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मन की शान्ति

मन की शान्ति 

गृहस्थी चलना किसी दुनिया को चलाने से कम नहीं है। रोजमर्रा की समस्याओं से जूझते हुए निर्णय लेना, परिवार को एक सूत्र में बांधकर रखना और इससे भी महत्वपूर्ण है दाम्पत्य को सुखपूर्वक चलाना। गृहस्थी का सफल संचालन कोई छोटी बात नहीं है इसके लिए दो सूत्र अपनाना आवश्यक है पहला मन में शांति रखें, दूसरा व्यवहार में शालीनता रहे।

यह एक सामान्य सिद्धान्त है कि भले लोग गृहस्थी बसाते हैं और सज्जनता से उसे चलाते हैं। सज्जनता और शालीनता में बारीक फर्क है। गृहस्थी चलाते हुए कई सज्जन लोग शालीन नहीं रह पाते। शालीनता एक आत्मिक अनुशासन है। घर-परिवार के जीवन में विलास और अहंकार जिस तेजी से प्रवेश करते हैं उसके लिए शालीनता स्पीडब्रेकर का काम करती है। घर के सदस्य एक दूसरे के प्रति और खास तौर पर पति-पत्नी जब शालीनता का व्यवहार करेंगे तो अपनेपन के भाव में वृद्धि होगी। व्यवहार में शालीनता लाने के कुछ आध्यात्मिक प्रयोग किए जा सकते हैं।

 शान्त मन शालीनता को स्वत: ही बाहर फैंकता है। पहले तो यह समझें कि गृहस्थी में मनुष्य का मन एक मदमस्त हाथी की तरह व्यवहार करता है, परिणाम देता है, बगिया उजाड़ता है और झोपड़ी, टापरी तोड़ता है। इसे कहते हैं अशांत मन। आप पाएंगे कि जब जब आपका मन अशांत है तब आप अपनी गृहस्थी में स्वयं ही कई नुकसान करेंगे। यहां समझ लें कि अशांत मन कुछ नहीं होता, दरअसल अशांति का नाम ही मन है। मन शांत करने के जितने प्रयास करेंगे हाथ में असफलता ही लगेगी। इसके लिए तीन तरीके अपनाना पड़ेंगे-मन से बाहर हो जाएं, दूर हो जाएं और पार चले जाएं। मन को शांत नहीं किया जा सकता, वह जैसा है वैसा ही रहेगा, हां हम उससे बाहर, दूर, पार जाकर शांति को उपलब्ध हो पाएंगे। इसके लिए कोशिश यह की जाए कि परिवारों में सामूहिक ध्यान के निजी शिविर जैसे लगाए जाएं।  परिवारों सदस्य जब भी बैठें, साथ में ध्यान का अभ्यास करें।

सावधान रहें इस समय मौन घटाना है चुप्पी नहीं। एक साथ किया जा रहा मेडिटेशन आपस में प्रेम भरेगा और साथ-साथ में उतरी चुप्पी वातावरण को बोझिल कर देगी। (बीकेवार्ता – कृपया यह मॅटर कॉपी ना करें तथा सोशल वर्किंगसाईट, ईमेलगृप से वितरीत न करें.)

बोधकथा –
 
एक सेठ नगर के सब से धनी व्यक्ति थे. ईश्वर ने उन्हें सब कुछ दिया था धन दौलत योग्य संतान और सुखी परिवार.  इतना सब कुछ मिलने के बाद भी यदि नहीं थी  तो मन की शांति . उन्हें और बहुत कुछ पाने की लालसा बनी रहती. 

एक दिन सेठ जी नगर के बाहर भ्रमण के लिए निकले. हरे भरे खेत, नहर  का कल-कल बहता निर्मल जल, लहलहाते वृक्ष शीतल बयार. प्रकृति के सामीप्य ने उन्हें मोह लिया. तभी उन्होंने  एक प्रसन्न चित किसान को गीत गाते हुए अपने खेत में काम करते हुए देखा. उन्हें  वह  संसार का बहुत सुखी व्यक्ति प्रतीत हुआ. 

