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पिछले एक महीने के मुरलियां



इस विभाग मैं आपको हररोज की मुरली (परमात्मवचन)मिलेंगे. साथही पिछले एक महीने के मुरलियां भी आप पढ़ सकते है


 











[25-08-2011]

 




”मीठे बच्चे, मन्सा-वाचा-कर्मणा किसी को भी दु:ख नहीं देना, कभी किसी पर गुस्सा नहीं करना, प्यार बहुत मीठी चीज़ है, इससे किसी को भी वश कर सकते हो”
प्रश्न: बाप बच्चों को डबल सिरताज विश्व का मालिक बनने वा दी बेस्ट बनने की कौन सी युक्ति बताते हैं?
उत्तर: दैवीगुण धारण कर बहुत-बहुत मीठा बनो। एक दो को भाई-भाई अथवा भाई बहिन की दृष्टि से देखो। अपने पुरुषार्थ से अपने को राजतिलक दो। 2- स्वयं ईश्वर बाप तुम्हें पढ़ा रहे हैं तो पढ़ाई में रेग्युलर बनो, जितना पढ़ेंगे पढ़ायेंगे, अपने मैनर्स सुधारेंगे उतना दी बेस्ट बनेंगे।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) ईश्वरीय सर्विस में कभी थकना नहीं है, अच्छा टीचर बन आप समान बनाने की सेवा करनी है।
2) याद के बल से आत्मा को कंचन बनाना है, कोई भी देहधारी में ममत्व नहीं रखना है।

दादी जी की अनमोल प्रेरणायें:- (स्मृति दिवस पर विशेष उपहार)
1) ईश्वरीय नियम और मर्यादायें हमारे जीवन का सच्चा श्रंगार हैं, इन्हें अपने जीवन में धारण कर सदा उन्नति करते रहना।
2) सदा यही नशा रखो कि हम भगवान के नयनों के नूर हैं, भगवान के नयनों में छिपकर रहो तो माया के आंधी तूफान स्थिति को हिला नहीं सकेंगे।
3) हम सबका दिलबर और रहबर एक बाबा है उससे ही दिल की लेन-देन करना, कभी किसी देहधारी को दोस्त बनाकर उसके साथ व्यर्थ-चिंतन और परचिंतन नहीं करना।
4) चेहरे पर कभी उदासी, घृणा वा नफरत के चिन्ह न आयें। सदा खुश रहो और खुशी बांटते चलो। अपने सेन्टर का वातावरण ऐसा खुशनसीबी का बनाओ जो हरेक को खुशनसीब बना दे।
5) जितना अन्तर्मुखी बन मुख और मन का मौन धारण करेंगे उतना स्थान का वायुमण्डल लाइट माइट सम्पन्न बनेगा और आने वालों पर उसका प्रभाव पड़ेगा, यही सूक्ष्म सकाश देने की सेवा है।
6) कोई भी कारण वश मेरे तेरे में आकर आपसी मतभेद में नहीं आना। आपसी मनमुटाव यही सेवाओं में सबसे बड़ा विघ्न है, इस विघ्न से अब मुक्त बनो और बनाओ।
7) एक दो के विचारों को सम्मान देकर हर एक की बात पहले सुनो फिर निर्णय करो तो दो मतें नहीं होंगी। हर एक छोटे बड़े को रिसपेक्ट जरूर दो।
8) अब बाबा के सभी बच्चे सन्तुष्टता की ऐसी खान बनो जो आपको देखकर हर एक सन्तुष्ट हो जाए। सदा सन्तुष्ट रहो और दूसरों को भी सन्तुष्ट करो।
9) चार मन्त्र सदा याद रखना – एक कभी अलबेला नहीं बनना, सदा अलर्ट रहना। दूसरा – किसी से भी घृणा नहीं करना सबके प्रति शुभ भावना रखना। तीसरा – किसी से भी ईष्या (रीस) नहीं करना, उन्नति की रेस करना। चौथा – कभी किसी भी व्यक्ति, वस्तु वा वैभव पर प्रभावित नहीं होना, सदा एक बाबा के ही प्रभाव में रहना।
10) हम सब रॉयल बाप के रॉयल बच्चे हैं, सदा स्वयं में रायॅल्टी और पवित्रता के संस्कार भरना, गुलामी के संस्कारों से मुक्त रहना। सत्यता को कभी नहीं छोड़ना।
वरदान: कोमलता को कमाल में परिवर्तन कर माया जीत बनने वाले शक्ति स्वरूप भव
शक्ति स्वरूप बनने के लिए कोमलता को कमाल में परिवर्तन करो। सिर्फ स्वयं के संस्कारों को परिवर्तन करने में कोमल बनो, कर्म में कभी कोमल नहीं बनना, इसमें शक्ति रूप बनना है। जो शक्ति रूप का कवच धारण कर लेते हैं उन्हें माया का कोई भी तीर लग नहीं सकता इसलिए आपके चेहरे, नयन-चैन से कोमलता के बजाए शक्ति रूप दिखाई दे तब मायाजीत बन पास विद आनर का सर्टीफिकेट ले सकेंगे।
स्लोगन: त्रिकालदर्शी की सीट पर सेट होकर हर कर्म करो तो माया दूर से ही भाग जायेगी।
मन्सा सेवा के लिए
अपने संकल्पों को शुद्ध, ज्ञान स्वरूप, शक्ति स्वरूप बनाओ। स्व-पुरुषार्थ में तीव्र बनो तो आपके वायब्रेशन से, वृत्ति से, शुभ भावना से दूसरों की माया सहज भाग जायेगी।


 






[24-08-2011]


”मीठे बच्चे – तुम अपने योगबल से इस पुरानी दुनिया को परिवर्तन कर नया बनाते हो, तुम प्रकट हुए हो रूहानी सेवा के लिए”
प्रश्न: ईमानदार सच्चे पुरूषार्थी बच्चों की निशानियाँ क्या होंगी?
उत्तर: ईमानदार बच्चे कभी भी अपनी भूल को छिपायेंगे नहीं। फौरन बाबा को सुनायेंगे। वह बहुत-बहुत निरहंकारी होते हैं, उनकी बुद्धि में सदा यही ख्याल रहता कि जैसा कर्म हम करेंगे….। 2- वह किसी की डिस-सर्विस का गायन नहीं करते। अपनी सर्विस में लगे रहते हैं। वह किसी का भी अवगुण देख अपना माथा खराब नहीं करते।
गीत:- धीरज धर मनुवा…
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) सर्विस का शौक रख अपना और दूसरों का कल्याण करना है। किसी की डिस-सर्विस का गायन नहीं करना है। परचिंतन में अपना समय नहीं गँवाना है।
2) ईमानदार और निरंहकारी बन सेवा को बढ़ाना है। सवेरे-सवेरे उठकर बाप को प्यार से याद करना है। कथनी और करनी समान बनानी है।
वरदान: ईश्वरीय अथॉरिटी द्वारा संकल्प वा बुद्धि को आर्डर प्रमाण चलाने वाले मास्टर सर्वशक्तिवान भव
जैसे स्थूल हाथ पांव को बिल्कुल सहज रीति जहाँ चाहो वहाँ चलाते हो वा कर्म में लगाते हो वैसे संकल्प वा बुद्धि को जहाँ लगाने चाहो वहाँ लगा सको-इसे ही कहते हैं ईश्वरीय अथॉरिटी। जैसे वाणी में आना सहज है वैसे वाणी से परे जाना भी इतना ही सहज हो, इसी अभ्यास से साक्षात्कार मूर्त बनेंगे। तो अब इस अभ्यास को सहज और निरन्तर बनाओ तब कहेंगे मास्टर सर्वशक्तिवान।
स्लोगन: स्वस्थिति शक्तिशाली हो तो परिस्थिति उसके आगे कुछ भी नहीं है।
मन्सा सेवा के लिए
मन-वाणी और कर्म में पवित्रता को धारण कर रूहानियत की शक्ति से स्वयं को सम्पन्न बनाओ, रूहानी नयनों से वा रूहानियत भरी मुस्कान से औरों को खुशी की अनुभूति कराओ।




