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20-09-2018

20-09-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन


”मीठे बच्चे – ज्ञान की एक बूंद है अपने को आत्मा समझो और बाप को याद करो, इसी एक बूंद से मुक्ति-जीवनमुक्ति प्राप्त हो सकती है”

प्रश्नः-

किस पुरुषार्थ में अपनी और दूसरों की उन्नति समाई हुई है?

उत्तर:-

1- याद में रहने का पुरुषार्थ करो, इसमें ही अपनी और दूसरों की उन्नति समाई हुई है। तुम बच्चे जब याद में बैठते हो तो जैसे दूसरों को शान्ति का दान देते हो। 2- आपस में देह-अभिमान की जिस्मानी बातें छोड़ रूहानी बातें करो तो उन्नति होती रहेगी। तुम्हें बाप का शो करना है। जितना शो करेंगे सबको शान्ति और सुख का मार्ग बतायेंगे, उतना इज़ाफा (इनाम) मिलेगा।

गीत:-

तू प्यार का सागर है……  

ओम् शान्ति।

यह भक्ति मार्ग में गाते आये हैं। महिमा करते आये हैं। महिमा है परमपिता परमात्मा की। जैसे भक्ति मार्ग में अनेक प्रकार के गायन होते हैं, उत्सव मनाते हैं वह भी गायन है। कोई भी मनुष्य साधू-सन्त आदि का गायन नहीं हो सकता। गाते हैं वह ज्ञान का सागर है। एक भी बूंद मिले तो हम यहाँ से चले जायेंगे। कहाँ जायेंगे? मुक्ति वा जीवनमुक्तिधाम। महिमा होती रहती है परन्तु उनकी महिमा को जानते नहीं हैं। तुम जानते हो सो भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार। दो बाप का राज़ भी समझाया गया है – एक है लौकिक बाप, उनकी याद आने से उसको देह-अभिमान कहा जायेगा। आत्मा को देह देने वाला बाप याद आता है। आत्मा अपने रूहानी बाप को भूल जाती है। यही भूल है। यूं तो कोई भूले हुए नहीं हैं परन्तु कह देते हैं आत्मा ही परमात्मा है, यही भूल है। यह भी कहते हैं कि हम जीव आत्मा हैं। मेरी आत्मा को तंग नहीं करो। तंग तो आत्मा होती है ना। आत्मा को गर्भजेल में सजा मिलती है तो उनको शरीर में दु:ख भासता है। साक्षात्कार भी स्थूल रूप का करायेंगे, तब वह फील करते हैं, हमको दु:ख मिल रहा है। बच्चों को समझाया है पहले-पहले प्रैक्टिस करो हम आत्मा हैं। देह-अभिमानी बनने से संबंध याद आता है – यह चाचा है, मामा है…..। शरीर नहीं है तो कोई भी संबंध नहीं है। आत्मा का ही ज्ञान है। कोई को महान् परमात्मा थोड़ेही कहा जाता है। कोई मर जाता है तो उनकी आत्मा को बुलाया जाता है। ऐसे नहीं कहेंगे कि इनके परमात्मा को बुलाया जाता है। कोई भी हालत में उनको परमात्मा नहीं कहा जाता। न परमात्मा जन्म-मरण में आते हैं। परमात्मा जन्म-मरण रहित है। आत्मा तो पुनर्जन्म लेती रहती है। यह भी समझ गये हैं कि पहले-पहले आत्मा है देवी-देवताओं की, 84 जन्म भी भारत में गाये जाते हैं। अब बच्चे जानते हैं ज्ञान सागर सम्मुख बैठे हैं। पतित-पावन को ही ज्ञान सागर कहेंगे। बाप को ही कहा जाता है ज्ञानेश्वर। ईश्वर में ज्ञान है सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का। ईश्वर ही सृष्टि को रचते हैं इसलिए उनको रचना का ज्ञान है। रचता कहते हैं तो जरूर रची हुई सृष्टि है, तब तो कहते हैं ना। रचता को बाप कहा जाता है। बहन-भाई को रचता नहीं कहेंगे। रचता हमेशा बाप को कहा जाता है। बच्चे जानते हैं हमारे सम्मुख बाप बैठे हैं। भल विलायत में कोई बैठे होंगे, कहेंगे बाप से हम दूर हैं परन्तु याद तो करेंगे ना। तुमको भी याद करना है, परन्तु लौकिक संबंध को देख पारलौकिक बाप को भूल जाते हैं इसलिए बाबा कहते हैं उठते-बैठते बाप को याद करने की प्रैक्टिस करो। मैं आत्मा इस शरीर से चलती हूँ। आत्मा का ज्ञान तो तुमको है। यह जानते हो आत्मायें और परमात्मा अलग रहे बहुकाल। ऐसे नहीं कहा जाता परमात्मायें और परमात्मा अलग रहे बहुकाल…..। आत्मा और परमात्मा कहा जाता है।

