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20-09-20

20-09-20 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज: 25-03-86 मधुबन


”संगमयुग होली जीवन का युग है”

आज बापदादा सर्व स्वराज्य अधिकारी अलौकिक राज्य सभा देख रहे हैं। हर एक श्रेष्ठ आत्मा के ऊपर लाइट का ताज चमकता हुआ देख रहे हैं। यही राज्य सभा होली सभा है। हर एक परम पावन पूज्य आत्मायें सिर्फ इस एक जन्म के लिए पावन अर्थात् होली नहीं बने हैं लेकिन पावन अर्थात् होली बनने की रेखा अनेक जन्मों की लम्बी रेखा है। सारे कल्प के अन्दर और आत्मायें भी पावन होली बनती हैं। जैसे पावन आत्मायें धर्मपिता के रूप में धर्म स्थापन करने के निमित्त बनती हैं। साथ-साथ कई महान आत्मायें कहलाने वाले भी पावन बनते हैं लेकिन उन्हों के पावन बनने में और आप पावन आत्माओं में अन्तर है। आपके पावन बनने का साधन अति सहज है। कोई मेहनत नहीं क्योंकि बाप से आप आत्माओं को सुख शान्ति पवित्रता का वर्सा सहज मिलता है। इस स्मृति से सहज और स्वत: ही अविनाशी बन जाते! दुनिया वाले पावन बनते हैं लेकिन मेहनत से। और उन्हें 21 जन्मों के वर्से के रूप में पवित्रता नहीं प्राप्त होती है। आज दुनिया के हिसाब से होली का दिन कहते हैं। वह होली मनाते और आप स्वयं ही परमात्म रंग में रंगने वाले होली आत्मायें बन जाते हो। मनाना थोड़े समय के लिए होता है, बनना जीवन के लिए होता है। वह दिन मनाते और आप होली जीवन बनाते हो। यह संगमयुग होली जीवन का युग है। तो रंग में रंग गये अर्थात् अविनाशी रंग लग गया। जो मिटाने की आवश्यकता नहीं। सदाकाल के लिए बाप समान बन गये। संगमयुग पर निराकार बाप समान कर्मातीत, निराकारी स्थिति का अनुभव करते हो और 21 जन्म ब्रह्मा बाप समान सर्वगुण सम्पन्न, सम्पूर्ण निर्विकारी श्रेष्ठ जीवन का समान अनुभव करते हो। तो आपकी होली है संग के रंग में बाप समान बनना। ऐसा पक्का रंग हो जो समान बना दो। ऐसी होली दुनिया में कोई खेलते हैं? बाप, समान बनाने की होली खेलने आते हैं। कितने भिन्न-भिन्न रंग बाप द्वारा हर आत्मा पर अविनाशी चढ़ जाते हैं। ज्ञान का रंग, याद का रंग, अनेक शक्तियों के रंग, गुणों के रंग, श्रेष्ठ दृष्टि, श्रेष्ठ वृत्ति, श्रेष्ठ भावना, श्रेष्ठ कामना स्वत: सदा बन जाए, यह रूहानी रंग कितना सहज चढ़ जाता है। होली बन गये अर्थात् होली हो गये। वह होली मनाते हैं, जैसे गुण हैं वैसा रूप बन जाते हैं। उसी समय कोई उन्हों का फोटो निकाले तो कैसा लगेगा। वह होली मनाकर क्या बन जाते और आप होली मनाते हो तो फरिश्ता सो देवता बन जाते हो। है सब आपका ही यादगार लेकिन आध्यात्मिक शक्ति न होने के कारण आध्यात्मिक रूप से नहीं मना सकते हैं। बाहरमुखता होने कारण बाहरमुखी रूप से ही मनाते रहते हैं। आपका यथार्थ रूप से मंगल मिलन मनाना है।

