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23-08-20

23-08-20 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज: 10-03-86 मधुबन


बेफिकर बादशाह बनने की युक्ति

आज बापदादा बेफिकर बादशाहों की सभा देख रहे हैं। यह राज्य सभा सारे कल्प में विचित्र सभा है। बादशाह तो बहुत हुए हैं लेकिन बेफिकर बादशाह यह विचित्र सभा इस संगमयुग पर ही होती है। यह बेफिकर बादशाहों की सभा सतयुग की राज्य सभा से भी श्रेष्ठ है क्योंकि वहाँ तो फिकर और फखुर दोनों के अन्तर का ज्ञान इमर्ज नहीं रहता है। फिकर शब्द का मालूम नहीं होता। लेकिन अभी जबकि सारी दुनिया कोई न कोई फिकर में है – सवेरे से उठते अपना, परिवार का, कार्यव्यवहार का, मित्र सम्बन्धियों का कोई न कोई फिकर होगा लेकिन आप सभी अमृतवेले से बेफिकर बादशाह बन दिन आरम्भ करते और बेफिकर बादशाह बन हर कार्य करते। बेफिकर बादशाह बन आराम की नींद करते। सुख की नींद, शान्ति की नींद करते हो। ऐसे बेफिकर बादशाह बन गये। ऐसे बने हो या कोई फिकर है? बाप के ऊपर जिम्मेवारी दे दी तो बेफिकर हो गये। अपने ऊपर जिम्मेवारी समझने से फिकर होता है। जिम्मेवारी बाप की है और मैं निमित्त सेवाधारी हूँ। मैं निमित्त कर्मयोगी हूँ। करावनहार बाप है, निमित्त करनहार मैं हूँ। अगर यह स्मृति हर समय स्वत: ही रहती है तो सदा ही बेफिकर बादशाह हैं। अगर गलती से भी किसी भी व्यर्थ भाव का अपने ऊपर बोझ उठा लेते हो तो ताज के बजाए फिकर के अनेक टोकरे सिर पर आ जाते हैं। नहीं तो सदा लाइट के ताजधारी बेफिकर बादशाह हो। बस बाप और मैं तीसरा न कोई। यह अनुभूति सहज बेफिकर बादशाह बना देती है। तो ताजधारी हो या टोकरेधारी हो? टोकरा उठाना और ताज पहनना कितना फर्क हो गया। एक ताजधारी सामने खड़ा करो और एक बोझ वाला, टोकरे वाला खड़ा करो तो क्या पसन्द आयेगा! ताज या टोकरा? अनेक जन्मों के अनेक बोझ के टोकरे तो बाप आकर उतार कर हल्का बना देता। तो बेफिकर बादशाह अर्थात् सदा डबल लाइट रहने वाले। जब तक बादशाह नहीं बने हैं तब तक यह कर्मेन्द्रियाँ भी अपने वश में नहीं रह सकती हैं। राजा बनते हो तब ही मायाजीत, कर्मेन्द्रिय-जीत, प्रकृति जीत बनते हो। तो राज्य सभा में बैठे हो ना! अच्छा-