उन्होंने   किसान को पास बुला कर पूछा – ” तुम्हारी प्रसन्नता का रहस्य क्या है ? “
आशा आरोग्य और आनन्द
(द जानकी फाउण्डेशन फॉर ग्लोबल हेल्थ केयर)


मन और शरीर का आपसी सम्बन्ध
मन और शरीर का आपस में गहरा सम्बन्ध है। जब मन शान्त होता है तो शरीर को
शकून महसूस होता है। अगर मन में तनाव और अशान्ति है तो शरीर में कहीं न
कहीं दर्द का अनुभव होने लगता है। वहीं दूसरी तरफ अगर हम शरीर में कहीं
दर्द महसूस कर रहे हैं तो मैं दुःख का अनुभव क्यों करूँ? इस तरह से दुःख
लेते रहना एक आदत बन जाती है ना कि जरूरत। अपने या किसी और के दर्द और
बीमारी के बारे में अधिक सोचने के कारण यह स्थिति उत्पन्न होती है। अधिक
सोचने से दुःख का अहसास करते रहना इस आदत के कारण जो तकलीपेंᆬ होती रहती
हैं, यह सबसे बड़ी बीमारी है।

विचारों के प्रकार
हमारे विचारों के चार प्रकार हैं। नकारात्मक, व्यर्थ, साधारण और
सकारात्मक। जब मैं नकारात्मक सोच चलाती हँू तब तुरन्त ही मुझे तकलीफ का
अनुभव होने लगता है। इस तरह की भावनाओं का लम्बे समय तक चलते रहना ही
शरीर की किसी न किसी बीमारी का कारण बनता है। दूसरी बात, हमारे मन में कई
बार व्यर्थ और अनावश्यक बातों की एक लहर सी चलती है। मैं अपने साथ क्या
कर रही हूँ, इस बात की गहरी अनुभूति से ही मैं अपने आप को इस चक्कर से
छुड़ा सकती हँू। इसके बाद कुछ ऐसे विचार होते हैं जिनको साधारण या आवश्यक
कहा जाता हैं। लोगों को अपने इन विचारों के स्तर का बहुत अभिमान होता है
पर वे समझते नहीं हैं कि यह एक कमजोरी हैं। वास्तव में अपने बारे में
मेरी गलत धारणायें ही मेरी बीमारी का मूल है। इसके विरुद्ध एक सम्पूर्ण
सकारात्मक विचार वह है जो मुझमें और मेरे आस-पास के लोगों में खुशी लेकर
आता है। जिसके कारण मेरे मन में नकारात्मकता, चिन्ता या बहुत अधिक
विचारों की भीड़ के लिए कोई स्थान नहीं रहता है। जब मैं इन चार प्रकार के
विचारों के अन्तर को अच्छी तरह से समझने लगूंगी तब मैं सम्पूर्ण शुद्ध और
सकारात्मक विचारों का चयन कर सकूंगी।

विचार, बोल और कर्म का प्रभाव
मनुष्य जैसा विचार करते हैं वैसा ही बोलते और कर्म करते हैं। मेरे
विचारों का, मेरे बोल कर्म और मन तथा शरीर की स्थिति पर गहरा असर पड़ता
है। दिल – मन और शरीर के बीच में आता है। जब किसी को प्यार नहीं मिलता है
तब सोचिये कि उसके दिल का क्या हाल होता होगा। हमारा दिल, दिमाग और हाथ
इन तीनों में एक तरह की समन्वयता होने की आवश्यकता है। मेरे अच्छे कर्म
करने की क्षमता मुझमें भीतर से स्वास्थ्य और सबकुछ अच्छा ही होगा इन
भावनाओं को उत्पन्न करती है। और जब यह छूट जाता है तब तकलीफ की शुरुआत
होती है। उदासीनता  पैर दर्द, कमर दर्द, सिर दर्द और इतना ही नहीं दिल
में दर्द जैसी बीमारियों का भी आरम्भ होता है।

स्वास्थ्य सम्पत्ति और खुशी
स्वास्थ्य, सम्पत्ति और खुशी – इसमें से सबसे पहले मुझे क्या चाहिए?
दुनिया में लोग समझते हैं कि सम्पत्ति से खुशी आती है। मुझे अपने जीवन
में सादगी को अपनाना होगा ताकि मेरा धन सही जगह पर खर्च हो। सादगीपूर्ण
जीवन  पहनावा और भोजन – इसमें ही मेरी सम्पत्ति का उपयोग होता है तो मुझे
किसी प्रकार की कोई चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है। फिर मैं अपनी और
दूसरों की अच्छी तरह से देखभाल कर सकती हूँ।
सच्चा धन या सम्पत्ति क्या है? खुशी, हिम्मत और विश्वास भी मेरी सम्पत्ति
है। खुश रहो और उस खुशी को औरों के साथ बांटों। दूसरों की इच्छा और
आकांक्षाओं को पूरा करके उन्हें खुश करना केवल यही बात नहीं। जब मैं
इच्छा और आकांक्षाओं से मुक्त रहूंगी तब मुझे दूसरों को खुश रखने के लिए
सोचने की जरूरत नहीं पड़ेगी। यहाँ पर एक गहरी और शुद्ध इच्छा है कि सभी
हमेशा खुश रहें।