होली की विशेषता है जलाना, फिर मनाना और फिर मंगल मिलन करना। इन तीन विशेषताओं से यादगार बना हुआ है क्योंकि आप सभी ने होली बनने के लिए पहले पुराने संस्कार, पुरानी स्मृतियाँ सभी को योग अग्नि से जलाया तभी संग के रंग में होली मनाया अर्थात् बाप समान संग का रंग लगाया। जब बाप के संग का रंग लग जाता है तो हर आत्मा के प्रति विश्व की सर्व आत्मायें परमात्म परिवार बन जाते हैं। परमात्म परिवार होने के कारण हर आत्मा के प्रति शुभ कामना स्वत: ही नेचुरल संस्कार बन जाती है इसलिए सदा एक दो में मंगल मिलन मनाते रहते हैं। चाहे कोई दुश्मन भी हो, आसुरी संस्कार वाले हों लेकिन इस रूहानी मंगल मिलन से उनको भी परमात्म रंग का छींटा जरूर डालते। कोई भी आपके पास आयेगा तो क्या करेगा? सबसे गले मिलना अर्थात् श्रेष्ठ आत्मा समझ गले मिलना। यह बाप के बच्चे हैं। यह प्यार का मिलन, शुभ भावना का मिलन, उन आत्माओं को भी पुरानी बातें भुला देता है। वह भी उत्साह में आ जाते इसलिए उत्सव के रूप में यादगार बना लिया है। तो बाप से होली मनाना अर्थात् अविनाशी रूहानी रंग में बाप समान बनना। वह लोग तो उदास रहते हैं इसलिए खुशी मनाने के लिए यह दिन रखे हैं। और आप लोग तो सदा ही खुशी में नाचते गाते, मौज मनाते रहते हो। जो ज्यादा मूँझते हैं- क्या हुआ, क्यों हुआ, कैसे हुआ वह मौज में नहीं रह सकते। आप त्रिकालदर्शी बन गये तो फिर क्या, क्यों, कैसे यह संकल्प उठ ही नहीं सकते क्योंकि तीनों कालों को जानते हो। क्यों हुआ? जानते हैं पेपर है आगे बढ़ने लिए। क्यों हुआ? नथिंग न्यू। तो क्या हुआ का क्वेश्चन ही नहीं। कैसे हुआ? माया और मजबूत बनाने के लिए आई और चली गई। तो त्रिकालदर्शी स्थिति वाले इसमें मूँझते नहीं। क्वेश्चन के साथ-साथ रेसपाण्ड पहले आता क्योंकि त्रिकालदर्शी हो। नाम त्रिकालदर्शी और वर्तमान को भी न जान सके, क्यों हुआ, कैसे हुआ तो उसको त्रिकलदर्शी कैसे कहेंगे! अनेक बार विजयी बने हैं और बनने वाले भी हैं। पास्ट और फ्युचर को भी जानते हैं कि हम ब्राह्मण सो फरिश्ता, फरिश्ता सो देवता बनने वाले हैं। आज और कल की बात है। क्वेश्चन समाप्त हो फुल स्टाप आ जाता है।

होली का अर्थ भी है होली, पास्ट इज़ पास्ट। ऐसे बिन्दी लगाने आती है ना! यह भी होली का अर्थ है। जलाने वाली होली भी आती। रंग में रंगने वाली होली भी आती और बिन्दी लगाने की होली भी आती। मंगल मिलन मनाने की होली भी आती। चारों ही प्रकार की होली आती है ना! अगर एक प्रकार भी कम होगी तो लाइट का ताज टिकेगा नहीं। गिरता रहेगा। ताज टाइट नहीं होता तो गिरता रहता है ना। चारों ही प्रकार की होली मनाने में पास हो? जब बाप समान बनना है तो बाप सम्पन्न भी है और सम्पूर्ण भी है। परसेन्टेज की स्टेज भी कब तक? जिससे स्नेह होता है तो स्नेही को समान बनने में मुश्किल नहीं होता। बाप के सदा स्नेही हो तो सदा समान क्यों नहीं। सहज है ना। अच्छा।

सभी सदा होली और हैपी रहने वाले होली हंसो को हाइएस्ट ते हाइएस्ट बाप समान होली बनने की अविनाशी मुबारक दे रहे हैं। सदा बाप समान बनने की, सदा होली युग में मौज मनाने की मुबारक दे रहे हैं। सदा होली हंस बन ज्ञान रत्नों से सम्पन्न बनने की मुबारक दे रहे हैं। सर्व रंगों में रंगे हुए पूज्य आत्मा बनने की मुबारक दे रहे हैं। मुबारक भी है और यादप्यार भी सदा है। और सेवाधारी बाप के मालिक बच्चों के प्रति नमस्ते भी सदा है। तो यादप्यार और नमस्ते।

आज मलेशिया ग्रुप है! साउथ ईस्ट। सभी यह समझते हो कि हम कहाँ-कहाँ बिखर गये थे। परमात्म परिवार के स्टीमर से उतर कहाँ-कहाँ कोने में चले गये। संसार सागर में खो गये क्योंकि द्वापर में आत्मिक बाम्ब के बजाए शरीर के भान का बाम्ब लगा। रावण ने बाम्ब लगा दिया तो स्टीमर टूट गया। परमात्म परिवार का स्टीमर टूट गया और कहाँ-कहाँ चले गये। जहाँ भी सहारा मिला। डूबने वाले को जहाँ भी सहारा मिलता है तो ले लेते हैं ना। आप सबको भी जिस धर्म, जिस देश का थोड़ा सा भी सहारा मिला वहाँ पहुँच गये। लेकिन संस्कार तो वही हैं ना इसलिए दूसरे धर्म में जाते भी अपने वास्तविक धर्म का परिचय मिलने से पहुँच गये। सारे विश्व में फैल गये थे। यह बिछुड़ना भी कल्याणकारी हुआ, जो अनेक आत्माओं को एक ने निकालने का कार्य किया। विश्व में परमात्म परिवार का परिचय देने के लिए कल्याणकारी बन गये। सब अगर भारत में ही होते तो विश्व में सेवा कैसे होती इसलिए कोने-कोने में पहुँच गये हो। सभी मुख्य धर्मों में कोई न कोई पहुँच गये हैं। एक भी निकलता है तो हमजिन्स को जगाते जरूर हैं। बापदादा को भी 5 हज़ार वर्ष के बाद बिछुड़े हुए बच्चों को देख करके खुशी होती है। आप सबको भी खुशी होती है ना। पहुँच तो गये। मिल तो गये।

