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22-10-2020

22-10-2020 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन


मीठे बच्चे – “सबसे मीठा अक्षर ‘बाबा’ है, तुम्हारे मुख से सदा बाबा-बाबा निकलता रहे, सबको शिवबाबा का परिचय देते रहो”

प्रश्नः-

सतयुग में कोई मनुष्य तो क्या जानवर भी रोगी नहीं होते हैं, क्यों?

उत्तर:-

क्योंकि संगमयुग पर बाबा सभी आत्माओं का और बेहद सृष्टि का ऐसा ऑपरेशन कर देते हैं, जो रोग का नाम-निशान ही नहीं रहता। बाप है अविनाशी सर्जन। अभी जो सारी सृष्टि रोगी है, इस सृष्टि में फिर दु:ख का नाम-निशान नहीं होगा। यहाँ के दु:खों से बचने के लिए बहुत-बहुत बहादुर बनना है।

गीत:-

तुम्हें पाके हमने……..

ओम् शान्ति। डबल भी कह सकते हैं, डबल ओम् शान्ति। आत्मा अपना परिचय दे रही है। मैं आत्मा शान्त स्वरूप हूँ। हमारा निवास स्थान शान्तिधाम में है और बाबा की हम सब सन्तान हैं। सब आत्मायें ओम् कहती हैं, वहाँ हम सब भाई-भाई हैं फिर यहाँ भाई-बहन बनते हैं। अब भाई-बहन से नाता शुरू होता है। बाप समझाते हैं हमारे सब बच्चे हैं, ब्रह्मा की भी तुम सन्तान हो इसलिए भाई-बहन ठहरे। तुम्हारा और कोई सम्बन्ध नहीं। प्रजापिता की सन्तान ब्रह्माकुमार-कुमारी हैं। पुरानी दुनिया को चेन्ज करने इस समय ही आते हैं। बाप ब्रह्मा द्वारा ही फिर नई सृष्टि रचते हैं। ब्रह्मा से भी सम्बन्ध है ना। युक्ति भी कितनी अच्छी है। सब ब्रह्माकुमार-कुमारी हैं। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना है और अपने को भाई-बहन समझना है। क्रिमिनल आई नहीं रहनी चाहिए, यहाँ तो कुमार-कुमारी जैसे बड़े-बड़े होते जाते हैं तो आंखें क्रिमिनल बनती जाती हैं फिर क्रिमिनल एक्ट कर लेते हैं। क्रिमिनल एक्ट होती है रावण राज्य में। सतयुग में क्रिमिनल एक्ट होती नहीं। क्रिमिनल अक्षर ही नहीं होता। यहाँ तो क्रिमिनल एक्ट बहुत है। उनके लिए फिर कोर्ट आदि भी हैं। वहाँ कोर्ट आदि होती नहीं। वन्डर है ना। न जेल, न पुलिस, न चोर आदि होते। यह सब हैं दु:ख की बातें, जो यहाँ हो रही हैं इसलिए बच्चों को समझाया गया है, यह तो खेल है सुख और दु:ख का, हार और जीत का। इनको भी तुम ही समझते हो। गाया हुआ है माया से हारे हार है, माया पर जीत बाप आकर आधाकल्प के लिए पहनाते हैं। फिर आधाकल्प हारना पड़ता है। यह कोई नई बात नहीं। यह तो साधारण पाई-पैसे का खेल है फिर तुम मुझे याद करते हो तो अपना राज्य-भाग्य आधाकल्प के लिए लेते हो। रावणराज्य में मुझे भूल जाते हो। रावण दुश्मन है, उनको हर वर्ष भारतवासी ही जलाते हैं। जिस देश में बहुत भारतवासी होंगे वहाँ भी जलाते होंगे। कहेंगे यह भारत-वासियों के धर्म का उत्सव है। दशहरा मनाते हैं तो बच्चों को समझाना है – वह तो हद की बात है। रावणराज्य तो अभी सारे विश्व पर है। सिर्फ लंका पर नहीं है। विश्व तो बहुत बड़ी है ना। बाप ने समझाया है यह सृष्टि सारी सागर पर खड़ी है। मनुष्य कहते हैं – नीचे एक बैल वा गऊ है जिनके सींग पर सृष्टि खड़ी है फिर थक जाते हैं तो बदलते हैं। अब