आज यूरोप का टर्न है। यूरोप ने अच्छा विस्तार किया है। यूरोप ने अपने पड़ोस के देशों के कल्याण का प्लैन अच्छा बनाया है। जैसे बाप सदा कल्याणकारी है वैसे बच्चे भी बाप समान कल्याण की भावना रखने वाले हैं। अभी किसी को भी देखेंगे तो रहम आता है ना कि यह भी बाप के बन जाएं। देखो बापदादा स्थापना के समय से लेकर विदेश के सभी बच्चों को किसी न किसी रूप से याद करते रहे हैं। और बापदादा की याद से समय आने पर चारों ओर के बच्चे पहुँच गये हैं। लेकिन बापदादा ने आह्वान बहुत समय से किया है। आह्वान के कारण आप लोग भी चुम्बक की तरह आकर्षित हो पहुँच गये हो। ऐसे लगता है ना कि नामालूम कैसे हम बाप के बन गये। बन गये यह तो अच्छा लगता ही है, लेकिन क्या हो गया, कैसे हो गया यह कभी बैठकर सोचो, कहाँ से कहाँ आकर पहुँच गये हो, तो सोचने से विचित्र भी लगता है ना! ड्रामा में नूधँ नूँधी हुई थी। ड्रामा की नूँध ने सभी को कोने-कोने से निकालकर एक परिवार में पहुँचा दिया। अभी यही परिवार अपना लगने के कारण अति प्यारा लगता है। बाप प्यारे ते प्यारा है तो आप सभी भी प्यारे बन गये हो। आप भी कम नहीं हो। आप सभी भी बापदादा के संग के रंग में अति प्यारे बन गये हो। किसी को भी देखो तो हर एक एक-दो से प्यारा लगता है। हर एक के चेहरे पर रूहानियत का प्रभाव दिखाई देता है। फारेनर्स को मेकप करना अच्छा लगता है! तो यह फरिश्तेपन का मेकप करने का स्थान है। यह मेकप ऐसा है जो फरिश्ता बन जाते हैं। जैसे मेकप के बाद कोई कैसा भी हो लेकिन बदल जाता है ना। मेकप से बहुत सुन्दर लगता है। तो यहाँ भी सभी चमकते हुए फरिश्ते लगते हो क्योंकि रूहानी मेकप कर लिया है। उस मेकप में तो नुकसान भी होता है। इसमें कोई नुकसान नहीं। तो सभी चमकते हुए सर्व के स्नेही आत्मायें हो ना! यहाँ स्नेह के बिना और कुछ है ही नहीं। उठो तो भी स्नेह से गुडमॉर्निगं करते, खाते हो तो भी स्नेह से ब्रह्मा भोजन खाते हो। चलते हो तो भी स्नेह से बाप के साथ हाथ मे हाथ मिलाकर चलते हो। फारेनर्स को हाथ में हाथ मिलाकर चलना अच्छा लगता है ना! तो बापदादा भी कहते हैं कि सदा बाप को हाथ में हाथ दे फिर चलो। अकेले नहीं चलो। अकेले चलेंगे तो कभी बोर हो जायेंगे और कभी किसकी नज़र भी पड़ जायेगी। बाप के साथ चलेंगे तो एक तो कभी भी माया की नज़र नहीं पड़ेगी और दूसरा साथ होने के कारण सदा ही खुशी-खुशी से मौज से खाते चलते मौज मनाते जायेंगे। तो साथी सबको पसन्द है ना! या और कोई चाहिए! और कोई कम्पेनियन की जरूरत तो नहीं है ना! कभी थोड़ा दिल बहलाने के लिए कोई और चाहिए? धोखा देने वाले सम्बन्ध से छूट गये। उसमें धोखा भी है और दु:ख भी है। अभी ऐसे सम्बन्ध में आ गये जहाँ न धोखा है, न दु:ख है। बच गये। सदा के लिए बच गये। ऐसे पक्के हो? कोई कच्चे तो नहीं? ऐसे तो नहीं वहाँ जाकर पत्र लिखेंगे कि क्या करें, कैसे करें, माया आ गई।