मलेशिया का कोई वी. आई. पी. अभी तक नहीं आया है। सेवा के लक्ष्य से उन्हों को भी निमित्त बनाया जाता है। सेवा की तीव्रगति के निमित्त बन जाते हैं इसलिए उन्हों को आगे रखना पड़ता है। बाप के लिए तो आप ही श्रेष्ठ आत्मायें हो। रूहानी नशे में तो आप श्रेष्ठ हो ना। कहाँ आप पूज्य आत्मायें और कहाँ वह माया में फँसे हुए। अंजान आत्माओं को भी पहचान तो देनी है ना। सिंगापुर में भी अब वृद्धि हो रही है। जहाँ बाप के अनन्य रत्न पहुँचते हैं तो रत्न, रत्नों को ही निकालते हैं। हिम्मत रख सेवा में लगन से आगे बढ़ रहे हैं। तो मेहनत का फल श्रेष्ठ ही मिलेगा। अपने परिवार को इकट्ठा करना है। परिवार का बिछुड़ा हुआ, परिवार में पहुँच जाता है तो कितना खुश होते और दिल से शुक्रिया गाते। तो यह भी परिवार में आकर कितना शुक्रिया गाते होंगे। निमित्त बन बाप का बना लिया। संगम पर शुक्रिया की मालायें बहुत पड़ती हैं। अच्छा।

अव्यक्त महावाक्य – अखण्ड महादानी बनो।

महादानी अर्थात् मिले हुए खज़ाने बिना स्वार्थ के सर्व आत्माओं प्रति देने वाले – नि:स्वार्थी। स्व के स्वार्थ से परे आत्मा ही महादानी बन सकती है। दूसरों की खुशी में स्वयं खुशी का अनुभव करना भी महादानी बनना है। जैसे सागर सम्पन्न है, अखुट है, अखण्ड है, ऐसे आप बच्चे भी मास्टर, अखण्ड, अखुट खज़ानों के मालिक हो। तो जो खज़ाने मिले हैं उन्हें महादानी बन औरों के प्रति कार्य में लगाते रहो। जो भी सम्बन्ध में आने वाली भक्त वा साधारण आत्मायें हैं उनके प्रति सदा यही लगन रहे कि इन्हें भक्ति का फल मिल जाए। जितना रहमदिल बनेंगे उतना ऐसी भटकती हुई आत्माओं को सहज रास्ता बतायेंगे।

आपके पास सबसे बड़े से बड़ा खजाना खुशी का है, आप इस खुशी के खज़ाने का दान करते रहो। जिसको खुशी देंगे वह बार-बार आपको धन्यवाद देगा। दु:खी आत्माओं को खुशी का दान दे दिया तो आपके गुण गायेंगे। इसमें महादानी बनो, खुशी का खज़ाना बांटो। अपने हमजिन्स को जगाओ। रास्ता दिखाओ। अब समय प्रमाण अपनी हर कर्मेन्द्रिय द्वारा महादानी वा वरदानी बनो। मस्तक द्वारा सर्व को स्व-स्वरूप की स्मृति दिलाओ। नयनों द्वारा स्वदेश और स्वराज्य का रास्ता दिखाओ। मुख द्वारा रचयिता और रचना के विस्तार को स्पष्ट कर ब्राह्मण सो देवता बनने का वरदान दो। हस्तों द्वारा सदा सहज योगी, कर्मयोगी बनने का वरदान दो। चरण कमल द्वारा हर कदम फालो फादर कर हर कदम में पदमों की कमाई जमा करने के वरदानी बनो, ऐसे हर कर्मेन्द्रिय से महादान, वरदान देते चलो। मास्टर दाता बन परिस्थितियों को परिवर्तन करने का, कमजोर को शक्तिशाली बनाने का, वायुमण्डल वा वृत्ति को अपनी शक्तियों द्वारा परिवर्तन करने का, सदा स्वयं को कल्याण अर्थ जिम्मेवार आत्मा समझ हर बात में सहयोग वा शक्ति के महादान वा वरदान देने का संकल्प करो। मुझे देना है, मुझे करना है, मुझे बदलना है, मुझे निर्माण बनना है। ऐसे”ओटे सो अर्जुन” अर्थात् दातापन की विशेषता धारण करो।