 



 


 


 


 


 


[23-08-2011]



”मीठे बच्चे – बाप के राइट हैण्ड बनना है तो हर बात में राइटियस बनो, सदा श्रेष्ठ कर्म करो”
प्रश्न: कौन सा संस्कार सेवा में बहुत विघ्न डालता है?
उत्तर: भाव-स्वभाव के कारण आपस में जो द्वेत मत के संस्कार हो जाते हैं, वह सेवा में बहुत विघ्न डालते हैं। दो मतों से बहुत नुकसान होता है। क्रोध का भूत ऐसा है जो भगवान का भी सामना करने में देरी न करे इसलिए बाबा कहते हैं मीठे बच्चे, ऐसा कोई भी संस्कार हो तो उसे निकाल दो।
गीत:- तकदीर जगाकर आई हूँ…
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) जैसे बाप दु:ख हर्ता सुख कर्ता है, ऐसे बाप समान बनना है। बहुत मीठा बनना है। सदा शुभ काम करके राइट हैण्ड बन जाना है।
2) कभी दो मतें नहीं बनानी है। भाव-स्वभाव में आकर एक-दो का सामना नहीं करना है। क्रोध का भूत निकाल देना है।
वरदान: सच्ची लगन के आधार पर और संग तोड़ एक संग जोड़ने वाले सम्पूर्ण वफादार भव
सम्पूर्ण वफादार उन्हें कहा जाता है जिनके संकल्प वा स्वप्न में भी सिवाए बाप के और बाप के कर्तव्य वा बाप की महिमा के, बाप के ज्ञान के और कुछ भी दिखाई न दे। एक बाप दूसरा न कोई… बुद्धि की लगन सदा एक संग रहे तो अनेक संग का रंग लग नहीं सकता इसलिए पहला वायदा है और संग तोड़ एक संग जोड़-इस वायदे को निभाना अर्थात् सम्पूर्ण वफादार बनना।
स्लोगन: सत्यता की स्व-स्थिति परिस्थितियों में भी सम्पूर्ण बना देगी।
मन्सा सेवा के लिए
बाहर की परिस्थितियां चाहे कितनी भी हलचल की हों लेकिन मन-बुद्धि को जिस समय, जहाँ चाहो एक सेकण्ड में एकाग्र कर लो अर्थात् एक की अन्त में (एकान्त में) चले जाओ।


 






[22-08-2011]


जैसा लक्ष्य वैसा लक्षण
21-08-11 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ”अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज: 25.5.73 मधुबन
भविष्य पलान
वरदान: सदा फरमान के तिलक को धारण कर फर्स्ट प्राइज़ लेने वाले फरमानवरदार भव
जिन बच्चों के मस्तक पर फरमानबरदारी की स्मृति का तिलक लगा हुआ है, एक संकल्प भी फरमान के बिना नहीं करते उन्हें फर्स्ट प्राइज़ प्राप्त होती है। जैसे सीता को लकीर के अन्दर बैठने का फरमान था, ऐसे हर कदम उठाते हुए, हर संकल्प करते हुए बाप के फरमान की लकीर के अन्दर रहो तो सदा सेफ रहेंगे। कोई भी प्रकार के रावण के संस्कार वार नहीं करेंगे और समय भी व्यर्थ नहीं जायेगा।
स्लोगन: किसी से भी लगाव है तो वह लगाव पुरूषार्थ में अलबेला अवश्य बनायेगा।
मन्सा सेवा के लिए
जैसे स्थूल स्थान में प्रवेश करते हो ऐसे इस स्थूल देह में प्रवेश करो, कार्य करके फिर न्यारे हो जाओ। एक सेकण्ड में शरीर धारण करो और एक सेकण्ड में देह के भान को छोड़ दो।


 





[21-08-2011]


21-08-11 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ”अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज: 17.5.73 मधुबन
जैसा लक्ष्य वैसा लक्षण
21-08-11 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ”अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज: 25.5.73 मधुबन
भविष्य पलान
वरदान: सदा फरमान के तिलक को धारण कर फर्स्ट प्राइज़ लेने वाले फरमानवरदार भव
जिन बच्चों के मस्तक पर फरमानबरदारी की स्मृति का तिलक लगा हुआ है, एक संकल्प भी फरमान के बिना नहीं करते उन्हें फर्स्ट प्राइज़ प्राप्त होती है। जैसे सीता को लकीर के अन्दर बैठने का फरमान था, ऐसे हर कदम उठाते हुए, हर संकल्प करते हुए बाप के फरमान की लकीर के अन्दर रहो तो सदा सेफ रहेंगे। कोई भी प्रकार के रावण के संस्कार वार नहीं करेंगे और समय भी व्यर्थ नहीं जायेगा।
स्लोगन: किसी से भी लगाव है तो वह लगाव पुरूषार्थ में अलबेला अवश्य बनायेगा।
मन्सा सेवा के लिए
जैसे स्थूल स्थान में प्रवेश करते हो ऐसे इस स्थूल देह में प्रवेश करो, कार्य करके फिर न्यारे हो जाओ। एक सेकण्ड में शरीर धारण करो और एक सेकण्ड में देह के भान को छोड़ दो।






[20-08-2011]


”मीठे बच्चे – बाप और वर्से को याद करने में तुम्हारी कमाई भी है तो तन्दरूस्ती भी है, तुम अमर बन जाते हो”
प्रश्न: हृदय को शुद्ध बनाने की सहज युक्ति कौन सी है?
उत्तर: कहाँ भी रहो ट्रस्टी होकर रहो। हमेशा समझो हम शिवबाबा के भण्डारे से खाते हैं। शिवबाबा के भण्डारे का भोजन खाने वालों का हृदय शुद्ध होता जाता है। प्रवृत्ति में रहते अगर श्रीमत प्रमाण डायरेक्शन पर ट्रस्टी बनकर रहते तो वह भी शिवबाबा का भण्डारा है, मन से सरेन्डर हैं।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) यह कल्याणकारी संगमयुग है, इसमें हर बात में कल्याण है, कमाई ही कमाई है। बाप और वर्से को याद कर 21 जन्म के लिए जीवन को अमर बनाना है।
2) प्रवृत्ति में रहते मन-बुद्धि से सरेन्डर होना है। श्रीमत पर खर्चा करना है, पूरा ट्रस्टी होकर रहना है। शिवबाबा का भण्डारा भरपूर काल कंटक दूर…..।
वरदान: अनुभव की विल पावर द्वारा माया की पावर का सामना करने वाले अनुभवीमूर्त भव
सबसे पावरफुल स्टेज है अपना अनुभव। अनुभवी आत्मा अपने अनुभव की विल-पावर से माया की कोई भी पावर का, सभी बातों का, सर्व समस्याओं का सहज ही सामना कर सकती है और सभी आत्माओं को सन्तुष्ट भी कर सकती है। सामना करने की शक्ति से सर्व को सन्तुष्ट करने की शक्ति अनुभव के विल पावर से सहज प्राप्त होती है, इसलिए हर खजाने को अनुभव में लाकर अनुभवीमूर्त बनो।
स्लोगन: एक दो को देखने के बजाए स्वयं को देखो और परिवर्तन करो।
मन्सा सेवा के लिए
शुद्ध संकल्पों के सागर के तले में जाकर साइलेन्स स्वरूप हो जाओ। दाता, विधाता और वरदातापन के संस्कार इमर्ज करो। इसी सेवा में बिजी रहो तो समस्याओं का लंगर उठ जायेगा।



 


[19-08-2011]