अभी बाप बच्चों के सम्मुख बैठे हैं। कहते हैं आपकी एक बूँद भी बहुत है। परमपिता परमात्मा हम आत्माओं का बाप है। बस, इसको ज्ञान कहा जाता है। ऐसे और कोई को भी कहने की हिम्मत नहीं आयेगी कि तुम सब आत्माओं का मैं बाप हूँ, जिसको ही ज्ञान सागर पतित-पावन कहते हैं। यह कहने कोई को आयेगा नहीं। बाप ही कहते हैं मैं तुम्हारा बाप हूँ। बरोबर, अब महाभारी लड़ाई भी सामने खड़ी है, यादव, कौरव, पाण्डव भी हैं। यह सारा समझाने पर मदार है। चित्र देखने से कोई समझ जाये सो मुश्किल है, जब तक टीचर न समझाये। स्कूल में भी टीचर समझाते हैं ना – यह इन्डिया है, यह लन्दन है। बिगर समझाने बुद्धि में आ न सके। अगर नक्शे में नाम पढ़े तो भी सिर्फ नाम कह सकेंगे। लेकिन कहाँ है, कौन राज्य करते हैं, कुछ भी समझ नहीं सकेंगे। यहाँ भी हर बात समझने की होती है। आजकल तो पहले भभका चाहिए, शो देखकर ही आयेंगे। अब वहाँ समझाने वाले बड़े अच्छे चाहिए। बच्चे ही समझायेंगे कि यह जगत अम्बा है, सबकी मनोकामनायें सिद्ध करने वाली है। झाड़ के नीचे दिखाते हैं – कामधेनु बैठी है। तो उनसे मिलने लिए भी आयेंगे। जगत पिता है तो जरूर जगत की माँ भी होगी, परन्तु जगत अम्बा इनको कहते हैं क्योंकि कलष माताओं को दिया जाता है। मुख्य जगदम्बा गाई हुई है फिर उनकी सेना भी है।

तुम बच्चे एग्जीवीशन करते हो तो उसमें समझाने के लिए बड़े अच्छे-अच्छे बच्चे चाहिए। बाबा ने समझाया है मुख्य बात है बाप के परिचय की। पहले-पहले समझाओ दो बाप हैं। एक है तुम्हारा लौकिक बाप, दूसरा है पारलौकिक बाप। लौकिक बाप से तो जन्म-जन्मान्तर हद का वर्सा लेते आये, अब बेहद का वर्सा लो। बहुत गई थोड़ी रही….. विकर्मों का बोझा सिर पर बहुत है। योग से ही विकर्म विनाश हो सकते हैं। मासी का घर नहीं। अजुन कुछ न कुछ हिसाब-किताब रहा हुआ है तब तो भोगना पड़ता है ना। कितनी मेहनत लगती है। अगर देरी से आयेंगे तो कितना विकर्म विनाश कर सकेंगे। मुश्किलात है ना। यह तो तुम ढिंढोरा पिटवा दो जो कोई फिर उल्हना न देवे। तुम कह सकेंगे हम तो ढिंढोरा पिटवाते, अ़खबार में डलवाते थे। जितना हो सके निमंत्रण तो सभी को मिलना चाहिए। बेहद के बाप से बेहद का वर्सा लेने का पुरुषार्थ करो। खूब निमंत्रण पत्र बांटो। सबसे जास्ती सर्विस देहली में हो सकती है। देहली है सारे भारत की गद्दी, वहाँ सभी अखबारों के एजेन्ट्स रहते हैं। अ़खबार द्वारा भी इतला करना है। लौकिक बाप से तो जन्म-जन्मान्तर वर्सा लेते आये, अभी फिर पारलौकिक बाप से वर्सा लो। जिस वैकुण्ठ को याद करते हो उसका वर्सा बाप से आकर लो। सभी अखबारों में डालते जाओ – शिवबाबा का बर्थ प्लेस है भारत। सभी का उद्धार करने वाला एक ही बाप है। तो सबसे बड़ा तीर्थ परमपिता परमात्मा पतित-पावन का हुआ ना, परन्तु यह किसको पता नहीं है। क्राइस्ट, इब्राहिम, बुद्ध आदि सभी पुनर्जन्म लेते-लेते अभी अन्तिम जन्म में हैं। क्रिश्चियन लोग खुद भी कहते हैं क्राइस्ट यहाँ ही किसी जन्म में है। क्रिश्चियन लोग भी झाड़ को मानते हैं। नहीं तो इतनी आत्मायें कहाँ से आती हैं। जरूर सेक्शन हैं जहाँ से आते हैं। हिस्ट्री फिर रिपीट जरूर होगी। यह झाड़ बड़ी अच्छी चीज़ है परन्तु इनकी वैल्यु बच्चों के पास नम्बरवार है।

