सर्वशास्त्र शिरोमणि श्रीमद भगवद गीता का ज्ञान-दाता कौन है ? यह कितने आश्चर्य की बात है कि आज मनुष्यमात्र को यह भी नही मालूम की परमप्रिय परमात्मा शिव, जिन्हें ” ज्ञान का सागर” तथा ” कल्यानकारी ” माना जाता है, ने मनुष्यमात्र के कल्याण के लिए जो ज्ञान दिया,उसका शास्त्र कौनसा है ? भारत में यद्यपि गीता ज्ञान को भगवान द्वारा दिया हुआ ज्ञान […]Read More
ब्रहमाकुमारीज राजयोग
निकट भविष्य में श्रीकृष्ण आ रहे है प्रतिदिन समाचार -पत्रों में अकाल, बाड़, भ्रष्टाचार व् लड़ाई- झगडे का समाचार पदने को मिलता है I प्रकृति के पांच तत्व भी मनुष्य को दुःख दे रहे है और सारा ही वातावरण दूषित हो गया है I अत्याचार, विषय-विकार तथा अधर्म का ही बोलबाला है I और यह विश्व ही “काँटों का जंगल” बन गया है I एक समय था जबकि […]Read More
मनुष्य जीवन का लक्ष्य क्या है ?मनुष्य का वर्तमान जीवन बड़ा अनमोल है क्योंकि अब संगमयुग में ही वह सर्वोत्तम पुरुषार्थ करके जन्म-जन्मान्तर के लिए सर्वोत्तम प्रारब्ध बना सकता है और अतुल हीरो-तुल्य कमाई कर सकता है I वह इसी जन्म में सृष्टि का मालिक अथवा जगतजीत बनने का पुरुषार्थ कर सकता है I परन्तु आज मनुष्य को जीवन का […]Read More
क्या रावण के दस सिर थे, रावण किसका प्रतीक है ?भारत के लोग प्रतिवर्ष रावण का बुत जलाते है I उनका काफी विश्वास है की एक दस सिर वाला रावण श्रीलंका का रजा था, वह एक बहुत बड़ा राक्षस था और उसने श्री सीता का अपहरण किया था I वे यह भी मानते है की रावण बहुत बड़ा विद्वान था इसलिए वे उसके हाथ में वेद, शास्त्र इत्यादि दिखाते है I साथ ही वे उसके शीश पर गधे का सिर भी दिखाते है I जिसका अर्थ वे […]Read More
सृष्टि रूपी नाटक के चार पट सामने दिए गए चित्र में दिखाया गया है कि स्वस्तिक सृष्टि- चक्र को चार बराबर भागो में बांटता है — सतयुग,त्रेतायुग , द्वापर और कलियुग I सृष्टि नाटक में हर एक आत्मा का एक निश्चित समय पर परमधाम से इस सृष्टि रूपी नाटक के मंच पर आती है I सबसे पहले सतयुग और त्रेतायुग के सुन्दर दृश्य सामने […]Read More
परमप्रिय परमपिता परमात्मा शिव ने वर्तमान समय जैसे हमें ईश्वरीय ज्ञान के अन्य अनेक मधुर रहस्य समझाये है, वैसे ही यह भी एक नई बात समझाई है कि वास्तव में मनुष्यात्माएं पाशविक योनियों में जन्म नहीं लेती | यह हमारे लिए बहुत ही खुशी की बात है | परन्तु फिर भी कई लोग ऐसे लोग […]Read More
मनुष्यात्मा सारे कल्प में अधिक से अधिक कुल 84 जन्म लेती है, वह 84 लाख योनियों में पुनर्जन्म नहीं लेती | मनुष्यात्माओं के 84 जन्मों के चक्र को ही यहाँ 84 सीढ़ियों के रूप में चित्रित किया गया है | चूँकि प्रजापिता ब्रह्मा और जगदम्बा सरस्वती मनुष्य-समाज के आदि-पिता और आदि-माता है, इसलिए उनके 84 […]Read More
भारत में आदि सनातन धर्म के लोग जैसे अन्य त्यौहारों, पर्वो इत्यादि को बड़ी श्रद्धा से मानते है, वैसे ही पुरुषोतम मास को भी मानते है | इस मास में लोग तीर्थ यात्रा का विशेष महात्म्य मानते है और बहुत दान-पुन्य भी करते है तथा आध्यात्मिक ज्ञान की चर्चा में भी काफी समय देते है […]Read More
भगवान ने इस सृष्टि रूपी वृक्ष की तुलना एक उल्टे वृक्ष से की है क्योंकि अन्य वृक्षों के बीज तो पृथ्वी के अंदर बोये जाते है और वृक्ष ऊपर को उगते है परन्तु मनुष्य-सृष्टि रूपी वृक्ष के जो अविनाशी और चेतन बीज स्वरूप परमपिता परमात्मा शिव है, वह स्वयं ऊपर परमधाम अथवा ब्रह्मलोक में निवास […]Read More
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