यूरोप वालों ने विशेष कौन-सी कमाल की है? बापदादा सदा देखते रहे हैं कि बाप जो कहते हैं कि हर वर्ष बाप के आगे गुलदस्ता ले करके आना, वह बाप के बोल प्रैक्टिकल में लाने का सभी ने अच्छा अटेन्शन रखा है। यह उमंग सदा ही रहा है और अभी भी है कि हर वर्ष नये-नये बिछुड़े हुए बाप के बच्चे अपने घर में पहुँचे, अपने परिवार में पहुँचे। तो बापदादा देख रहे हैं कि यूरोप ने भी यह लक्ष्य रख करके वृद्धि अच्छी की है। तो बाप के महावाक्यों को, आज्ञा को पालन करने वाले आज्ञाकारी कहलाये जाते हैं और जो आज्ञाकारी बच्चे होते हैं उन्हों पर विशेष बाप की आशीर्वाद सदा ही रहती है। आज्ञाकारी बच्चे स्वत: ही आशीर्वाद के पात्र आत्मायें होते हैं। समझा! कुछ वर्ष पहले कितने थोड़े थे लेकिन हर साल वृद्धि को प्राप्त करते बड़े ते बड़ा परिवार बन गया। तो एक से दो, दो से तीन अभी कितने सेन्टर हो गये। यू. के. तो अलग बड़ा है ही, कनेक्शन तो सबका यू. के. से है ही क्योंकि विदेश का फाउण्डेशन तो वही है। कितनी भी शाखायें निकल जाएं, झाड़ विस्तार को प्राप्त करता रहे लेकिन कनेक्शन तो फाउण्डेशन से होता ही है। अगर फाउण्डेशन से कनेक्शन नहीं रहे तो फिर विस्तार वृद्धि को कैसे प्राप्त करें। लण्डन में विशेष अनन्य रत्न को निमित्त बनाया क्योंकि फाउण्डेशन है ना। तो सभी का कनेक्शन डायरेक्शन सहज मिलने से पुरुषार्थ और सेवा दोनों में सहज हो जाता है। बापदादा तो है ही। बापदादा के बिना तो एक सेकण्ड भी नहीं चल सकते हो, ऐसा कम्बाइन्ड है। फिर भी साकार रूप में, सेवा के साधनों में, सेवा के प्रोग्राम्स प्लैन्स में और साथ-साथ अपनी स्व-उन्नति के लिए भी किसी को भी कोई भी डायरेक्शन चाहिए तो कनेक्शन रखा हुआ है। यह भी निमित्त बनाये हुए माध्यम है, जिससे सहज ही हल मिल सकें। कई बार ऐसे माया के तूफान आते हैं जो बुद्धि क्लीयर न होने के कारण बापदादा के डायरेक्शन को, शक्ति को कैच नहीं कर सकते हैं। ऐसे टाइम के लिए फिर साकार माध्यम निमित्त बनाये हुए हैं। जिसको आप लोग कहते हो दीदियाँ, दादियाँ, यह निमित्त हैं, जिससे टाइम वेस्ट न जाये। बाकी बापदादा जानते हैं कि हिम्मत वाले हैं। वहाँ से ही निकलकर और वहाँ ही सेवा के निमित्त बन गये हैं तो चैरिटी बिगन्स एट होम का पाठ अच्छा पक्का किया है, वहाँ के ही निमित्त बन वृद्धि को प्राप्त कराना यह बहुत अच्छा है। कल्याण की भावना से आगे बढ़ रहे हो। तो जहाँ दृढ़ संकल्प है वहाँ सफलता है ही। कुछ भी हो जाए लेकिन सेवा में सफलता पानी ही है – इस श्रेष्ठ संकल्प ने आज प्रत्यक्ष फल दिया है। अभी अपने श्रेष्ठ परिवार को देख विशेष खुशी होती है और विशेष पाण्डव ही टीचर हैं। शक्तियाँ सदा मददगार तो हैं ही। पाण्डवों से सदा सेवा की विशेष वृद्धि का प्रत्यक्षफल मिलता है। और सेवा से भी ज्यादा सेवाकेन्द्र की रिमझिम, सेवाकेन्द्र की रौनक शक्तियों से होती है। शक्तियों का अपना पार्ट है, पाण्डवों का अपना पार्ट है इसलिए दोनों आवश्यक हैं। जिस सेन्टर पर सिर्फ शक्तियाँ होती और पाण्डव नहीं हैं तो पावरफुल नहीं होते इसलिए दोनों ही जरूरी हैं। अभी आप लोग जगे हो तो एक दो से सहज ही अनेक जगते जायेंगे। मेहनत और टाइम तो लगा लेकिन अभी अच्छी वृद्धि को पा रहे हो। दृढ़ संकल्प कभी सफल न हो, यह हो नहीं सकता। यह प्रैक्टिकल प्रूफ देख रहे हैं। अगर थोड़ा भी दिल-शिकस्त हो जाते कि यहाँ तो होना ही नहीं है। तो अपना थोड़ा सा कमजोर संकल्प सेवा में भी फर्क ले आता है। दृढ़ता का पानी फल जल्दी निकालता है। दृढ़ता ही सफलता लाती है।

“परमात्म दुआयें लेनी है तो आज्ञाकारी बनो” (अव्यक्त मुरलियों से)

जैसे बाप ने कहा ऐसे किया, बाप का कहना और बच्चों का करना – इसको कहते हैं नम्बरवन आज्ञाकारी। बाप के हर डॉयरेक्शन को, श्रीमत को यथार्थ समझकर पालन करना – इसको कहते हैं आज्ञाकारी बनना। श्रीमत में संकल्प मात्र भी मनमत वा परमत मिक्स न हो। बाप की आज्ञा है ‘मुझ एक को याद करो’। अगर इस आज्ञा को पालन करते हैं तो आज्ञाकारी बच्चे को बाप की दुआयें मिलती हैं और सब सहज हो जाता है।

बापदादा ने अमृतवेले से लेकर रात के सोने तक मन्सा-वाचा-कर्मणा और सम्बंध-सम्पर्क में कैसे चलना है वा रहना है – सबके लिए श्रीमत अर्थात् आज्ञा दी हुई है। हर कर्म में मन्सा की स्थिति कैसी हो उसका भी डायरेक्शन वा आज्ञा मिली हुई है। उसी आज्ञा प्रमाण चलते चलो। यही परमात्म दुआयें प्राप्त करने का आधार है। इन्हीं दुआओं के कारण आज्ञाकारी बच्चे सदा डबल लाइट, उड़ती कला का अनुभव करते हैं। बापदादा की आज्ञा है – किसी भी आत्मा को न दु:ख दो, न दु:ख लो। तो कई बच्चे दु:ख देते नहीं हैं, लेकिन ले लेते हैं। यह भी व्यर्थ संकल्प चलने का कारण बन जाता है। कोई व्यर्थ बात सुनकर दु:खी हो गये, ऐसी छोटी-छोटी अवज्ञायें भी मन को भारी बना देती हैं और भारी होने के कारण ऊंची स्थिति की तरफ उड़ नहीं सकते।