बच्चे दूसरों को समझाने के लिए प्रदर्शनी आदि करते हैं। इसमें कोई आर्ट का शो नहीं करना है। आर्ट गैलरी में तो व्यर्थ के चित्र रखते हैं। समझते हैं यह आर्ट है। देवताओं की पतली कमर आदि के किस्म-किस्म के चित्र बनाते हैं। वहाँ देवताओं की तो नेचुरल ब्युटी रहती है। इस समय तो 5 तत्व भी तमोप्रधान हैं। सतयुग में 5 तत्व भी सतोप्रधान होते हैं। कृष्ण गोरा और कृष्ण सांवरा गाया हुआ है। वहाँ शरीर की मरम्मत नहीं होती। यहाँ तो देखो कितनी मरम्मत करनी पड़ती है। वहाँ तो भल बूढ़ा हो जाए तो भी दांत आदि सभी साबुत रहते हैं। दांत टूट जाएं तो डिसफिगर हो जाएं। वहाँ तो एकदम फर्स्ट क्लास 16 कला सम्पूर्ण रहते हैं। लूले-लंगड़े होते नहीं। यहाँ तो देखो कैसे लूले-लंगड़े जन्म लेते हैं। तो तुम ऐसे परिस्तान के मालिक बन रहे हो। एक ही मुसाफिर आकर परिस्तान में ले जाते हैं। तुम मुसाफिर यहाँ पार्ट बजाते-बजाते पतित बन जाते हो, आत्मा काली हो जाती है। बाप तो एवर हुसैन है, उनमें कभी खाद नहीं पड़ती है। मैं तो सच्चा सोना हूँ इसलिए मुझे बुलाते हैं। एवर पावन को ही बुलाते हैं – बाबा आओ, हमको भी आप समान बनाओ। तुम एवर पावन तो नहीं बनेंगे। बाकी सतोप्रधान में तो सबको आना है, परन्तु उनमें भी नम्बरवार हैं। नाटक में एक्टर्स भिन्न-भिन्न होते हैं ना। कोई हीरो-हीरोइन होते हैं तो उनको पैसे भी बहुत मिलते हैं। अभी तो गवर्मेन्ट सबके पैसे पकड़ती रहती है। कहा जाता है – किनकी दबी रहेगी धूल में, किनकी राजा खाए, सफली होगी वह जो खर्चे नाम धनी के……. क्योंकि धनी आया हुआ है स्वर्ग की स्थापना करने। जो बाप के मददगार बनेंगे उन्हों का ही सेफ रहेगा। तुमको तो वहाँ ढेर की ढेर मिलकियत होगी। कितना सोना हीरे जवाहर आदि होंगे! परन्तु तुमको उसकी कोई भी परवाह नहीं रहती है। तुमको कोई लूटेंगे थोड़ेही। हीरे-सोने आदि की खानियां सब तुमको नई-नई मिलेंगी। पत्थरों मुआफिक हीरे पड़े होंगे। सब तुमको मिल जाना है। जैसे ईटों के महल बनते हैं वहाँ सोने के महल बनाते रहेंगे। धनवान प्रजा भी सोने के महल बनायेगी। जो पूरे दानी बनते हैं वह भी सोने के बनाते हैं। बाबा सब बातें बतलाते रहते हैं। ऐसे भी नहीं कहते तुम भूख मरो। बच्चों आदि को भी सम्भालना है। रचता का फ़र्ज है सम्भाल करना, दु:खी नहीं करना है। भूख नहीं मारना है। रहमदिल बनना है। मनुष्य कितने दु:खी हैं, जानते हो फैमन पड़ेगा तो बहुत दु:खी होंगे। त्राहि-त्राहि करेंगे, फिर जयजयकार होगी। सब आत्माओं को सुख मिल जायेगा। बाप है ही दु:ख हर्ता, सुख कर्ता। सुख हैं दो – एक शान्तिधाम में रहना और दूसरा सुखधाम में रहना। सुखधाम में पवित्रता, सुख, शान्ति सब है। बाप कहते हैं मैं कल्प-कल्प आता हूँ। जब मनुष्य बहुत दु:खी हो जाते हैं, मेरा पार्ट ही उस समय का है इसलिए मेरा नाम ही है दु:ख हर्ता, सुख कर्ता, सर्व का शान्ति दाता, सुखदाता।

