को श्री कहते हैं क्योंकि खुद पवित्र हैं इसलिए श्री श्री कहते हैं। हैं तो मनुष्य। भल विकार में नहीं जाते परन्तु विकारी दुनिया में तो हैं ना। तुम भविष्य में निर्विकारी दैवी दुनिया में राज्य करेंगे। होंगे वहाँ भी मनुष्य परन्तु दैवी गुणों वाले होंगे। इस समय मनुष्य आसुरी गुणों वाले पतित हैं। गुरू नानक ने भी कहा है मूत पलीती कपड़ धोए…… गुरू नानक भी बाप की महिमा करते हैं।

अब बाप आये हैं स्थापना और विनाश करने। और जो भी धर्म स्थापक हैं वह सिर्फ धर्म स्थापन करते हैं और धर्मों का विनाश नहीं करते हैं, उन्हों की तो वृद्धि होती रहती है। अभी बाप वृद्धि को बन्द करते हैं। एक धर्म की स्थापना और अनेक धर्मों का विनाश करा देते हैं। ड्रामा अनुसार यह होना ही है। बाप कहते हैं मैं आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना कराता हूँ, जिसके लिए तुमको पढ़ा रहा हूँ। सतयुग में अनेक धर्म होते ही नहीं। ड्रामा में इन सबके वापिस जाने की नूँध है। इस विनाश को कोई टाल नहीं सकते। विश्व में शान्ति तब होती है जब विनाश होता है। इस लड़ाई द्वारा ही स्वर्ग के गेट खुलते हैं। यह भी तुम लिख सकते हो कि यह महाभारी लड़ाई कल्प पहले भी लगी थी। तुम प्रदर्शनी का उद्घाटन कराते हो तो यह लिखो। बाप परमधाम से आये हैं – हेविन का उद्घाटन करने। बाप कहते हैं मैं हेविनली गॉड फादर हेविन का उद्घाटन करने आया हूँ। बच्चों की ही मदद लेता हूँ, स्वर्गवासी बनाने के लिए। इतनी सब आत्माओं को पावन नहीं तो कौन बनाये। ढेर आत्मायें हैं। घर-घर में तुम यह समझा सकते हो। भारतवासी तुम सतोप्रधान थे फिर 84 जन्मों बाद तमोप्रधान बने हो। अब फिर सतोप्रधान बनो। मनमना-भव। ऐसे मत कहो कि हम शास्त्रों को नहीं मानते हैं। बोलो, शास्त्रों को और भक्तिमार्ग को तो हम मानते थे परन्तु अभी यह भक्तिमार्ग की रात पूरी होती है। ज्ञान से दिन शुरू होता है। बाप आये हैं सद्गति करने। समझाने की बड़ी युक्ति चाहिए। कोई अच्छी रीति धारणा करते हैं, कोई कम करते हैं। प्रदर्शनी में भी जो अच्छे-अच्छे बच्चे हैं – वह अच्छा समझाते हैं। जैसे बाप टीचर है तो बच्चों को भी टीचर बनना पड़े। गाया भी जाता है सतगुरू तारे, बाप को कहा जाता है सचखण्ड की स्थापना करने वाला सच्चा बाबा। झूठ खण्ड स्थापन करने वाला है रावण। अब जबकि सद्गति करने वाला मिला है तो फिर हम भक्ति कैसे करेंगे? भक्ति सिखलाने वाले हैं अनेक गुरू लोग। सतगुरू तो एक ही है। कहते भी हैं सतगुरू अकाल…… फिर भी अनेक गुरू बनते रहते हैं। सन्यासी, उदासी बहुत प्रकार के गुरू लोग होते हैं। सिक्ख लोग खुद ही कहते हैं सतगुरू अकाल….. अर्थात् जिसको काल नहीं खाता। मनुष्य को तो काल खा जाता है। बाप समझाते हैं मनमनाभव। उनका फिर है जप साहेब को तो सुख मिले…… मुख्य दो अक्षर हैं। बाप कहते हैं मुझे याद करो – जप साहेब को। साहेब तो एक है। गुरूनानक ने भी उनके लिए इशारा किया है कि उनको जपो। वास्तव में तुमको जपना नहीं है, याद करना है। यह है अजपाजाप। मुख से कुछ बोलो नहीं। शिव-शिव भी कहना नहीं है। तुमको तो जाना है शान्तिधाम। अब बाप को याद करो। अजपाजाप भी एक ही होता है जो बाप सिखलाते हैं। वह कितने घण्टे बजाते, आवाज़ करते, महिमा करते। कहते हैं अचतम् केशवम्…… लेकिन एक भी अक्षर को समझते नहीं। सुख देने वाला तो एक ही बाप है। व्यास भी उनको ही कहेंगे। उनमें नॉलेज है जो देते हैं। सुख भी वही देते हैं। तुम बच्चे समझते हो – अब हमारी चढ़ती कला होती है। सीढ़ी में कलाओं को भी दिखाया है। इस समय कोई कला नहीं है। मैं निर्गुण हारे में……। एक निर्गुण संस्था भी है। अब बाप कहते हैं – बालक तो महात्मा मिसल होता है। उनमें कोई अवगुण नहीं है। उनका फिर नाम रख देते हैं निर्गुण बालक। अगर