”मीठे बच्चे – बाप और वर्से को याद करने में तुम्हारी कमाई भी है तो तन्दरूस्ती भी है, तुम अमर बन जाते हो”
प्रश्न: हृदय को शुद्ध बनाने की सहज युक्ति कौन सी है?
उत्तर: कहाँ भी रहो ट्रस्टी होकर रहो। हमेशा समझो हम शिवबाबा के भण्डारे से खाते हैं। शिवबाबा के भण्डारे का भोजन खाने वालों का हृदय शुद्ध होता जाता है। प्रवृत्ति में रहते अगर श्रीमत प्रमाण डायरेक्शन पर ट्रस्टी बनकर रहते तो वह भी शिवबाबा का भण्डारा है, मन से सरेन्डर हैं।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) यह कल्याणकारी संगमयुग है, इसमें हर बात में कल्याण है, कमाई ही कमाई है। बाप और वर्से को याद कर 21 जन्म के लिए जीवन को अमर बनाना है।
2) प्रवृत्ति में रहते मन-बुद्धि से सरेन्डर होना है। श्रीमत पर खर्चा करना है, पूरा ट्रस्टी होकर रहना है। शिवबाबा का भण्डारा भरपूर काल कंटक दूर…..।
वरदान: अनुभव की विल पावर द्वारा माया की पावर का सामना करने वाले अनुभवीमूर्त भव
सबसे पावरफुल स्टेज है अपना अनुभव। अनुभवी आत्मा अपने अनुभव की विल-पावर से माया की कोई भी पावर का, सभी बातों का, सर्व समस्याओं का सहज ही सामना कर सकती है और सभी आत्माओं को सन्तुष्ट भी कर सकती है। सामना करने की शक्ति से सर्व को सन्तुष्ट करने की शक्ति अनुभव के विल पावर से सहज प्राप्त होती है, इसलिए हर खजाने को अनुभव में लाकर अनुभवीमूर्त बनो।
स्लोगन: एक दो को देखने के बजाए स्वयं को देखो और परिवर्तन करो।
मन्सा सेवा के लिए
शुद्ध संकल्पों के सागर के तले में जाकर साइलेन्स स्वरूप हो जाओ। दाता, विधाता और वरदातापन के संस्कार इमर्ज करो। इसी सेवा में बिजी रहो तो समस्याओं का लंगर उठ जायेगा।




 


[18-08-2011]


”मीठे बच्चे – सब बातों में सहनशील बनो, निंदा-स्तुति, जय-पराजय सबमें समान रहो, सुनी सुनाई बातों में विश्वास नहीं करो”
प्रश्न: आत्मा सदा चढ़ती कला में आगे बढ़ती रहे उसकी सहज युक्ति सुनाओ?
उत्तर: एक बाप से ही सुनो, दूसरे से नहीं। फालतू परचिन्तन में, वाह्यात बातों में अपना समय बरबाद न करो, तो आत्मा सदा चढ़ती कला में रहेगी। उल्टी-सुल्टी बातें सुनने से, उन पर विश्वास करने से अच्छे बच्चे भी गिर पड़ते हैं, इसलिए बहुत सम्भाल करनी है।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अपनी जांच आपेही करनी है। देखना है मैं बहुत-बहुत मीठा बना हूँ? हमारे में क्या-क्या कमी है? सब दैवीगुण धारण हुए हैं! अपनी चलन देवताओं जैसी बनानी है। आसुरी खान-पान त्याग देना है।
2) कोई भी वाह्यात बातें न सुननी है और न बोलनी है। सहनशील बनना है।
वरदान: सर्व शक्तियों की सम्पत्ति से सम्पन्न बन दाता बनने वाले विधाता, वरदाता भव
जो बच्चे सर्व शक्तियों के सम्पत्तिवान हैं-वही सम्पन्न और सम्पूर्ण स्थिति के समीपता का अनुभव करते हैं। उनमें कोई भी भक्तपन के वा भिखारीपन के संस्कार इमर्ज नहीं होते, बाप की मदद चाहिए, आशीर्वाद चाहिए, सहयोग चाहिए, शक्ति चाहिए-यह चाहिए शब्द दाता विधाता, वरदाता बच्चों के आगे शोभता ही नहीं। वे तो विश्व की हर आत्मा को कुछ न कुछ दान वा वरदान देने वाले होते हैं।
स्लोगन: हर आत्मा को कोई न कोई प्राप्ति कराने वाले वचन ही सत वचन हैं।
मन्सा सेवा के लिए
किसी की कमजोरी को जानते हुए उस आत्मा की कमजोरी को भुलाकर, उसकी विशेषता के शक्ति की स्मृति दिलाकर समर्थ बनाओ। अपनी शुभचिंतक स्थिति द्वारा गिरी हुई आत्माओं को ऊंचा उठाओ, यही मन्सा सेवा है।



 



[17-08-2011]


”मीठे बच्चे – यह पुरुषोत्तम बनने का संगमयुग है, इसमें कोई भी पाप कर्म नहीं करना है”
प्रश्न: संगम पर तुम बच्चे सबसे बड़ा पुण्य कौन सा करते हो?
उत्तर: स्वयं को बाप के हवाले कर देना अर्थात् सम्पूर्ण स्वाहा हो जाना, यह है सबसे बड़ा पुण्य। अभी तुम ममत्व मिटाते हो। बाल बच्चे, घर-बार सबको भूलते हो, यही तुम्हारा व्रत है। आप मुये मर गई दुनिया। अभी तुम विकारी सम्बन्धों से मुक्त होते हो।
गीत:- जले न क्यों परवाना…..
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) इस पुरुषोत्तम युग में जीवनमुक्त बनने के लिए पुण्य कर्म करने हैं। पवित्र जरूर रहना है। घरबार आदि सब होते दिल से ममत्व मिटा देना है।
2) श्रीमत पर अपने तन-मन-धन से दैवी राज्य स्थापन करना है। पुरुषोत्तम बनाने की सेवा करनी है।
वरदान: त्याग और स्नेह की शक्ति द्वारा सेवा में सफलता प्राप्त करने वाले स्नेही सहयोगी भव
जैसे शुरू में नॉलेज की शक्ति कम थी लेकिन त्याग और स्नेह के आधार पर सफलता मिली। बुद्धि में दिन रात बाबा और यज्ञ तरफ लगन रही, जिगर से निकलता था बाबा और यज्ञ। इसी स्नेह ने सभी को सहयोग में लाया। इसी शक्ति से केन्द्र बनें। साकार स्नेह से ही मन्मनाभव बनें, साकार स्नेह ने ही सहयोगी बनाया। अभी भी त्याग और स्नेह की शक्ति से घेराव डालो तो सफलता मिल जायेगी।
स्लोगन: फरिश्ता बनना है तो व्यर्थ बोल वा डिस्टर्ब करने वाले बोल से मुक्त बनो।
मन्सा सेवा के लिए
सदा अपनी शुभचिंतक स्थिति में रह चिंता की चिता पर बैठी हुई आत्माओं को, दिलशिकस्त आत्माओं को दिलखुश मिठाई खिलाओ। आपकी शुभ चिंतक स्थिति जलती हुई आत्माओं को शीतल जल की अनुभूति करायेगी।




 



 


 


 [16-08-2011]