बापदादा की आज्ञा मिली हुई है – बच्चे न व्यर्थ सोचो, न देखो, न व्यर्थ सुनो, न व्यर्थ बोलो, न व्यर्थ कर्म में समय गंवाओ। आप बुराई से तो पार हो गये। अब ऐसे आज्ञाकारी चरित्र का चित्र बनाओ तो परमात्म दुआओं के अधिकारी बन जायेंगे। बाप की आज्ञा है बच्चे अमृतवेले विधिपूर्वक शक्तिशाली याद में रहो, हर कर्म कर्मयोगी बनकर, निमित्त भाव से, निर्मान बनकर करो। ऐसे दृष्टि-वृत्ति सबके लिए आज्ञा मिली हुई है। यदि उन आज्ञाओं का विधिपूर्वक पालन करते चलो तो सदा अतीन्द्रिय सुख वा खुशी सम्पन्न शान्त स्थिति अनुभव करते रहेंगे।

बाप की आज्ञा है बच्चे तन-मन-धन और जन – इन सबको बाप की अमानत समझो। जो भी संकल्प करते हो वह पॉजिटिव हो, पॉजिटिव सोचो, शुभ भावना के संकल्प करो। बॉडीकान्सेस के “मैं और मेरेपन से” दूर रहो, यही दो माया के दरवाजे हैं। संकल्प, समय और श्वांस ब्राह्मण जीवन के अमूल्य खजाने हैं, इन्हें व्यर्थ नहीं गंवाओ। जमा करो। समर्थ रहने का आधार है – सदा और स्वत: आज्ञाकारी बनना। बापदादा की मुख्य पहली आज्ञा है – पवित्र बनो, कामजीत बनो। इस आज्ञा को पालन करने में मैजारिटी पास हो जाते हैं। लेकिन उनका दूसरा भाई क्रोध – उसमें कभी-कभी आधा फेल हो जाते हैं। कई कहते हैं – क्रोध नहीं किया लेकिन थोड़ा रोब तो दिखाना ही पड़ता है, तो यह भी अवज्ञा हुई, जो खुशी का अनुभव करने नहीं देगी।

जो बच्चे अमृतवेले से रात तक सारे दिन की दिनचर्या के हर कर्म में आज्ञा प्रमाण चलते हैं वे कभी मेहनत का अनुभव नहीं करते। उन्हें आज्ञाकारी बनने का विशेष फल बाप के आशीर्वाद की अनुभूति होती है, उनका हर कर्म फलदाई हो जाता है। जो आज्ञाकारी बच्चे हैं वे सदा सन्तुष्टता का अनुभव करते हैं। उन्हें तीनों ही प्रकार की सन्तुष्टता स्वत: और सदा अनुभव होती है। 1- वे स्वयं भी सन्तुष्ट रहते। 2- विधि पूर्वक कर्म करने के कारण सफलता रूपी फल की प्राप्ति से भी सन्तुष्ट रहते। 3- सम्बन्ध-सम्पर्क में भी उनसे सभी सन्तुष्ट रहते हैं। आज्ञाकारी बच्चों का हर कर्म आज्ञा प्रमाण होने के कारण श्रेष्ठ होता है इसलिए कोई भी कर्म बुद्धि वा मन को विचलित नहीं करता, ठीक किया वा नहीं किया। यह संकल्प भी नहीं आ सकता। वे आज्ञा प्रमाण चलने के कारण सदा हल्के रहते हैं क्योंकि वे कर्म के बन्धन वश कोई कर्म नहीं करते। हर कर्म आज्ञा प्रमाण करने के कारण परमात्म आशीर्वाद की प्राप्ति के फल स्वरूप वे सदा ही आन्तरिक विल पावर का, अतीन्द्रिय सुख का और भरपूरता का अनुभव करते हैं। अच्छा।

वरदान:-

सच्चे साथी का साथ लेने वाले सर्व से न्यारे, प्यारे निर्मोही भव

रोज़ अमृतवेले सर्व सम्बन्धों का सुख बापदादा से लेकर औरों को दान करो। सर्व सुखों के अधिकारी बन औरों को भी बनाओ। कोई भी काम है उसमें साकार साथी याद न आये, पहले बाप की याद आये क्योंकि सच्चा मित्र बाप है। सच्चे साथी का साथ लेंगे तो सहज ही सर्व से न्यारे और प्यारे बन जायेंगे। जो सर्व सम्बन्धों से हर कार्य में एक बाप को याद करते हैं वह सहज ही निर्मोही बन जाते हैं। उनका किसी भी तरफ लगाव अर्थात् झुकाव नहीं रहता इसलिए माया से हार भी नहीं हो सकती है।

स्लोगन:-

माया को देखने वा जानने के लिए त्रिकालदर्शी और त्रिनेत्री बनो तब विजयी बनेंगे।

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