वायुमण्डल , माहौल और प्रकम्पन्न
खुशी बांटने के तीन तरीके हो सकते हैं। एक वायुमण्डल से, दूसरा माहौल से
और तीसरा अपने प्रकम्पन्नों से। मेरे आस-पास के माहौल में मेरे अपने
कर्मों से और सम्बन्ध-सम्पर्क के तरीके से एक तरीके का वायुमण्डल निर्मित
होता है। जैसे कि अगर मेरे व्यवहार में विरोधाभास है तो यह नकारात्मक
ऊर्जा उसी तरह का वायुमण्डल निर्माण करेगी। फिर ऐसे वायुमण्डल के
प्रकम्पन्न वातावरण में फैलते हैं और उसका असर औरों पर होता रहता है। जब
मुझे यह अहसास होता है कि आन्तरिक खुशी को बाहर की दुनिया से प्राप्त
नहीं किया जा सकता है वो केवल भीतर से ही प्रस्फुटित हो सकती है। उसके
बाद मुझे यह अहसास होता है कि अब मुझे अपने जीवन में इन बातों से ऊपर
उठना होगा। इस बात से स्वत ही एक सकारात्मक वायुमण्डल मेरे आस-पास
निर्मित होगा।

इच्छा और लगावमुक्त बनें
इस तरह की खुशी को अपने अन्दर बढ़ाने के लिए मुझे दो बातों का त्याग करना
होगा; इच्छायें और लगाव। बीमारी का दूसरा मूल कारण है इच्छायें और
अपेक्षायें जो लगाव से उत्पन्न हुई है, उनका पूरा न होना। खुश रहना
अर्थात्‌ सन्तुष्ट रहना। जहाँ कोई भी इच्छा न हो या फिर किसी भी बात से
मन अस्वस्थ न हो वहाँ पर धैर्यता होगी। मरीज कितना भी गम्भीर बीमार क्यों
न हो, डॉक्टर क्या करता है! डाक्टर मरीज को आश्वस्त करता है कि धीरज रखो
सबकुछ ठीक होगा। मरीज को धैर्यता की आवश्यकता होती है।

धीरज शान्ति और प्रेम
जब मेरे में धीरज पनपता है तब शान्ति और प्रेम भीतर से उत्पन्न होते हैं।
जब मेरे में अधीरता की भावनायें होती हैं तब मैं दुःख और अशान्ति से घिर
जाती हूँ। बाहर से कुछ भी हो रहा हो या कितनी भी गम्भीर बीमारी ही क्यों
न हो, अगर भीतर में धैर्यता है तो हर बात छोटी लगेगी। और अगर मुझमें
धैर्यता की कमी है तो मैं छोटी-छोटी बातों को सोच-सोच कर बड़ा बना देती
हूँ। तब मेरा दिल और दिमाग प्रभावित होता है और फिर मेरे हाथ भी सही
कार्य नहीं कर पाते हैं। हर रोज यह तीन गोलियाँ लेते रहो; धीरज, शान्ति
और प्रेम। एक बेहतर जीवन का मतलब है स्वस्थ, सम्पन्न और खुशनुमा जीवन।

मैं कौन हूँ?
आध्यात्मिकता एक ऐसी शक्ति है जो धर्म, संस्कृति, जाति-पाति और भाषाओं से
ऊपर है। जब मेरी स्मृति, वृत्ति और दृष्टि दुनियावी बातों से प्रभावित
होती हैं तब मैं अपने असली स्वरूप को नहीं जान पाती हूँ। अपनेआप से पूछो
कौन हूँ मैं? मैं एक चैतन्य प्रकाशित शक्ति हूँ। मैं परमात्मा से शक्ति
लेती हूँ, और उसके प्ररिणाम स्वरूप मेरे जीवन में सबकुछ सही होने लगता
है। ईश्वरीय स्नेह की प्राप्ति से बीमारी से उत्पन्न हर तकलीफ पर मैं
विजय पा लेती हूँ और स्वयं शान्त स्वरूप और प्रेम स्वरूप बन जाती हूँ।
अपनेआप को देखो और पूछो क्या मेरे भीतर वह ईश्वरीय प्यार है? यह शान्ति
और प्रेम कहाँ से आता है? उनकी उत्पत्ति सकारात्मकता से हाती है।