”मीठे बच्चे – तुम ड्रामा के गुप्त राज़ को जानते हो कि यह संगमयुग ही चढ़ती कला का युग है, सतयुग से लेकर कलायें कम होती जाती हैं”
प्रश्न: सबसे उत्तम सेवा कौन सी है और वह सेवा कौन करता है?
उत्तर: भारत को स्वर्ग बनाना, रंक को राव बनाना, पतित को पावन बनाना – यह है सबसे उत्तम सेवा। ऐसी सेवा एक बाप के सिवाए और कोई भी नहीं कर सकता। बाप ने ऐसी महान सेवा की है तब तो बच्चे उनकी इज्जत करते हैं, सबसे पहले सोमनाथ का मन्दिर बनाकर उनकी पूजा करते हैं।
गीत:- आखिर वह दिन आया आज….
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) रचयिता और रचना का ज्ञान बुद्धि में रख सतोप्रधान बनने का पुरुषार्थ करना है। बस एक ही चिंता रखनी है कि हमें सतोप्रधान जरूर बनना है।
2) इस बेहद के ड्रामा को बुद्धि में रख अपार खुशी में रहना है, बाप समान इज्जत पाने के लिए पतितों को पावन बनाने की सेवा करनी है।
वरदान: नॉलेज की लाइट द्वारा पुरूषार्थ के मार्ग को सहज और स्पष्ट करने वाले फरिश्ता स्वरूप भव
फरिश्तेपन की लाइफ में लाइट और माइट दोनों ही स्पष्ट दिखाई देते हैं। लेकिन लाइट और माइट रूप बनने के लिए मनन करने और सहन करने की शक्ति चाहिए। मन्सा के लिए मननशक्ति और वाचा, कर्मणा के लिए सहनशक्ति धारण करो फिर जो भी शब्द बोलेंगे, कर्म करेंगे वह उसी के प्रमाण होंगे। अगर यह दोनों शक्तियां हैं तो हर एक के लिए पुरूषार्थ का मार्ग सहज और स्पष्ट हो जायेगा।
स्लोगन: व्यर्थ बोलना अर्थात् अनेकों को डिस्टर्ब करना।
मन्सा सेवा के लिए
सर्व के प्रति सदा ही श्रेष्ठ और नि:स्वार्थ संकल्प रख, पर-उपकार की भावना से सम्पन्न बनो। अपकारी पर भी उपकार की श्रेष्ठ शक्ति हो। सबके प्रति दिल में सद्भावना हो तो आपके वायब्रेशन सेवा करते रहेंगे।



 


[15-08-2011]


”मीठे बच्चे – मनमनाभव की ड्रिल सदा करते रहो तो 21 जन्मों के लिए रूस्ट-पुस्ट (निरोगी) बन जायेंगे”
प्रश्न: सतगुरू की कौन सी श्रीमत पालन करने में ही गुप्त मेहनत है?
उत्तर: सतगुरू की श्रीमत है – मीठे बच्चे, इस देह को भी भूल कर मुझे याद करो। अपने को अकेली आत्मा समझो। देही-अभिमानी रहने का पुरूषार्थ करो। सबको यही पैगाम दो कि अशरीरी बनो। देह सहित देह के सब धर्मों को भूलो तो तुम पावन बन जायेंगे। इस श्रीमत को पालन करने में बच्चों को गुप्त मेहनत करनी पड़ती है। तकदीरवान बच्चे ही यह गुप्त मेहनत कर सकते हैं।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) पावन बनने के लिए अशरीरी बनने का अभ्यास करना है। सबको पैगाम देना है कि एक बाप को याद करो। देह सहित सब कुछ भूल जाओ।
2) योगेश्वर बाप से योग सीखकर सच्चा-सच्चा योगी बनना है। ज्ञान से धनवान और योग से निरोगी, एवरहेल्दी बनना है।
वरदान: नम्बरवन बिजनेसमैन बन एक एक सेकण्ड वा संकल्प में कमाई जमा करने वाले पदमपति भव
नम्बरवन बिजनेसमैन वह है जो स्वयं को बिजी रखने का तरीका जानता है। बिजनेसमैन अर्थात् जिसका एक संकल्प भी व्यर्थ न जाये, हर संकल्प में कमाई हो। जैसे वह बिजनेसमैन एक एक पैसे को कार्य में लगाकर पदमगुणा बना देते हैं, ऐसे आप भी एक एक सेकण्ड वा संकल्प कमाई करके दिखाओ तब पदमपति बनेंगे। इससे बुद्धि का भटकना बंद हो जायेगा और व्यर्थ संकल्पों की कम्पलेन भी समाप्त हो जायेगी।
स्लोगन: जो मंगता है वो खुशी के खजाने से सम्पन्न नहीं हो सकता।
मन्सा सेवा के लिए
अपने तपस्वी स्वरूप में स्थिति रह श्रेष्ठ संकल्पों द्वारा सेवा करो। तपस्वी मूर्त के दर्शन मात्र से भी प्राप्ति की अनुभूति होती है। उनका शान्त स्वरूप चेहरा भी सेवा करता है।


 






[14-08-2011]


14-08-11 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ”अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज: 16-5-73 मधुबन
”अन्तिम पुरुषार्थ – नष्टोमोहा स्मृर्तिलब्धा”
वरदान: करन-करावनहार की स्मृति द्वारा सहजयोग का अनुभव करने वाले सफलतामूर्त भव
कोई भी कार्य करते यही स्मृति रहे कि इस कार्य के निमित्त बनाने वाला बैकबोन कौन है। बिना बैकबोन के कोई भी कर्म में सफलता नहीं मिल सकती, इसलिए कोई भी कार्य करते सिर्फ यह सोचो मैं निमित्त हूँ, कराने वाला स्वयं सर्व समर्थ बाप है। यह स्मृति में रख कर्म करो तो सहज योग की अनुभूति होती रहेगी। फिर यह सहजयोग वहाँ सहज राज्य करायेगा। यहाँ के संस्कार वहाँ ले जायेंगे।
स्लोगन: इच्छायें परछाई के समान हैं आप पीठ कर दो तो पीछे-पीछे आयेंगी।
मन्सा सेवा के लिए
मनजीत, जगतजीत बन भटकती हुई आत्माओं को ठिकाना दो। समय कम है और सेवा आत्माओं की, वायुमण्डल की, प्रकृति की, भूत प्रेत आत्माओं की.. सबकी करनी है, इसलिए मन को शक्तिशाली बनाओ, मन को एकाग्र कर सबको सकाश दो।


 


 

[13-08-2011]


”मीठे बच्चे – सुख देने वाले बाप को बहुत-बहुत प्यार से याद करो, याद बिगर प्यार नहीं हो सकता”
प्रश्न: बाप बच्चों को रोज़-रोज़ याद का अभ्यास करने का इशारा क्यों देते हैं?
उत्तर: क्योंकि याद से ही आत्मा पावन बनेगी। याद से ही पूरा वर्सा ले सकेंगे। आत्मा के सब बन्धन खलास हो जायेंगे। विकर्मों से मुक्त हो जायेंगे। सजाओं से छूट जायेंगे। जितना याद करेंगे उतना खुशी रहेगी। मंजिल समीप अनुभव होगी। कभी भी थकेंगे नहीं। बेहद का सुख पायेंगे इसलिए याद का अभ्यास जरूर करना है।
गीत:- बचपन के दिन भुला न देना…
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) पढ़ाई में कभी गफलत नहीं करनी है, लड़ाई के पहले बाप से पूरा-पूरा वर्सा लेना है।
2) श्रीमत पर बाप को बड़े पयार से याद करना है।
वरदान: सेवा की लगन द्वारा लौकिक को अलौकिक प्रवृत्ति में परिवर्तन करने वाले निरन्तर सेवाधारी भव
सेवाधारी का कर्तव्य है निरन्तर सेवा में रहना-चाहे मंसा सेवा हो, चाहे वाचा वा कर्मणा सेवा हो। सेवाधारी कभी भी सेवा को अपने से अलग नहीं समझते। जिनकी बुद्धि में सदा सेवा की लगन रहती है उनकी लौकिक प्रवृत्ति बदलकर ईश्वरीय प्रवृत्ति हो जाती है। सेवाधारी घर को घर नहीं समझते लेकिन सेवास्थान समझकर चलते हैं। सेवाधारी का मुख्य गुण है त्याग। त्याग वृत्ति वाले प्रवृत्ति में तपस्वीमूर्त होकर रहते हैं जिससे सेवा स्वत: होती है।
स्लोगन: अपने संस्कारों को दिव्य बनाना है तो मन-बुद्धि को बाप के आगे समर्पित कर दो।
मन्सा सेवा के लिए
किसी अज्ञानी के पार्ट को देख अपनी श्रेष्ठ स्थिति के अनुभव को भूलो नहीं, आप शान्ति के अवतार बन अपनी शुभ भावना और शुभ कामना से उस आत्मा को शान्ति और शक्ति का दान दो।



 