बालक में गुण नहीं तो बाप में भी नहीं। सबमें अवगुण हैं। गुणवान सिर्फ देवतायें बनते हैं। नम्बरवन अवगुण है जो बाप को नहीं जानते। दूसरा अवगुण है जो विषय सागर में गोता खाते हैं। बाप कहते हैं आधाकल्प तुमने गोता खाया है। अब मैं ज्ञान सागर तुमको क्षीरसागर में ले जाता हूँ। मैं तो क्षीर सागर में जाने के लिए तुमको शिक्षा देता हूँ। मैं इनके बाजू में आकर बैठता हूँ, जहाँ आत्मा रहती है। मैं स्वतंत्र हूँ। कहाँ भी जा आ सकता हूँ। तुम पित्रों को खिलाते हो तो आत्मा को खिलाते हो ना। शरीर तो भस्म हो जाता है। उनको देख भी नहीं सकते। समझते हो फलाने की आत्मा का श्राध है। आत्मा को बुलाया जाता है – यह भी ड्रामा में पार्ट है। कभी आती है, कभी नहीं भी आती है। कोई बताते हैं, कोई नहीं भी बताते हैं। यहाँ भी आत्मा को बुलाते हैं, आकर बोलती है। परन्तु ऐसे नहीं बताती कि फलानी जगह जन्म लिया है। सिर्फ इतना कहेगी कि हम बहुत सुखी हैं, अच्छे घर में जन्म लिया है। अच्छे ज्ञान वाले बच्चे अच्छे घर में जायेंगे। कम ज्ञान वाले कम पद पायेंगे। बाकी सुख तो है। राजा बनना अच्छा है या दासी बनना अच्छा? राजा बनना है तो इस पढ़ाई में लग जाओ। दुनिया तो बहुत गन्दी है। दुनिया के संग को कहेंगे कुसंग। एक सत का संग ही पार करता है, बाकी सब डुबोते हैं। बाप तो सबकी जन्मपत्री जानते हैं ना। यह पाप की दुनिया है, तब तो पुकारते हैं – और कहीं ले चलो। अब बाप कहते हैं – मीठे-मीठे बच्चों, मेरा बनकर फिर मेरी मत पर चलो। यह बहुत गन्दी दुनिया है। करप्शन है। लाखों-करोड़ों रूपयों की ठगी होती है। अब बाप आये हैं बच्चों को स्वर्ग का मालिक बनाने तो अथाह खुशी होनी चाहिए ना। वास्तव में यह है सच्ची गीता। फिर यह ज्ञान प्राय: लोप हो जायेगा। अभी तुमको यह ज्ञान है फिर दूसरा जन्म लेंगे तो ज्ञान खलास। फिर है प्रालब्ध। तुमको पुरूषोत्तम बनाने के लिए बाप पढ़ाते हैं। अभी तुमने बाप को जाना है। अब अमरनाथ की यात्रा होती है। बोलो, जिनको सूक्ष्मवतन में दिखाते हो वह फिर स्थूल वतन में कहाँ से आया? पहाड़ आदि तो यहाँ हैं ना। वहाँ पतित हो कैसे सकते? जो पार्वती को ज्ञान देते हैं। बर्फ का लिंग बैठ हाथ से बनाते हैं। वह तो कहाँ भी बना सकते हैं। मनुष्य कितने धक्के खाते हैं। समझते नहीं कि शंकर के पास पार्वती कहाँ से आई जो उनको पावन बनायेंगे। शंकर कोई परमात्मा नहीं, वह भी देवता है। मनुष्यों को कितना समझाया जाता है फिर भी समझते नहीं। पारसबुद्धि बन नहीं सकते। प्रदर्शनी में कितने आते हैं। कहेंगे नॉलेज तो बहुत अच्छी है। सबको लेनी चाहिए। अरे तुम तो लो। कहेंगे हमको फुर्सत नहीं। प्रदर्शनी में यह भी लिखना चाहिए कि इस लड़ाई के पहले बाप स्वर्ग का उद्घाटन कर रहे हैं। विनाश के बाद स्वर्ग के द्वार खुल जायेंगे। बाबा ने कहा था हर एक चित्र में लिखो – पारलौकिक परमपिता परमात्मा त्रिमूर्ति शिव भगवानुवाच। त्रिमूर्ति न लिखने से कहेंगे शिव तो निराकार है, वह कैसे ज्ञान देंगे? समझाया जाता है यही पहले गोरा था, कृष्ण था फिर अब सांवरा मनुष्य बना है। अब तुमको मनुष्य से देवता बनाते हैं। फिर हिस्ट्री रिपीट होनी है। गायन भी है मनुष्य से देवता किये…….. फिर सीढ़ी उतर मनुष्य बनते हैं। फिर बाप आकर देवता बनाते हैं। बाप कहते हैं मुझे आना पड़ता है। कल्प-कल्प, कल्प के संगमयुगे आता हूँ। युगे-युगे कहना रांग है। मैं संगमयुग पर आकर तुमको पुण्य आत्मा बनाता हूँ। फिर रावण तुमको पाप आत्मा बनाते हैं। बाप ही पुरानी दुनिया को नई दुनिया बनाते हैं। यह समझने की बातें हैं। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) बाप के समान टीचर बनना है, बड़ी युक्ति से सबको इस झूठखण्ड से निकाल सचखण्ड में चलने के लायक बनाना है।

