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21-09-2018

21-09-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन


”मीठे बच्चे – बाप से लॅव और रिगार्ड रखो तो बाप की आशीर्वाद मिलती रहेगी, माया की जंक उतरती जायेगी”

प्रश्नः-

इस चैतन्य बगीचे में कई फूल खिलते ही नहीं, कली के कली रह जाते हैं – क्यों?

उत्तर:-

क्योंकि पुरुषार्थ में सुस्ती है, याद करने का जो समय है उसमें सोये रहते हैं। सोने वाले अपना समय ऐसे ही गंवा देते हैं। जिन सोया तिन खोया। बन्द कली ही रह जाती। सदा गुलाब के फूल वह हैं जो देवी-देवता धर्म के आलराउन्ड पार्टधारी हैं।

गीत:-

यह वक्त जा रहा है…  

ओम् शान्ति।

यह किसने समझाया? बेहद के बाप ने समझाया बच्चों को। बेहद की जो घड़ी है उसमें अभी बाकी थोड़ा टाइम अथवा कुछ मिनट रहे हैं। घण्टे गये, बाकी कुछ मिनट रहे हैं। जो अच्छे सेन्सीबुल बच्चे हैं वह जानते हैं, नम्बरवार तो हैं ना। गुलाब के फूल होते हैं उनमें भी नम्बरवार होते हैं। यहाँ भी गुलाब के फूल हैं लेकिन उसमें कोई बन्द कली हैं, कोई थोड़ा खिले हुए हैं। तुम्हारा देवी-देवता धर्म भी जैसे सदा गुलाब है, सदा आलराउन्ड पार्ट बजाने वाले। तुम सभी धर्मों में ऊंच ते ऊंच धर्म वाले सदा गुलाब हो। दूसरे धर्म वाले फिर नम्बरवार हैं, कोई चम्पा हैं, कोई चमेली हैं, कोई टांगर हैं, कोई अक है। बगीचा तो है ना। सभी धर्मों का बगीचा है। बच्चियां जानती हैं ऊंच ते ऊंच धर्म है ही देवी-देवताओं का। जब सीजन नहीं होती है तब मुखड़ी भी नहीं रहती, कली फूल भी नहीं रहते हैं। (बाबा ने आज बगीचे से एक बड़ा गुलाब का फूल, एक छोटा फूल, एक आधा खिला हुआ फूल, एक कली, एक बन्द कली, एक मुखड़ी… ऐसे वैरायटी लाकर संदली पर रखा है) अब देखो, मुखड़ी भी कोई कच्ची है, कोई आधा खिली हुई है। कोई फूल है, कोई बंद कलियां हैं। कोई मुरझा जाते हैं, बिल्कुल खिलते ही नहीं। बरोबर ऐसा है ना। तो बाप कहते हैं पुरुषार्थ में सुस्ती न करो। ऐसे कली के कली न रह जाओ। कोई आधा में रह जाते, नम्बरवार हैं। समझा जाता है इस हालत में यह क्या पद पायेंगे? समय बहुत थोड़ा है। घड़ी बनाई है, कांटे को अब बदल तो नहीं सकते हैं। युक्ति से ऐसे बनाना चाहिए, जो निशानी रहे। यहाँ से शुरू हो कांटा अब यहाँ तक आकर पहुँचा है। जीरो से शुरू हो फिर कांटा 12 तक आकर पूरा होता है। तो इस चक्र में भी पहले देवी-देवता धर्म निकला, अभी है अन्त। जब से बाप आया है तब से गिना जाता है।