[12-08-2011]
”मीठे बच्चे – बाप मीठे से मीठी सैक्रीन है इसलिए और सब बातें छोड़ उस बाप को याद करो तो मीठी सैक्रीन बन जायेंगे”
प्रश्न: तुम बाप द्वारा श्रीमत लेकर अपने अन्दर कौन से संस्कार भर रहे हो?
उत्तर: भविष्य में बिगर वजीर सारे विश्व पर राज्य करने के। तुम यहाँ आये ही हो भविष्य राजधानी चलाने की श्रीमत लेने। बाप तुम्हें ऐसी श्रीमत दे देते जो आधाकल्प तक कोई की राय लेने की दरकार नहीं। राय उन्हें लेनी पड़ती जिनकी बुद्धि कमजोर हो।
गीत:- तुम्हीं हो माता..
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) ज्ञान रत्नों से अपनी झोली भरनी है। किसी भी प्रकार का संशय नहीं उठाना है। जितना हो सके बाप को याद करने का पुरुषार्थ कर पावन बनना है। बाकी प्रश्नों में नहीं जाना है।
2) एक बाप से सच्ची प्रीत रख बाप समान मीठी सैक्रीन बनना है।
वरदान: संगठन में सहयोग की शक्ति द्वारा विजयी बनने वाले सर्व के शुभचिंतक भव
यदि संगठन में हर एक, एक दो के मददगार, शुभचिंतक बनकर रहें तो सहयोग की शक्ति का घेराव बहुत कमाल कर सकता है। आपस में एक दो के शुभचिंतक सहयोगी बनकर रहो तो माया की हिम्मत नहीं जो इस घेराव के अन्दर आ सके। लेकिन संगठन में सहयोग की शक्ति तब आयेगी जब यह दृढ़ संकल्प करेंगे कि चाहे कितनी भी बातें सहन करना पड़े लेकिन सामना करके दिखायेंगे, विजयी बनकर दिखायेंगे।
स्लोगन: कोई भी इच्छा, अच्छा बनने नहीं देगी।
मन्सा सेवा के लिए
अपने पूर्वजपन की स्मृति से सभी आत्माओं की शान्ति की शक्ति से पालना करो। अशान्ति के वायुमण्डल में आत्माओं को अपनी वृत्ति वा मन्सा शक्ति द्वारा विशेष शान्ति का दान दो।


 



 


[11-08-2011]
”मीठे बच्चे – बाप आये हैं तुम्हें इस पाप की दुनिया से निकाल चैन की दुनिया में ले जाने, बाप द्वारा तुम्हें सुख-शान्ति की दो सौगातें मिलती हैं”
प्रश्न: सारी दुनिया में सच्ची-सच्ची नन्स तुम हो, सच्ची नन्स किसे कहेंगे?
उत्तर: सच्ची नन्स वह जिनकी बुद्धि में एक की याद हो अर्थात् नन बट वन। वे अपने को भल नन्स कहलाती हैं लेकिन उनकी बुद्धि में सिर्फ एक क्राइस्ट की याद नहीं, क्राइस्ट को भी गॉड का बच्चा कहेंगे। तो उनकी बुद्धि में दो हैं और तुम्हारी बुद्धि में एक बाप है इसलिए तुम सच्ची-सच्ची नन्स हो। तुम्हें बाप का फरमान है पवित्र रहना है।
गीत:- इस पाप की दुनिया से…
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अब अशुद्ध कामनाओं का त्याग कर शुद्ध कामनायें रखनी हैं। सबसे शुद्ध कामना है पवित्र बनकर पवित्र दुनिया का मालिक बनें…। कोई भी भूल को छिपाकर अपने आपको ठगना नहीं है। धर्मराज बाप से सदा सच्चा रहना है।
2) ज्ञान चिता पर बैठ इस पढ़ाई में रेस कर भविष्य नई दुनिया में ऊंच पद पाना है। योग अग्नि से विकर्मों के खाते को दग्ध करना है।
वरदान: शरीर को ईश्वरीय सेवा के लिए अमानत समझकर कार्य में लगाने वाले नष्टोमोहा भव
जैसे कोई की अमानत होती है तो अमानत में अपनापन नहीं होता, ममता भी नहीं होती है। तो यह शरीर भी ईश्वरीय सेवा के लिए एक अमानत है। यह अमानत रूहानी बाप ने दी है तो जरूर रूहानी बाप की याद रहेगी। अमानत समझने से रूहानियत आयेगी, अपने पन की ममता नहीं रहेगी। यही सहज उपाय है निरन्तर योगी, नष्टोमोहा बनने का। तो अब रूहानयित की स्थिति को प्रत्यक्ष करो।
स्लोगन: वानप्रस्थ स्थिति में जाना है तो दृष्टि-वृत्ति में भी पवित्रता को अण्डरलाइन करो।
मन्सा सेवा के लिए
अपने दिल की शुभ भावनायें अन्य आत्माओं तक पहुंचाओ। साइलेन्स की शक्ति को प्रत्यक्ष करो। एक सेकण्ड में मन के संकल्पों को एकाग्र कर लो तब वायुमण्डल में साइलेन्स की शक्ति के प्रकम्पन्न फैलेंगे।


 


 



 


 


[10-08-2011]



”मीठे बच्चे – बाप और दादा की भी वन्डरफुल कहानी है, बाप जब दादा में प्रवेश करे तब तुम ब्रह्माकुमार-कुमारी वर्से के अधिकारी बनो”
प्रश्न: निश्चित ड्रामा को जानते हुए भी तुम बच्चों को कौन सा लक्ष्य अवश्य रखना है?
उत्तर: पुरुषार्थ कर गैलप करने का अर्थात् विनाश के पहले बाप की याद में रह कर्मातीत बनने का लक्ष्य अवश्य रखना है। कर्मातीत अर्थात् आइरन एजेड से गोल्डन एजेड बनना। पुरुषार्थ का यही थोड़ा सा समय है इसलिए विनाश के पहले अपनी अवस्था को अचल-अडोल बनाना है।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) कम से कम 8 घण्टा याद में रहने का पुरूषार्थ करना है। अपनी अवस्था अचल-अडोल रखने के लिए याद का अभ्यास बढ़ाना है। गफलत नहीं करनी है।
2) यह ड्रामा बिल्कुल एक्यूरेट बना हुआ है इसलिए किसी पर भी नाराज़ नहीं होना है। निश्चयबुद्धि बनना है।
वरदान: अपने बुद्धि रूपी नेत्र को क्लीयर और केयरफुल रखने वाले मास्टर नॉलेजफुल, पावरफुल भव
जैसे ज्योतिषी अपने ज्योतिष की नॉलेज से, ग्रहों की नॉलेज से आने वाली आपदाओं को जान लेते हैं, ऐसे आप बच्चे इनएडवांस माया द्वारा आने वाले पेपर्स को परखकर पास विद आनर बनने के लिए अपने बुद्धि रूपी नेत्र को क्लीयर बनाओ और केयरफुल रहो। दिन प्रतिदिन याद की वा साइलेन्स की शक्ति को बढ़ाओ तो पहले से ही मालूम पड़ेगा कि आज कुछ होने वाला है। मास्टर नॉलेजफुल, पावरफुल बनो तो कभी हार नहीं हो सकती।
स्लोगन: पवित्रता ही नवीनता है और यही ज्ञान का फाउण्डेशन है।
मन्सा सेवा के लिए
पहले अपनी वृत्ति को बहुत शुद्ध, शुभ भावना सम्पन्न बनाओ तब वृत्ति का प्रभाव वायुमण्डल पर और वायुमण्डल का प्रभाव प्रकृति पर पड़ेगा, इससे ही परिवर्तन होगा।


 



[09-08-2011]