2) दुनिया का संग कुसंग है, इसलिए कुसंग से किनारा कर एक सत का संग करना है। ऊंच पद के लिए इस पढ़ाई में लग जाना है। एक बाप की मत पर ही चलना है।

वरदान:-

सन्तुष्टता द्वारा सर्व से प्रशन्सा प्राप्त करने वाले सदा प्रसन्नचित भव

सन्तुष्टता की निशानी प्रत्यक्ष रूप में प्रसन्नता दिखाई देगी। और जो सदा सन्तुष्ट वा प्रसन्न रहते हैं उनकी हर एक प्रशन्सा अवश्य करते हैं। तो प्रशन्सा, प्रसन्नता से ही प्राप्त कर सकते हो इसलिए सदा सन्तुष्ट और प्रसन्न रहने का विशेष वरदान स्वयं भी लो और औरों को भी दो क्योंकि इस यज्ञ की अन्तिम आहुति – सर्व ब्राह्मणों की सदा प्रसन्नता है। जब सभी सदा प्रसन्न रहेंगे तब प्रत्यक्षता का आवाज गूंजेगा अर्थात् विजय का झण्डा लहरायेगा।

स्लोगन:-

डायमण्ड बन डायमण्ड बनने का मैसेज देना ही डायमण्ड जुबली मनाना है।

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