तुम जानते हो हम बाबा के साथ सबको शान्ति का दान देते हैं। जितना याद में रहेंगे उतना औरों को दान देते रहेंगे। फिर नॉलेज देते हैं सुख के लिए। तो बच्चों को मात-पिता का शो करना है। जितना शो करेंगे, सुख शान्ति का मार्ग बहुतों को बतायेंगे तो इज़ाफा मिलेगा। बाबा तुमको कितना सब नई दुनिया की नई-नई बातें सुनाते हैं। पुरानी दुनिया और नई दुनिया दोनों का साक्षात्कार कराते हैं। और ही जास्ती तुमको साक्षात्कार करायेंगे, परन्तु उनको जो बाबा के पक्के सच्चे बच्चे होंगे। सच्चे दिल पर साहेब राज़ी होता है। तुम बहुत कुछ देखेंगे जैसे शुरू में भी दिखाया था फिर अन्त में दिखायेंगे। कितने प्रोग्राम आते थे, साक्षात्कार कराते थे। कितनी सजावट, ताज आदि पहनाते थे फिर से भिन्न-भिन्न प्रकार के दिखायेंगे। मिरूआ मौत मलूका शिकार। उसी समय पार्टीशन में भी मिरूआ मौत था ना। तुमको कोई परवाह नहीं थी। तुम तो जैसे जीते जी मर गये। तो बाबा कहते हैं – बच्चे, पूरी मेहनत करो, पुरुषार्थ करो, हम आत्मा हैं। एक-दो से भी रूहानी बातें करते रहो। जिस्मानी देह-अभिमान की बातें खत्म। जो आश्चर्यवत् भागन्ती हो जायेंगे वह यह सब नहीं देखेंगे। पास्ट भी तुमने देखा और जो नया होगा वह भी तुम देखेंगे, मेहनत करो। मीठे-मीठे बच्चों को बाप बहुत प्यार करते हैं। प्यारे बच्चों को बहुत प्यार मिलता है। जो अच्छी सर्विस करेंगे उनको प्यार भी मिलेगा, पद भी मिलेगा। भूलो नहीं, हम आत्माओं को निराकार परमपिता परमात्मा शिक्षा दे रहे हैं, स्वर्ग का वारिस बना रहे हैं। दैवी गुणवान बनना है। आगे तो सबमें आसुरी गुण थे। अब बाबा सम्मुख बैठे हैं, जिससे वर्सा मिलता है, उनसे लॅव रहता है, दलाल से नहीं। दलाल तो बीच में हुआ। सौदा तुमको उनसे मिलता है। तो बाप को याद करो। देह-अभिमान को छोड़ते जाओ। मेरा तो एक बाबा, दूसरा कोई भी देहधारी याद न आये। यह तो बाबा पुरानी बूट में आये हैं। मैंने यह लोन लिया है। कल्प पहले भी यह अक्षर कहे होंगे। अब भी कह रहे हैं। आज के ही दिन तुमको यह समझाया था फिर समझा रहा हूँ। कितनी अच्छी विशाल बुद्धि चाहिए। लक्ष्मी-नारायण नम्बरवन बने हैं, जरूर अच्छी प्रालब्ध बनाई होगी। यह गॉड फादरली सैलवेशन आर्मी है, सारी दुनिया को मुक्ति-जीवनमुक्ति की सैलवेशन देने वाली। सर्व का सद्गति दाता राम। गति में तो जाना ही है सारी दुनिया को। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) बाप के साथ सारे विश्व को शान्ति का दान देना है। बाप समान दु:ख हर्ता सुख कर्ता बनना है।

2) एक बाप से पूरा लॅव रखना है। आपस में देह-अभिमान की बातें नहीं करनी है। रूहानी बातें ही करनी है।

वरदान:-

इन्तजार को छोड़ इन्तजाम करने वाले वियोगी के बजाए सहयोगी सो सहजयोगी भव

कई बच्चे इन्तजार करते हैं कि यह छोड़ें तो छूटूं, यह टकराव छोड़ें तो छूटूं-लेकिन ऐसा नहीं होता। यह तो माया के विघ्न वा पढ़ाई में पेपर समय प्रति समय भिन्न-भिन्न रूपों से आने ही हैं। तो यह इन्तजार नहीं करो कि फलाना व्यक्ति पास करे, फलानी परिस्थिति पास करे.. नहीं, मुझे पास करना है। ऐसा इन्तजाम करो। सदा श्रीमत की अंगुली के आधार पर चलते, सहयोगी सो सहजयोगी बनो। कभी सहयोगी कभी वियोगी नहीं।

स्लोगन:-

अपने उमंग-उत्साह द्वारा अनेक आत्माओं का उत्साह बढ़ाना – यह सच्ची सेवा है।

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