”मीठे बच्चे – सबको यही पैगाम दो कि देह सहित देह के सब धर्मों को भूल अपने को आत्मा समझो तो सब दु:ख दूर हो जायेंगे”
प्रश्न: तुम बच्चों को किस बात में फॉलो फादर करना है?
उत्तर: जैसे इस ब्रह्मा ने अपना सब कुछ ईश्वर अर्पण कर दिया। पूरा ट्रस्टी बना, ऐसे ट्रस्टी बनकर रहो। कभी भी उल्टा-सुल्टा खर्चा कर पाप आत्माओं को नहीं देना। अपना सब कुछ ईश्वरीय सेवा में लगाओ, पूरा ट्रस्टी बनो। बाप की श्रीमत पर चलते रहो। बाप देखते हैं कौन बच्चा कितना श्रीमत पर चलता है।
गीत:- तू प्यार का सागर है….
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) जब तक जीना है ज्ञान अमृत पीते रहना है। महावीर बन माया की बॉक्सिंग में विजयी बनना है। सबके साथ तोड़ निभाते दिल एक बाप में रखनी है।
2) विघ्नों से डरना नहीं है। सर्विस में अपना सब कुछ सफल करना है। ईश्वर अर्पण कर ट्रस्टी बन रहना है। कुछ भी उल्टे सुल्टे कार्य में नहीं लगाना है।
वरदान: विकारों के वंश के अंश को भी समाप्त करने वाले सर्व समर्पण वा ट्रस्टी भव
जो आईवेल के लिए पुराने संस्कारों की प्रापर्टी किनारे कर रख लेते हैं। तो माया किसी न किसी रीति से पकड़ लेती है। पुराने रजिस्टर की छोटी सी टुकड़ी से भी पकड़ जायेंगे, माया बड़ी तेज है, उनकी कैचिंग पावर कोई कम नहीं है इसलिए विकारों के वंश के अंश को भी समाप्त करो। जरा भी किसी कोने में पुराने खजाने की निशानी न हो-इसको कहा जाता है सर्व समर्पण, ट्रस्टी वा यज्ञ के स्नेही सहयोगी।
स्लोगन: किसी की विशेषता के कारण उससे विशेष स्नेह हो जाना – ये भी लगाव है।
मन्सा सेवा के लिए
निर्विघ्न और निर्विकल्प स्थिति में रह मन्सा द्वारा वायुमण्डल को पावरफुल बनाओ। पहले अपने स्थान का, शहर का, भारत का वायुमण्डल पावरफुल बनाओ फिर विश्व का।


 



 


 

[08-08-2011]

”मीठे बच्चे – रोज़ अपने आपसे पूछो कि मैं आत्मा कितना शुद्ध बना हूँ, जितना शुद्ध बनेंगे उतना खुशी रहेगी, सेवा करने का उमंग आयेगा”
प्रश्न: हीरे जैसा श्रेष्ठ बनने का पुरूषार्थ क्या है?
उत्तर: देही-अभिमानी बनो, शरीर में जरा भी मोह न रहे। फिकर से फारिग हो एक बाबा की याद में रहो – यही श्रेष्ठ पुरूषार्थ हीरे जैसा बना देगा। अगर देह-अभिमान है तो समझो अवस्था कच्ची है। बाबा से दूर हो। तुम्हें इस शरीर की सम्भाल भी करनी है क्योंकि इस शरीर में रहते कर्मातीत अवस्था को पाना है।
गीत:- मुखड़ा देख ले प्राणी…
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप समान निरहंकारी बनना है। इस शरीर की सम्भाल करते हुए शिवबाबा को याद करना है। रूहानी सर्विस में बाप का मददगार बनना है।
2) अन्दर में कोई भी भूत को रहने नहीं देना है। कभी किसी पर क्रोध नहीं करना है। सबसे बहुत प्यार से चलना है। मात-पिता को फॉलो कर तख्तनशीन बनना है।
वरदान: नये जीवन की स्मृति से कर्मेन्द्रियों पर विजय प्राप्त करने वाले मरजीवा भव
जो बच्चे पूरा मरजीवा बन गये उन्हें कर्मेन्द्रियों की आकर्षण हो नहीं सकती। मरजीवा बने अर्थात् सब तरफ से मर चुके, पुरानी आयु समाप्त हुई। जब नया जन्म हुआ, तो नये जन्म, नई जीवन में कर्मेन्द्रियों के वश हो कैसे सकते। ब्रह्माकुमार-कुमारी के नये जीवन में कर्मेन्द्रियों के वश होना क्या चीज़ होती है-इस नॉलेज से भी परे। शूद्र पन का जरा भी सांस अर्थात् संस्कार कहाँ अटका हुआ न हो।
स्लोगन: अमृतवेले दिल में परमात्म स्नेह को समा लो तो और कोई स्नेह आकर्षित नहीं कर सकता।
मन्सा सेवा के लिए
अपनी सूक्ष्म शक्तिशाली एकाग्र मन्सा द्वारा प्रकृति को सतोप्रधान बनाने की सेवा करो। तमोगुणी संस्कार वाली आत्माओं के तमोगुणी वायब्रेशन्स परिवर्तन करो।



 


[07-08-2011]


07-08-11 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ”अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज: 08.05.73 मधुबन
सर्वोच्च स्वमान
वरदान: दाता बन हर सेकण्ड, हर संकल्प में दान देने वाले उदारचित, महादानी भव
आप दाता के बच्चे लेने वाले नहीं लेकिन देने वाले हो। हर सेकण्ड हर संकल्प में देना है, जब ऐसे दाता बन जायेंगे तब कहेंगे उदारचित, महादानी। ऐसे महादानी बनने से महान शक्ति की प्राप्ति स्वत: होती है। लेकिन देने के लिए स्वयं का भण्डारा भरपूर चाहिए। जो लेना था वह सब कुछ ले लिया, बाकी रह गया देना। तो देते जाओ देने से और भी भण्डारा भरता जायेगा।
स्लोगन: हर सबजेक्ट में फुल मार्क्स जमा करनी है तो गम्भीरता का गुण धारण करो।
मन्सा सेवा के लिए
अपने मन में यह पक्का वायदा करो कि हम बाप समान बनकर ही दिखायेंगे। जैसे ब्रह्मा बाप अपने स्नेही सहयोगी बच्चों को इमर्ज कर विशेष समान बनने की सकाश देते रहते हैं, ऐसे आप भी अपने भाई बहिनों को सकाश दो।






  06-08-2011


”मीठे बच्चे – बाबा आये हैं तुम्हारी तकदीर जगाने, पावन बनने से ही तकदीर जगेगी”
प्रश्न: जिन बच्चों की तकदीर जगी हुई है उनकी निशानी क्या होगी?
उत्तर: वे सुख के देवता होंगे। बेहद के बाप से सुख का वर्सा लेकर सबको सुख देंगे। कभी भी किसी को दु:ख नहीं दे सकते। वह हैं व्यास के बच्चे सच्चे-सच्चे सुखदेव। 2. वह 5 विकारों का सन्यास कर सच्चे-सच्चे राजयोगी, राजॠषि कहलाते हैं। 3. उनकी अवस्था एकरस रहती है, उन्हें किसी भी बात में रोना नहीं आ सकता। उनके लिए ही कहते हैं मोहजीत।
गीत:- तकदीर जगाकर आई हूँ….
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) हर एक आत्मा का हिसाब-किताब अपना-अपना है, इसलिए कोई शरीर छोड़ते हैं तो रोना नहीं है। पूरा नष्टोमोहा बनना है। बुद्धि में रहे हमारा तो एक बेहद का बाप, दूसरा न कोई।
2) 5 विकार जो बुद्धि को खराब करते हैं उनका त्याग करना है। सुख का देवता बन सबको सुख देना है। किसी को दु:ख नहीं देना है।
वरदान: बाप के हाथ और साथ की स्मृति से मुश्किल को सहज बनाने वाले बेफिक्र वा निश्चिंत भव
जैसे किसी बड़े के हाथ में हाथ होता है तो स्थिति बेफिक्र वा निश्चिंत रहती है। ऐसे हर कर्म में यही समझना चाहिए कि बापदादा मेरे साथ भी हैं और हमारे इस अलौकिक जीवन का हाथ उनके हाथ में है अर्थात् जीवन उनके हवाले है, तो जिम्मेवारी भी उनकी हो जाती है। सभी बोझ बाप के ऊपर रख अपने को हल्का कर दो। बोझ उतारने वा मुश्किल को सहज करने का साधन ही है-बाप का हाथ और साथ।
स्लोगन: पुरुषार्थ में सच्चाई हो तो बापदादा की एकस्ट्रा मदद का अनुभव करेंगे।
मन्सा सेवा के लिए
मैं शान्ति दूत हूँ, शान्ति का मैसेन्जर, मास्टर शान्ति दाता, मास्टर शक्ति दाता हूँ – इस स्मृति से मन्सा सकाश दो। शान्ति का वायुमण्डल बनाने की सेवा करो।