अब हरेक आत्मा प्रति विशेष अनुभवी मूर्त बन, विशेष अनुभवों की खान बन, अनुभवी मूर्त बनाने का महादान करो। जिससे हर आत्मा अनुभव के आधार पर अंगद समान बन जाए। चल रहे हैं, कर रहे हैं, सुन रहे हैं, सुना रहे हैं, नहीं। लेकिन अनुभवों का खजाना पा लिया – ऐसे गीत गाते खुशी के झूले में झूलते रहें। आप बच्चों को जो भी खजाने बाप द्वारा मिले हैं, उन्हें बाँटते रहो अर्थात् महादानी बनो। सदैव कोई भी आवे तो आपके भण्डारे से खाली न जाए। आप सब बहुकाल के साथी हो और बहुकाल के राज्य अधिकारी हो। तो अन्त की कमजोर आत्माओं को महादानी, वरदानी बन अनुभव का दान और पुण्य करो। यह पुण्य आधाकल्प के लिए आपको पूजनीय और गायन योग्य बना देगा। आप सब ज्ञान के खज़ाने से सम्पन्न धन की देवियाँ हो। जब से ब्राह्मण बने हो तब से जन्मसिद्ध अधिकार में ज्ञान का, शक्तियों का खज़ाना मिला है। इस खजाने को स्व के प्रति और औरों के प्रति यूज़ करो तो खुशी बढ़ेगी, इसमें महादानी बनो। महादानी अर्थात् सदा अखण्ड लंगर (भण्डारा) चलता रहे।

ईश्वरीय सेवा का बड़े-से-बड़ा पुण्य है – पवित्रता का दान देना। पवित्र बनना और बनाना ही पुण्य आत्मा बनना है क्योंकि किसी आत्मा को आत्मघात महा पाप से छुड़ाते हो। अपवित्रता आत्मघात है। पवित्रता जीयदान है। पवित्र बनो और बनाओ – यही महादान कर पुण्य आत्मा बनो। महादानी अर्थात् बिल्कुल निर्बल, दिलशिकस्त असमर्थ आत्मा को एकस्ट्रा बल दे करके रूहानी रहमदिल बनना। महादानी अर्थात् बिल्कुल होपलेस केस में होप (उम्मींद) पैदा करना। तो मास्टर रचयिता बन प्राप्त हुई शक्तियों व प्राप्त हुए ज्ञान, गुण, व सर्व खज़ाने औरों के प्रति महादानी बनकर देते चलो। दान सदा बिल्कुल ग़रीब को दिया जाता है। बेसहारे को सहारा दिया जाता है। तो प्रजा के प्रति महादानी व अन्त में भक्त आत्माओं के प्रति महादानी बनो। आपस में एक दूसरे के प्रति ब्राह्मण महादानी नहीं। वह तो आपस में सहयोगी साथी हो। भाई-भाई हो व हमशरीक पुरूषार्थी हो। उन्हें सहयोग दो। अच्छा।

वरदान:-

पावरफुल वृत्ति द्वारा मन्सा सेवा करने वाले विश्व कल्याणकारी भव

विश्व की तडपती हुई आत्माओं को रास्ता बताने के लिए साक्षात बाप समान लाइट हाउस, माइट हाउस बनो। लक्ष्य रखो कि हर आत्मा को कुछ न कुछ देना है। चाहे मुक्ति दो चाहे जीवन-मुक्ति। सर्व के प्रति महादानी और वरदानी बनो। अभी अपने-अपने स्थान की सेवा तो करते हो लेकिन एक स्थान पर रहते मन्सा शक्ति द्वारा वायुमण्डल, वायब्रेशन द्वारा विश्व सेवा करो। ऐसी पावरफुल वृत्ति बनाओ जिससे वायुमण्डल बने – तब कहेंगे विश्व कल्याणकारी आत्मा।

स्लोगन:-

अशरीरी पन की एक्सरसाइज और व्यर्थ संकल्प रूपी भोजन की परहेज से स्वयं को तन्दरूस्त बनाओ।

 

सूचनाः- आज मास का तीसरा रविवार है, सभी राजयोगी तपस्वी भाई बहिनें सायं 6.30 से 7.30 बजे तक, विशेष योग अभ्यास के समय अपने आकारी फरिश्ते स्वरूप में स्थित हो, भक्तों की पुकार सुनें और उपकार करें। मास्टर दयालु, कृपालु बन सभी पर रहम की दृष्टि डालें। मुक्ति जीवनमुक्ति का वरदान दें।

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