तो बाप कहते हैं – बच्चे, टाइम वेस्ट मत करो। बाप को याद करते रहो। जितना याद करेंगे उतना विकर्म विनाश होंगे। विकर्म तो सबसे होते रहते हैं। ऐसे कोई मत समझे कि हमसे नहीं होता है। इतना अहंकार कोई मत रखे। विकर्म तो बहुत ही गुप्त भी बनते हैं। उनसे बड़ी सम्भाल रखनी है। इस घड़ी से तुमको टाइम का तो पता लग ही जाता है। मनुष्य तो समझते कलियुग अभी बच्चा है। बिल्कुल घोर अन्धियारे में पड़े हुए हैं। अभी तुमको मुर्दों को जगाना है। सवेरे उठकर बाप को याद करना चाहिए। जिन सोया तिन खोया। यानी याद करने का जो समय है वह खोना नहीं है, नहीं तो मुर्दे के मुर्दे रह जायेंगे। कोई तो कली ही रह जाते हैं। बस, तूफान में अच्छी-अच्छी कलियां भी गिर जाती हैं। फूल भी गिरते हैं तो कलियां भी गिरती हैं। फिर जैसे कि कांटे के कांटे रह जाते हैं। दैवी घराने में तो आयेंगे परन्तु प्रजा में आयेंगे। तुम हो ही गुलाब के झाड़ के, परन्तु इसमें खुश नहीं होना चाहिए। भल मनुष्य गाते हैं फलाना स्वर्ग पधारा, परन्तु क्या बना? यह भी कारण होगा ना। यह तो बच्चे समझ सकते हैं जितना बाबा का मोस्ट सर्विसएबुल बच्चा होगा उतना वह बिलवेड भी मोस्ट होगा। यह तो कॉमन बात है। सपूत, आज्ञाकारी, इमानदार बच्चे माँ-बाप को प्यारे लगते हैं। माया बिल्कुल ही बेइमानदार बना देती है। पता भी नहीं पड़ता है कि हमसे बड़ी भारी ग़फलत होती है। बाप कहते हैं जो करेंगे उनको पाना ही है। ऐसा विकर्म नहीं करना जो सजा खानी पड़े। कोई विकर्मों की यहाँ भी सजा पा लेते हैं। कर्मभोग है। गर्भजेल में भी कर्मभोग है। उनसे बड़ा ख़बरदारी से छूटना है, माया बड़ी शैतान है इसलिए बिलवेड मोस्ट बाप को तो हर वक्त याद करते रहना चाहिए। जैसे लौकिक बाप अपने बच्चों को जानते हैं वैसे पारलौकिक बाप भी हर एक बच्चे को जानते हैं। बाप खुद बैठ बतलाते हैं – मैं एक ही इस तन में आता हूँ। कितने ढेर बच्चे हैं। अजुन तो ढेर आयेंगे। झाड़ बढ़ता है। भगवान् के आगे भक्तों की भीड़ होगी। शिव के मन्दिर में इतनी भीड़ नहीं होती। यहाँ तो तुम समझते हो कितनी भीड़ होगी। सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी राजधानी स्थापन होनी है। इन बातों में बुद्धि बड़ी विशाल चाहिए। बरोबर भक्त जो इतनी भक्ति करते हैं, उनके सम्मुख भगवान् आयेंगे तो कितनी भीड़ होगी।

तुम जानते हो बाबा हमको राजयोग सिखला रहे हैं परन्तु घर में रहते हुए फिर भी भूल जाते हैं। यह ऐसी विचित्र बात है जो साथ रहते भी फिर भूल जाते हैं। इतना लॅव रिगार्ड नहीं रहता। सुई को कट लगी हुई होगी तो वह चुम्बक को खींच नहीं सकती। योग और ज्ञान भी हो तब कट निकल सके और परमात्मा की आशीर्वाद भी चाहिए ना। माया की जंक लगी हुई है, कोई चीज़ को जंक लगी हुई है तो घासलेट में डालते हैं। तुम्हारी भी योग से जंक निकलती है। आत्मा प्योर हो जाती है। तो बाप समझाते हैं – बच्चे, फूल बनकर दिखाओ। वह समय भी जल्दी आयेगा जो तुम किसके सामने बैठेंगे और झट उसको साक्षात्कार होने लगेंगे। ब्रह्मा और विष्णु का साक्षात्कार तो बहुतों को होता है। डायरेक्शन देते हैं – जाओ बी.के. के पास। ब्रह्मा भी बैठे हैं, ब्रह्माकुमार-कुमारियां भी बैठे हैं। आगे चलकर बहुतों को साक्षात्कार होगा। बाबा साक्षात्कार कराते हैं तुम वहाँ जाओ, मैं वहाँ राजयोग सिखला रहा हूँ, इससे तुम यह पद पा सकते हो। है भी सेकेण्ड की बात। मनमनाभव। मुझे याद करो तो तुम सूर्यवंशी बन जायेंगे। वहाँ हैं दैवी वंशी और यहाँ हैं असुर वंशी। कितना अच्छी रीति समझाया जाता है। कोई चीज़ को महीन करने के लिए कूटा जाता है ना। मकान का फाउन्डेशन पक्का करने के लिए कितनी मेहनत करते हैं। बाप भी कहते हैं जितना हो सके मुझे याद करो। शिवपुरी और विष्णुपुरी को याद करो। यह अन्दर अपने साथ बातें करनी चाहिए। पहले अपने से चिन्तन कर फिर बात करनी होती है – समझाने के लिए। तुमको भी समझाना है।