[05-08-2011]


”मीठे बच्चे – याद में रहने से अच्छी दशा बैठती है, अभी तुम्हारे पर ब्रहस्पति की दशा है इसलिए तुम्हारी चढ़ती कला है”
प्रश्न: यदि योग पर पूरा अटेन्शन नहीं है तो उसकी रिजल्ट क्या होती? निरन्तर याद में रहने की युक्तियां क्या हैं?
उत्तर: अगर योग पर पूरा अटेन्शन नहीं है तो चलते-चलते माया की प्रवेशता हो जाती है, गिर पड़ते हैं। 2- देह अभिमानी बन अनेक भूलें करते रहते हैं। माया उल्टे कर्म कराती रहती है। पतित बना देती है। निरन्तर याद में रहने के लिए मुख में मुहलरा डाल दो, क्रोध नहीं करो, देह सहित सब कुछ भूल, मैं आत्मा, परमात्मा का बच्चा हूँ – यह अभ्यास करो। योगबल से क्या-क्या प्राप्तियाँ होती हैं उन्हें स्मृति में रखो।
गीत:- ओम् नमो शिवाए…
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) याद में रहने के लिए मुख से कुछ भी बोलो नहीं। मुख में मुहलरा डाल दो तो क्रोध खत्म हो जायेगा। कोई पर भी क्रोध नहीं करना है।
2) इस दु:खधाम को अब आग लगनी है इसलिए इसे भूल नई दुनिया को याद करना है। बाप से जो पवित्र रहने की प्रतिज्ञा की है उसमें पक्का रहना है।
वरदान: एक ही रास्ता और एक से रिश्ता रखने वाले सम्पूर्ण फरिश्ता भव
निराकार वा साकार रूप से बुद्धि का संग वा रिश्ता एक बाप से पक्का हो तो फरिश्ता बन जायेंगे। जिनके सर्व सम्बन्ध वा सर्व रिश्ते एक के साथ हैं वही सदा फरिश्ते हैं। जैसे गवर्मेन्ट रास्ते में बोर्ड लगा देती है कि यह रास्ता ब्लाक है, ऐसे सब रास्ते ब्लाक (बन्द) कर दो तो बुद्धि का भटकना छूट जायेगा। बापदादा का यही फरमान है-कि पहले सब रास्ते बन्द करो, इससे सहज फरिश्ता बन जायेंगे।
स्लोगन: सदा सेवा के उमंग-उत्साह में रहना – यही माया से सेफ्टी का साधन है।
मन्सा सेवा के लिए
रात को भी जागकर मन्सा द्वारा सकाश दो, आत्माओं का आह्वान करो। दु:खी आत्माओं को सहारा दो। याद और सेवा के डबल लॉक द्वारा अब प्राब्लम का दरवाजा बन्द करो।


 


 



 


[04-08-2011]


”मीठे बच्चे – बापदादा की यादप्यार लेनी है तो सर्विसएबुल बनो, बुद्धि में ज्ञान भरपूर है तो वर्षा करो”
प्रश्न: कौन सा नशा भरे हुए बादलों को भी उड़ा कर ले जाता, बरसने नहीं देता है?
उत्तर: अगर फालतू देह-अभिमान का नशा आया तो भरे हुए बादल भी उड़ जायेंगे। बरसेंगे भी तो सर्विस के बदले डिस-सर्विस करेंगे। अगर बाबा से प्यार नहीं, उनसे योग नहीं तो ज्ञान होते हुए भी जैसे खाली हैं। ऐसे खाली बादल अनेकों का कल्याण कैसे करेंगे।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बन्धनमुक्त बन भारत की सच्ची सेवा करनी है। रूहानी सेवा कर मनुष्य को देवता बनाना है। ज्ञान के घमण्ड में नहीं आना है। रूहानी नशे में रहना है।
2) निश्चयबुद्धि बन पहले अपनी अवस्था पक्की करनी है। देह सहित जो कुछ देखने में आता है, उनसे तोड़ना है और एक बाप के साथ जोड़ना है।
वरदान: बापदादा को अपना साथी समझकर डबल फोर्स से कार्य करने वाले सहजयोगी भव
कोई भी कार्य करते बापदादा को अपना साथी बना लो तो डबल फोर्स से कार्य होगा और स्मृति भी बहुत सहज रहेगी क्योंकि जो सदा साथ रहता है उसकी याद स्वत: बनी रहती है। तो ऐसे साथी रहने से वा बुद्धि द्वारा निरन्तर सत का संग करने से सहजयोगी बन जायेंगे और पावरफुल संग होने के कारण हर कर्तव्य में आपका डबल फोर्स रहेगा, जिससे हर कार्य में सफलता की अनुभूति होगी।
स्लोगन: महारथी वह है जो कभी माया के प्रभाव में परवश न हो।
मन्सा सेवा के लिए
सेकण्ड में ज्वालामुखी स्वरूप में स्थित हो शक्तियों की किरणें फैलाओ। मास्टर विश्व रक्षक शिवशक्ति बन मन्सा द्वारा सर्व आत्माओं को शक्ति दे सुख का, शान्ति का अनुभव कराओ।


 


 



 





[03-08-2009]

”मीठे बच्चे – बाप आये हैं सबके जीवन को दु:ख से मुक्त कर स्वर्ग का वर्सा देने, इस समय सबको मुक्ति और जीवनमुक्ति मिलती है”
प्रश्न: तुम बच्चे अभी कौन सा सैपलिंग किस विधि से लगा रहे हो?
उत्तर: हम अभी दैवी फूलों का सैपलिंग लगा रहे हैं, जो ब्राह्मण कुल के होंगे वह इस सैपलिंग में आते जायेंगे। यह है देवता धर्म का सैपलिंग जिसमें मनुष्य देवता बनते हैं। यह सैपलिंग श्रीमत के आधार पर लगता है। बाप को याद करने से आइरन एजड आत्मा गोल्डन एजड बन जाती है।
गीत:- भोलेनाथ से निराला…
धारणा के लिये मुख्य सार:-
1) ऊंच ते ऊंच पद पाने के लिए पढ़ाई पर पूरा अटेन्शन देना है। इस युद्ध स्थल पर माया को जीत कर कर्मातीत अवस्था को पाना है। हार नहीं खानी है।
2) अपनी बुद्धि को गोल्डन एज़ेड पवित्र बनाने के लिए बाप की याद में रहना है। दैवी फूलों की सैपलिंग लगानी है, स्वर्ग की स्थापना करनी है।
वरदान: स्वयं को सेवाधारी समझकर झुकने और सर्व को झुकाने वाले निमित्त और नम्रचित भव
निमित्त उसे कहा जाता-जो अपने हर संकल्प वा हर कर्म को बाप के आगे अर्पण कर देता है। निमित्त बनना अर्थात् अर्पण होना और नम्रचित वह है जो झुकता है, जितना संस्कारों में, संकल्पों में झुकेंगे उतना विश्व आपके आगे झुकेगी। झुकना अर्थात् झुकाना। यह संकल्प भी न हो कि दूसरे भी हमारे आगे कुछ तो झुकें। जो सच्चे सेवाधारी होते हैं-वह सदैव झुकते हैं। कभी अपना रोब नहीं दिखाते।
स्लोगन: अब समस्या स्वरूप नहीं, समाधान स्वरूप बनो।
मन्सा सेवा के लिए
अपनी सम्पन्न स्थिति में स्थित रह विश्व की आत्माओं को वर्सा दिलाओ, दु:ख से छुड़ाओ। जब आप अपनी मन्सा द्वारा चारों ओर शक्तिशाली किरणें फैलायेंगे तब विश्व का कल्याण होगा।


 


 


 