यह बात तो है नहीं। पृथ्वी तो पानी पर खड़ी है, चारों तरफ पानी ही पानी है। तो अभी सारी दुनिया में रावण राज्य है फिर राम अथवा ईश्वरीय राज्य स्थापन करने बाप को आना पड़ता है। सिर्फ ईश्वर कहने से भी कह देते ईश्वर तो सर्वशक्तिमान् हैं, सब कुछ कर सकते हैं। फालतू महिमा हो जाती है। इतना लव नहीं रहता। यहाँ ईश्वर को बाप कहा जाता है। बाबा कहने से वर्सा मिलने की बात हो जाती है। शिवबाबा कहते हैं हमेशा बाबा-बाबा कहना चाहिए। ईश्वर वा प्रभू आदि अक्षर भूल जाने चाहिए। बाबा ने कहा है – मामेकम् याद करो। प्रदर्शनी आदि में भी जब समझाते हो तो घड़ी-घड़ी शिवबाबा का परिचय दो। शिवबाबा एक ही ऊंच ते ऊंच है, जिसको गॉड फादर कहा जाता है। मुसलमान अल्लाह कहते हैं, सुबह को 10 मिनट बैठकर कुरान का अर्थ करते हैं कि अल्लाह मिया ने कहा है, किसको दु:ख नहीं देना चाहिए। यह नहीं करना चाहिए। ऐसे नहीं समझते कि बाबा ने कहा है। बाबा अक्षर सबसे मीठा है। शिवबाबा, शिवबाबा मुख से निकलता है। मुख तो मनुष्य का ही होगा। गऊ का मुख थोड़ेही हो सकता। तुम हो शिव शक्तियां। तुम्हारे मुख कमल से ज्ञान अमृत निकलता है। तुम्हारा नाम बाला करने गऊ मुख कह दिया है। गंगा के लिए ऐसे नहीं कहेंगे। मुख कमल से अमृत अभी निकलता है। ज्ञान अमृत पिया तो फिर विष पी नहीं सकते। अमृत पीने से तुम देवता बनते हो। अब मैं आया हूँ – असुरों को देवता बनाने। तुम अभी दैवी सम्प्रदाय बन रहे हो। संगमयुग कब, कैसे होता है, यह भी किसको पता नहीं है। तुम जानते हो हम ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ पुरूषोत्तम संगमयुगी हैं। बाकी जो भी हैं सब कलियुगी हैं। तुम कितने थोड़े हो। झाड़ की भी नॉलेज तुमको है। झाड़ पहले छोटा होता है फिर वृद्धि को पाता है। कितनी इन्वेन्शन निकालते हैं कि बच्चे पैदा कम कैसे हों। परन्तु नर चाहत कुछ और, भई कुछ औरे की और। सबकी मृत्यु तो होनी ही है। अभी फसल बहुत अच्छी होगी, आई बरसात, कितना नुकसान कर देती है। नैचुरल कैलेमिटीज़ को तो कोई समझ न सके। कोई बात का ठिकाना थोड़ेही है। कहाँ फसल हो और बर्फ के ओले पड़ जाएं तो कितना नुकसान हो पड़ता। बारिश न पड़ी तो भी नुकसान, इनको कुदरती आपदायें कहा जाता है। यह तो ढेर होने वाली हैं, इनसे बचने के लिए बहुत बहादुर होना चाहिए। कोई का आपरेशन होता है, तो कई वह देख नहीं सकते हैं, देखते ही अनकानसेस हो जाते हैं। अभी इस सारी छी-छी सृष्टि का आपरेशन होना है। बाप कहते हैं मैं आकर सबका आपरेशन करता हूँ। सारी सृष्टि रोगी है। अविनाशी सर्जन भी बाप का नाम है। वह सारे विश्व का आपरेशन कर देंगे, जो फिर विश्व में रहने वालों को कभी दु:ख नहीं होगा। कितना बड़ा सर्जन है। आत्माओं का भी आपरेशन, बेहद सृष्टि का भी आपरेशन करने वाला है। वहाँ मनुष्य तो क्या जानवर भी रोगी नहीं होते हैं। बाप समझाते हैं मेरा और बच्चों का क्या पार्ट है। इसको कहते हैं रचना के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान जो तुम ही ले रहे हो। बच्चों को पहले-पहले तो यह खुशी होनी चाहिए।