परमात्मा से सम्बन्ध
सम्बन्ध संवाद और परमात्म के साथ गहरे रिश्ते के अनुभव से जो शक्तियों की
प्राप्ति मुझे होती है उससे मेरा दुःख और बीमारी समाप्त होती है। जब कोई
भी बीमारी आती है तो गहरे शान्ति के अनुभव में खो जाना चाहिए। गहरे
शान्ति के इस अनुभव के साथ मैं अपनेआप को परमात्मा के साथ जो़ड़ देती हूँ
और वह स्वास्थ्य का दाता मेरे दर्द को मिटाकर मुझे स्वास्थ्य प्रदान करता
है। ना केवल मेरा दुःख और बीमारी खत्म होती है बल्कि उससे उत्पन्न
प्रकम्पनों से अन्य और अनेकों के दुःख और बीमारी भी समाप्त होती है।
अपनेआप को एक आध्यात्मिक शक्ति समझने से और उस परमात्मा के प्यार को
अपनेआप में महसूस करने से मैं स्वास्थ्य के प्रकम्पन्न उत्पन्न करने में
समर्थ बनती हूँ। जब मैं अपनेआप में ईश्वरीय शक्तियों को बढ़ाती हूँ तब
अपने जीवन के खालीपन का सामना करने के लिए सक्षम बनती हूँ; खुशी और गम,
प्रशंसा और निन्दा, हार और जीत। इस शक्ति के आधार से मैं अपनी आन्तरिक
स्थिरता को बनाये रख सकती हूँ और दुःख के अहसास से मुक्त रहती हूँ।

दुखों से मुक्ति
एक मनुष्य होने के नाते मुझमें सही और गलत को पहचानने की, खुशी को गम से
अलग करने की और झूठ को सच्चाई से पहचानने की शक्ति है। इस समझ और निर्णय
करने की शक्ति के आधार पर मैं अपने जीवन में जो सही है वही करने में
सक्षम बनती हूँ ना कि गलत। और फिर मैं समझ के साथ श्रेष्ठ कर्म करने के
लिए प्रेरित होती हूँ। और जैसे ही इस तरह के विकल्प मैं चुनती हूँ तब
मेरी स्मृति स्वच्छ और स्पष्ट बनती है और मैं उस परमात्मा के साथ अपनेआप
को सहजता से जोड़ सकती हूँ। जब यह अनुभव स्वतः और सहज होने लगता है और मैं
उसी तरह का जीवन जीने लगती हूँ तब मुझमें ईश्वरीय शक्तियाँ और प्रेम का
संचार होने लगता है। जिससे मैं सर्व दुःखों से मुक्त हो जाती हूँ। जब
मुझमें यह विशेषतायें होती है तब किसी प्रकार का कोई दुःख मुझे छू नहीं
सकता।


शान्ति की शक्ति
साइन्स की शक्ति से इन्सान भौतिक सुखों के माध्यम से तात्कालिक खुशी का
अनुभव कर सकता है। जो कि समय के गुजरते ही छू हो जाती है लेकिन शान्ति की
शक्ति के अनुभव से मुझे अविनाशी आन्तिरिक खुशी की प्राप्ति होती है जो
मेरे से कोई छीन नहीं सकता है। यही वो खुशी है जो मुझमे आशा उत्पन्न करती
है और बीमारी से निर्मित दु:ख को समाप्त कर देती है। निराशा बीमारी को
बढ़ावा देती है। वास्तव में निराशा ही एक बीमारी है। लोग बहुत जल्द निराश
हो जाते हैं और हिम्मत को भूल जाते हैं और फिर दिल कमजोर होने के कारण
तुरन्त ही दु:खी हो जाते हैं। जहाँ हिम्मत है वहाँ परमात्मा की मदद स्वत:
ही मिलती है। मेरा हृदय खुशी, आशा और विश्वास से भर जाता है और जो हृदय
दु:खी था, वह स्वस्थता का अनुभव करने लगता है।

” मेरी प्रसन्नता का रहस्य  मेरी जीवन शैली है . मैं अपनी सीमित आय के चार भाग करता हूँ. एक भाग दान, एक माता पिता के लिए, एक भाग अपने परिवार के लिए और एक भाग व्यवसाय चलाने के लिए. “

सेठ जी को सुख-शान्ति  का रहस्य समझ आ गया था.

ज़िन्दगी की सीख :
                        निस्वार्थ दान एवं पारिवारिक कर्त्तव्य पालन में ही मन की  शान्ति  है.    

(बीकेवार्ता – कृपया यह मॅटर कॉपी ना करें तथा सोशल वर्किंगसाईट, ईमेलगृप से वितरीत न करें.)

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