अब बच्चे एग्जीवीशन में कितनी मेहनत करते हैं। है सारी समझाने की बात। सिर्फ स्लोगन से तो कोई समझ न सके। बाप बैठ समझाते हैं देवी-देवताओं को राज्य कैसे मिला? किसने राजयोग सिखाया? भगवानुवाच – मैं राजयोग सिखलाता हूँ, कहता हूँ मुझे याद करो। शिवपुरी और विष्णुपुरी को याद करो। अब प्रदर्शनी में भी बच्चों को अच्छी रीति समझाना है। मेडीटेशन पर भी समझाना है। हम भी मेडीटेशन करते हैं। चलते-फिरते बाप को याद करते बाप से बातें करते रहते हैं। जैसे कोई प्रोग्राम से कहाँ जाना होता है तो बुद्धि में रहता है आज फलाने के पास हमको जाना है। प्रोग्राम मिला और बुद्धि दौड़ती रहेगी। समय नज़दीक आयेगा, समझेंगे अभी हमको जाना है। तुमको भी अन्दर में यह रहना चाहिए – बस, अभी हमको जाना है बाबा के पास। यह पुरानी खाल छोड़नी है। शिवपुरी में जाना है। इस रावणपुरी को छोड़ना है। यह बड़ी छी-छी गन्दी दुनिया है। अभी हम संगम पर बैठे हैं। यह आइरन एजड शरीर है। बाबा कहते हैं मुझे याद करते रहो तो तुम आत्माओं को शिवपुरी ले जाऊंगा। कृष्ण तो नहीं ले जायेगा। तो यह समझाने की बात है।

अब बाप कहते हैं मुझ शिवबाबा को याद करो। अभी तुम राजयोग सीख रहे हो। तुमको शिवपुरी में आना है, फिर विष्णुपुरी में चले आयेंगे। यह समझाना तो सहज है ना। शिव पुरी मुक्ति से होकर विष्णुपुरी (जीवनमुक्ति) में जाना है। सभी का बाप एक है। मुख्य यह समझाना है। बाकी कितना भी स्लोगन आदि बनायेंगे, मुफ्त खर्चा होता है। चित्र तो सब तुम्हारे पास हैं। कराची में तुम्हारे पास कितने आते थे। बड़े मैदान में टेबुल-कुर्सी रखी रहती थी। जो आते थे उनको बैठ समझाते थे। आगे तो इतना ज्ञान नहीं था। अभी तो बिल्कुल सहज ज्ञान मिला है। बाप को भी जानते हो। बाप है स्वर्ग का रचयिता। उनका फ़रमान है – मुझे और वर्से को याद करो। चित्र दिखाकर इस पर समझाओ। आगे तो समझाने से सुनते-सुनते ध्यान में चले जाते थे। उसी समय तो तुम छोटी-छोटी कलियां थी। बाबा का सारा चमत्कार था। रस्सी खींच लेते थे। अभी तो समझाने की बहुत जरूरत है। आजकल तो आदमी भी बड़े ख़राब हैं। फार्म भराने बिगर आक्यूपेशन का पता पड़ न सके। जैसे वह बैरिस्टरी आदि पढ़ाने वाले टीचर्स होते हैं ना। यह बेहद का बाप कितना बड़ा टीचर है। वह टीचर तो करके बैरिस्टर बनायेगा। बीच में शरीर छूट गया तो बैरिस्टरी भी ख़त्म। ऐसे थोड़ेही दूसरे जन्म में वह चलेगी। यहाँ तुम जो कुछ करते हो, वह साथ ले जाते हो। आत्मा में संस्कार रहते हैं। हाँ, छोटे बच्चे को आरगन्स छोटे हैं इसलिए बोल नहीं सकते हैं। कर्मेन्द्रियों से कुछ कर नहीं सकते परन्तु संस्कार तो ले जाते हैं ना। यह है अविनाशी ज्ञान, बड़ा होकर फिर आए ज्ञान लेंगे। वह आत्मा फिर से आयेगी जरूर। कहाँ न कहाँ किसका कल्याण करेगी। अपने मात-पिता को भी इस तरफ खीचेंगी। भल छोटा बच्चा होगा तो भी मम्मा-बाबा को देखने से ही उनका लॅव कशिश होगा। आरगन्स छोटे होने कारण बात तो नहीं कर सकेंगे। परन्तु लॅव जायेगा हमजिन्स तरफ।