 


[29-07-2011]


मुरली सार:- ”मीठे बच्चे – जीते जी इस शरीर से अलग हो जाओ, अशरीरी बन बाप को याद करो, इसको ही कहा जाता है डेड साइलेन्स” 
प्रश्न: तुम बच्चे अभी अपना फाउन्डेशन मजबूत कर रहे हो, मजबूती किस आधार से आती है? 
उत्तर: पवित्रता के आधार से। जितना-जितना आत्मा पवित्र अर्थात् सच्चा सोना बनती जाती, उतनी मजबूती आती। बाबा अभी स्वराज्य का फाउन्डेशन इतना मजबूत डालते हैं जो आधाकल्प उस फाउन्डेशन को कोई हिला नहीं सकता। तुम्हारे राज्य को कोई छीन नहीं सकता। 
गीत:- ओम् नमो शिवाए… 
धारणा के लिए मुख्य सार :- 
1) स्वराज्य लेने के लिए पवित्रता का फाउन्डेशन अभी से मजबूत करना है। जैसे बाप पतित-पावन है ऐसे बाप समान पावन बनना है। 
2) अपने शान्त स्वधर्म में स्थित रहना है। जितना हो सके देह-अभिमान छोड़ देही-अभिमानी रहना है। डेड साइलेन्स अर्थात् अशरीरी रहने का अभ्यास करना है। 
वरदान: कैचिंग पावर द्वारा अपने असली संस्कारों को कैच कर उनका स्वरूप बनने वाले शक्तिशाली भव 
पुरुषार्थ का मुख्य आधार कैचिंग पावर है। जैसे साइंसदान बहुत पहले के साउण्ड को कैच करते हैं ऐसे आप साइलेन्स की शक्ति से अपने आदि दैवी संस्कार कैच करो, इसके लिए सदैव यही स्मृति रहे कि मैं यही था और फिर बन रहा हूँ। जितना उन संस्कारों को कैच करेंगे उतना उसका स्वरूप बनेंगे। 5 हजार वर्ष की बात इतनी स्पष्ट अनुभव में आये जैसे कल की बात है। अपनी स्मृति को इतना श्रेष्ठ और स्पष्ट बनाओ तब शक्तिशाली बनेंगे। 
स्लोगन: ब्राह्मण जीवन का श्वांस खुशी है, शरीर भल चला जाए लेकिन खुशी न जाए। 
मन्सा सेवा के लिए 
मन से स्वतन्त्र बन अपनी वृत्ति द्वारा, शुद्ध संकल्प द्वारा विश्व के वायुमण्डल को परिवर्तन करने की सेवा करो। इसके लिए मन की वृत्ति को सदा स्वच्छ रखो। मन में कोई खिटखिट न हो








[28-07-2011]


मुरली सार:- ”मीठे बच्चे – ज्ञान सागर बाप तुम्हें ज्ञान का तीसरा नेत्र देने आये हैं, जिससे आत्मा की ज्योति जग जाती है” 
प्रश्न: बाप को करनकरावनहार क्यों कहा गया है? वह क्या करते और क्या कराते हैं? 
उत्तर: बाबा कहते – मैं तुम बच्चों को मुरली सुनाने का कार्य करता हूँ। मुरली सुनाता, मन्त्र देता, तुम्हें लायक बनाता और फिर तुम्हारे द्वारा स्वर्ग का उदघाटन कराता हूँ। तुम पैगम्बर बन सबको पैगाम देते हो। मैं तुम बच्चों को डायरेक्शन देता, यही मेरी कृपा वा आशीर्वाद है। 
गीत:- कौन आज आया सवेरे-सवेरे… 
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) पास्ट इज़ पास्ट, जो बीता उसे भूलकर, गृहस्थ व्यवहार में रहते सतोप्रधान बनने का पुरुषार्थ करना है। विनाश के पहले पावन जरूर बनना है। 
2) भारत को स्वर्ग बनाने की सच्ची-सच्ची सेवा में तत्पर रहना है। खान-पान बहुत शुद्ध रखना है। पवित्र भोजन ही खाना है। 
वरदान: मरजीवे जन्म की स्मृति द्वारा कर्मबन्धन को सम्बन्ध में परिवर्तन करने वाले परोपकारी भव 
लौकिक कर्मबन्धन का सम्बन्ध अब मरजीवे जन्म के कारण श्रीमत के आधार पर सेवा के सम्बन्ध का आधार है। कर्मबन्धन नहीं सेवा का सम्बन्ध है। सेवा के सम्बन्ध में वैराइटी प्रकार की आत्माओं का ज्ञान धारण कर चलेंगे तो बंधन में तंग नहीं होंगे। लेकिन अति पाप आत्मा, अपकारी आत्मा से भी नफरत वा घृणा के बजाए, रहमदिल बन तरस की भावना रखते हुए, सेवा का सम्बन्ध समझकर सेवा करेंगे तो नामीग्रामी विश्व कल्याणी वा परोपकारी गाये जायेंगे। 
स्लोगन: समय वा परिस्थिति प्रमाण वैराग्य आया तो यह भी अल्पकाल का वैराग्य है, सदाकाल के वैरागी बनो।






[27-07-2011]
मन्सा सेवा के लिए 
अपने ईष्ट देव, ईष्ट देवी स्वरूप में स्थित हो, अपने दयालु कृपालु, रहमदिल स्वरूप में स्थित हो भक्तों की मनोकामनायें पूरी करो। अपनी शक्तिशाली मन्सा के प्रकम्पन्न से सर्व आत्माओं को मुरली सार:- ”मीठे बच्चे – तुम इस ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त को जानते हो, तुम्हें बाप द्वारा ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है इसलिए तुम हो आस्तिक” 
प्रश्न: बाप का कौन सा टाइटिल धर्म स्थापकों को नहीं दे सकते हैं? 
उत्तर: बाबा है सतगुरू। किसी भी धर्म स्थापक को गुरू नहीं कह सकते क्योंकि गुरू वह जो दु:ख से छुड़ाये, सुख में ले जाये। धर्म स्थापन करने वालों के पीछे तो उनके धर्म की आत्मायें ऊपर से नीचे आती हैं, वह किसी को ले नहीं जाते। बाप जब आते हैं तो सभी आत्माओं को घर ले जाते हैं इसलिए वह सभी के सतगुरू हैं। 
गीत:- इस पाप की दुनिया से… 
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) आत्म-अभिमानी बनकर इन कानों द्वारा अमरकथा सुननी है। ज्ञान की भूँ-भूँ कर आप समान बनाने की सेवा में रहना है। 
2) बाप समान नॉलेजफुल, ब्लिसफुल बनना है। सोमरस पीना और पिलाना है। 
वरदान: करावनहार की स्मृति से सेवा में सदा निर्माण का कार्य करने वाले कर्मयोगी भव 
कोई भी कर्म, कर्मयोगी की स्टेज में परिवर्तन करो, सिर्फ कर्म करने वाले नहीं लेकिन कर्मयोगी हैं। कर्म अर्थात् व्यवहार और योग अर्थात् परमार्थ दोनों का बैलेन्स हो। शरीर निर्वाह के पीछे आत्मा का निर्वाह भूल न जाए। जो भी कर्म करो वह ईश्वरीय सेवा अर्थ हो। इसके लिए सेवाओं में निमित्त मात्र का मंत्र वा करनहार की स्मृति का संकल्प सदा याद रहे। करावनहार भूले नहीं तो सेवा में निर्माण ही निर्माण करते रहेंगे। 
स्लोगन: सेवा व सम्बन्ध-सम्पर्क में विघ्न पड़ने का कारण है पुराने संस्कार, उन संस्कारों से वैराग्य हो। 
मन्सा सेवा के लिए 
मन-बुद्धि को एक सेकण्ड में एकाग्र कर रूहानी ड्रिल का अभ्यास करो। जहाँ चाहो, जिस स्थिति में चाहो, ड्रिल मास्टर बन एक सेकण्ड में उसी स्थिति में स्थित हो जाओ और चारों ओर








 


 


 


 

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