आज सतगुरूवार है, हमेशा सत बोलना चाहिए। व्यापार में भी कहते हैं ना – सत बोलो। ठगी की बात नहीं करो। फिर भी लोभ में आकर कुछ जास्ती दाम बताकर सौदा कर देंगे। सच तो कभी कोई बोलते नहीं। झूठ ही झूठ बोलते हैं इसलिए सत को याद करते हैं। कहते हैं ना – सत नाम संग है। अभी तुम जानते हो बाबा जो सत्य है वहीं संग चलेंगे, हम आत्माओं के। अभी सत के साथ तुम आत्माओं का संग हुआ है तो तुम ही साथ जायेंगे। तुम बच्चे जानते हो शिवबाबा आया हुआ है, जिसको ट्रूथ कहा जाता है। वह हम आत्माओं को पवित्र बनाकर साथ ले जायेंगे एक ही बार। सतयुग में ऐसे नहीं कहते हैं कि राम-राम संग है या सत नाम संग है। नहीं। बाप कहते हैं अभी मैं तुम बच्चों के पास आया हूँ, नयनों पर बिठाए ले जाता हूँ। यह नैन नहीं, तीसरा नेत्र। तुम जानते हो इस समय बाप आये हैं – साथ ले जायेंगे। शंकर की बरात नहीं, यह शिव के बच्चों की बरात है। वह पतियों का पति भी है। कहते हैं तुम सब ब्राइड्स हो। मैं हूँ ब्राइडग्रूम। तुम सब आशिक हो, मैं हूँ माशूक। माशूक एक ही होता है ना। तुम आधाकल्प से मुझ माशूक के आशिक हो। अभी मैं आया हूँ सब भक्तियां हैं। भक्तों की रक्षा करने वाला है भगवान। आत्मा भक्ति करती है शरीर के साथ। सतयुग-त्रेता में भक्ति होती नहीं। भक्ति का फल सतयुग में भोगते हो, जो अब बच्चों को दे रहे हैं। वह तुम्हारा माशूक है, जो तुमको साथ ले जायेंगे फिर तुम अपने पुरूषार्थ अनुसार जाकर राज्य-भाग्य लेंगे। यह कहाँ भी लिखा नहीं है। कहते हैं शंकर ने पार्वती को अमरकथा सुनाई। तुम सब हो पार्वतियां। मैं हूँ कथा सुनाने वाला अमरनाथ। अमरनाथ एक को ही कहा जाता है। ऊंच ते ऊंच बाप हैं, उनको तो अपनी देह नहीं है, कहते हैं मैं अमरनाथ तुम बच्चों को अमरकथा सुनाता हूँ। शंकर-पार्वती यहाँ कहाँ से आये। वह तो हैं ही सूक्ष्मवतन में, जहाँ सूर्य-चांद की भी रोशनी नहीं रहती।