तो यह नॉलेज बड़ी विचित्र, रमणीक और सिम्पुल है। कोई तो बिल्कुल ही ऐसे हैं जो कांटे का कांटा रह जाते हैं। सतयुग है गुलाब का झाड़। अभी तो कांटे हैं। फिर उनसे कोई मुखड़ियां निकल रही हैं। सदा गुलाब तो हैं फिर उनमें नम्बरवार हैं। प्रजा में भी आयेंगे ना। कली बन फिर मुरझाकर ख़त्म हो जायें, यह कोई पढ़ाई थोड़ेही हुई। मुखड़ी बंद की बंद रहेगी तो प्रजा में चले जायेंगे। जो फूल बनते हैं वह राजाई में आयेंगे। बाबा बगीचे में जाते हैं तो बच्चों को समझाने के लिए फूल भी ले आते हैं। अगर अभी पुरुषार्थ कर फूल न बनें तो बाद में बहुत पछताना पड़ेगा। एक तो विकर्मों का बोझा सिर पर है ही फिर और ही सजा खाकर प्रजा में पद पाना, वह किस काम का हुआ। यह तो समझते हो हमारी दैवी राजधानी स्थापन हो रही है। हर एक को समझ सकते हैं कौन-कौन क्या बनेंगे? दिल में रहेगा यह कहाँ तक पढ़ रहे हैं, क्या बनेंगे? अच्छा पढ़ने वाला होगा तो अन्दर प्यार करते रहेंगे। समझेंगे, यह राजाई में आयेंगे। आगे चलकर तुमको बहुत साक्षात्कार होंगे। न पढ़ने वाले फिर बहुत पछतायेंगे। समय बहुत थोड़ा है। फिर इतना गैलप भी कैसे करेंगे। बाप कहते हैं बच्चे बनकर और फिर अगर विकर्म करेंगे तो सौगुणा दण्ड भोगना पड़ेगा। जेल में जाने वाले कई चोरों का धन्धा ही यह हो जाता है – सज़ा खाना, जेल जाना।

अभी तुम पुरुषार्थ कर रहे हो ऊंच ते ऊंच महाराजा-महारानी सूर्यवंशी बनने का। नम्बरवार तो हैं ना। जो भागन्ती हो जायेंगे उनका क्या हाल हो जायेगा! बाप कितना अच्छी रीति समझाते हैं परन्तु तकदीर में नहीं है तो समझते नहीं फिर तो तदबीर कराने वाला क्या कर सकता है? बाप तो कहते हैं फूल बनो, बाप को भूलो मत। ऐसे बाप का हाथ कभी नहीं छोड़ना। माया अजगर कच्चा खा जायेगा। ऐसी ग़फलत नहीं करनी है जो अपना राज्य-भाग्य गँवा बैठो। फिर कल्प-कल्पान्तर ऐसी चलन देखने में आयेगी जैसे अभी देखते हैं। कोई की सतोप्रधान चलन है, कोई की रजो, कोई की तमो……..। ग्रहचारी भी अच्छे-अच्छे बच्चों पर बड़ी कड़ी बैठती है। अन्दर के काले, बाहर के अच्छे। ग़फलत होगी तो आत्मा काली हो पड़ेगी। परछाया काला पड़ता है इसलिए बाबा कहते हैं – एक कान से सुन, दूसरे कान से फिर निकाल दो, ईविल बातों के लिए कान बन्द कर दो। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) सदा विकर्म विनाश करने की लगन में रहना है। कोई भी विकर्म अभी न हो, इसकी सम्भाल करनी है।

2) माया की ग्रहचारी से बचने के लिए ईविल बातों से कान बन्द कर लेने हैं। अपनी चलन सतो-प्रधान बनानी है। अन्दर बाहर साफ रहना है।

वरदान:-

अमृतवेले के फाउण्डेशन द्वारा सारे दिन की दिनचर्या को ठीक रखने वाले सहज पुरुषार्थी भव

जैसे ट्रेन को पटरी पर खड़ा कर देते हैं तो आटोमेटिकली रास्ते पर चलती रहती है, ऐसे ही रोज़ अमृतवेले याद की लकीर पर खड़े हो जाओ। अमृतवेला ठीक है तो सारा दिन ठीक हो जायेगा। अमृतवेले का फाउण्डेशन पक्का है तो सारा दिन स्वत: सहयोग मिलता रहेगा और पुरुषार्थ भी सहज हो जायेगा। जो सदा बाप की याद और श्रीमत की लकीर के अन्दर रहने वाली ऐसी सच्ची सीतायें हैं उनके नस-नस में एक राम की स्मृति का आवाज रहता है।

स्लोगन:-

बाबा की मदद को कैच करना है तो बुद्धि को एकाग्र कर लो।

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