सत्य बाप अभी तुमको सत्य कथा सुनाते हैं। बाप बिगर सच्ची कथा कोई सुना न सके। यह भी समझते हो विनाश होने में टाइम लगता है। कितनी बड़ी दुनिया है, कितने ढेर मकान आदि गिरकर खत्म होंगे। अर्थ-क्वेक में कितना नुकसान होता है। कितने मरते हैं। बाकी तुम्हारा छोटा झाड़ होगा। देहली परिस्तान बन जायेगी। एक ही परिस्तान में लक्ष्मी-नारायण का राज्य चलता है। कितने बड़े-बड़े महल बनते होंगे। बेहद की जागीर मिलती है। तुमको कुछ खर्चा नहीं करना पड़ता है। बाबा कहते हैं इनकी (ब्रह्मा की) लाइफ में ही कितना सस्ता अनाज था। तो सतयुग में कितना सस्ता होगा। देहली जितने तो एक-एक के घर और जमीन आदि होगी। मीठी नदियों पर तुम्हारा राज्य चलेगा। एक-एक को क्या नहीं होगा। सदा अन्न मिलता रहेगा। वहाँ के फल-फूल भी देखते हो, कितने बड़े-बड़े होते हैं। तुम शूबीरस पीकर आते हो। कहते थे वहाँ माली है। अब माली तो जरूर बैकुण्ठ में अथवा नदी किनारे होगा। वहाँ कितने थोड़े होंगे। कहाँ अभी इतने करोड़, कहाँ 9 लाख होंगे और सब कुछ तुम्हारा होगा। बाप ऐसी राजाई देते हैं जो हमसे कोई छीन न सके। आसमान, धरती आदि सबके मालिक तुम रहते हो। गीत भी बच्चों ने सुना। ऐसे-ऐसे गीत 6-8 हैं जो सुनने से ही खुशी का पारा चढ़ जाता है। देखो अवस्था में कुछ गड़बड़ है, तो गीत बजा लो। यह है खुशी के गीत। तुम तो अर्थ भी जानते हो। बाबा बहुत युक्तियां बतलाते हैं अपने को हर्षितमुख बनाने की। बाबा को लिखते हैं बाबा इतनी खुशी नहीं रहती है। माया के तूफान आते हैं। अरे माया के तूफान आये – तुम बाजा बजा लो। खुशी के लिए बड़े-बड़े मन्दिरों में भी फाटक पर बाजा बजता रहता है। बाम्बे में माधवबाग में लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर के फाटक पर भी बाजा बजता रहता है। तुमको कहते हैं – यह फिल्मी रिकार्ड क्यों बजाते हैं। उनको क्या पता यह भी ड्रामा अनुसार काम में आने की चीज़ है। इनका अर्थ तो तुम बच्चे समझते हो। यह सुनने से भी खुशी में आ जायेंगे। परन्तु बच्चे भूल जाते हैं। घर में किसको गमी होती है तो भी गीत सुनकर बड़े खुश होंगे। यह बहुत वैल्युबुल चीज़ है। कोई के घर में झगड़ा चलता है – बोलो, भगवानुवाच काम महाशत्रु है। इन पर जीत पाने से हम विश्व के मालिक बनेंगे फिर फूलों की वर्षा होगी, जयजयकार हो जायेगी। सोने के फूल बरसेंगे। तुम अभी कांटे से सोने के फूल बन रहे हो ना। फिर तुम्हारा अवतरण होगा, फूल नहीं बरसते लेकिन तुम फूल बनकर आते हो। मनुष्य समझते हैं सोने के फूल बरसते हैं। एक राजकुमार विलायत में गया, वहाँ पार्टी दी थी, उनके लिए सोने के फूल बनवाये। सबके ऊपर वर्षा की। खुशी के मारे इतनी खातिरी की। सच्चे-सच्चे सोने के बनाये। बाबा उनकी स्टेट आदि को भी अच्छी रीति जानते हैं। वास्तव में तुम फूल बनकर आते हो। सोने के फूल तुम ऊपर से उतरते हो। तुम बच्चों को कितनी लॉटरी मिल रही है विश्व के बादशाही की। जैसे लौकिक बाप बच्चों को कहते हैं – तुम्हारे लिए यह लाया हूँ तो बच्चे कितना खुश होते हैं। बाबा भी कहते हैं तुम्हारे लिए बहिश्त लाया हूँ। तुम वहाँ राज्य करेंगे तो कितनी खुशी होनी चाहिए। कोई को छोटी सौगात देते हैं तो कहते हैं बाबा आप तो हमको विश्व की बादशाही देते हो, यह सौगात क्या है। अरे शिवबाबा की यादगार साथ रहेगी तो शिवबाबा की याद रहेगी और तुमको पद्म मिल जायेंगे। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) सत के संग वापस जाना है इसलिए सदा सच्चा होकर रहना है। कभी भी झूठ नहीं बोलना है।

2) हम ब्रह्मा बाबा के बच्चे आपस में भाई-बहन हैं, इसलिए कोई भी क्रिमिनल एक्ट नहीं करनी है। भाई-भाई और भाई-बहन के सिवाए और किसी सम्बन्ध का भान न रहे।

वरदान:-

लोक पसन्द सभा की टिकेट बुक करने वाले राज्य सिंहासन अधिकारी भव

कोई भी संकल्प या विचार करते हो तो पहले चेक करो कि यह विचार व संकल्प बाप पसन्द है? जो बाप पसन्द है वह लोक पसन्द स्वत:बन जाते हैं। यदि किसी भी संकल्प में स्वार्थ है तो मन पसन्द कहेंगे और विश्व कल्याणार्थ है तो लोकपसन्द व प्रभू पसन्द कहेंगे। लोक पसन्द सभा के मेम्बर बनना अर्थात् ला एण्ड आर्डर का राज्य अधिकार व राज्य सिंहासन प्राप्त कर लेना।

स्लोगन:-

परमात्म साथ का अनुभव करो तो सब कुछ सहज अनुभव करते हुए सेफ रहेंगे।

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